सुबह के 4 बजे हैं. हम संगम घाट पर हैं. आसपास दर्जनभर लोग दिखते हैं. मुंह अंधेरे नहाने आए हैं.
जैसे-जैसे भीड़ बढ़ेगी, पंडित अपना आसन पीछे खिसकाते जाएंगे!
ये कुंभ है... ये कुंभ के लोग हैं...
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फोटो - thelallantop
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घाट से बित्तेभर की दूरी पर चहल-पहल है. सफेद रंग के टेंट तने हैं. आम टेंट्स से अलग, ये ठाठ वाले टेंट हैं. हमको एक आदमी दिखता है. लकड़ी के खांचे में आदमकद शीशा घुसा रहा है. वैसा शीशा जिसको दर्पण कहते हैं. ड्रेसिंग टेबल वाला. ये टेंट के अंदर लगेगा. बनारस से तीन-साढ़े तीन हज़ार भर NRI आए हैं इलाहाबाद. सरकार ने बुलाया है. वहां प्रवासी भारतीय दिवस था. उसमें जो आए थे, उनमें से ही कुछ को यहां लाया गया है. पूरा तामझाम है. इसी का हिस्सा हैं ये सफेद टेंट. ये बाथरूम में इस्तेमाल होंगे. ताकि NRI संगम में डुबकी लगाकर यहां कपड़े बदलें. VVIP इंतज़ाम है. मंडी से फूल आए हैं. गेंदा है तीन रंग का, अशोक की पत्तियां हैं. चकमक ताज़ी. बाथरूम के बाहर बंदनवार बंध रहा है. ये फूल कार्पेट स्वागत है. लाल कालीन भी बिछा है. टेंट के पीछे LoC है. बांस की मोटी-मोटी बल्लियां पहरेदार सी खड़ी हैं. इनके पर कुछ रिज़र्व जगह और फिर बांस बल्ली के पहरेदार. सुबह आम लोगों का इधर की तरफ आना नहीं होगा. तब कुछ घंटों के लिए संगम घाट पर बस प्रवासी भारतीयों का नाम लिख जाएगा. इन टेंट्स के सामने कई छोटे-छोटे दड़बे बने हैं. आम लोगों के कपड़े बदलने की जगह. मुझे बस कुछ कम उम्र की लड़कियां, जवान औरतें इनमें जाती दिखती हैं. कुछ मिनट पहले दो लड़कियां साथ गई थीं. देखने से लगता था, बहनें रही होंगी.
आम और खास में अंतर हो रहता ही है. क्या कीजिएगा. किसी NIR से पूछुंगी. उनको क्या लगता है, क्यों मिल रहा है उनको ये VVIP ट्रीटमेंट. बाकी औरतें बाहर ही सब मैनेज कर रही हैं. कपड़े बदलने के उनके अंदाज़ में सहजता है. देखने से मालूम होता है, उनको नदी नहाने की आदत होगी. सूखा पेटिकोट ऊपर कंधे में फंसाया. जैसे पोंचो पहनते हैं. पोंचो ही होता है न! फैशन ज्ञान तंग है मेरा. पेटीकोट के भीतर ही भीतर भीगा ब्लाउज उतार लिया जाता है, सूखा पहन लिया जाता है. फिर सूखी साड़ी ऊपर से लपेटो, पेटीकोट सरकाओ नीचे. एक मिनट में आंचल अपनी जगह और ये बंध गई साड़ी. अब गीले कपड़े लेंगी. पांवभर नदी में उतरेंगी. कपड़े बस पानी-पानी से खंगाल लिए जाएंगे. फिर साथ लाई पॉलीथिन में भर लिए जाएंगे. हो गया स्नान. सामने पंडे बैठे हैं. प्लास्टिक की चादर पर उनका सामान फैला है. टीके के लिए चानन-चंद्रौटा. लोग नहाकर आ रहे हैं. पंडित जी के सामने घुटनों पर बैठेंगे. कुल गोत्र का नाम लेकर 11, 21 सामर्थ्यभर दक्षिणा देंगे. जैसे-जैसे भीड़ बढ़ेगी, पंडे अपना आसन पीछे खिसकाते जाएंगे. ताकि पब्लिक को परेशानी न हो. परेशानी सच में नहीं हो रही लोगों को. इस बार कुंभ में खूब व्यवस्था है. पूरी सफ़ाई. पंक्ति में कूड़ेदान. उसमें कूड़ा फेंकने का आग्रह करते स्वच्छताग्रही. बहुत सुविधाएं हैं लोगों के लिए. रात को भी चप्पे-चप्पे पर भकभक बिजली बत्ती. लगता है रात भी दिन है. सब कुछ है, बस लोग नहीं दिख रहे. वीराना सा लगता है कई बार. हो सकता है बहुत दूर में फैला है, तो छितरा गए हों. सो दिखते नहीं. हम खोजेंगे लोगों को. कि ये उनका ही तो पर्व है. लोग हैं तो आस्था है. वो न हों तो क्या बचता है?
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प्रयागराज में क्या खास इंतज़ाम किए गए हैं NRI's के लिए ? -
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