बल्कि जब वो अपने परिवार के साथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए तो कहा गया कि आप मंदिर के अंदर जा सकते हैं क्योंकि बड़े नेता हैं, पर आपकी पत्नी और बाकी लोग नहीं जा सकते. दलितों का मंदिर में जाना मना है. तो इन्होंने भी मना कर दिया अंदर जाने से.
जब इन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री रहे संपूर्णानंद की प्रतिमा का अनावरण किया तो लोगों ने बाद में उसे गंगाजल से धो दिया. और फिर जम्मू में भाषण देते हुए इस नेता ने कहा था - 'रोटी और बेटी बराबरी में मिलती है, बिरादरी में नहीं'.
इनका नाम था जगजीवन राम. 5 अप्रैल को इनका बड्डे होता है और 6 जुलाई को बरसी.
छुआछूत से राजनीति की शुरुआत हुई और भूकंप में सेवा ने विधानसभा में निर्विरोध पहुंचाया
5 अप्रैल, 1908 को जगजीवन राम बिहार के आरा में पैदा हुए थे. वही आरा, जिसके नाम पर अनारकली ऑफ आरा फिल्म आई थी. राम के पिताजी ब्रिटिश आर्मी में थे, पर बाद में खेती में आ गए थे. हालांकि उनकी जल्दी ही मौत हो गई, जिससे पूरा परिवार गरीबी में आ गया. जगजीवन राम की पढ़ाई इंग्लिश मीडियम से शुरू हुई थी लेकिन पढ़ाई के साथ ही आरा के स्कूल में उनको जातिगत भेदभाव का बुरी तरह सामना करना पड़ा. उनके समाज के लोगों के लिए अलग पानी पीने का बर्तन रख दिया गया था. बर्तन टूट जाने पर नया नहीं मंगवाया गया. इसी बीच मदन मोहन मालवीय इस स्कूल में आए. और जगजीवन राम की बातें सुनकर उनको बीएचयू आने का न्योता दिया.

वो गए भी. पर यहां भी जातिगत भेदभाव जारी रहा. यहीं पर जगजीवन राम के अंदर नास्तिकता आ गई. समझ ही नहीं आता था कि कैसा भगवान, जो एक-दूसरे से भेदभाव करना सिखाता है! इसके बाद वो कलकत्ता यूनिवर्सिटी चले गए. यहां पर जातिगत भेदभाव के खिलाफ काम करने का मौका मिला. यहीं पर सुभाषचंद्र बोस से भी इनकी मुलाकात हुई. यहीं पर महात्मा गांधी के आंदोलन को समझने का मौका मिला.
बोस ने 1928 में एक मजदूर रैली करवाई थी, इसमें भी जगजीवन राम ने रोल निभाया था. बाद में जब 1934 में नेपाल-बिहार में भूकंप आया तो इसमें जगजीवन राम के किए गए कामों की बहुत बड़ाई हुई. और इसका फायदा उनको मिला जब 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट आया और इसके मुताबिक केंद्र और राज्यों में सरकार बनाने की प्रथा शुरू हुई. 1936 में 28 साल की उम्र में जगजीवन राम को बिहार विधान परिषद में नॉमिनेट किया गया. 1937 में वो डिप्रेस्ड क्लास लीग के नेता के तौर पर बिहार विधानसभा में शाहाबाद ग्रामीण से निर्विरोध चुने गए. यही नहीं, इस पार्टी के 14 विधायक जीते उस चुनाव में. बिहार के बड़े नेता बन गए वो और कांग्रेस ने उनको लपक लिया.

क्योंकि उस वक्त भीमराव अंबेडकर कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे थे. दलित-शोषित समाज के लिए अंबेडकर ने दिन-रात एक कर दिया था. जिस तरीके से वो समस्याओं को समझते थे, शायद कोई और नहीं समझ पाता था. इसलिए समाज के एक बड़े वर्ग के उनके साथ जाने की संभावना थी. राजनीति बड़ी रोचक होती है. दलित-शोषित समाज की समस्याएं एक तरफ थीं, स्वतंत्रता आंदोलन एक तरफ था और आपसी राजनीति एक तरफ थी. पर बाद में सिंचाई पर टैक्स, अंडमान में राजनीतिक कैदियों और द्वितीय विश्व युद्ध के मुद्दे को लेकर जगजीवन राम ने रिजाइन कर दिया.उसी वक्त वो ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेज लीग की संस्थापना में आगे आए. एक रोचक वाकया भी हुआ. कम्युनल राजनीति करने वाली हिंदू महासभा के एक सेशन में जगजीवन राम ने मंदिरों और कुओं को दलितों के लिए भी खोलने का प्रस्ताव पेश किया. ये एक बड़ी घटना थी. जो काम अंबेडकर ने आलोचना कर के किया, वही काम जगजीवन राम ने विपक्षी लोगों के बीच जाकर करने की कोशिश की.
सबसे कम उम्र के मंत्री बने और 1971 की लड़ाई के वो नायक रहे, जिनको इंदिरा के ग्लैमर में भुला दिया गया
इसी दौरान भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ और तमाम नेताओं के साथ जगजीवन राम को भी जेल जाना पड़ा. पर इसके बाद सवेरा भी आया. 1946 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार बनी. इसमें जगजीवन राम सबसे कम उम्र के मंत्री बने. लेबर मिनिस्टर बने थे और भारत में मजदूरों की समस्याओं को लेकर कानून बनाने की शुरुआत कर दी. ये इतिहास में एक बड़ी पर कम कही गई घटना है. क्योंकि कम्युनिस्टों के नेता और लेफ्ट विचारधारा वाले कांग्रेसी नेता जैसे सुभाषचंद्र बोस भी मजदूरों के लिए काम करते थे. पर पेमेंट, इंश्योरेंस, बोनस और बाकी मुद्दों से जुड़े कानून बनाने का श्रेय एक दलित नेता को गया, जो कि उसी मजदूर समाज का एक हिस्सा था. ये जनतंत्र की ही खूबसूरती है. बाद में जगजीवन राम इंटरनेशनल लेबर कॉन्फ्रेंस के भी अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद वो नेहरू की सरकार में कम्युनिकेशन मंत्री, ट्रांसपोर्ट और रेलवे मंत्री भी रहे. 16 जुलाई 1947 को जब वो जेनेवा से इंटरनेशनल लेबर कॉन्फ्रेंस से वापस लौट रहे थे, उनका प्लेन इराक के बसरा के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया. पर इनकी जान बच गई. हालांकि उसमें प्लेन के सारे कर्मचारियों की मौत हो गई थी. 1952 में वो सासाराम से चुनाव लड़े. पहले भी यहीं से लड़ते थे, पर इसको ईस्ट शाहाबाद कहा जाता था. यहीं से वो मरते दम तक सांसद रहे.

यहीं से वो भारत के प्रधानमंत्री की रेस में शामिल हो गए. हालांकि इंदिरा गांधी 1966 में भारत की प्रधानमंत्री बन गईं. इसमें भी जगजीवन राम मंत्री रहे. पहले लेबर, एम्प्लॉयमेंट मिनिस्टर, फिर फूड एंड एग्रीकल्चर मिनिस्टर रहे. और इसी दौरान भारत में ग्रीन रिवॉल्यूशन हुआ. जगजीवन राम की ये भी एक सफलता थी. 1969 में कांग्रेस टूट गई. और जगजीवन राम इंदिरा गांधी के साथ चले गए. उनको इंदिरा ने कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया. फिर वो डिफेंस मिनिस्टर बन गए. कहा जाता था कि इंदिरा की सरकार में उनकी वो हैसियत थी, जो आज नरेंद्र मोदी की सरकार में अमित शाह की है. इसी वक्त 1971 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ और बांग्लादेश बना. डिफेंस मिनिस्टर रहते हुए जगजीवन राम की ये बड़ी एचीवमेंट थी.
अपनी आजादी के 41 साल बाद बांग्लादेश ने इंडिया के उस वक्त के डिफेंस मिनिस्टर जगजीवन राम को सम्मानित किया. कहा कि इनका ही कारनामा था कि इंडिया और बांग्लादेश की सेनाओं का जॉइंट कमांड बना जिसने फाइनल लड़ाई की और बांग्लादेश बना.इमरजेंसी के बाद के सबसे बड़े नेता बने, पर राजनीति ने इनसे मौका छीन लिया
उस वक्त के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जे. एफ. आर. जैकब ने कहा था कि शायद ये इंडिया के बेस्ट डिफेंस मिनिस्टर रहे हैं.

इमरजेंसी के वक्त जगजीवन राम को फिर कृषि मंत्री बना दिया गया. पर इमरजेंसी के वक्त राजनीति बहुत बदली. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जगजीवन राम ने अपनी पार्टी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बना ली. जनता पार्टी के साथ चले गए. जनता पार्टी को कांग्रेस के जिस नेता से सबसे ज्यादा डर था, वो जगजीवन राम ही थे. जनवरी 1977 में घोषणा हुई कि मार्च में चुनाव होंगे. जनता पार्टी के नेता निराश थे. लेकिन फरवरी में जगजीवन राम के आते ही सारे नेता उत्साह में भर गए. क्योंकि एक बड़ा वोट बैंक साथ आ रहा था.
इंदिरा गांधी को इससे धक्का लगा था. चुनाव के कुछ दिन पहले जगजीवन राम ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता को संबोधित किया. बहुत ही ज्यादा लोगों के आने की संभावना थी. तो इसके जवाब में इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर ऋषि कपूर की नई फिल्म बॉबी चलवा दी. कांग्रेस को लगा कि जनता फिल्म देखने के लिए घर पर रुकी रहेगी. क्योंकि उस वक्त दूरदर्शन पर नई फिल्म का आना असंभव चीज ही थी.

पर जनता पार्टी आई. अखबारों में छपा- 'बाबू ने बॉबी को हरा दिया. Babu beats Bobby.'
चुनाव हुए. जनता पार्टी जीती. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. जगजीवन राम उपप्रधानमंत्री बने. हालांकि वो प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे. इसकी अलग पॉलिटिक्स हुई थी, क्योंकि दलित चेहरा होने के नाते जगजीवन राम का पीएम बनना भारत के जनतंत्र के लिए जरूरी था. पर ऐसा हुआ नहीं. जगजीवन राम ने 27 मार्च 1977 को शपथ ग्रहण समारोह में भाग नहीं लिया था. पर जयप्रकाश नारायण के समझाने पर बाद में सरकार में शामिल हो गए. उनको फिर से डिफेंस मिनिस्टर बना दिया गया. पर जनता पार्टी का एक्सपेरिमेंट फेल रहा. जगजीवन राम ने इसको छोड़कर कांग्रेस जे के नाम से अपनी पार्टी बना ली.
1986 में जगजीवन राम की मौत हो गई. तब तक वो लगातार 50 साल संसद में रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके थे. बिहार के सासाराम जिले में ही उनकी लेगेसी है. उनकी बेटी मीरा कुमार वहीं से अपनी राजनीति करती हैं. 2009 में वो भारतीय संसद की पहली महिला स्पीकर बनीं.
1978 में सूर्या मैगजीन में दो खबरें छपीं. “Sushma Pawn in International Spy Ring” और "Defence Secrets leaked to Chinese embassy?" इन खबरों में एक लड़का और एक लड़की की सेक्स करते हुए तस्वीरें थीं. लड़की दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा सुषमा थी. ये लड़का जगजीवन राम का लड़का सुरेश था. मैगजीन की मालकिन मेनका गांधी थीं, संजय गांधी की पत्नी. इसके बाद जगजीवन राम के राजनीतिक करियर पर ग्रहण लग गया.
ऐसा कहा जाता है कि राजनीतिक विपक्षियों ने जगजीवन राम के करियर को खत्म करने के लिए ही ये काम करवाया था. सेक्स स्कैंडल इंडिया में माफ नहीं किया जाता. हालांकि बाद में सुरेश और सुषमा ने शादी भी कर ली थी, पर इससे कोई राजनीतिक फायदा नहीं हुआ. इस मामले में कई नेताओं, आर्म्स डीलर, मीडिया के लोगों का नाम आया था. इस बात का शक इससे भी होता है कि सुरेश उस वक्त मर्सीडीज बेंज से घूमते थे.

उस वक्त की मेनका गांधी
1937 के बाद से जगजीवन राम कांग्रेस के हर पद पर रहे. 1940 से 1977 तक वो ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे. फिर 1950 से 1977 तक वो सेंट्रल पार्लियामेंट्री बोर्ड में भी रहे. कांग्रेस पार्टी के लिए ये बहुत बड़ी बात थी. इससे भी ज्यादा रोचक बात थी कि जगजीवन राम नेहरू के प्रचंड बहुमत से लेकर मोरारजी देसाई की गठबंधन वाली सरकार तक में रहे. प्रचंड बहुमत के लिए आज नरेंद्र मोदी की बड़ाई होती है और गठबंधन वाली सरकार के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की. पर जगजीवन राम ने बहुत पहले ही ये कर दिया था. कांग्रेस ने इनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ना बनाकर अपने पैरों पर पहले ही कुल्हाड़ी मार ली थी. जनता पार्टी ने भी यही काम किया. अगर ये पीएम बनते, तो देश के एक बड़े तबके के कॉन्फिडेंस में बढ़ोत्तरी होती.
लेकिन ताज्जुब की बात है कि इतने तरह के विभाग संभालने वाले और हर विभाग में जबर्दस्त काम करनेवाले नेता को भारत रत्न का हकदार नहीं समझा गया.
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