'मिच्छामी दुक्कड़म्' - पोप भी गलत हो सकता है
वेस्टर्न में एक कहावत है. कहावत क्या है, ये एक पूरी मान्यता ही है कि 'पोप कभी गलत नहीं हो सकता'. मतलब पोप ने जो कहा वो सही कहा. पोप ने जो व्याख्या की वह सही की. पोप ने जो किया वह अचूक है. लेकिन हमारे यहां जैन धर्म नहीं मानता कि आदमी से गलतियां नहीं होतीं. हिंदुस्तान के प्राचीन मनीषियों ने अपनी प्रथाओं में माना है कि हमसे गलतियां हो सकती हैं. जब गलती हो सकती है तो माफ़ी मांगने की भी व्यवस्था होनी चाहिए. इसलिए जैन धर्म ने एक व्यवस्था बनाई कि अगर जाने-अनजाने में कोई भूल-चूक हुई तो माफ़ी मांग लीजिए. इसके लिए बाक़ायदा एक पर्व मनाया जाता है. 'पर्युषण पर्व'. इसे 'आत्मशुद्धि का पर्व' भी माना जाता है. जैन धर्म में भी दो तरह के लोग होते हैं. एक श्वेताम्बर, दूसरे दिगंबर. श्वेताम्बर इस त्यौहार को 8 दिन तक मनाते हैं. वहीं दिगम्बर लोग 10 दिन तक मनाते हैं. इसी त्योहार के लास्ट वाले दिन को 'क्षमा दिवस' कहा जाता है. इसको 'विश्व-मैत्री दिवस' भी कहते हैं. इसी वाले दिन जैन धर्म के लोग अपने आसपास के लोगों से, फैमिली वालों से, रिश्तेदारों से, पड़ोसियों से, सबसे माफ़ी मांगते हैं. माफ़ी मांगते हैं 'मिच्छामी दुक्कड़म्' बोलकर. ये मूलतः प्राकृत भाषा का शब्द है. इसके साथ ये भी कहा जाता है - अगर मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने में आपका दिल दुखाया हो, तो उसके लिए मैं हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी मांगता हूं.दो सितम्बर, जिस दिन ये त्यौहार भी था, मोदी विज्ञान भवन पहुंचे. वहां उन्होंने इस त्योहार की खूबसूरती के बारे में बताया. और पूरे विश्व से माफ़ी मांगी. उस कार्यक्रम का वीडियो यहां भी देख सकते हैं -ये स्टोरी हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे श्याम ने की है.