अनिल दवे वो व्यक्ति हैं जिनको मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सीएम दिग्विजय सिंह को हटाकर वहां भाजपा की सरकार लाने का श्रेय प्राप्त है.
10 सालों से मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी. भाजपा को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. पर 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मौका मिला था क्योंकि दिग्विजय की सरकार पर बहुत तरह के आरोप लग रहे थे. एंटी-इनकम्बेन्सी माहौल बन रहा था. भाजपा को अपना कोई मुद्दा उठाना था जो जनता की नजर में श्रेष्ठ साबित होता.
उमा भारती को भाजपा का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया था. उन्होंने अनिल दवे को अपना मेन स्ट्रैटजिस्ट बनाया. दवे को उमा भारती ने 1999 के लोकसभा चुनाव में अपनी भोपाल की सीट का मीडिया मैनेजर भी बनाया था. इसके पहले अनिल दवे पायलट की ट्रेनिंग ले चुके थे और बिजनेस में हाथ आजमा चुके थे. फिर आरएसएस कार्यकर्ता हुए और उमा इनको मुख्य राजनीति में ले आईं.
2003 में अनिल दवे ने जावलि से दिग्विजय सिंह के खिलाफ कैंपेन शुरू किया. जावलि एक प्रतीकात्मक जगह है. यहां पर शिवाजी ने अफजल खान को मारने की प्लानिंग बनाई थी और यहीं पर मारा भी था. अफजल खान बीजापुर का सरदार था. शिवाजी की राजधानी महाराष्ट्र के रायगढ़ में थी लेकिन जावलि को उन्होंने अपना बेस कैंप बनाया था.
शिवाजी के समकालीन कवि भूषण ने कहा इस जगह के बारे में कहा था:
'जावलि बार सिंगारपुरी औ जवारि को राम के, नैरि को गाजी'
अफजल खान बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का लड़ाका था. बीजापुर और मराठों के बीच हो रही जंग में आदिलशाह ने अफजल को ही भेजा था. प्लान था कि प्रतापगढ़ के पास वो शिवाजी से मिलेगा और वहीं पर उनको मार देगा.
अफजल खान के पास शिवाजी की तुलना में बड़ी सेना थी. शिवाजी जब मिलने के लिए राजी हो गए तो अफजल को लगा कि ये सही मौका है. क्योंकि पहले शिवाजी दो बार मिलने से मना कर चुके थे. तो बीजापुर वालों को लगता था कि शिवजी नर्वस हैं. पर ये प्लानिंग थी शिवाजी की. शिवाजी के इस कारनामे का मराठी भाषा के लोकगीत (पोवाड़ा) में भी जिक्र है.
अफजल खान 7 फीट का व्यक्ति था और वीरता के लिए मशहूर था. उसने शिवाजी के पिता को गिरफ्तार भी किया था और बड़े भाई संभाजी को मारा भी था. 1639 में उसने राजा कस्तूरी रंगा को मीटिंग के बहाने बुलाकर मार दिया था. शिवाजी ने अपने दूत पंतजी गोपीनाथ को अफजल खान से मिलने के लिए भेजा. उन्होंने उसके दिमाग में डाल दिया कि शिवाजी डरे हुए हैं. साथ ही ये पता लगाने में सफल रहे कि अफजल शिवाजी को मारना चाहता है.
शिवाजी और अफजल खान की मुलाकात प्रतापगढ़ के पास एक शमियाने में हुई. अफजल पीठ पर चाकू बांध के आया था. शिवाजी बघनखा पहन के गए थे. उन्होंने अफजल का पेट चीर दिया.

शिवाजी और अफजल खान
इस चुनाव में भाजपा के रणनीतिकारों की टीम को ही जावलि कहा जाने लगा था. भाजपा के उस कार्यालय को जावलि कार्यालय कहा जाने लगा.
कांग्रेस की सरकार को इस बात की हवा भी नहीं लगी कि कैंपेन किस बात से शुरू हो रहा है. पर हिंदू नेशनलिज्म की भावना को टैप करते हुए भाजपा ने एकदम से जनता में पैठ बना ली. दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार कहा जाने लगा. कहते हैं कि बंटाधार शब्द का इस्तेमाल अनिल दवे ने सबसे पहले किया और बाद में दिग्विजय सिंह को ये टाइटल दे दिया गया.
अनिल दवे के कई किस्से भी हैं
1. गुजरात से थे दवे के पूर्वज. बाद में उज्जैन आ के बस गए थे. संघ कार्यकर्ता डॉक्टर शैलेंद्र जैन के मुताबिक दवे को पहले भोपाल का प्रभार दिया गया था, पर चुनाव में संघ ने उनको पूरे मध्य प्रदेश का प्रभार दे दिया. अपने आप में ये बड़ी बात थी. क्योंकि ये सिर्फ योग्यता के आधार पर ही दिया गया था. अनिल दवे का जावलि में घर था. कैलाश जोशी और कप्तान सिंह सोलंकी को भी वहां लाया गया. सबने मिल के प्लानिंग की.
2. जैन ये भी बताते हैं कि जावलि कैंपेन के आस-पास ही नरेंद्र मोदी और अनिल दवे शिवाजी की राजधानी रायगढ़ भी गए थे. वहां पर इन लोगों ने एकांत में काफी चर्चा भी की कि कैसे आगे का प्लान किया जाए. बाद में मोदी पीएम बने और दवे को मंत्रिमंडल में भी शामिल किया. इससे पहले मध्य प्रदेश में चाहे उमा भारती रही हों, या बाबूलाल गौर या फिर शिवराज सिंह चौहान, दवे का राजनीतिक अधिकार कम नहीं हुआ था.

3. जैन इसका एक रोचक किस्सा भी बताते हैं. कहते हैं कि 2014 की एक शाम ये कई और कार्यकर्ताओं के साथ अनिल दवे के घर बैठे हुए थे. दवे छत पर झूला झूल रहे थे. जैन ने उनसे कहा कि बहुत दिन हो गये आपको यहां काम करते, दिल्ली-विल्ली जाइए. तो दवे ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरी नौकरी पक्की रहने दो. फिर कहा कि जाएंगे, जल्दी ही जाएंगे. कुछ दिन बाद वो मंत्रिमंडल में शामिल हो गए.
4. अनिल दवे ने 2005 में नर्मदा समग्र नाम का एनजीओ बनाया था. इसी के आधार पर उन्होंने होशंगाबाद जिले में इंटरनेशनल रिवर कॉन्फ्रेंस भी करवाया. हालांकि इस मीटिंग से नर्मदा को कोई खास फायदा नहीं हुआ था. नर्मदा पहाड़ से नहीं निकलती. वहां पर साल के पेड़ हैं जिनकी जड़ों की मदद से बारिश का पानी नदी में पहुंचता है. पिछले कुछ सालों से इन पेड़ों में बीमारियां लग गई हैं जिनकी वजह से बहुत सारे पेड़ खराब हो गए हैं. इसके अलावा अवैध माइनिंग ने भी काफी हार्म पहुंचाया है नदी को.
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