बचपन में पोलियो के कारण अपने हाथ-पैर गंवाने पड़े. लेकिन हिम्मत नहीं हारी. घुटनों के बल चलना सीखा. खुद को कभी किसी से कम नहीं माना और विकलांगों के हितों के लिए काम करने का फैसला किया. और काम ऐसा किया कि राष्ट्रपति से पद्मश्री पुरष्कार मिला. 9 मई को राष्ट्रपति भवन में उन्हें पद्मश्री पुरष्कार से नवाजा गया. उनका नाम है, केएस राजन्ना (Who is KS Rajanna). राष्ट्रपति कार्यालय ने सोशल मीडिया X (ट्विटर) पर लिखा
पद्मश्री पुरष्कार जीतने वाले केएस राजन्ना कौन हैं? विकलांग लोगों के लिए आरक्षण और जनगणना की मांग कर चुके हैं
2013 में KS Rajanna को Karnataka में कमिश्नर का पद दिया गया था. लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें अचानक हटा दिया गया था. इस पर बवाल मचा तो उन्हें फिर से पद दिया गया. उन्होंने paralympic games में देश के लिए गोल्ड और रजत पदक जीता है.

"केएस राजन्ना को विकलांगजनों के कल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए जाना जाता है. बचपन में अपने हाथ-पैर खोने के बावजूद उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं. उन्होंने सैकड़ों लोगों को रोजगार प्रदान किया है और हजारों विकलांगजनों को आत्मनिर्भर बनने में मदद की है"
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64 साल के राजन्ना मूल रूप से बेंगलुरु के रहने वाले हैं. महज 11 साल की उम्र में पोलियो की वजह से उन्हें अपना हाथ-पैर गंवाना पड़ा. सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई. लेकिन उनकी पहचान सिर्फ एक सोशल वर्कर की ही नहीं है. 1975 में उन्होंने स्टेट सिविल परीक्षा में सफलता हासिल की थी. 1980 में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. साल 2002 में हुए पैरालंपिक के डिस्कस थ्रो (चक्का फेंक) स्पर्धा में उन्होंने देश के लिए स्वर्ण पदक और तैराकी में रजत पदक जीतकर खुद को एक खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया. मीडियो रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने ड्राइविंग भी सीखी है.
उन्होंने लिंगराजपुरम ब्लॉक के कांग्रेस कमिटी के महासचिव के रूप में भी काम किया. उन्हें एस.एम. कृष्णा के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन बेंगलुरु सिटी कॉर्पोरेशन में पार्षद के रूप में नामांकन के लिए अनुशंसित किया गया था.
इसके अलावा उन्होंने खुद का बिजनेस शुरू किया. द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2024 तक उन्होंने अपने उद्यम के जरिए 500 से अधिक विकलांग लोगों को रोजगार दिया है. 2013 में राजन्ना को ‘कमिश्नर फॉर डिसेबल्ड’ का पद दिया गया. वो राज्य के पहले विकलांग आयुक्त बनाए गए थे. राजन्ना तब 54 साल के थे.
अपने कार्यकाल में उन्होंने विकलांगता जनगणना की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि विकलांग व्यक्ति अधिनियम के उचित क्रियान्वयन के लिए विकलांगता जनगणना आयोजित करना होगा. राजन्ना ने कहा कि इस जनगणना में न केवल विकलांग व्यक्तियों की संख्या गिनी जाएगी, बल्कि विकलांगता की सीमा, शिक्षा का स्तर, रोजगार और आय भी दर्ज की जाए.
अचानक छिन गया था कमिश्नर पदकमिश्नर पद पर राजन्ना का कार्यकाल 2016 तक था. लेकिन उससे पहले 2015 में ही उन्हें पद से हटा दिया गया. इस पर विवाद हुआ. सवाल उठे तो सिद्धारमैया सरकार ने सुधार किया. राजन्ना को फिर से बहाल किया गया. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि ‘कम्युनिकेशन एरर’ के कारण ऐसा हुआ था.
जनवरी 2024 में जब पद्मश्री पुरष्कार के लिए उनके नाम की घोषणा हुई तो द हिंदू में उनका एक बयान छपा. उन्होंने कहा कि मांड्या जिले के मूल निवासी के रूप में ये पुरस्कार उनके लिए सुखद है. लेकिन ये सिर्फ एक पुरस्कार बनकर नहीं रहना चाहिए बल्कि इससे उनके अपने सामाजिक कार्यों में और अधिक मदद मिलनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि “विकलांग व्यक्तियों (PwD) के लिए कोई राजनीतिक आरक्षण नहीं है और मुझे उम्मीद है कि ये पुरस्कार राज्य और केंद्र सरकार को एक विकलांग व्यक्ति को विधान परिषद या राज्यसभा के सदस्य के रूप में नियुक्त करने के लिए प्रेरित करेगा.”
राजन्ना ने कहा था कि वो सिर्फ सहानुभूति नहीं चाहते बल्कि अपने अधिकारों का प्रयोग करने का अवसर भी चाहते हैं.
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