इज़रायल और हमास (Israel-Hamas War) के बीच छिड़ी जंग में दोनों तरफ़ से अब तक कुल 4500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इसी बीच, 17 अक्टूबर की रात फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि इजरायली सेना ने ग़ाज़ा के अल-अहली अस्पताल पर रॉकेट बरसाए. इस हमले में कम से कम 500 लोगों की मौत हो गई. उधर, इज़रायल (Israel) के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का कहना है कि इस हमले का ज़िम्मेदार 'इस्लामिक जिहाद' है. उनके मुताबिक़, हमास का ही एक रॉकेट मिस-फ़ायर होकर हॉस्पिटल पर गिरा है.
ग़ाज़ा अस्पताल हमला: इज़रायल पर लगा 'वॉर क्राइम' का आरोप, अंतरराष्ट्रीय क़ानून क्या कहते हैं?
अस्पताल पर बम गिराना 'युद्ध अपराध' में आता है? अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत, बंधक बनाने को लेकर क्या क़ानून हैं?


इस भयानक घटना के लिए इज़रायल और हमास एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, मगर इतनी बड़ी संख्या में आम लोगों की हत्या की वजह से देश-दुनिया में 'युद्ध-अपराध' और 'युद्ध के नियम-क़ानून' पर चर्चा हरी हो गई है. कहा जा रहा है कि जंग में सब कुछ जायज़ नहीं है. बंधक बनाए गए लोगों और आम जनता के भी कुछ अधिकार होते हैं. इस सिलसिले में 'जेनेवा संधी' की बात उठाई जा रही है.
क्या है जेनेवा संधि?स्विट्ज़रलैंड में एक शहर है, जेनेवा. वहां रहने वाले एक व्यापारी - हेनरी ड्यूनंट - ने एक संस्था बनाई, 'रेड क्रॉस'. दुनियाभर में जहां भी युद्ध होता है, वहां इस संस्था का नाम ज़रूर सामने आता है. 'रेड क्रॉस' युद्धग्रस्त क्षेत्रों में मानवीय सहायता पहुंचाने का काम करती है. संस्था और हेनरी के प्रयासों से युद्ध के दौरान मानवीय मूल्य बनाए रखने के लिए कुछ नियम तय किए गए. कुल 4 समझौते हुए, कुछ नियम बनाए गए. मसलन, घायल सैनिक की मदद करना, हिरासत में लिए गए दुश्मन सैनिक के साथ मानवीय बर्ताव और घायल सैनिक की देखभाल. चार समझौतों की इसी सीरीज़ को साथ में कहते हैं 'जेनेवा संधि'.
जेनेवा में पहला समझौता हुआ अक्टूबर 1863 में. हेनरी के अनुरोध पर इसमें 16 देश आए. 12 देशों ने इस समझौते पर दस्तख़त किए. इसमें युद्ध में घायल हुए सैनिकों से जुड़े नियम बने. यानी युद्ध के नियमों की कड़ी इस कन्वेंशन के साथ शुरू हो गई. साल 1864 में इसे लागू कर दिया गया.
फिर साल 1906 में स्विट्जरलैंड की सरकार ने 35 देशों को अपने यहां आमंत्रित किया. ये दूसरी बैठक थी. इसमें ज़मीन के अलावा समुद्री लड़ाई से जुड़े नियमों पर भी सहमति बनी. तीसरा कन्वेंशन हुआ पहले विश्वयुद्ध के बाद.
ये भी पढ़ें - ग़ाज़ा अस्पताल हमले पर दुनियाभर के नेताओं ने क्या-क्या कहा?
पहले विश्व युद्ध में ये साफ़ हो गया था कि जेनेवा कन्वेंशन के नियमों का पालन नहीं हो रहा है. सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहार की कई घटनाएं सामने आईं. इसलिए इस कन्वेंशन में युद्धबंदियों यानी दुश्मन देश द्वारा पकड़े गए सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिये, उनके अधिकार क्या हैं, इस पर नियम बने.
फिर चौथा जेनेवा कन्वेंशन हुआ 1949 में. पूरी दुनिया ने विश्व युद्ध के दौरान की गई बर्बरता देखी थी. इस बार 194 देशों ने साथ मिलकर युद्धबंदियों से संबंधित नियम तय किए. इसी कन्वेंशन में युद्ध के दौरान आम नागरिकों के क्या हक़ होंगे, उसपर भी सहमति बनी.
ये भी पढ़ें - इजरायल की सायरेत मतकल यूनिट की कहानी
ये थे जेनेवा कन्वेंशन्स. लेकिन इन बैठकों से निकल कर क्या आया, वो भी जान लीजिए:
- किसी सैनिक के पकड़े जाने के बाद ये संधि लागू होती है.
- घायल युद्धबंदी का इलाज होना चाहिए, उसके साथ कोई हिंसा नहीं कर सकते.
- युद्धबंदियों को लड़ाई में ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते.
- रेड क्रॉस कभी भी युद्धबंदियों से मिल सकती है.
- उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए.
- युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लौटाना होता है.
जंग से संबंधित दो अलग और स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय क़ानून हैं -
- पहला, कोई देश किन परिस्थितियों में या कब बल का इस्तेमाल कर सकता है? संयुक्त राष्ट्र (UN) चार्टर इसे विनियमित करता है और इसे कहते हैं - 'युस एड बेलम'.
- दूसरा सवाल है कि युद्ध कैसे लड़ा जाए? सेना किस हद तक जा सकती है? इसे कहते हैं, 'युस इन बेलो'. माने अगर सेना इस्तेमाल करने की नौबत आ ही गई, तब भी अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत ही की जा सकती है.
अब ये 'कैसे' और 'कितना' तय होता अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून (IHL) के दायरे में. ये क़ानून जेनेवा कन्वेंशन और 1977 में जोड़े गए प्रोटोकॉल्स में निहित है. मक़सद है कि नागरिकों की रक्षा की जाए और युद्ध से होने वाली पीड़ा को कम किया जाए. कौन आम नागरिक है और कौन सैनिक – इसकी भी परिभाषा दी गई है. लड़ाई या संघर्ष के दौरान आम नागरिकों के साथ कैसा सलूक़ किया जाए, उसके डीटेल्ड ब्योरा है. सशस्त्र संघर्ष में शामिल पार्टियों या समूहों के आचरण को नियंत्रित करता है.
ग़ाज़ा-इज़रायल जंग में क्या नियम लागू हैं?अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत सशस्त्र संघर्षों की दो कैटगरीज़ हैं - अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष (IAC) और ग़ैर-अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष (NIAC). जेनेवा कन्वेंशन के सामान्य अनुच्छेद 2 के मुताबिक़, IAC का मतलब है दो देशों की जंग. NIAC में दोनों या कोई एक पक्ष ग़ैर-सरकारी होनी चाहिए. जैसे, हमास. इसलिए इज़रायल और हमास अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन करने के लिए बाध्य हैं.
युद्ध केवल लड़ाकों और सैन्य ठिकानों के बीच हो सकता है. नागरिकों और नागरिक बस्तियों पर नहीं. अगर हमलों में नागरिक मारे जाते हैं, तो वो निषिद्ध है. अवैध है. इसीलिए हमास द्वारा नागरिकों की हत्या अवैध है. साथ ही हमास ने इज़रायलियों को बंधक बनाया है. बंधक बनाना भी युद्ध अपराध में गिना जाता है.
इन आरोपों पर हमास का कहना है कि वो इज़रायल के उन लोगों को ‘सिविलियन’ नहीं मानते, जिन्होंने फ़िलिस्तीनी ज़मीन पर जबरन बस्तियां बसाई हैं.
ये भी पढ़ें - इज़रायल पर रॉकेट दागने वाले 'हमास' की पूरी कहानी
वहीं, अगर किसी सैन्य हमले में नागरिकों को चोट पहुंचे, सो वो वर्जित है. इज़रायल ने ग़ाज़ा पर 6,000 बम गिराए. इसमें भयानक विनाश और मौतें हुई हैं. ग़ाज़ा आबादी को असंगत नुक़सान पहुंचाना उचित नहीं ठहराया जा सकता. ये सब जेनेवा कन्वेंशन के गंभीर उल्लंघन है और युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है.
इसके अलावा इज़रायल का ग़ाज़ा पट्टी की 20 लाख की आबादी का राशन-पानी रोकना, ग़ाज़ा पर ब्लॉकेड लगाना 'कलेक्टिव पनिशमेंट' (सामूहिक सज़ा) कहलाता है. इस तरह की कार्रवाई IHL के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन करती है, कि एक आदमी को उन कामों पर सज़ा नहीं मिल सकती, जो उसने किए ही नहीं. हमास के कर्मों के लिए पूरे ग़ाज़ा को सज़ा देना अवैध है, युद्ध अपराध माना जाएगा. इज़रायल का बचाव है कि ये जंग का 'कोलैट्रल डैमेज' है.