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बुक रिव्यू: 'हां मुझे एड्स है, तो क्या?'

ये नई किताब आपकी शेल्फ में आ सकती है या नहीं, तय करें.

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भेदभाव और संघर्ष से भरी कहानी है ये किताब.
किताब- आई एम एचआईवी पॉजिटिव सो व्हाट? राइटर- जयंत कलिता पब्लिशर- ब्लूम्सबरी, नई दिल्ली
2002 में 'बीबीसी', 'दूरदर्शन' और एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने साथ मिलकर जासूस विजय नाम का एक टीवी सीरीज शुरू किया. गांव में रहने वालों को एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूक करने के मकसद से बनाई गई इस सीरीज में आदिल हुसैन लीड एक्टर थे और ओम पुरी ने वॉइस ओवर किया था. इस नॉवेल का कॉन्सेप्ट उस सीरीज से काफी मिलता-जुलता है.
जयंता की किताब का कवर.
कलिता की किताब का कवर.


1. स्ट्रक्चर/जॉनर
कलिता का ये नॉवेल किसी इन्वेस्टीगेशन की रिपोर्ट की तरह लगता है. ये एक चैंपियन की कहानी है. जिसके एचआईवी पॉज़िटिव पाए जाने के बाद समाज का नजरिया उसके प्रति कितना बदल गया, इसे दिखाया गया है. उसे किस तरह के भेदभाव का शिकार होना पड़ा. किस तरह का संघर्ष करना पड़ा. इस किताब में ड्रग्स, एचआईवी और समाज से लड़ाई जीतने के बाद बॉडी बिल्डिंग में ख़िताब जीतने की उनकी कहानी बताई गई है.
बेशक कहानी बहुत इंस्पायरिंग है, लेकिन इसका इमोशनल पहलू बहुत कमज़ोर है. किताब को पढ़ने के बाद कहीं से भी कोई कनेक्ट फील नहीं होता.
यूक्रेन में एड्स के बारे में जागरूकता फैलाने वाले एक कार्यक्रम में एक व्यक्ति.
यूक्रेन में एड्स के बारे में जागरूकता फैलाने वाले एक कार्यक्रम में एक व्यक्ति.


2. राइटर
कलिता का जर्नलिस्ट होना उनके इस किताब पर भारी पड़ गया है. क्योंकि कहीं-कहीं उनकी ये कहानी एक जर्नलिस्टिक पीस की तरह लगने लगती है. हालांकि जिस तरह से वो देश में सबसे ज़्यादा भेदभाव झेलने वाले इलाके नॉर्थ-ईस्ट के एक बॉडी बिल्डर को लाइमलाइट में लेकर आए हैं, वो काबिलेतारीफ़ है. हमारे देश के अधिकतर लोगों को उन सात नॉर्थ-ईस्टर्न स्टेट्स के नाम भी सही से नहीं याद होंगे. ऐसे में उनके इस प्रयास और मेहनत के लिए पूरे नंबर मिलने चाहिए.
अपनी इस किताब के द्वारा जयंता जो जागरूकता फैलाना चाहते थे उसमें वो सफल हुए हैं.
अपनी इस किताब के द्वारा जयंता जो जागरूकता फैलाना चाहते थे उसमें वो सफल हुए हैं.


3. मुख्य किरदार
ये कहानी है खुंद्रक्पम प्रदीप कुमार की, जिन्होंने एचआईवी जैसी बीमारी को हराने के बाद बॉडी बिल्डिंग में 'मिस्टर साउथ एशिया' का टाइटल जीता. ये टाइटल उन्होंने लुधियाना में हुए मिस्टर साउथ एशिया बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में जीता था. प्रदीप ने 2012 में बैंकॉक में हुए मिस्टर वर्ल्ड कम्पटीशन में ब्रॉन्ज़ मेडल (कांस्य पदक) जीता. इसके पहले उन्होंने इसी कम्पटीशन में 8वीं रैंक हासिल की थी. इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कई बड़ी प्रतियोगिताओं में भी सिल्वर (रजत पदक) और ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है.
प्रदीप नेशनल लेवल के बॉडी बिल्डर हैं.
प्रदीप नेशनल लेवल के बॉडी बिल्डर हैं.


4. राज्य: मणिपुर
90 के दशक की शुरुआत में मणिपुर ड्रग स्मगलिंग का गढ़ था. उस दौर में वहां हेरोइन (ड्रग) की बहुत डिमांड थी. मणिपुर में गांजे की उपज भी काफी अच्छी होती है. सबको पता है कि यहां का माल इंडिया में सबसे अच्छा होता है. लेकिन जो बात किसी को नहीं पता वो ये कि भारत में एड्स से मरने वालों की संख्या भी सबसे ज़्यादा मणिपुर में ही है.
जो हाल आज कल पंजाब का है कुछ वैसी ही हालत मणिपुर की थी.
जो हाल आजकल पंजाब का है कुछ वैसी ही हालत पहले मणिपुर की थी.


1986 में एचआईवी का पहला केस डॉ सुनिती सोलोमन और उनकी स्टूडेंट डॉ सेल्लापन निर्मला ने तमिलनाडु की वेश्याओं में पाया था. इसके बाद अन्य वेश्याओं में भी इस जानलेवा बीमारी के लक्षण नज़र आने लगे. उस वक़्त ज़्यादा जानकारी न होने की वजह से उनकी बीमारी का कारण विदेशी ग्राहकों को मान लिया गया, जिनके साथ उन्होंने सेक्स किया था.
5. ये होता है एचआईवी
एचआईवी का फुलफॉर्म होता है 'ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंशी वायरस'. हमारे शरीर का जो सिस्टम हमें बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है, ये वायरस उस पर ही हमला कर देता है. अगर जल्दी इसका इलाज नहीं हुआ तो ये 10 से 15 साल में पूरा इम्यून सिस्टम ख़राब कर देगा. ये कितनी तेजी से बढ़ेगा, ये पेशेंट की उम्र पर निर्भर करता है. इसके बाद हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ख़त्म हो जाती है. इस स्टेज को एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंशी सिंड्रोम) कहा जाता है.
HIV हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देती है.
HIV हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देती है.


ये नॉवेल एक इंसान की अपनी जानलेवा बीमारी, शिक्षा की कमी और समाज के भेदभाव से लड़ाई के बाद उस पर जीत हासिल करने के एक बहुत ही प्रेरक सफ़र पर ले जाती है. ऐसा कहा जाता है कि आदमी की सफलता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा उसका खुद का दिमाग होता है. ये बात ड्रग्स के केस में भी बिलकुल सटीक बैठती है.
ये चीज़ें पंजाब में ड्रग के मुद्दे पर बात करती फिल्म 'उड़ता पंजाब' में भी दिखाई गई हैं. फिल्म में जो हाल पंजाब का दिखाया गया है, दो दशक पहले ठीक वही हाल मणिपुर का भी था. शिक्षा की कमी के कारण बहुत सारे लड़के कम उम्र में ही ड्रग्स करने लगते हैं. ड्रग्स लेने का सबसे कॉमन तरीका सिरिंज के थ्रू होता है. एचआईवी वायरस चार तरीके से फैलता है, जिसमें सिरिंज भी शामिल है. तीन और तरीके हैं. बिना कॉन्डम सेक्स, खून लेने-देने से और प्रेग्नेंट मां से बच्चे में.
किसी दुसरे hiv वाले आदमी से ब्लड लेने से भी आपको ये रोग हो सकता है.
किसी दूसरे HIV वाले आदमी से ब्लड लेने से भी आपको ये रोग हो सकता है.


6. अब वापस किताब पर आ जाते हैं
ये किताब एचआईवी पेशेंट्स, ड्रग्स रिलेटेड कानूनों से जुड़े ढेरों रिसर्च-स्टडी से भरी पड़ी है. ये पढ़ने के दौरान कई बार फ्लो ख़राब करने का काम करते हैं, जिससे रीडर का ध्यान उसके मुख्य किरदार से भटक जाता है. यही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है.
इस किताब में इस बचने के उपाय नहीं बल्कि उन चीज़ों से दूर रहने की सलाह दी गई है, जिससे ये रोज होता है.
इस किताब में इससे बचने के उपाय नहीं बल्कि उन चीज़ों से दूर रहने की सलाह दी गई है जिससे ये रोग होता है.


7. लड़ाई सिर्फ अंदर नहीं बाहर भी है
इस किताब में प्रदीप को एक उम्मीद की तरह दिखाया गया. प्रदीप की देखरेख में चंपा के पौधे में फूल खिलते हैं और इससे उन्हें उम्मीद मिलती है. ये हमारे लिए सीखने की चीज़ है कि जिंदगी में किस तरह से छोटी और साधारण चीजों से प्रेरित हुआ जा सकता है.
परिवार किसी भी इंसान के लिए उसका सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम होता है. प्रदीप के लिए भी था. उनकी मां और भाभी ने उनका बहुत ख्याल रखा. घरवालों ने हमेशा ध्यान रखा कि वो सही से खाना खाएं और अपनी बॉडी पर काम करते रहें. क्योंकि प्रदीप के लिए उनकी बॉडी सबसे ज़्यादा जरूरी थी.
HIV को लेकर लोगों की दिमाग में एक कहार्ब छवि बन गई है जिसके कारण वो इससे पीड़ित से भेद-भाव करते हैं.
HIV को लेकर लोगों के दिमाग में एक ख़राब छवि बन गई है जिसके कारण वो इससे पीड़ित लोगों से भेदभाव करते हैं
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एचआईवी से लड़ते-लड़ते हमारा शरीर कमजोर होता जाता है. साथ ही समाज का अपना पूर्वाग्रह बढ़ता और मजबूत होता जाता है. मतलब लड़ाई सिर्फ अंदर ही नहीं बाहर भी लड़नी है. प्रदीप अब 45 साल के हैं और जिंदा हैं.
8. जागरूकता
ये किताब आपको ड्रग, एचआईवी या एड्स की चपेट में आने से दूर रखने का काम करती है. इसमें दिए गए आंकड़े हालांकि बहुत डरावने हैं, लेकिन इसका एकमात्र मकसद देश में इन चीज़ों से जूझ रहे लोगों की संख्या या स्थिति बताकर बाकी लोगों को आगाह करना है.
इस किताब के थ्रू लोगों आगाह किया जा सकता.
इस किताब के थ्रू लोगों को आगाह किया जा सकता है.


उत्तर प्रदेश के एक बॉडी बिल्डर दिनेश यादव का भी इस किताब में ज़िक्र है लेकिन उनका केस प्रदीप से अलग है क्योंकि उनको ये रोग जन्मजात है. उनमें ये बीमारी उनकी मां से आई है क्योंकि वो एचआईवी पॉजिटिव थीं. दिनेश की उम्र 30 साल है और वो अपने राज्य के लिए कई मेडल जीत चुके हैं.
कलिता की ये किताब भले ही पढने के लिहाज से बहुत कमाल की नहीं है. लेकिन एचआईवी/एड्स के खिलाफ जागरूकता फैलाने का ये उनका एक सफल प्रयास है. इसे अच्छी कहानी के तौर पर नहीं पढ़ा जा सकता. मगर अच्छी रिसर्च के तौर पर ये एक बढ़िया किताब है.


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