प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज हो चुका है. करोड़ों लोग प्रयागराज के संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं. दुनिया में इंसानों का इससे बड़ा जमावड़ा और कहीं नहीं होता. साल 2019 की बात करें, तो 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने कुंभ में हिस्सा लिया था. इस साल तो 144 सालों के बाद महाकुंभ हो रहा है. कहा जा रहा है कि इसमें भाग लेने के लिए देश-दुनिया से 40-45 करोड़ लोग आएंगे.
Mahakumbh 2025 में आने वाले अखाड़े क्या हैं? किन घाटों पर स्नान का विशेष महत्व है?
Prayagraj Mahakumbh 2025: महाकुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व है. शाही स्नान या अमृत स्नान के दिन अखाड़े ही पहला स्नान करते है. इनके लिए मेला प्रशासन की ओर से घाटों पर सुगम स्नान के लिए कई इंतजाम किए जाते हैं.

कुंभ में आकर्षण के सबसे बड़े केंद्र अखाड़े होते हैं. सबसे ज्यादा चहल-पहल और रौनक मेले में अखाड़ा मार्ग पर ही होती है. अखाड़ों से लाखों करोड़ों लोगों की श्रद्धा जुड़ी है. साथ ही इनके अपने रहस्य भी. जानते हैं ये अखाड़े कब और कैसे बने और कौन से घाट हैं जिन पर स्नान करना पुण्य माना जाता है.
जेम्स जी गॉचफेल्ड की किताब इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म के अनुसार अखाड़ा शब्द का मतलब कुश्ती अखाड़े से जुड़ा है. जो 1980 के दशक में बंदूकों के बढ़ने के बाद चलन से कुछ बाहर हो गए. यानी अखाड़े महज कुश्ती से दूर होते गए. पहले ये अखाड़े योद्धा संन्यासियों का केंद्र हुआ करते थे जो कि रजवाड़ों और उनके दरबार से करीबी रखते थे. हालांकि अब हिंदुओं के समूहों के तौर पर, यह कुंभ मेले के आयोजन में अहम भूमिका निभाते हैं. सभी 13 अखाड़े कुंभ में जमा होते हैं. ये मिलकर अखाड़ा परिषद बनाते हैं. कुंभ में स्नान और नागा साधुओं के दर्शन के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं.

अखाड़ा परिषद की बात करें तो इसमें 26 सदस्य होते हैं. यानी 13 अखाड़ों में से 2-2 प्रतिनिधि. इसमें एक अध्यक्ष भी चुना जाता है और एक महामंत्री भी. वहीं अखाड़ों का प्रतिनिधि आचार्य करते हैं. इन 13 अखाड़ों में से सात अखाड़े शैव परंपरा या शिव के अराधक हैं, जैसे जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी वगैरा. तीन अखाड़े - निर्वाणी, निर्मोही और दिगंबर - वैष्णव परंपरा के हैं. दो उदासीन और एक निर्मल. अखाड़ों के जिक्र के साथ कई नाम भी सामने आते हैं. जैसे मढ़ी, मठ, दशनामी वगैरा.
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषदशैव अखाड़े- (दशनामी या संन्यासी) महानिर्वाणी, जूना, निरंजनी, आवाह्न, अटल, आनंद, अग्नि.
वैष्णव अखाड़े- (बैरागी) निर्मोही, निर्वाणी, दिगंबर.
सिख-शैव अखाड़े- बड़ा उदासीन, नया उदासीन, निर्मल अखाड़ा.
अखाड़ों का इतिहास आदि शंकराचार्य से जुड़ा बताया जाता है जो शुरुआत में उनके बनाए चार धार्मिक केंद्रों से जुड़े थे. पर सवाल ये कि देशभर में अलग-अलग जगह फैले साधु-संन्यासियों को एक छतरी में कैसे लाया गया. इसे समझने के लिए पहले दशनामी परंपरा को समझते हैं. यदुनाथ सरकार की किताब, अ हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा संन्यासी के मुताबिक, यह कहना ज्यादा सही होगा कि शंकराचार्य दशनामी परंपरा की प्रेरणा थे. इन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर, बिखरे हुए संन्यासियों के समूहों को एक किया जो कि वैदिक काल से जाने जाते रहे हैं. फिर इन्हें एक केंद्रीय व्यवस्था के भीतर लाया गया. अलग-अलग संन्यासियों को समूहों में व्यवस्थित करने का काम किया गया.

संन्यास की परंपरा आज से नहीं है. मोह-माया छोड़कर भ्रमण करने वाले साधुओं का जिक्र वेदों में मिलता है. लेकिन तब इनके समूहों में कोई नियम नहीं होते थे. ऐसे में किसी सिस्टम या अनुशासन की कमी के चलते बदलाव जरूरी थे. शुरुआती बदलाव जैन और बौद्ध धर्म में आए. अलग-अलग संन्यासियों को समूहों में व्यवस्थित करने का काम किया गया.

ईसा से कुछ 8वीं-6वीं सदी पहले कई धर्म गुरुओं ने भ्रमण और घुमंतू जीवन को नियमित करने के प्रयास किए. ये गुरु नैतिक और बौद्धिक होते थे. मोक्ष के रास्ते पर चलते थे. सभाएं आयोजित करने में निपुण थे. इनका एक काम था कि ये संन्यासियों को जीवन के नियमों के मुताबिक समूहों में बांटें. इनकी प्रथाओं, जैसे तपस्या और योग को आध्यात्मिक मायने दें. माने एक संन्यासी जो अब तक स्वयं के मुताबिक चलता था, उसे एक संगठित निकाय का सदस्य बनना पड़ता. साथ ही उसे संगठन के नियमों के मुताबिक खुद को ढालना पड़ता.

महाकुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व है. शाही स्नान या अमृत स्नान के दिन अखाड़े ही पहला स्नान करते है. इनके लिए मेला प्रशासन की ओर से घाटों पर सुगम स्नान के लिए कई इंतजाम किए जाते हैं. महाकुंभ में वैसे तो स्नान के लिए 50 घाट बनाए गए हैं, पर कुछ घाट ऐसे हैं जहां स्नान का विशेष महत्व है.
दशाश्वमेध घाटप्रयागराज के सभी घाटों के बीच इस घाट का अपना एक अलग स्थान है. दशाश्वमेध का मतलब होता है दस अश्वमेध यज्ञ के बराबर. मान्यता है कि इस घाट पर एक राजा ने अश्वमेध यज्ञ किया था. श्रद्धालु मानते हैं कि इस घाट पर स्नान करने से दिव्य शक्ति यानी ईश्वर के आशीर्वाद की प्राप्ति के साथ खूब पुण्य मिलता है.
किला घाटकिला घाट प्रयागराज के ऐतिहासिक 'अकबर के किले' के नजदीक है इसलिए इसका नाम किला घाट पड़ा. इस घाट पर लोग ध्यान लगाने और योग करने जाते है. आस्थावान लोग कहते हैं कि यहां आसपास का शांत वातावरण इस घाट की खूबसूरती और ‘दिव्यता’ में और इजाफा कर देता है.
रसूलाबाद घाटरसूलाबाद घाट को इसकी शांति और शांत वातावरण की वजह से ख्याति प्राप्त है. रसूलाबाद घाट पर ज्यादातर श्राद्ध और उससे जुड़े कर्म, अनुष्ठान किए जाते हैं. इस घाट पर आकर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं. महाकुंभ के दौरान इस घाट पर जरूर जाना चाहिए.
सरस्वती घाटये प्रयागराज के सबसे मशहूर घाटों में से एक है. मान्यता है कि इस जगह विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी थी. महाकुंभ के दौरान इस घाट पर स्नान का काफी महत्व है. खूबसूरत सीढ़ियां और यहां पूजा करने के महत्व की वजह से लोग सरस्वती घाट की ओर खिंचे चले आते हैं.
नौकायान घाटजैसा की इसके नाम से ही जाहिर है, ये घाट नौकायान यानी बोटिंग के लिए मशहूर है. इस घाट के पास आप नाव से बोटिंग करते हुए त्रिवेणी संगम के मनोरम नजारे का आनंद ले सकते हैं. इस घाट पर बोटिंग का दृश्य ऐसा है जो जीवन भर याद रहता है.
ज्ञान गंगा घाटज्ञान गंगा शब्द का मतलब वो जगह जहां ज्ञान की गंगा बहती हो. इस घाट को मोक्ष प्राप्ति का घाट बताया जाता है. मान्यता है कि एक समय यहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों ने तपस्या कर के ज्ञान प्राप्त किया था. जो लोग प्रयागराज के संगम आते हैं, वो इस घाट पर ज़रूर जाते हैं.
वीडियो: महाकुंभ की गुप्प अंधेरी रात में कैसा होता है मेले का माहौल जानने के लिए देखें वीडियो