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मुस्लिम साइबर आर्मी: कौन हैं ये लोग, जो सोशल मीडिया के रास्ते जिहाद फैला रहे हैं

चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक पार्टियां किस हद तक जा सकती हैं? ये खबर इसी हद के बारे में है.

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इंडोनेशिया की पुलिस ने इस संगठन से जुड़े कई लोगों को अरेस्ट किया. मुस्लिम साइबर आर्मी एक तरह का सोशल मीडिया जिहादी ग्रुप है. इसका मकसद इंडोनेशिया में धार्मिक माहौल बिगाड़ना, कट्टरपंथ को बढ़ावा देना, लोगों को भड़काना है. इसके पीछे इंडोनेशिया के मौजूदा राष्ट्रपति के राजनैतिक विरोधियों का हाथ हो सकता है.
चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक पार्टियां किस हद तक जा सकती हैं? ये खबर इसी हद के बारे में है. जिक्र है इंडोनेशिया का. जहां मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी रहती है. जो एक सेक्युलर देश है. और 2019 में यहां चुनाव होने वाले हैं.
मुस्लिम साइबर आर्मी.
ये एक संगठन का नाम है. इनको साइबर जिहादी समझिए. यानी, ऐसे लोग जो सोशल मीडिया के रास्ते आतंकवाद फैलाने की कोशिश करते हैं. ये संगठन इंडोनेशिया में एक्टिव है. इसका काम है फर्जी खबरों का जाल फैलाना. लोगों के पास झूठी खबरों की सप्लाई करना. भड़काऊ तस्वीरें और विडियो सर्कुलेट करना. फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, वॉट्सऐप, टेलिग्राम. इन सब रास्तों से. सोशल मीडिया में घुसकर फेक न्यूज का ऐसा जाल बुनना, ताकि लोगों को भड़काया जा सके. और इंडोनेशिया की सरकार गिराई जा सके. देश को इतना कमजोर कर दिया जाए कि सारा सिस्टम भरभराकर गिर जाए. और वहां अलग-अलग धर्मों के लोग आपस में लड़ बैठें. हिंसा फैले. शक है कि इसके पीछे इंडोनेशिया की सेना और वहां की विरोधी पार्टी के कुछ लोगों का हाथ है.
इंडोनेशिया पुलिस ने पिछले कुछ हफ्तों में इस संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार किया. ये ग्रुप कैसे काम करता था और इसका मोडस ऑपरेंडी क्या था, इसका भी खुलाया किया है पुलिस ने.
इंडोनेशिया पुलिस ने पिछले कुछ हफ्तों में इस संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार किया. ये ग्रुप कैसे काम करता था और इसका मोडस ऑपरेंडी क्या था, इसका भी खुलाया किया है पुलिस ने.

सेक्युलर इंडोनेशिया का माहौल बिगड़ रहा है इंडोनेशिया का आधिकारिक नाम है- रिपब्लिक ऑफ इंडोनेशिया. बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है यहां. कई धर्म, कई नस्ल के लोग रहते हैं इधर. शायद इसीलिए इंडोनेशिया का मोटा लाइन है- भिननेका तुंग्गल इका. यानी, विविधता में एकता. आसान भाषा में समझें, तो मतलब होगा- हम भले अलग-अलग दिखते हों, लेकिन हम एक हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान यहीं रहते हैं. इसके बावजूद ये इस्लामिक देश नहीं है. सेक्युलर है. लोकतंत्र है. सबको अपना-अपना धर्म मानने की आजादी है. आप यहां का सरकारी कैलेंडर देखिए. गुड फ्राइडे को भी छुट्टी होती है. बुद्ध पूर्णिमा को भी छुट्टी होती है. ईद पर भी छुट्टी होती है. क्रिसमस पर भी छुट्टी होती है. पिछले कुछ समय से इंडोनेशिया के इस सेक्युलर ढांचे को खराब करने की कोशिश हो रही है. मुस्लिम साइबर आर्मी इसी कोशिश का एक हिस्सा है.
ताकि सरकार कमजोर हो इंडोनेशिया की पुलिस ने पिछले कुछ हफ्तों में इस संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार किया है. ये संगठन इंडोनेशिया में धार्मिक और नस्लीय हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहा है. लोगों को आपस में लड़वाने की साजिश कर रहा है. लोगों को समलैंगिकता के खिलाफ उकसा रहा है. उन्हें भड़का रहा है, ताकि लोग समलैंगिक लोगों को निशाना बनाएं. कम्युनिस्ट विचारधारा और चाइनीज मूल के लोगों को निशाना बनाएं. अपने इरादों को पूरा करने के लिए ये संगठन सरकार को कमजोर करने में लगा है.
इंडोनेशिया के मौजूदा राष्ट्रपति सेक्युलर माने जाते हैं. लेकिन जैसे-जैसे राजनीति पर कटट्टरपंथी मुद्दे हावी हो रहे हैं, सरकार का रवैया भी बदल रहा है.
इंडोनेशिया के मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो सेक्युलर माने जाते हैं. लेकिन जैसे-जैसे राजनीति पर कटट्टरपंथी मुद्दे हावी हो रहे हैं, सरकार का रवैया भी बदल रहा है.

अलग-अलग धड़ों के जिम्मे अलग-अलग काम थे इसे ऐसे समझिए कि मुस्लिम साइबर आर्मी (MCA) एक परिवार है. और इसके कई हिस्से हैं. किसी के जिम्मे एक काम है. किसी के जिम्मे वो काम. वॉट्सऐप पर इनका एक मेन ग्रुप था. इसकी अलग-अलग शाखाएं थीं. एक थी स्नाइपर विंग. इसका काम था लोगों के फेसबुक और ट्विटर अकाउंट हैक करना. और अपने विरोधियों के कंप्यूटर में वायरस भेजना. ऐसे ही कई विंग थे. और सबके काम बंटे हुए थे.
MCA को सेना और विपक्ष से भी सपोर्ट मिला! पिछले कुछ समय से इंडोनेशिया का माहौल बदल रहा है. धार्मिक और नस्लीय तनाव बढ़ा है यहां. 'द गार्डियन' अखबार ने इस पर विस्तार से एक खबर की है. इसमें जो चीजें नजर आई हैं, वो परेशान करने वाली हैं. गार्डियन के मुताबिक, MCA का संबंध इंडोनेशिया की विपक्षी पार्टियों और वहां की सेना से भी है. गार्डियन को अपनी तफ्तीश में कई चौंकाने वाले लिंक मिले. एक पूरा का पूरा नेटवर्क मिला. जिसका मकसद है इंडोनेशिया के लोगों को धार्मिक आधार पर बांटना. और, कट्टर इस्लामिक और सरकार-विरोधी माहौल बनाना. लोगों के दिमाग में इतनी नफरत भरना कि उनका ब्रेनवॉश हो जाए. वो आतंकवादी बन जाएं. दुनिया में जहां कहीं भी मुस्लिमों के साथ हिंसा होती, ये लोग उसके विडियो शेयर करते. ताकि मुस्लिमों के दिमाग में ये बात बिठाई जा सके कि इस्लाम खतरे में है. और चीजें ठीक करने के लिए हिंसा ही एकमात्र रास्ता है. इस संगठन के अकाउंट्स से जो चीजें पोस्ट होतीं, वो सामूहिक टाइप होतीं. एक सी बातें. एक सी भाषा. एक सी चीजें. यहां तक कि इनमें से कइयों की प्रोफाइल फोटो में भी समानता होती.
तस्वीर में इंडोनेशिया के एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन का सदस्य राष्ट्रपति जोको विडोडो के खिलाफ प्रदर्शन करता दिख रहा है. ये तस्वीर अक्टूबर 2017 की है. विडोडो ने कुछ खास कट्टरपंथी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था. इसके खिलाफ काफी प्रदर्शन हुए.
तस्वीर में इंडोनेशिया के एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन का सदस्य राष्ट्रपति जोको विडोडो के खिलाफ प्रदर्शन करता दिख रहा है. ये तस्वीर अक्टूबर 2017 की है. विडोडो ने कुछ खास कट्टरपंथी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था. इसके खिलाफ काफी प्रदर्शन हुए. इस शख्स ने जो पोस्टर थामा हुआ है, उस पर लिखा है- अहोक को हराने का बदला है ये प्रतिबंध.

2019 में यहां राष्ट्रपति चुनाव होना है 2019 में इंडोनेशिया का अगला राष्ट्रपति चुनाव होना है. 2014 के चुनाव में भी काफी तनाव की स्थिति थी. अगला चुनाव भी वैसा ही तनावपूर्ण होने की आशंका है. मुख्य मुकाबला मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो और पूर्व सेना प्रमुख प्राबोओ सुबिआंटो के बीच है. ये MCA अपने फर्जी अकाउंट्स पर सर्वे भी कराता था. कि जोको विडोडो और सुबिआंटो के बीच किसे जीतना चाहिए. ये अपने नतीजों में सुबिआंटो को विजेता दिखाता. मानो सुबिआंटो के पक्ष में लहर चल रही हो.
हिटलिस्ट बनाते और लोगों के नाम पब्लिक कर देते थे MCA ने कुछ लोगों की एक हिटलिस्ट भी बनाई थी. इन लोगों के नाम की लिस्ट सोशल मीडिया पर जारी की जाती. इस लिस्ट में निशाना बनाए जाने वाले लोगों का नाम, पता और उनके परिवार के सदस्यों की जानकारी होती. सोशल मीडिया पर इस्लाम की आलोचना करने वालों को निशाना बनाया जाता. ऐसे कई लोगों को पकड़कर उन्हें पीटा जाता. जबरन उनसे माफी मंगवाई जाती. और इसका विडियो बनाकर अपलोड किया जाता. गार्डियन को कुछ ऐसे मामले भी मिले, जिसमें सेना ने इस तरह की हरकतों को मंजूरी दी. समर्थन दिया.
अलग-अलग अजेंडे वाले लोगों का कॉमन संगठन जानकारों का कहना है कि MCA में केवल कटट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों के ही लोग शामिल नहीं हैं. बल्कि ये अलग-अलग अजेंडे वाले लोगों का एक कॉमन संगठन है. इनमें एक चीज मिलती है. एक- ये सारे कट्टरपंथी हैं और बाकी धर्मों से नफरत करते हैं. दूसरा- ये सभी मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो के विरोधी हैं. उन्हें सत्ता से हटाना चाहते हैं. इंडोनेशिया की पुलिस ने फिलहाल ये नहीं बताया कि इस पूरे नेटवर्क के पीछे किसका दिमाग है. पर बहुत मुमकिन है कि इसके पीछे कुछ विरोधी पार्टियों के लोग हो सकते हैं.
हिजबुत तहरीर इंडोनेशिया का झंडा थामे एक शख्स. ये भी एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है.
हिजबुत तहरीर इंडोनेशिया का झंडा थामे एक शख्स. ये भी एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है.

कट्टरता सरकार के फैसलों में भी नजर आने लगी है इंडोनेशिया पर कट्टर इस्लाम किस तरह हावी हो रहा है, ये चीज वहां की सरकारी नीतियों में भी नजर आती है. जैसे- समलैंगिक कानून. एक वक्त था जब देश के ज्यादातर हिस्सों में समलैंगिकों के लिए जगह थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. इंडोनेशिया ऐसा कानून बनाने जा रहा है जहां अपने पति-पत्नी के अलावा किसी के साथ सेक्स करना भी अपराध होगा. जहां समलैंगिक होना गैरकानूनी होगा. सरकार इतनी रियायत देगी कि परिवारवालों की शिकायत पर ही कानूनी कार्रवाई का प्रावधान बनाएगी. क्या रियायत है!
कट्टरपंथियों के दबाव में लिए जा रहे हैं फैसले राष्ट्रपति जोको विडोडो इंडोनेशियन डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल के नेता हैं. खुद सेक्युलर माने जाते हैं. लेकिन देश में तेजी से बदल रहे माहौल के दबाव में हैं. अगले साल चुनाव होने हैं. विडोडो को लगता है कि चुनाव जीतने के लिए कट्टरपंथियों को खुश करना जरूरी है. विडोडो का सबसे करीबी मुकाबला पूर्व सेना प्रमुख प्राबोओ सुबिआंटो से है. सुबिआंटो बहुत कट्टर इस्लामिक हैं. विडोडो के विरोधी उन्हें धर्म, खासतौर पर इस्लाम को लेकर घेर रहे हैं. इसे मुद्दा बना रहे हैं. विरोधियों से निपटने और राजनैतिक फायदे की मंशा से विडोडो सरकार जो कर रही है, उसकी एक मिसाल ये समलैंगिकता विरोधी कानून है.
राष्ट्रपति विडोडो ने आंतरिक दबाव के कारण समलैंगिकों के खिलाफ कानून बनाने की पहल की. इंडोनेशिया के बाहर इस फैसले पर उनकी काफी आलोचना हुई.
राष्ट्रपति विडोडो ने आंतरिक दबाव के कारण समलैंगिकों के खिलाफ कानून बनाने की पहल की. इंडोनेशिया के बाहर इस फैसले पर उनकी काफी आलोचना हुई.

समलैंगिक कानून को लेकर काफी आलोचना हुई इसे लेकर विडोडो की काफी आलोचना हो रही है. इंडोनेशिया में समलैंगिकों को पहले से ही काफी मुश्किलें झेलनी पड़ती है. अक्सर उनके परिवारवाले ही उनके खिलाफ हो जाते हैं. नए कानून के बाद परिवार के लिए अपने ही बीच के किसी समलैंगिक सदस्य को जेल भेजना आसान हो जाएगा.
इंडोनेशिया की मिसाल दी जाती है इस्लामिक देशों की कट्टरता और अल्पसंख्यकों के लिए उनके पक्षपाती रवैये के बीच इंडोनेशिया लोगों को एक उम्मीद देता था. इसकी तारीफ होती थी. लोग इसकी मिसाल देते हुए कहते थे कि इस्लाम और लोकतंत्र, दोनों साथ-साथ चल सकते हैं. ऐसा नहीं कि इंडोनेशिया में कभी धार्मिक तनाव न हुआ हो. होता था, लेकिन ज्यादातर लोग सहिष्णु माने जाते थे. लेकिन जिस तरह से वहां कट्टरपंथ हावी हो रहा है, वो परेशानी की बात है. ऐसा लग रहा है कि इंडोनेशिया उल्टे कदम चल रहा है. जानकारों का कहना है कि इंडोनेशिया में जो हो रहा है, वो एक तरह से ग्लोबलाइजेशन का साइड इफेक्ट है. यहां के लोग बाहर के इस्लामिक देशों और उनके तौर-तरीकों से वाकिफ हुए. इसकी वजह से एक बड़े धड़े के अंदर वैसा ही कट्टरपंथी होने की चाहत पैदा हुई. और ये चाहत फैलती गई. फिर जैसे-जैसे सिस्टम आधुनिक होता गया, और लचीला होता गया, वैसे-वैसे उनकी शिकायतें भी बढ़ने लगीं. धर्म और नैतिकता जैसे मुद्दे इंडोनेशिया की राजनीति पर हावी होने लगे.
अहोक के समर्थन में प्रदर्शन करते लोग. अहोक को ईशनिंदा कानून के तहत दोषी पाया गया था.
अहोक के समर्थन में प्रदर्शन करते लोग. अहोक को ईशनिंदा कानून के तहत दोषी पाया ठहराया गया था.

विवादित ईशनिंदा कानून इसी बढ़ती हुई कट्टरता का नतीजा था कि जर्काता के ईसाई गवर्नर अहोक को ईशनिंदा का दोषी ठहराकर जेल भेज दिया गया. अहोक ने किया क्या था? उन्होंने कुरान की एक आयत पढ़ी थी. और कहा कि इसका बेजा इस्तेमाल करके लोगों के दिमाग में ये बात भरी गई कि किसी गैर-मुसलमान को मुसलमानों का नेता बनने का हक नहीं है. कि ये गैर-इस्लामिक है. अहोक को दी गई सजा के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंडोनेशिया की बहुत आलोचना हुई. अहोक गर्वनर थे. ताकतवर थे. राष्ट्रपति के करीबी माने जाते थे. ऐसी प्रोफाइल के इंसान के साथ ये सब हो सकता है, तो आम लोगों का क्या? अहोक के मामले में एक और परेशान करने वाली चीज थी. कि अदालत भी कट्टरपंथियों के दबाव में झुक गई.
कट्टरपंथ बढ़ा, तो आतंकवाद को पैर जमाने की जमीन मिल जाएगी. धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता जैसी चीजें मर जाएंगी.
कट्टरपंथ बढ़ा, तो आतंकवाद को पैर जमाने की जमीन मिल जाएगी. धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता जैसी चीजें मर जाएंगी.

चुनाव आते-आते और माहौल बिगड़ेगा चुनाव जैसे-जैसे करीब आएंगे, माहौल बिगड़ेगा. लक्षण तो ये ही बता रहे हैं. ऐसा होगा, तो बहुत बुरा होगा. कट्टरपंथ के हावी होने के नुकसान पूरी दुनिया में नजर आ रहे हैं. ऐसी धार्मिक कट्टरता आतंकवाद के फैलने की जमीन तैयार करती है. और आतंकवाद किसी का भला नहीं करता. फिर चाहे वो अल्पसंख्यक हों, चाहे बहुसंख्यक हों. सब तबाह होते हैं.


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