गाजा से बंधकों को छुड़ाकर लाना है, इजरायल की सायरेत मतकल यूनिट की कहानी जान लीजिए
इज़रायल के 150 से ज्यादा लोग Hamas के कब्जे में हैं. जिन्हें जीवित बचाकर लाने के लिए सायरेत मतकल यूनिट को काम पर लगाया गया है. बंधकों को छुड़ाने जैसे ऑपरेशंस में इस यूनिट को महारत हासिल है.

इजरायल और हमास के बीच 10 दिन से जंग (Israel Hamas War) जारी है. फिलिस्तीन का कहना है कि इज़रायली हमले में अब तक उसके 2700 लोगों की मौत हो चुकी है. इधर इज़रायल का कहना है कि 7 अक्टूबर को हुए हमास के हमले में उसके 1400 लोगों की मौत हुई है. 13 अक्टूबर को IDF ने एक वीडियो जारी किया था. कहा था कि उसकी फ्लोटिला-13 यूनिट ने हमास के 60 से ज्यादा 'आतंकियों' को मारकर उनके कब्जे से 250 बंधकों को आजाद कराया है. अभी भी उनके कब्जे में 150 से ज्यादा बंधक हैं. जिन्हें जीवित बचाकर लाने के लिए एक दूसरी यूनिट - 'सायरेत मतकल' को लगाया गया है. बंधकों को छुड़ाने जैसे ऑपरेशंस में इस यूनिट को महारत हासिल है. इसीलिए इसका नाम इज़रायल के इतिहास में ख़ास तौर पर दर्ज है. क्या है ये यूनिट? कब बनी? कैसे काम करती है? विस्तार से जानेंगे.
ये भी पढ़ें: इजरायल के कब्जे में था गाजा, फिर 2005 में छोड़ क्यों दिया?
सायरेत मतकल का इतिहासइज़रायली डिफेंस फ़ोर्स IDF की सर्वोच्च कमान को ‘जनरल स्टाफ़’ या ‘मतकल’ कहा जाता है. और IDF में रिकॉनसेंस (दुश्मन की टोह लेना) के काम में माहिर स्पेशल फोर्स टुकड़ियों को कहा जाता है ‘सायरेत'. तो ‘सायरेत मतकल’ हुई जनरल स्टाफ को रिपोर्ट करने वाली खुफिया यूनिट.
इसके गठन का इतिहास पुराना है. वेस्ट बैंक के इलाके में एक जगह है किब्या. साल 1954 में यहां इज़रायली सैनिकों ने कुछ फिलिस्तीनियों को मार दिया. इससे भड़के आक्रोश के बाद इज़रायल की पहली स्पेशल ऑपरेशन यूनिट '101' को भंग कर दिया गया. अब IDF के पास 'शायतेत 13' को छोड़कर कोई स्पेशल फोर्स यूनिट नहीं थी, जिसके जरिए वो खास ऑपरेशन को अंजाम दे सके.
यूं भी साल 1948 में इज़रायल के गठन के बाद से ही फिलिस्तीन और इज़रायल के बीच छिटपुट लड़ाई जारी थी. दोनों पक्ष एक-दूसरे के लोगों को बंधक बना रहे थे. इसलिए सीक्रेट मिशंस के अलावा, बंधक समस्या से निपटने के लिए भी इजरायल को एक खास यूनिट चाहिए थी. इस साल 1957 में IDF जनरल स्टाफ को सुझाव दिया गया कि एक ऐसी यूनिट बनाई जाए जिसके कमांडोज को दुश्मन के कब्जे वाले इलाके में भेजा जा सके. इस वक़्त तक इज़रायल की एक इंटेलिजेंस यूनिट हुआ करती थी- Aman's Unit 154. अब इसे यूनिट 504 कहते हैं. इसी यूनिट के तहत 'सायरेत मतकल' की स्थापना हुई. तब इसे दी 'यूनिट या 'यूनिट 269' के नाम से जाना जाता था. ये यूनिट, सीधे IDF जनरल स्टाफ को रिपोर्ट करती है.
ये भी पढ़ें: इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद में 'खेल' देखना है तो अमेरिका का देखो
कैसे काम करती है सायरेत मतकल?इज़रायल ने सायरेत मतकल को ब्रिटेन की स्पेशल एयर सर्विस 'SAS' की तर्ज पर बनाया है. स्पेशल ऑप्स की दुनिया में SAS का नाम बड़े आदर से लिया जाता है. सायरेत की टुकड़ियां ख़ास तौर पर दो काम करती हैं. पहला- इज़रायल की हिफाजत के लिए स्ट्रैटेजिक इंटेलिजेंस या रणनीतिक ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना और दूसरा- देश के लिए आतंकवाद विरोधी ऑपरेशंस को अंजाम देना और इज़रायली बंधकों को दुश्मन के चंगुल से सुरक्षित रूप से आजाद करवाना. इस स्पेशल यूनिट का मोटो है,
"जो साहस करता है, वो जीतता है."
'सायरेत मतकल' की सख्त ट्रेनिंगटाइम्स ऑफ़ इज़रायल की एक खबर के मुताबिक, इस स्पेशल यूनिट में सेलेक्शन की प्रक्रिया बहुत मुश्किल होती है. पूरे दो साल तक ट्रेनिंग चलती है. इसके बाद इसके कमांडोज को शहरों में कॉम्बैट और पट्रोलिंग करनी होती है. बम और लैंड माइंस को डिफ्यूज करने की तकनीक सिखाई जाती है. फायरिंग की ट्रेनिंग के साथ रेगिस्तान, पहाड़ और जंगल में जिंदा रहने का कौशल सिखाया जाता है. साथ ही मार्शल आर्ट, नेविगेशन, जासूसी की स्ट्रेटेजी, जंग के वक़्त हर तरह की गाड़ियों की ड्राइविंग, आपातकालीन मेडिकल ट्रेनिंग, गुरिल्ला वॉर (छापेमार युद्ध) वगैरह सिखाया जाता है. ‘सायरेत मतकल’ के कमांडोज को दुश्मन की कैद में भी जिंदा रहने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. ट्रेनिंग के आखिरी चार दिनों में हर कमांडो को 120 से 150 किलोमीटर का पैदल मार्च करना होता है, तभी उन्हें रेड बैरेट (सेना के जवान की लाल टोपी) मिलती है.
'सायरेत मतकल' के ऐतिहासिक ऑपरेशन60 का दशक इज़रायल के लिए सबसे अशांत रहा. ये सिक्स डे वॉर का दशक था. इस यूनिट ने सबसे पहले साल 1962 में लेबनान में एक ऑपरेशन को अंजाम दिया था. फिर कुछ महीने बाद सीरिया में एक ऑपरेशन किया. ये भी सफल रहा. इस दौरान इस यूनिट ने सिनाई प्रायद्वीप के इलाके में कई इंटेलिजेंस ऑपरेशन किए. 70 का दशक आते-आते इस यूनिट को पूरी दुनिया में सबसे बेहतरीन काउंटर-टेररिज्म और रेस्क्यू टेक्नीक वाली यूनिट के बतौर जाना जाने लगा. साल 1972 में इस यूनिट को म्यूनिख नरसंहार के पहले, जर्मन सैनिकों के साथ काम करने भेजा गया. इसके बाद इस यूनिट ने कई ऑपरेशन अंजाम दिए. मसलन साल 1972 में ऑपरेशन क्रेट 3, 73 में योम किप्पुर वॉर, 75 में सेवॉय ऑपरेशन. साल 1976 में 'ऑपरेशन थंडरबोल्ट' के बाद पूरी दुनिया में इस यूनिट का डंका बज चुका था.
क्या था 'ऑपरेशन थंडरबोल्ट'?27 जून 1976 के रोज तेल अवीव के बेनगुरियन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाले फ्रांस के एक प्लेन को पेरिस पहुंचने से पहले हाईजैक कर लिया गया. इसमें 12 क्रू मेंबर्स के अलावा 246 यात्री थे. हाईजैकर्स में 2 फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्मी (PLO) और 2 जर्मनी के रिवॉल्यूशनरी ब्रिगेड से थे. प्लेन को युगांडा के एंतेबे एयरपोर्ट पर लैंड करवाने के बाद हाईजैकर्स ने इजरायल सहित 4 देशों से 53 फिलिस्तीनियों को रिहा करने और 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 41 करोड़ रुपये) की रकम अदा करने की मांग राखी थी. प्लेन को अगवा करने वालों से इज़रायल ने 4 जुलाई तक का वक़्त मांगा. और यात्रियों की सुरक्षित रिहाई का जिम्मा मोसाद और सायरेत मतकल को दिया गया. इजराइल के वर्तमान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के छोटे भाई योनाथन नेतन्याहू 'सायरेत मतकल' के कमांडर थे. उनकी अगुवाई में यूनिट के करीब 200 कमांडो की टीम C-130 सुपर हरक्यूलिस विमानों से युगांडा पहुंच गई. सभी नागरिक सुरक्षित आजाद करवा लिए गए. लेकिन इस ऑपरेशन में योनाथन नेतन्याहू की मौत हो गई. बेंजामिन नेतन्याहू भी 5 साल तक सायरेत मतकल का हिस्सा रहे. कमांडो की तरह करियर शुरू किया और टीम लीडर बने. कई छापामार युद्धों का हिस्सा रहे. कई बार घायल भी हुए. टाइम्स ऑफ़ इज़रायल की खबर के मुताबिक, साल 2011 में उन्होंने कहा था,
"मुझे याद है शांति के पहले उस दौर में क्या माहौल था. मैं स्वेज नहर के अंदर हुई गोलीबारी में लगभग मारा गया था."
'सायरेत मतकल' ने अपनी स्थापना के बाद से अभी तक दो दर्जन से ज्यादा बड़े ऑपरेशंस अंजाम दिए हैं. इनमें ऑपरेशन गिफ्ट (1968) से लेकर ऑपरेशन ऑर्चर्ड (2007) तक शामिल है. इस यूनिट का आखिरी बड़ा ऑपरेशन साल 2017 में सीरिया में ISIS के खिलाफ था. इस यूनिट का दबदबा इज़रायल की सियासत में भी कायम रहा है. इसके कई अधिकारी, इज़रायल के प्रधानमंत्री रहे हैं, वहीं कुछ रक्षामंत्री भी रहे हैं.
वीडियो: इजरायल-हमास जंग के बीच अमेरिका में फिलिस्तीनी बच्चे को मारने की वजह डरा देगी!