और इसलिए ये एक मौका लगता है हमें, उनकी जिंदगी पर नए सिरे से नजर उलीचने का.
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मृणालिनी केरल की फ्रीडम फाइटर फैमिली से आती थीं. उनकी मम्मी अमू विश्वनाथन सांसद बनीं. पापा डॉ. विश्वनाथन कानून बघारने में अव्वल थे. हाईकोर्ट में बैरिस्टर और लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल रहे.2
मृणालिनी की बड़ी बहन थीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल. वह आजाद हिंद फौज में महिला विंग की मुखिया थीं. आजाद भारत में लक्ष्मी कानपुर में डॉक्टरी करती रहीं. आखिरी तक गरीबों के लिए लड़ती रहीं. उनकी एक बिटिया है सुभाषिनी. सीपीएम की नेता हैं. 1989 में कानपुर से सांसद भी रहीं. सुभाषिनी का बेटा शाद अली याद है आपको? वही जिसने 'साथिया' और 'बंटी और बबली' फिल्में बनाई हैं.
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मृणालिनी को शुरू से ही डांस में दिलचस्पी थी. मम्मी ने स्कूल के दिनों में स्विटजरलैंड भेजा. फिर भारत में सीखा. और अमेरिका में भी. पर लगन लगाने का काम किया शांति निकेतन ने. वहीं से नृत्य जिंदगी बन गया.4
1942 में जब अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा जा रहा था, मृणालिनी ने पापा का घर छोड़ा. शादी की साइंटिस्ट विक्रम से. वही विक्रम जिन्होंने ISRO की नींव रखी. जिन्हें भारत के स्पेस प्रोग्राम का पापा कहा जाता है. विक्रम अहमदाबाद में थे, तो मृणालिनी का भी वहीं ठौर टिका.
पति विक्रम और बेटे कार्तिकेय के साथ
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दोनों के दो बच्चे हुए. कार्तिकेय और मल्लिका. कलाकार हैं दोनों. मल्लिका तो पॉलिटिक्स में भी एक्टिव है. 2009 में आडवाणी के खिलाफ गांधीनगर से सांसदी का चुनाव लड़ी थीं. मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा भी लड़ा. आजकल6
शादी वैसे नहीं चली, जैसे सबकी चलती दिखती है. विक्रम लैब में खर्च हो जाते थे. उनका एक ही मिशन था. साइंस आजाद भारत के लिए क्या कर सकती है, इसकी तस्वीर साफ करना. उसमें रंग भरना. मृणालिनी संगीत की दुनिया में नाम कमा रही थीं. दोनों ने दोनों को अपनी अपनी फील्ड के लिए समर्पित होने की आजादी दी. मगर इसकी कीमत उनकी संगत को चुकानी पड़ी. दो बेहद कामयाब कलाकारों का साथ रहना मुश्किल क्यों होता है. इसका जवाब खोजने के लिए शादी नाम की संस्था की चीरफाड़ करनी होगी. ये जगह और वक्त मुनासिब नहीं. सो आगे बढ़ते हैं.7
मृणालिनी ने 1948 में अहमदाबाद में 'दर्पण' नाम की संस्था बनाई. यहां से हजारों बच्चे डांस सीख चुके हैं. इसी के बैनर तले उन्होंने पूरे ग्लोब पर थाप दी. मृणालिनी ने इसी साल नई दिल्ली में ‘मनुष्य’ नाम का नाटक परफॉर्म किया. कमाल की लय और अदा. पंडित नेहरू भी ऑडियंस में मौजूद थे. सो खत्म हुआ तो उन्होंने मृणाल को खूब शाबाशी दी. उसी मौके की ये एक तस्वीर है, जिसे अक्सर प्रसंग से काट नेहरू के रंगरसिया इमेज के सुबूत के तौर पर पेश किया जाता है."attachment_7804" align="alignnone" width="266"