वो बिहार में सप्ताह के हिसाब से मुख्यमंत्री बनने का दौर था. दौर, जिसकी शुरुआत 1967 के चुनाव से हुई. बगल के यूपी में चौधरी चरण सिंह सीएम बने. देश के 9 राज्यों में कांग्रेस विरोधी संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकारें बनीं. सबको OBC की ताकत समझ आ रही थी. कांग्रेस को भी. आधे-अधूरे मन से ही सही. इसलिए कभी बीपी मंडल सीएम बनते, तो कभी दलित समाज से आए भोला पासवान शास्त्री. तो कभी फिर से OBC से आए दरोगा प्रसाद राय.
कॉलेज के दिनों की मदद करने वाले की पोती को बहू बना रहे लालू
लालू कभी नहीं बताते कि इस आदमी ने उनके साथ क्या किया था.

ये दरोगा प्रसाद राय की कहानी नहीं है. मगर इसकी शुरुआत उन्हीं से होती है. दरोगा प्रसाद राय सारण के रहने वाले. पटना में पढ़े-लिखे. आज़ादी के आंदोलन में शामिल हुए. पेशे से अध्यापक. राजेंद्र बाबू और कृष्णा सिन्हा दोनों के करीबी. इसलिए इनको 1951 में विधानसभा का टिकट मिला. परसा सीट से. दरोगा जीते और लगातार जीते. उसी क्रम में अनेक सरकारों में मंत्री रहे और फिर उलटफेर वाले उन दिनों में 10 महीने के लिए मुख्यमंत्री. ठीक-ठीक तारीख बताएं, तो 16 फरवरी 1970 से 22 दिसंबर 1970 तक.

दरोगा प्रसाद राय की एक तस्वीर
बड़ा नेता वो, जिसके आगे-पीछे नौजवानों का रेला हो. और ये रेला कौन जुटाता है. नौजवानों के नेता. युवा नेता. यूनिवर्सिटी नेता. ऐसे ही एक नेता थे गोपालगंज के लालू यादव. जो 1970 में महामंत्री रहे. फिर पॉलिटिक्स से जी उचट गया, तो वेटनरी कॉलेज में काम करने लगे. अपने जीजा की सिफारिश से नौकरी पाकर. लेकिन 1973 के दौर में जब नरेंद्र सिंह और सुशील मोदी को लगा कि NSUI के कैंडिडेट को पटकने के लिए कोई OBC कैंडिडेट चाहिए, तो वे लालू के पास पहुंचे.
और लालू पहुंचे सलाह के लिए दरोगा प्रसाद राय के पास. जो उनकी ही बिरादरी के थे और जो उन्हें राजनीतिक शरण और छिटपुट ताकत दिए हुए थे. दरोगा ने पीठ ठोकी और पैसे से भी मदद की. लालू ने चुनाव जीता और उसके बाद उनका करियर चल निकला.

(बाएं से) लालू, शरद और पासवान: शुरुआती दिनों में
तो जिस साल दरोगा प्रसाद राय सीएम बने, उसी साल लालू पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (PUSU) के जनरल सेक्रेटरी बने. फिर 1973 में अध्यक्ष भी.
1977. वो ऐतिहासिक साल, जब इमरजेंसी हटने के बाद चुनाव हुए थे. इंदिरा-विरोधी लहर में हुए इस चुनाव में दरोगा प्रसाद राय भी अपना सांसदी का चुनाव नहीं बचा पाए थे. उधर लालू महज़ 29 साल की उम्र में संसद पहुंच गए थे. जनता पार्टी के टिकट पर छपरा सीट से. उनके गॉडफादर भले कांग्रेसी दरोगा प्रसाद रहे हों, लेकिन इसका असर लालू के इस फैसले पर नहीं पड़ा कि वो कौन सा खेमा चुनते हैं.
और दरोगा प्रसाद. उनका 1980 का चुनाव जीतने के करीब एक साल बाद 19 मार्च 1981 को देहांत हो गया. उपचुनाव में कांग्रेस ने रवायत के मुताबिक दरोगा की पत्नी पार्वती देवी को टिकट दिया. जनता पार्टी ने उनके सामने बीपी सिंह को उतारा था. रवायत के मुताबिक ही पार्वती को जनता की सहानुभूति मिली और वो 15,563 वोटों से चुनाव जीत गईं.

दरोगा प्रसाद राय (बीच में)
पार्वती 1985 तक विधायक रहीं. पर ये साफ समझ आता था कि कुर्सी पर पार्वती नहीं, उनके पति का पादुकाएं हैं. 1985 का चुनाव आया, तो दरोगा की राजनीतिक विरासत उनके वारिस चंद्रिका प्रसाद राय ने अपने हाथों में ले ली. तब तक चंद्रिका और लालू एक-दूसरे से वाकिफ हो चुके थे. चंद्रिका 1985 से अब तक परसा सीट से 6 बार विधायकी जीत चुके हैं और दो बार हारे हैं. दो बार मंत्री भी रहे. एक बार राबड़ी सरकार में और दूसरी बार महागठबंधन सरकार में.
तो लालू और चंद्रिका गुरुभाई हैं. लालू को करीब से जानने वाले जानते हैं कि उन्होंने दरोगा प्रसाद राय की मदद को कभी सार्वजनिक रूप से नहीं स्वीकारा. कभी इसे ग्लैमराइज़ नहीं किया कि किसने शुरुआत में उनकी मदद की. लेकिन अंदरखाने वो इसे कभी भूले भी नहीं. पहले दरोगा और फिर उनके बेटे चंद्रिका से उनका रिश्ते हमेशा बरकरार रहे.

चंद्रिका प्रसाद राय
अकेले सत्ता में आने के लिहाज़ से 1990 बिहार में कांग्रेस का आखिरी साल था. उस चुनाव में चंद्रिका निर्दलीय लड़े थे. फिर 1995 में जनता दल में लालू के साथ आ गए. 1997 में जब लालू पर चारा घोटाले के आरोप लगे, तो उन्होंने जनता दल से बगावत करके अपनी पार्टी बनाई- राष्ट्रीय जनता दल (RJD). राजनीतिक तौर पर इस वक्त चंद्रिका ने लालू का साथ छोड़ा. वो दूसरे खेमे यानी शरद यादव के साथ चले गए. हालांकि, ये दूरी ज़्यादा दिनों तक टिकी नहीं. 2000 विधानसभा चुनाव से पहले चंद्रिका लालू के पास लौट आए. फिर 2002 में राबड़ी सरकार में प्रौद्योगिकी मंत्री बने.

चंद्रिका प्रसाद
आज लालू यादव के घर में शहनाई बज रही है. उनकी ज़़मानत पर छाए संशय के बादल भी छ: हफ्तों के लिए अंतरिम ज़मानत के साथ छंट चुके हैं. उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की शादी चंद्रिका प्रसाद राय की बेटी ऐश्वर्या राय से हो रही है. बाहर से देखने पर लगता है कि लालू अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल रहे हैं. लेकिन असल में वो उस लड़की के साथ अपने बेटे की शादी कर रहे हैं, जिसके दादा ने उन्हें राजनीतिक रूप से खड़े होने के लिए सहारा दिया था.
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