
मोनू दरियापुर
सन 2005 की बात है. बवाना के दरियापुर गांव में दो बहुत पक्के दोस्त हुआ करते थे. सत्यवान उर्फ सोनू और भूपेंद्र उर्फ मोनू. मौका था सोनू की शादी का. उसका सबसे अच्छा दोस्त बड़े जतन से लगा हुआ था, ताकि कोई कमी न रह जाए. इस शादी में सोनू की बुआ की लड़की भी आई थी. नाम था राज. यहीं पर राज और मोनू की पहली मुलाक़ात हुई और जल्द ही वो प्यार में बदल गया. दोनों ने 2006 में शादी करने का फैसला कर लिया. सोनू ने इस शादी का यह कहते हुए विरोध किया कि राज और मोनू एक ही गोत्र के हैं. सोनू के बगावती तेवर देखकर इस जोड़े ने भागकर शादी करने का फैसला कर लिया.
साल 2006 और महीना था अक्टूबर. इंडिका कार में मोनू, राज और मोनू का दोस्त सुनील आर्य समाज मंदिर के लिए रवाना हुए. गाड़ी मोनू का ही एक और दोस्त ब्रह्मा चला रहा था. गाड़ी को रामपुर श्मसान के पास घेर लिया गया. एक बाइक और कार से उतरे आठ बदमाशों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं. मोनू को छह गोलियां लगीं. राज को दो और गोलियां लगीं. सोनू को पैर में गोली लगी थी. ब्रह्म सिंह की खोपड़ी छलनी हुई थी और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया था.
लगभग एक साल इलाज करवाने के बाद दुरुस्त हुए मोनू ने अगस्त 2007 में राज से शादी कर ली.
2008 में सोनू को केशवपुरम में गिरफ्तार कर लिया गया. इस गिरफ्तारी के बाद जोड़े को शांत जिंदगी की उम्मीद थी, लेकिन होना कुछ और था. साल 2009 में सोनू को 15 दिन की परोल मिल गई. इस दौरान सोनू ने मोनू के भाई सुधीर की हत्या कर दी और वहां से भाग गया. सोनू आज दिल्ली पुलिस का वांछित अपराधी है. मोनू अब दुनिया में नहीं है.
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इन दो दोस्तों की तरह ही दिल्ली के इसी इलाके में कुछ साल पहले दो और दोस्त हुआ करते थे. कृष्ण और बलराज. दोनों को पहलवानी का शौक था. इस दोस्ती में पड़ी दरार दिल्ली में मुंबई माफिया सी गैंगवॉर ले आई.
द्वारका की सभ्य सी दिखने वाली बसावटों के आगे दक्षिण-पश्चिम दिशा में और बढ़ते हैं, तो एक नई दुनिया आपके सामने खुलती है. दिल्ली देहात. संकरी गलियों और ट्रैफिक जाम से दूर ठीक वैसे ही गांव, जैसे देश के दूसरे कोने में हैं. ये 1990 का दौर था. भारत में नई आर्थिक नीति को लाया जा रहा था. दिल्ली के आसपास जमीनों की कीमत अचानक आसमान छूने लगी. इस अनाप-शनाप पैसे ने खड़े किए माफिया.
नजफगढ़ से करीब 3 किलोमीटर दूर एक गांव है दिचाऊं कलां. अब यह गांव कम और किंवदंती ज्यादा बन गया है. इस गांव में दो पड़ोसी हुआ करते थे, सूरज प्रधान और रामनिवास पहलवान. दोनों के पास 100 बीघे से ज्यादा जमीन थी. 1992 में रामनिवास पहलवान और उसके दोस्त रोहताश की गोली मारकर हत्या कर दी गई. यही वो घटना है, जिसने दिल्ली के बाहरी इलाकों में गैंगवॉर का आगाज किया.
असली वजह
रामनिवास उर्फ रामी पहलवान का उसी के जैसा पहलवान भतीजा था. नाम था कृष्ण. कृष्ण का उन दिनों कराला के रहने वाले जयबीर से झगड़ा चल रहा था. उस दौर में मितराऊं का रहने वाला बलराज अपने दोस्त लाला और ब्रह्मा के साथ गुंडागर्दी और उगाही किया करता था. वो उस समय अरविंदो कॉलेज के एक छात्र की हत्या के मामले में जेल में था. जयबीर कराला बलराज मितराऊं का गहरा दोस्त था. एक दिन कृष्ण ने मौका पाकर अपने साथी राजेश नाहरीवाल और जयबीर डोगरा के साथ मिलकर जयबीर कराला की हत्या कर दी. इसी के बदले में रामी और उसके दोस्त रोहताश की हत्या कर दी गई. कृष्ण पहलवान को इस बात का शक था कि उसके चाचा की हत्या में उनके पड़ोसी सूरज प्रधान में मुखबिर की भूमिका निभाई थी.कृष्ण को मौके की तलाश थी
बलराज के पुता सूरत सिंह भी अपने दौर के हिस्ट्रीशीटर थे. बलराज के एक चाचा थे, जिनकी शादी नहीं हुई थी. उनकी ढांसा रोड पर 15 बीघे की जमीन हुआ करती थी. इस जमीन को उन्ही के गांव मितराऊं के ही बलवान फौजी जोता करते थे. जब बलराज के चाचा की मौत हो गई, तो उसके पिता सूरत सिंह ने यह जमीन खाली करने के लिए कहा. उस समय तक जमीन का यह टुकड़ा बेशकीमती हो चुका था. बलवान ने मौके का फायदा उठाने का फैसला किया. वो बलराज के प्रतिद्वंदी कृष्ण पहलवान के पास पहुंच गया. बलराज यह जमीन छोड़ने को तैयार नहीं था. खून बहना लाजमी हो गया था.नए खिलाड़ी का आगाज
बात 1997 की है. बलराज का बड़ा भाई अनूप और उसका दोस्त संपूरण घात लगाकर बैठे हुए थे. अपने साले के साथ दिचाऊ जा रहे बलवान को घेर लिया गया और ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं. इस हमले में बलवान के साले अनिल की मौत हो गई. बलवान को गंभीर चोट आई थीं, लेकिन वो बच गए. इस वारदात के बाद ही पुलिस के रोजनामचे में गैंग का नाम अनूप-बलराज के तौर पर दर्ज हो गया.इस घटना ने बलवान के जवान बेटे कपिल को अंदर तक हिला दिया. उसने हथियार उठाने का फैसला किया. कृष्ण पहलवान को नया सिपहसलार मिला. नाम कपिल गहलोत. 3 अप्रैल 1998 को ककरोला में बलराज घेरकर ढेर कर दिया गया. कपिल ने अपने मामा का बदला ले लिया था.
उसने बदला ले लिया
मुंबई माफिया का एक अनकहा नियम है. परिवार दुश्मनी के दायरे में नहीं है. पुलिस और माफिया, दोनों इस कायदे को मानते हैं. पठान गैंग ने दाऊद के जीजा की हत्या करके इस नियम को तोड़ा था. इसके बाद पठान गैंग इतिहास के तहखाने में दफ्न कर दिया गया. दिल्ली माफिया के मामले में यह नियम बिल्कुल उलट जाता है. यहां परिवार का हर शख्स दुश्मनी के दायरे में है.भाई के मरने के बाद गैंग की कमान आ गई अनूप पहलवान के पास. भाई का बदला तो लेना ही था. 12 जुलाई 1998 को वो मौका आया. अनूप ने मौका देखकर कपिल के पिता बलवान और कृष्ण पहलवान के रिश्तेदार और दोस्तों सहित 6 लोगों का कत्ल कर दिया. उस समय कपिल जेल में था. 13 सितंबर 1999 को कपिल जेल से बाहर आया. उसी दिन अनूप गैंग ने कपिल के भाई कुलदीप उर्फ गुल्लू की हत्या कर दी. इसका बदला कपिल ने उसी दिन ले लिया. अनूप के भतीजे यशपाल को मार गिराया गया. इसके बाद कपिल फरार हो गया.
जब खाकी पर दाग लगे
कपिल का अनिल के अलावा एक और मामा हुआ करता था. नाम था ऋषि. ऋषि 1989 में दिल्ली पुलिस में भर्ती हुआ और 1992 में बर्खास्त हो गया. इसके बाद अपने भाई का बदला लेने के लिए वो भी कपिल के साथ इस गैंगवॉर में उलझ गया. 1999 में राजबीर सिंह स्पेशल सेल में एसीपी नियुक्त हुए. ऋषिपाल अपने साथी जितेंद्र के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. ये मई 2000 की बात है. इसके दो महीने बाद अगस्त में फरारी काट रहे कपिल को पुलिस ने मोदीनगर के बेगमाबाद में मार गिराया. इस तरह गहलोत परिवार का अंत हुआ.
दस साल बाद पूरा हुआ बदला
कृष्ण पहलवान की नजर में अपने चाचा रामी पहलवान की हत्या का बदला अभी पूरा नहीं हुआ था. रामी की हत्या के दस साल बाद 2002 की बात है. महीना था फरवरी का और तारीख थी 20. दिचाऊं कलां से एक बारात सोनीपत के जगमेंद्र सिंह के यहां गई. उनकी बेटी पिंकी की शादी थी. नाचते-गाते बारात जनवासे से दुल्हन के घर की तरफ जा ही रही थी कि एक खबर के बाद बाजे बंद करने पड़े. जनवासे के पास ही तीन लाशें पड़ी थीं. जब जाकर देखा गया, तो ये लाशें सूरज प्रधान, उनके बेटे सुखबीर और दिचाऊं के ही नारायण सिंह की थी. वही सूरज प्रधान, जिसके बारे रामी की हत्या में मुखबिर होने का शक था.2003 में अनूप रोहतक कोर्ट में एक मुकदमे के सिलसिले में पेश होने आया था. पुलिस सुरक्षा के बीच कृष्ण पहलवान गैंग के शार्प शूटर महावीर डॉन ने अनूप पर गोलियां दाग दीं. अनूप ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. इस तरह कृष्ण पहलवान का बदला पूरा हो गया. उस समय हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की सरकार थी. कृष्ण पहलवान के उनके साथ अच्छे संबंध माने जाते हैं. शायद यही वजह रही होगी कि चार लोगों की हत्या हुई और कृष्ण पहलवान पर कोई आंच नहीं आई. क्या सच में ऐसा हुआ?
अंतहीन खूनी खेल
2003 में अनूप की हत्या के बाद लगभग एक दशक तक लगभग शांति का माहौल रहा. इस बीच कृष्ण पहलवान का छोटा भाई भरत राजनीति में आ चुका था. इनेलो के टिकट पर वो 2008 में विधायक बन गया, लेकिन 2013 का चुनाव हार गया. पर खूनी अदावत कभी खत्म नहीं होती. सिर्फ पीढ़ियों के पकने का इंतजार किया जाता है.
ये 2015 के मार्च की बात है. बहादुरगढ़ रोड पर अभिनंदन वाटिका नाम से एक मैरिज गार्डन है. इस मैरिज गार्डन में कुआं पूजन का कार्यक्रम चल रहा था. कुआं पूजन हरियाणा में बेटा पैदा होने पर मनाए जाने वाले उत्सव को कहा जाता है. बाइक पर सवार दो लड़के, जिनका नाम सोनू और मोनू था, इस कार्यक्रम में टोही की तरह आते हैं. इसके बाद एक स्कॉर्पियो आकर रुकती है. उसमें से निकले छह सवार गार्डन में घुसते हैं और एक मिनट के भीतर वहां एक लाश गिरी हुई थी.
लाश की शिनाख्त होती है भरत सिंह के तौर पर. सीने पर चार और माथे पर एक गोली. पूर्व विधायक भरत सिंह, कृष्ण पहलवान का भाई भारत सिंह.
इस हत्या में नाम आता है एक नौजवान लड़के का. सूरज प्रधान का पोता हेमंत. सुखबीर का बेटा. वही सुखबीर, जिसकी हत्या सोनीपत में 2002 में कर दी गई थी. मास्टर माइंड बताया जाता है सुखबीर का भाई उदयबीर काले. इसके अलावा मंजीत महल. अनूप पहलवान की हत्या के बाद मितराऊं के रहने वाले मंजीत ने गैंग की कमान संभाल ली. फिलहाल यह मामला कोर्ट में लंबित है.

श्रीकिशन
जनवरी 2016 की बात है. सुबह 11 बजे 74 साल का एक बुजुर्ग सब्जी के ठेले से सब्जियां खरीद रहा था. अचानक एक SUV उनके पास आ कर रुकती है. छह लोग उसमें से उतरते हैं. गोलियां चलने लगती हैं. पहला फायर करता है एक नाबालिग लड़का. फायर किए गए 12 राउंड में से 5 उस बुजुर्ग को लगते हैं और वो मौके पर दम तोड़ देता है. नाम श्रीकिशन. गुनाह, मंजीत का पिता होना.
आरोप लगते हैं कपिल सांगवान गैंग पर. कृष्ण पहलवान का शागिर्द रहा कपिल सांगवान. दिसम्बर 2015 में उसके जीजा सुनील उर्फ डॉक्टर की हत्या मंजीत के इशारे पर कर दी गई थी. इस काम को अंजाम दिया था मंजीत के सबसे भरोसेमंद कमांडर नफे सिंह उर्फ मंत्री ने. इसके बाद नफे सिंह के घर पर हमला हुआ और उसके पिता हरिकिशन को मौत के घाट उतार दिया गया.
अब तक इस खूनी खेल में 50 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इस खून-खराबे के बीच विमला हैं जोकि अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं. बलवान फौजी की विधवा पत्नी विमला अपने दोनों लड़कों कपिल और कुलदीप को खो चुकी हैं. जिस 15 बीघे जमीन पर झगड़े की शुरुवात हुई थी वो अंततः अनूप-बलराज के परिवार के हिस्से आई है. अनूप के भाई लीला इस पर खेती करते हैं. सवाल यह है कि गैंगवॉर में तब्दील हुई इस खानदानी दुश्मनी का कोई अंत हैं?
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