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'KGF' वाले यश की अविश्वसनीय कहानी, कैसे बस ड्राइवर का बेटा सुपरस्टार बन गया

यश की रोमांचक गाथा ऐसी है कि उस पर एक फिल्म आराम से बन सकती है.

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08 जनवरी को यश का जन्मदिन होता है, यहां उनकी कहानी जान लीजिए. फोटो - इंस्टाग्राम

साल 2018. एक कन्नड फिल्म आई. जिसके बाद लोगों की जुबां पे बस एक ही बात थी. अरे भाई, मार्केट में नया सुपरहीरो आ गया है. जान लीजिए वो हैं कौन? नाम है यश. आज उनकी और उनकी उस फिल्म की बात, जिसने यश उर्फ रॉकी भाई को हाउसहोल्ड नाम बना दिया. चलिए, शुरू करते हैं.
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# राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा

तारीख 8 जनवरी 1986. कर्नाटक का जिला हासन. उसी जिले का एक छोटा सा गांव भुवनहल्ली. जहां पुष्पलता और अरुण कुमार गौड़ा के घर एक बेटे का जन्म हुआ. नाम रखा गया नवीन कुमार गौड़ा. ‘रॉकिंग स्टार यश’ तो ये आगे जाके कहलाए. उस समय इनके पिता कर्नाटक रोडवेज़ में बस ड्राइवर थे. अभी भी हैं. अब BMTC की बसें चलाते हैं. ये हमें कैसे पता? तो इसका जवाब है ‘बाहुबली’ के डायरेक्टर एस एस राजामौली.
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बचपन से एक्टिंग को पहला प्यार बना लिया था यश ने. फोटो - ट्विटर

दरअसल, एस एस राजामौली ने KGF के एक इवेंट पर कहा,

मैं ये जानकर हैरान हुआ कि यश के पिता एक बस ड्राइवर हैं. ये भी पता चला कि वो अभी भी बसें चलाते हैं क्यूंकि वो मानते हैं कि इसी काम की वजह से अपने बेटे को आज एक हाउसहोल्ड नाम बना पाए. मेरे लिए यश के पिता असली स्टार हैं.

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यश के पिता आज भी बस चलाते हैं. इससे ज़्यादा इंसपायरिंग क्या होगा. खुद राजमौली उनको स्टार मानते हैं. फोटो - यूट्यूब

सच में कमाल की बात. कहीं ना कहीं ऐसी ही चीजों ने यश का मुकद्दर लिख दिया था. थोड़े बड़े हुए तो परिवार समेत मैसूर शिफ्ट हो गए. वहीं के महाजन एजुकेशन सोसाइटी में एड्मिशन लिया. लाइफ में सब परफेक्ट नहीं था. चीजों की कमी तो थी. पर कभी घरवालों ने खलने नहीं दी. जैसे बचपन में यश के पास साइकिल नहीं थी. रेंट पे लेके चलाते थे. 1 रुपया प्रति घंटे के हिसाब से. और अपनी छोटी-छोटी टांगों से तब तक पैडल घुमाते थे जब तक दुकानदार ना रोक ले.

# एक ही ज़िद - मैं एक्टर ही बनूंगा

स्कूल में पूछा गया, बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? यश के दोस्तों के अलग-अलग जवाब. कोई डॉक्टर, तो कोई इंजीनियर. पर यश का जवाब एक. मैं एक्टर बनूंगा. उस समय शायद सब हंसी-ठिठोली में निकाल देते थे. पर यहां स्कूल पास करने का वक्त आ गया. और कमबख्त, एक्टिंग का बुखार सिर से ना उतरे. घरवालों को दिल की बात बताई. सामने से सवाल आया. अगर एक्टर नहीं बन सके, तो क्या? प्लान बी क्या है तुम्हारा? यश के पास कोई जवाब नहीं. बस एक ही ज़िद. ऐसे में घरवाले भी खिलाफ हो गए.
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फैमिली तैयार नहीं थी, फिर वो किया जो हर फिल्मी हीरो करता है. फोटो - ट्विटर

हम अक्सर फिल्मों में देखते हैं. घरवाले नहीं माने, तो हीरो बिना किसी पैसे के घर से निकल गया. यहां भी ऐसा ही कुछ हुआ. यश अपना घर छोड़ बैंगलोर के लिए निकल गए. और वो भी खाली जेब. दोस्त, रिश्तेदार, जिससे जितनी मदद मिल सकती थी, उतनी ली. ये भी जानते थे कि सिर्फ पैशन होने से काम नहीं चलेगा. एक्टिंग तो सीखनी ही पड़ेगी. उनकी ये तलाश ले गई बेनाका थिएटर ग्रुप के गेट पे. जिसके फाउन्डर थे बी.वी. कारंत. इंडियन थिएटर स्पेस में आज भी इनका नाम पूरी इज़्ज़त से लिया जाता है.
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बी.वी. कारंत: गिरीश कर्नाड जैसे दिग्गजों के साथ काम करने वाली थिएटर पर्सनैलिटी. फोटो - फेसबुक

यश के लिए थिएटर शब्द के मायने बड़े सीधे थे. गली नुक्कड़ पर होने वाला मायथोलॉजी ड्रामा. यहां आए, तो बात समझ में आई. थिएटर को एक लाइन की परिभाषा में नहीं बांध सकते. फिर क्या था. मन लगाकर लग गए. यश को मेन रोल नहीं मिलते थे. ज़्यादातर रिप्लेसमेंट एक्टर के तौर पर काम किया. जैसे मेन एक्टर की गैर मौजूदगी में उसकी जगह लेना. पर ये तो मानो घर से कसम खाकर निकले थे. रोल जैसा भी हो, करना पूरी शिद्दत से है. इसीलिए किरदार की एंट्री, एग्जिट से लेकर एक-एक बारीकी का आंख मींच के पालन करते थे.

# वो सीरियल, जिसने काम से ज़्यादा कुछ दिया

अक्सर हम टीवी एक्टर्स को लेकर एक बात सुनते हैं. कि ये अच्छे एक्टर्स नहीं होते. इज़ी गोइंग नहीं होते. पर कितनी ही बार कितने ही एक्टर्स ने ये ग़लत साबित किया. शाहरुख खान, इरफान खान, प्रकाश राज जैसे एक्टर्स ने. यश भी इसी लिस्ट का हिस्सा हैं. अपने कैरियर की शुरुआत की 2004 में आए सीरियल से. नाम था ‘उत्तरायन’. पर यहां इनका काम ज़्यादा नोटिस में नहीं आया. शायद किस्मत को कुछ और मंज़ूर था. क्यूंकि इसके बाद आया सीरियल ‘नंद गोकुला’. यहां इनकी को-स्टार थीं राधिका पंडित.
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यश का पहला सीरीअल 'उत्तरायन'. फोटो - यूट्यूब

शो हिट साबित हुआ. और उससे भी ज़्यादा यश और राधिका की जोड़ी. शो ने इनकी लाइफ पर भी असर डाला. रील वाला प्यार अब रियल लाइफ में उतरने लगा. दोनों ज़्यादा शोरगुल किए बिना मिलने लगे. बता दें कि यश की उसका फिल्म का राधिका भी हिस्सा थीं, जिसने उन्हें फिल्मी दुनिया में स्थापित किया. फिल्म थी ‘मोगिना मानसू’. यहां अपने काम के लिए उन्हे बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर भी मिला.
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यश और राधिका ने शादी की तो पूरे कर्नाटक को न्योता दे डाला. फोटो - फेसबुक

राधिका यश के लिए लकी चार्म साबित हुई. दोनों ने आगे जाकर 2016 में शादी भी कर ली. प्यार सबसे छुपाया, पर शादी नहीं. इसीलिए अपनी शादी में पूरे कर्नाटक को ओपन इन्विटेशन दे डाला. यानि कोई भी आ सकता है. इस कपल के दो प्यारे बच्चे भी हैं. आयरा और यथर्व. दोनों ने मिलकर ‘यशो मार्ग फाउंडेशन’ खोला. ताकि सोसायटी का जितना और जैसे भला हो सके, दोनों कर सकें. संस्था की पहली पहल कर्नाटक के कोप्पल जिले से शुरू हुई. 4 करोड़ रुपए की लागत से सूखाग्रस्त इलाकों में साफ पानी पहुंचाया गया. यही है अपने प्रिविलेज को सही मायने में यूज़ करना.

# ‘वन हिट वन्डर’ नही हैं यश

यश की काफी सारी फैन फॉलोइंग नई है. जिनमें से भी कई ये समझते हैं कि यश का स्टारडम वन हिट वन्डर का कमाल है. पर ऐसा नहीं है. इनके करियर की नींव छोटे-छोटे रोल्स पर टिकी है. जैसे इनका पहला रोल. 2007 में आई फिल्म ‘जंभाद हुदुगी’. रोल इतना छोटा था कि जनता का ध्यान तक नहीं गया. वो बात अलग है कि अब उनके फैंस इस फिल्म को यश के लिए देखते हैं. फिर आई ‘मोगिना मानसू’. जिसकी बात हम कर चुके हैं.
Moggina Manasu Poster
यश के लिए पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड लाई 'मोगिना मानसू'. फोटो - फाइल

यहां से जो कामयाबी मिली, उसकी बदौलत कुछ फिल्मों में लीड रोल मिले. जैसे ‘रॉकी’, ‘कलार संते’ और ‘गोकुला’. पर ये फिल्में इनकी टोपी में कामयाबी के पंख ना लगा पाई. वो काम किया 2010 में आई ‘मोदलसाल’ ने. यश की पहली सोलो कमर्शियल हिट. इसके बाद आई ‘राजधानी’. फिल्म कुछ खास नहीं कर पाई. पर क्रिटिक्स ने अब तक यश के पोटेंशियल को पहचान लिया था. इसके बाद आई ‘कीर्तक’ ने सबको भरोसा दिला दिया. नए लड़के में दम है. ये कॉमेडी ड्रामा सुपरहिट साबित हुई. ये कन्नड भाषा में बनी तीन हज़ारवीं फिल्म थी.
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'गजकेसरी' से अपनी रोमांटिक हीरो वाली इमेज बदली. फोटो - फाइल

इसके बाद आई कुछ फिल्मों को एवरेज रिव्यू मिले. यश की इमेज अब तक रोमेंटिक हीरो वाली बन चुकी थी. इसी को ध्यान में रखते हुए ‘ड्रामा’ बनाई गई. फिल्म ने मोटी कमाई की और हिट साबित हुई. इसी तर्ज़ पर एक और फिल्म की. बॉलीवुड एक्ट्रेस कृति खरबन्दा के साथ. नाम था ‘गूगली’. बाकी फिल्मों का विकेट गिराते हुए ‘गूगली’ ने बॉक्स ऑफिस पर गदर मचा दिया. इस पॉइंट पर यश को लगा कि इमेज बदलने की जरूरत है. रोमांस से थोड़ा ब्रेक लिया जाए. इसीलिए एक्शन फिल्म की. नाम था ‘गजकेसरी’. 180 स्क्रीन्स पर रिलीज़ हुई. एक्सपेरिमेंट सफल रहा. जनता को ये नया अवतार पसंद आया. इतना कि फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई की. यहां से यश के फिल्मी सेंसेक्स का बुल रन शुरू हो गया था. क्यूंकि इसके बाद आई ‘मिस्टर और मिसेज़ रामाचारी’ को भी तगड़ा रिस्पॉन्स मिला. यहां तक कि सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली कन्नड फिल्मों की लिस्ट में भी शुमार हुई. फिल्म में यश के साथ राधिका थीं. इसी फिल्म ने यश के नाम के आगे सुपरस्टार का ठप्पा लगाया. 2015 में आई ‘मास्टरपीस’ को भी इतना ही प्यार मिला. अब तक कन्नड जनता यश को अपना चुकी थी.

# कन्नड़ सिनेमा की दशा-दिशा बदलने वाली फिल्म

साल 2018. किसी को क्या पता था कि ये साल क्या कमाल कर जाएगा. इसी साल आई ‘KGF’. अब तक सैंडलवुड यानि कन्नड सिनेमा के हीरो को दो कामों में महारत हासिल थी. फिज़िक्स से दुश्मनी निभाने में और बीच सड़क पर 40 लोगों के साथ डांस करने में. पर ‘KGF’ ने अब तक के जमे जमाए फॉर्मूले को उलट के धर दिया. अगर इसे सिर्फ फिल्म की तरह देखते हैं, तो वो भी सही नहीं है. फिल्म से ज़्यादा, ये एक अनुभव है. ग़ज़ब का सिनेमैटिक अनुभव.
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फिल्म आई और बवाल मचा दिया. सबकी ज़बान पे एक ही बात, 'सलाम रॉकी भाई'. फोटो- यूट्यूब

खैर, उसपर बात थोड़ी देर में. अभी बात ‘KGF’ के इम्पैक्ट की. ये एक पैन-इंडिया प्रोजेक्ट था. यानि कन्नड के अलावा इसे तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिंदी में भी रिलीज़ किया गया. कन्नड फिल्मों का एक और रिवाज़ रहा है. फिल्म का बोझ भारी-भरकम डायलॉग्स पर डालने का. यहां ये भी बदला. फिल्म में डायलॉग्स की गुंजाइश ना के बराबर रखी. हवाबाज़ी की बातों से ज़्यादा एक्शन को जगह मिली. परिणाम ये हुआ कि फिल्म दुनिया भर में 250 करोड़ से ज़्यादा कमा गई.
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पुष्पक विमान: कमल हासन का कमाल का एक्सपेरिमेंट. फोटो - यूट्यूब

ऐसा भी नहीं है कि ‘KGF’ कन्नड सिनेमा में किया गया पहला एक्सपेरिमेंट हो. 1987 में आई ‘पुष्पक विमान’ को कौन भूल सकता है भला. जब सब बोल-बोल के तारीफ़ें बटोर रहे थे, तब कमल हासन की इस फिल्म ने खामोशी से कमाल दिखाया था. ये एक साइलेन्ट फिल्म थी. जो आज भी उतनी ही एंटरटेनिंग है. पर ‘KGF’ में ऐसा क्या खास था कि इसने कन्नड सिनेमा का चेहरा बदल के रख दिया? इसने मौका दिया था यंग फिल्ममेकर्स को एक्सपेरिमेंट करने का. जानेंगे इस फिल्म से जुड़ी तमाम स्पेशल बातें. पहले शुरू करते हैं फिल्म की कहानी से.

# 'कोलार गोल्ड फील्ड्स' की कहानी

साल 1981. शुरू होती है इंडिया की प्राइम मिनिस्टर रमिका सेन से. एक डेथ ऑर्डर साइन कर रही हैं. इंडिया के सबसे बड़े क्रिमिनल का. आपको अंदाज़ा लग जाएगा कि ये ऑर्डर कहानी के हीरो रॉकी के नाम है. पर रॉकी शुरू से ऐसा ना था. रॉकी की शुरुआत होती है 1951 से. पैदा हुआ गरीबी में. अकेली मां ने पाला. बच्चा ही था कि मां चल बसी. पर मरने से पहले रॉकी से कुछ कह गई. ऐसा कुछ, जिसे उसने अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया. पैदा गरीबी में हुए हो, मगर गरीबी में मत मरना. दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी बनना.
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वो बच्चा जिसे बस एक चीज़ चाहिए, दुनिया. फोटो - यूट्यूब

यही उम्मीद लिए ये बच्चा सपनों की नगरी आता है. 1960 के दशक का बॉम्बे. बूट पॉलिश करता है. पर दिमाग में एक ही ज़िद सवार है. कैसे भी करके बड़ा आदमी बनना है. नाम कमाना है. इसी चक्कर में पुलिसवाले के सर पर 2 बोतल फोड़ देता है. इस नए बच्चे का ये कारनामा जल्द ही शहर के कोने-कोने में फैल जाता है. रॉकी अब पावर की सीढ़ियां चढ़ने लगता है. पर पावर के बारे में एक बात सच है. ये कभी भी काफी नहीं होती.
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अकेला मैदान खाली करवा दे, वैसा हीरो हैं रॉकी. फोटो - यूट्यूब

धीरे-धीरे रॉकी सभी गैंगस्टर्स को अपने रास्ते से हटाने लगता है. अब बॉम्बे और उसके बीच सिर्फ एक आदमी है. उसका अपना बॉस. फिर एंट्री होती है उसके बॉस के भी बॉस की. रॉकी के लिए एक ऑफर लाता है. गरुड़ा को मारो और बॉम्बे तुम्हारा. रॉकी मान जाता है. गरुड़ा को मारने बैंगलोर पहुंचता है. किसी कारण से मार नहीं पाता. अपने लक्ष्य में कामयाब होता भी है और नहीं भी. क्यूंकि वहां उसकी नज़र पड़ती है सोने पर. अब उसे पावर भी चाहिए और दौलत भी. इसी इरादे से गरुड़ा के गढ़ में घुसता है. कोलार गोल्ड फील्ड्स में.
फिल्म का ज़्यादातर एक्शन 1970 के दशक में सेट है. इसके पीछे भी एक वजह है. दरअसल, उस समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वॉर चल रही थी. जिस कारण सोने की कीमतों ने आसमान छू लिया था. इसलिए जितनी ज़्यादा सोने की कीमत, उतना ज़्यादा इंसान में लालच.
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लालच और पावर की कहानी है KGF. फोटो - यूट्यूब

आप पूछेंगे कि एक्शन तो और भी फिल्मों में होता है. और भी फिल्में हैं, जहां इंसान के लालच और ताकत के नशे को परदे पर उतारा गया है. तो फिर ‘KGF’ में ऐसा खास क्या है. बात करेंगे इन्हीं पहलुओं की, जिन्होंने इस आम सी कहानी को इतना स्पेशल बना दिया.

1. ऐसा क्या खास था KGF में?

पहले बात करते हैं म्यूज़िक की. ‘KGF’ के लिए म्यूज़िक दिया रवि बसरूर ने. जहां फिल्म की एक्टिंग में गहराई कम थी, वहां म्यूज़िक ने कमी पूरी की. जैसे जब भी रॉकी की मां को दिखाया जाता है तो एक गाना बजता है. उसका म्यूज़िक इतना प्यारा है कि यकीन मानिए, घंटों आपके जहन से नहीं निकलेगा.
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मां-बेटे वाले सीन्स में बेहद खूबसूरत म्यूज़िक यूज़ हुआ है. फोटो - यूट्यूब

अगली खासियत है फिल्म के सिनेमेटोग्राफर भुवन गौड़ा का कमाल. फिल्म के ज़्यादातर सीन्स में आपको पीला और गहरा ग्रे टेक्स्चर मिलेगा. इसका एक कारण है. दरअसल, पीला सोने के रंग को दर्शाता है. वहीं, किरदारों के चेहरों पर पड़ने वाला अंधेरा उनके लालच का सूचक है. ये दो चीजें ही कहानी का केंद्र बिंदु हैं. सोना और लालच. इसी लाइटिंग की बदौलत आपको फिल्म देखते समय कई हॉलीवुड फिल्में याद आएंगी. 'गॉडफादर' और 'मैड मैक्स: फ्यूरी रोड' उन्हीं में से दो नाम हैं.
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भुवन गौड़ा ने 40 किलो के कैमरा को कंधे पर रखके शूट किया. फोटो - यूट्यूब
 

2. बाहुबली का इसमें क्या रोल था?

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बाहुबली ने दिखाया कि बड़े बजट कि फिल्म कैसे बनती है. फोटो - पोस्टर

साल 2015 को इंडियन सिनेमा के इतिहास में एक खास जगह मिलेगी. इस साल आई वो फिल्म, जो मेनस्ट्रीम और रीजनल सिनेमा, दोनों के लिए मिसाल बन गई. खत्म होने पर दर्शकों के लिए सवाल छोड़ गई. जिसे पूरे देश में पूछा जाने लगा. कट्टपा ने बाहुबली को क्यूं मारा? 'बाहुबली'. ‘बाहुबली’ ने दिखा दिया कि बड़े बजट की फिल्म आखिर बनती कैसे है. उसके बाद आई कितनी ही फिल्मों ने वैसी ही कोशिश की. पर कुछ खास कमाल ना कर सकीं. ‘KGF’ जैसी बड़ी फिल्म पर इसका असर ना पड़ता, ऐसा तो मुमकिन नहीं था. ये भी ‘बाहुबली’ के तराशे रास्ते पर चली. और एक सफल कोशिश साबित हुई.
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KGF का ये सीन भी 'बाहुबली' से इंस्पायर्ड है. फोटो - यूट्यूब

एक सीन का जिक्र करते हैं. जहां गरुड़ा अपनी मूर्ति पर से कपड़ा हटाता है. कैमरा इस तरह से घूमता है कि आगे खुद गरुड़ा खड़ा है और पीछे उसकी मूर्ति. अब ज़रा ‘बाहुबली: दी बिगिनिंग’ का इंटरवल वाला सीन याद कीजिए. जहां मज़दूर भल्लालदेव की मूर्ति को स्थापित करने में लगे हैं. मूर्ति खड़ी हो जाती है. फिर कैमरे से ऐसा शॉट लिया है जैसे आगे भल्लालदेव की मूर्ति खड़ी है और पीछे बाहुबली की.
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कुछ ऐसा ही अकेले बोझ उठाने वाला सीन 'बाहुबली' में भी था. फोटो - यूट्यूब

इसी फिल्म से एक और उदाहरण बताते हैं. जहां रॉकी अकेला खाने से लदे कार्ट को खींचता हैं. बाकी लोग बस अचंभे से उसे देख रहे हैं. अब आ जाइए बाहुबली पर. मज़दूर भल्लालदेव की मूर्ति खड़ी करने में लगे हैं. जरूरत से ज़्यादा भारी है. खींचने वाली रस्सी फिसल जाती है. यहां अमरेन्द्र बाहुबली लपकता है. अकेला रस्सी से मूर्ति का भार उठाने. बाकी लोग बस खुले मुंह देखते रह जाते हैं.

3. क्रू ने बीमार पड़-पड़कर फिल्म पूरी की

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लिटरली ऐसे ही हालात थे फिल्म सेट पर. फोटो - यूट्यूब

रॉकी कोलार गोल्ड फील्ड जाने का फैसला कर लेता है. यहीं से शुरुआत होती है सेकंड हाफ की. जिसका ज़्यादातर हिस्सा कोलार में शूट हुआ. यहां हालात उतने ही मुश्किल थे, जितने फिल्म में दिखे हैं. सेट पर लगभग 800 जूनियर आर्टिस्ट मौजूद थे. फिर भी 10 दिन से ज़्यादा शूट ना किया जा सका. कारण था धूल और गर्मी. हालत ऐसी हुई कि लोग बारी-बारी बीमार पड़ने लगे. इसके साथ एक और मुश्किल थी. फिल्म शोल्डर हेल्ड कैमरा पर शूट हुई. जिसका वजन 40 किलो से भी ज़्यादा होता है. सिनेमेटोग्राफर भुवन गौड़ा के कंधे को हमारा सलाम.
Kgf Chapter 2 Teaser
'KGF चैप्टर 2' का टीज़र कल सुबह 10:18 मिनट पर आ रहा है. फोटो - ट्विटर

ये तो बात हुई ‘KGF’ के चैप्टर 1 की. फिल्म का दूसरा पार्ट भी आया, KGF चैप्टर 2. 2022 में रिलीज़ हुई फिल्म ने करीब 1100 करोड़ रुपये की कमाई की.  

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