The Lallantop

बशीर बद्र शायर हैं इश्क के, और बदनाम नहीं!

आज बशीर बद्र साहब का हैप्पी बड्डे है. लल्लन विश करने के लिए तैयार बैठा है.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
शायर होता है दूसरी दुनिया का इंसान. इस दुनिया में काफी कुछ मिसफिट सा. हमेशा खयालों की दुनिया में रहने वाला. कोई दुनिया की बात करता है, कोई जिंदगी की. कोई फिलॉसफी की तो कोई इश्क की... इश्क के शायरों का नाम जिस लिस्ट में लिखा जाए, ये नाम उसमें ऊपर रखना. जनाब बशीर बद्र का. तो लल्लन सोच रहा है कि कुछ किस्सा करिश्मा हो जाए. कुछ बेशकीमती गजलें साथ में मुफ्त रहें. bashir2 बशीर की गजलों में वो खासियत है, जो हर आमो खास को पढ़ने-सुनने के लिए आकर्षित करती है. कान, जुबान और दिमाग के लिए सीधी आसान भाषा, दिल के लिए ढेर सारे इमोशन, महफिल को जमाने वाली लय और बंदिश और वो सब कुछ जो बिखरे हुए शब्दों को बटोर कर गजल बनाता है.

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा हम भी दरिया हैं हें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

Advertisement

bashir3

सात साल की उम्र से गजलें लिख रहे हैं. इतना तजुर्बा उनको बता गया कि लोगों की जबान पर चढ़ने लायक लिखना बहुत जरूरी है. अगर साहित्य को बचाना है तो उर्दू-अरबी-फारसी को बेजा ठेल कर नहीं लगाना. इसका खयाल आया, तभी तो कहा

Advertisement

"ग़ज़ल चांदनी की उंगलियों से फूल की पत्तियों पर शबनम की कहानियां लिखने का फ़न है. और ये धूप की आग बनकर पत्थरों पर वक्त की दास्तान लिखती रहती है. ग़ज़ल में कोई लफ़्ज ग़ज़ल का वकार पाए बगैर शामिल नहीं हो सकता. आजकल हिन्दुस्तान में अरबी-फ़ारसी के वही लफ़्ज चलन-बाहर हो रहे हैं जो हमारे नए मिज़ाज का साथ नहीं दे सके और जिसकी जगह दूसरी ज़बानों के अल्फ़ाज़ उर्दू बन रहे हैं."

bashir4

वो शाख़ है न फूल, अगर तितलियां न हों वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हों

Advertisement

पलकों से आंसुओं की महक आनी चाहिए ख़ाली है आसमान अगर बदलियां न हों

दुश्मन को भी ख़ुदा कभी ऐसा मकां न दे ताज़ा हवा की जिसमें कहीं खिड़कियां न हों

मै पूछता हूं मेरी गली में वो आए क्यों जिस डाकिए के पास तेरी चिट्ठियां न हों

बेहद मजाकिया आदमी हैं बशीर बद्र साहब. शायरी में तो हैये है, अपने साथ रहने वालों की महफिल में भी अपनी खुशनुमा आदतों के लिए जाने जाते हैं. शराब, सिगरेट का शौक फरमाते नहीं. खेमेबाजी, चुगली और लगाई बुझाई का हुनर भी नहीं है. मोहब्बत के शायर हैं, मोहब्बत बांटते हैं. टाइमपास का क्या जुगाड़ है उनका. मरहूम शायर निदा फाजली उनकी आदतों पर कह गए हैं "जहां भी मिलते हैं, गजलें सुनाते हैं. ये बता कर कि शेर नए हैं."

Advertisement