The Lallantop

क्या सच में मुगलों के राज में हिंदुओं का जबरन धर्म-परिवर्तन हुआ?

क्या ये सच है कि हिंदुस्तान में धर्मों का संघर्ष इस्लाम के यहां आने के बाद ही शुरू हुआ?

Advertisement
post-main-image
मुगलसराय स्टेशन का नाम बदल दिया गया है. मुगलों के नाम, उनकी विरासत को खत्म करने की कोशिश तेज है. ऐसा जताया जा रहा है मानो मुगलों का दौर, उनका शासन भारत के लिए कोई शर्म करने वाली चीज हो. जबकि ऐसा नहीं है. मुगलों ने इस देश को लूटा नहीं. वो यहीं की मिट्टी में मरे. यहीं रहे. उनका जीना-मरना सब यहीं हुआ. (औरंगजेब के सामने शिवाजी)
मुगलसराय नाम का एक रेलवे स्टेशन था. स्टेशन अब भी है. बस उसका नाम बदल गया है. 'दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन' पड़ गया है. मुगलसराय कहने वाली जीभें ये नया नाम लेते-लेते लटपटाएंगी तो जरूर. वैसे मुगलसराय में दिक्कत क्या थी? मुगलों की विरासत की याद दिलाती थी? और मुगल विदेशी आक्रमणकारी थे? तो इतने बरसों बाद भी हम क्यों ढो रहे हैं मुगलों की याद? शायद यही सब सोचकर नाम बदल दिया. मुगलों से जुड़ी कई बातें हैं. कई शिकायतें हैं. एक शिकायत ये है कि मुगलों के टाइम में हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया. हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन करवाया गया. पर क्या ये सच में हुआ? लोगों की शिकायत का इतिहास के पास क्या जवाब है? और क्या भारत के अंदर धार्मिक संघर्ष का मतलब ही हिंदू बनाम मुस्लिम है? हिंदुत्व बनाम इस्लाम है?
रोमिला थापर मशहूर इतिहासकार हैं. प्राचीन भारतीय इतिहास की.
रोमिला थापर मशहूर इतिहासकार हैं. प्राचीन भारतीय इतिहास की. कई दर्जन किताबें लिख चुकी हैं.

इन सवालों का जबाव कोई इतिहास जानने वाला ही दे, तो बेहतर है. जैसे रोमिला थापर. नीचे हम जो लिख रहे हैं, वो मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर के एक अंग्रेजी आर्टिकल का अनुवाद है. आर्टिकल छपा था मेल टुडे में.
शाही राजपूत परिवारों ने मुगल बादशाहों और उनके दरबार से जुड़े बड़े-बड़े परिवारों में शादी की. इन शादियों से निजी रिश्ते तो बने ही बने. साथ ही, ये भी हुआ कि महल के तौर-तरीकों में बस खास किस्म की परंपरा नहीं रही. अलग-अलग रीति-रिवाज शामिल हो गए. मुगल प्रशासन में भी हिंदुओं की भरमार थी. राजपूतों के अलावा भी हिंदुओं की ऊंची समझी जाने वाली जातियां- जैसे, पढ़े-लिखे ब्राह्मण और कायस्थ मुगल प्रशासन के ऊंचे ओहदों पर बिठाए जाते थे.
हल्दीघाटी की लड़ाई में मुगल सेना ने महाराणा प्रताप को हराया था. मुगलों की तरफ से जंग के मैदान में इस लड़ाई की अगुआई कर रहे थे राजपूत. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. कई लड़ाइयों में ऐसा हुआ कि मुगल सेना की बागडोर राजपूतों ने संभाली. मुगलों के दौर में हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का जितना दावा किया जाता है, असलियत में उतने बड़े स्तर पर धर्मांतरण हुआ ही नहीं. बंटवारे के पहले भी हिंदुस्तान में मुसलमान अल्पसंख्यक ही थे. ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि हिंदुओं पर धर्म बदलने के लिए कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं की गई थी.
बादशाह अकबर
ये कहना कि मुगल विदेशी थे, गलत है. बाबर भले विदेशी रहा हो, लेकिन वो यहीं रह गया. हुमायूं के बाद की पूरी मुगल नस्ल हिंदुस्तानी रही. यहीं पैदा हुई. मुगल दरबार के बड़े-बड़े ओहदों पर हिंदुओं की भरमार थी. अकबर के ही राज को देखिए. मानसिंह, बीरबल, टोडरमल. ये सब कौन थे?

ये कहने का मतलब यह नहीं कि राजनैतिक स्तर पर कोई टकराव था ही नहीं. मगर इसका ये मतलब नहीं समझा जाना चाहिए कि उस दौर में हिंदुओं पर बहुत अत्याचार हो रहा था. खासकर ये देखते हुए कि मुगल साम्राज्य के बाद के वक्त में हिंदुओं की तरफ से काफी प्रतिरोध देखने को मिला. राजनैतिक कारणों को उस दौर की राजनीति के मुताबिक ही देखा जाना चाहिए. कई ऐसे विवाद थे, जो बहुत आम किस्म के थे. ऐसे विवाद स्थानीय स्तर के थे. अलग-अलग समुदायों के आपसी रिश्ते ऐसे ही होते हैं. इनमें आमतौर पर थोड़ा समझौता होता है. और थोड़ा विरोध होता है. मतलब कुछ बातों पर समझौता हुआ. रजामंदी बनी. और किसी बात पर प्रतिरोध हुआ. हमें ये याद रखना होगा कि भारत के अंदर धर्म से जुड़े संघर्षों की शुरुआत यहां मुसलमानों के आने से बहुत पहले शुरू हो गई थी. बल्कि तब शुरू हो गई थी, जब इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था.
हम आज कहने को कहते हैं. कि बौद्ध और जैन धर्म हमेशा से हिंदू धर्म का ही हिस्सा थे. मतलब, उस हिंदू धर्म का जिसको आज की तारीख में हम हिंदू धर्म कहते और समझते हैं. इसीलिए कह दिया जाता है कि बौद्धों और जैनों का हिंदुओं के साथ कोई बैर नहीं था. इनके बीच कोई संघर्ष नहीं था. मगर इन धर्मों में अंतर है. इनकी शिक्षाएं अलग हैं. उनकी सामाजिक संस्थाएं भी अलग हैं. परंपराएं अलग हैं. मिसाल के तौर पर जैन और बौद्ध धर्म में भिक्षुओं की परंपरा. इतिहास में कई प्रसंग ऐसे हैं, जहां इन दोनों धर्मों और हिंदू धर्म के बीच की कड़वाहट का जिक्र है. ये इनके बीच आपस में बैर था. झगड़ा था. ऐसे कई प्रसंग हैं. तब हिंदू धर्म ब्राह्मणों का धर्म कहलाता था. इनके और श्रमणों (श्रम करने वालों) के आपसी संघर्ष का जिक्र है इतिहास में.
बहादुरशाह जफर आखिरी मुगल बादशाह थे. उनके बाद मुगलों की सल्तनत खत्म हो गई. 1857 की लड़ाई में शामिल हिंदू और मुस्लिम रजवाड़ों ने, बाकी लोगों ने जफर को ही अपना बादशाह माना था.
बहादुरशाह जफर आखिरी मुगल बादशाह थे. उनके बाद मुगलों की सल्तनत खत्म हो गई. 1857 की लड़ाई में शामिल हिंदू और मुस्लिम रजवाड़ों ने, बाकी लोगों ने जफर को ही अपना बादशाह माना था.

व्याकरणाचार्य पतंजलि का काफी सम्मान है. तब भी था. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में जब उन्होंने किताब लिखी, तो उसमें उन्होंने दोनों धर्मों की तुलना सांप और नेवले के तौर पर की. अब हम अपने दौर में लौटते हैं. हम अपनी राष्ट्रीय संस्कृति किसे कहते हैं और किसे अपने देश का कल्चर मानते हैं. ये तय करने में राष्ट्रवाद की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है. इससे क्या होता है कि कई ऐसी चीजें जो आमतौर पर खत्म हो जातीं, या भुला दी जातीं, वो बच जाती हैं. राष्ट्रीय संस्कृति के नाम पर इन्हें संरक्षित कर लिया जाता है. या फिर ये भी हो सकता है कि राष्ट्रीय संस्कृति के नाम पर ऐसी चीजों को अहमियत मिल जाए, जो बिना राष्ट्रवाद के शायद अनदेखी कर दी जातीं.
मगर राष्ट्रवाद के कारण एक और संभावना मुमकिन हो जाती है. हो सकता है कि राष्ट्रवाद या फिर इससे मिलती-जुलती भावना के कारण संस्कृति का नाश हो जाए. ये दिक्कत की बात है. ऐसा आमतौर पर संस्कृति के एक खास हिस्से के साथ होता है. कुछ चुनिंदा हिस्सों के साथ. कुछ खास चीजों को जान-बूझकर खत्म कर दिया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि कुछ खास किस्म के लोगों का ध्यान खींचा जा सके. अपनी बात लोगों को सुनाई जा सके. ऐसी कोशिशें ज्यादातर राजनैतिक होती हैं. इनका भावनाओं से बहुत लेना-देना नहीं होता. इसके पीछे राजनीति काम करती है.


ये भी पढ़ें: 
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद उसके वंशज गलियों में भीख मांगते थे

दिल्ली में 22 हज़ार मुसलमानों को एक ही दिन फांसी पर लटका दिया गया!

वो ब्राह्मण परिवार की औरत जो मुग़ल बादशाहों को राखी बांधती थी

पढ़ें आख़िरी मुग़ल बादशाह के लिखे शेर

आमेर के किले में जब हुई एक और जोधा-अकबर की शादी

एक कहानी रोज़: 'मुगलों ने सल्तनत बख्श दी'

मुगलों की वो 5 उपलब्धियां, जो झूठ हैं



मोर को तिरंगे में लपेटकर दफनाने पर बवाल क्यों हुआ है?

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement