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ममता बनर्जी से लेकर CJI चंद्रचूड़ तक से बैर पालने वाले जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय कौन हैं?

Justice Abhijit Gangopadhyay ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफ़े की घोषणा कर दी है. अटकलें हैं कि वो जल्द ही कोई पॉलिटिकल पार्टी जॉइन करेंगे.

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जब से हाई कोर्ट की कुर्सी पर बैठे, सत्ता के साथ बैठी नहीं. (फ़ोटो - सोशल मीडिया)

पश्चिम बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला. राज्य में 2012 से 2022 के बीच ग्रुप-सी और ग्रुप-डी के नॉन-टीचिंग स्टाफ़, नवीं से बारहवीं तक के टीचिंग स्टाफ़ और प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की अवैध भर्ती की गई. हाई कोर्ट से जांच के आदेश आए. तब के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी गिरफ़्तार हुए. लगभग 36,000 अप्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी रद्द करने का आदेश पारित हुआ, बाद में रोक दिया गया. जिस जज ने ये आदेश दिया था, उन्होंने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दिया. वहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के 'नंबर-2' सांसद अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) के 'हिसाब-बही' पर खुल कर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट के ये इंटरव्यू न सुहाया. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की बेंच ने हिदायत दी कि जजों को टीवी इंटरव्यू नहीं देने चाहिए और साफ़ कहा कि इंटरव्यू देने वाले जज को घोटाले से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने नहीं दी जा सकती. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कुछ ही घंटों के अंदर हाई कोर्ट जज ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक आदेश पारित किया कि सुप्रीम कोर्ट के महासचिव आला अदालत को उनके इंटरव्यू का अनुवाद सौंपे. स्वत: संज्ञान आदेश की वजह से सुप्रीम कोर्ट को देर शाम बैठना पड़ गया. जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने रिपोर्ट देखी और कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का आदेश ‘न्यायिक अनुशासन के ख़िलाफ़’ था. इस पर हाईकोर्ट जज ने जवाब दिया - ‘जुग जुग जियो, सुप्रीम कोर्ट!’

सीधे सुप्रीम कोर्ट से बैर लेने वाले जज अभिजीत गंगोपाध्याय (Abhijit Gangopadhyay) ने इस्तीफ़े की घोषणा कर दी है और ये संकेत भी दिए कि वो राजनीति में जाएंगे. 2018 से हाई कोर्ट के जज बने और जबसे बने, विवादों-चर्चाओं में रहे. बड़ी बेंच के आदेशों की अनदेखी करने के लिए, इंटरव्यू के लिए और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार को निर्देश जारी करने के लिए. कई बार उनके फ़ैसले सीधे-सीधे सत्तारूढ़ ममता सरकार से टकराए. तृणमूल के कई नेताओं ने कई मौक़ों पर उन्हें राजनीति से प्रेरित बताया. उनके इस्तीफ़े और इशारे पर भी सियासत गर्म है. तृणमूल कह रही है - 'हम पहले ही कह रहे थे कि वो राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता हैं.' वहीं, भाजपा और कांग्रेस के नेता जस्टिस गंगोपाध्याय को अपनी टीम में लाने के लिए आतुर हैं.

कौन हैं जस्टिस गंगोपाध्याय?

1962 के कलकत्ता में जन्मे. वहीं के बंगाली मीडियम स्कूल 'मित्र संस्थान (मेन)' में पढ़ाई की. पिता शहर के नामी वकील थे. कोलकाता के हाजरा लॉ कॉलेज से ग्रैजुएशन किया. कॉलेज के दिनों में बंगाली थिएटर भी किया. 'अमित्रा चंदा' नाम के ग्रुप से जुड़े और कई नाटकों में अभिनय भी किया. ग्रैजुएशन के बाद पश्चिम बंगाल सिविल सेवा (WBCS) का इम्तेहान निकाला. उत्तर दिनाजपुर ज़िले में बतौर ग्रेड-ए अधिकारी अपना करियर शुरू किया. बाद में सिविल सेवा छोड़ दी और कलकत्ता हाई कोर्ट में सरकारी वकील बन गए. मई, 2018 में  उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश के पद पर प्रमोट कर दिया गया और दो साल बाद - 30 जुलाई, 2020 को - स्थायी न्यायाधीश बन गए.

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जब से कुर्सी संभाली, सत्ता के साथ बैठी नहीं. एक मिसाल हमने आपको ऊपर दी. मगर ये इकलौता मौक़ा नहीं था, जब उन्होंने अभिषेक बनर्जी पर सवाल उठाए थे. पब्लिक डोमेन में मौजूद एक बयान में उन्होंने इशारे से अभिषेक पर टिप्पणी की थी. कहा था कि 'भाइपो (हिंदी में भतीजा) धन जुटा रहा है'.

और, जस्टिस गंगोपाध्याय केवल पॉलिटिकल पार्टियों पर ऐसी टिप्पणी नहीं करते. कभी कभी जजों पर भी कर देते हैं. इसी साल की 24 जनवरी को जस्टिस गंगोपाध्याय ने CBI को आदेश दिए कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में MBBS एंट्री में कथित अनियमितताओं की जांच करे. राज्य सरकार ने जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस उदय कुमार की बेंच का रुख किया. इस बेंच ने CBI जांच वाले आदेश पर रोक लगा दी. ये कहते हुए कि इस केस में राज्य को अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं दिया गया था.

इसके बाद जस्टिस गंगोपाध्याय ने लिखित में अपने सीनियर जज जस्टिस सौमेन सेन पर गंभीर आरोप लगाए. लिखा था,

जस्टिस सेन साफ़ तौर पर इस राज्य में कुछ राजनीतिक दलों के लिए काम कर रहे हैं और इसलिए राज्य से जुड़े मामलों में पारित आदेशों को फिर से देखने की ज़रूरत है.

इसी पत्र में अपनी और जस्टिस अमृता सिन्हा के बीच हुई बातचीत का ज़िक्र किया. इसमें जस्टिस सिन्हा के बकौल जस्टिस सेन की राजनीतिक संलिप्तता के संकेत थे. अभिषेक बनर्जी को बचाने की बात थी.

शिक्षक भर्ती घोटाले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय और हाई कोर्ट के वकीलों के एक वर्ग के बीच बहस हुई थी. बहस इतनी बढ़ी कि मामला हिंसक हो गया. जस्टिस गंगोपाध्याय ने अदालत में पत्रकारों को सुनवाई रिकॉर्ड करने की अनुमति दी. एक वकील को अरेस्ट भी करवाया, और फिर कई दिनों तक उनके और वकीलों के एक वर्ग के बीच खींचतान चलती रही.

किस पार्टी में जा रहे हैं?

गंगोपाध्याय अगस्त, 2024 में रिटायर होने ही वाले थे. हालांकि, उनके अचानक रिटायरमेंट के एलान को सीधे तौर पर राजनीति के गणित से जोड़ा जा रहा है. उन्होंने कहा है,

TMC ने कई बार मुझे राजनीति में उतरकर लड़ने की चुनौती दी है. तो मैंने सोचा क्यों न ऐसा किया जाए. बंगाली होने के नाते मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि जो लोग नेता के तौर पर उभरे हैं, उन्होंने जनता के लिए कभी कुछ नहीं किया. मैं इस चुनौती को स्वीकार करूंगा.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जस्टिस गंगोपाध्याय का इस्तीफ़ा बार में कोई आश्चर्य नहीं था. हालांकि, प्रतिक्रियाएं अलग-अलग आईं. मसलन, वरिष्ठ वकील और कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अरुणाभा घोष ने कहा कि जस्टिस गंगोपाध्याय का इस फै़सले से न्यायपालिका के बारे में 'बुरा संदेश' जाएगा. वहीं कुछ का कहना है कि ये उनकी चॉइस है.

किस पार्टी में शामिल होंगे? इस पर उनका कहना है कि अगर कोई पार्टी उन्हें टिकट देती है, तो वो इसके बारे में सोचूंगा. हालांकि, सूत्रों के हवाले से मीडिया रपटें छप रही हैं कि गुरुवार, 7 मार्च को जस्टिस गंगोपाध्याय बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. ये भी हो सकता है कि पार्टी उन्हें तामलुक सीट के लिए लोकसभा चुनाव का टिकट दे दे. हालांकि, दी लल्लनटॉप इस ख़बर की पुष्टी नहीं करता. जो होगा, हम रिपोर्ट कर देंगे.

वीडियो: जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय का इस्तीफा, किस पार्टी से लड़ सकते हैं चुनाव?