क्या चीन में सेना शी जिनपिंग के ख़िलाफ़ बगावत करने का प्लान बना रही है?
क्या चीन में सेना शी जिनपिंग के ख़िलाफ़ बगावत करने का प्लान बना रही है?
महीने भर के अंदर चीन में दो ऐसे बड़े वाकये हुए हैं, जिनकी वजह से ये सवाल उठ रहे हैं.

क्या शी जिनपिंग अपने ही मंत्रियों से डरने लगे हैं?
क्या जिनपिंग को अपने आईडियोलॉजिकल ब्रदर रूस की तरह विद्रोह का ख़तरा सता रहा है?
हम ये सवाल इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि महीने भर के अंदर चीन में दो ऐसे बड़े वाकये हुए हैं, जिनकी वजह से ये शक पैदा हुआ है, कौन से दो वाकये?
पहला वाकया जुड़ा है चिन गांग की गुमशुदगी से. उन्हें चीन के विदेश मंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. कुछ महीने पद भी संभाला, बड़ी मीटिंगें की, लेकिन 25 जून से वो अचानक गायब हो गए. उसके बाद पुराने वाले विदेश मंत्री वांग यी को वापस पद सौंप दिया गया.
दूसरा वाकया हाल का ही है. चीन की सेना के रॉकेट यूनिट के हेड जनरल ली युचाओ और उनके करीबी अफसरों को रिप्लेस कर दिया गया है. ली युचाओ लंबे समय से गायब थे और उनपर करप्शन से जुड़े केस भी चल रहे थे. अब ली की जगह वांग हूबिन को ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.
अब इन दोनों घटनाओं पर गौर कीजिए. एक चीन का विदेश मंत्री, जिसके पास दुनिया के साथ डील करने का पावर, दूसरा सेना की रॉकेट यूनिट का कमांडर, जिसके अंडर में कई परमाणु हथियार भी आते हैं. दोनों अचानक गायब हुए और फिर एक दिन उनके पद पर किसी और को बैठा दिया गया. चीन में ऐसे हाई प्रोफाइल लोगों का गायब होना कोई नई बात नहीं है, जानकार बताते हैं कि जब भी शी जिनपिंग को ज़रा सा भी डर महसूस होता है वो उसे साइडलाइन कर देते हैं.
तो इस रिपोर्ट में जानिए,
चीनी सेना के रॉकेट यूनिट के चीफ़ ली युचाओ को क्यों दरकिनार किया गया?
नए वाले चीफ़ वांग हूबिन कौन हैं?
और साथ में जानेंगे कि क्या वाक़ई शी जिनपिंग को विद्रोह का डर सता रहा है?
सबसे पहले बेसिक क्लियर कर लेते हैं. चीन, ईस्ट एशिया में पड़ने वाला देश है. 140 करोड़ की आबादी वाले देश की भाषा मैंडरिन चाइनीज़ है. राजधानी इसकी बीजिंग है. ये देश भारत, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, साउथ कोरिया, म्यांमार, भूटान जैसे देशों के साथ सीमा साझा करता है. मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग है.
चीन में वन-पार्टी सिस्टम है. माने एक ही पार्टी से हेड ऑफ़ द स्टेट चुनकर आएगा. CCP दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियों में से एक है. उसका कैडर लगभग 10 करोड़ लोगों का है. शी जिनपिंग नवंबर 2012 से CCP के जनरल-सेक्रेटरी हैं. यानी, पार्टी के सबसे बड़े अधिकारी. इसके अलावा, वो सेंट्रल मिलिटरी कमिशन (CMC) के चेयरमैन भी हैं. यानी, चाइनीज़ आर्मी की कमान भी उन्हीं के हाथों में हैं. चाइनीज़ आर्मी को पीपल्स लिब्रेशन आर्मी के नाम से भी जाना जाता है, शॉर्ट में इसे PLA भी कहते हैं. शी जिनपिंग ने मार्च 2023 में PLA को और मज़बूत करने की बात कही थी. कहा था कि सुरक्षा ही विकास का आधार है, स्थिरता रहेगी तभी समृद्धि आएगी. हमें चीनी सेना का आधुनिकीकरण करते हुए उसे 'ग्रेट वॉल ऑफ स्टील' बनाना है.
जिस PLA को जिनपिंग ग्रेट वॉल ऑफ स्टील बनाना चाहते हैं वो दुनिया की तीसरी सबसे मज़बूत आर्मी मानी जाती है. नंबर वन पर अमेरिका और दूसरे पर रूस को गिना जाता है.
वैसे PLA की पांच शाखाएं हैं, 1. थल सेना, 2. जल सेना, 3. वायू सेना, 4. रॉकेट फ़ोर्स और, स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फ़ोर्स. इसमें से चौथी वाली रॉकेट फ़ोर्स की चर्चा आज हम करेंगे.
चीन में रॉकेट फ़ोर्स की स्थापना जुलाई 1966 में की गई थी. इस डिपार्टमेंट के अंडर में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाले मिसाइलें और न्यूक्लियर मिसाइल दोनों आती हैं. 2010 के पहले तक चीन मिसाइल के मामले में काफी पीछे था, फिर साल 2015 में जिनपिंग ने सैन्य सुधार पर ज़ोर दिया. इसके बाद मिसाइलों की संख्या भी बढ़ी और नए सैन्य अड्डे बनाए गए. साल 2020 में चीन के पास कुल मिलाकर 320 परमाणु हथियार होने का अनुमान लगाया गया था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2028 तक इस यूनिट ने हज़ार से ज़्यादा मिसाइल का ज़खीरा इकट्ठे करने का लक्ष्य तय किया है.

वहीं, बात करें रॉकेट यूनिट की तो इसमें में 1 लाख 20 हज़ार के करीब आर्मी पर्सन्स काम करते हैं. इसके चीन में अलग-अलग जगह 6 बेस स्थित हैं. यूनिट के पास ऐसी मिसाइल भी हैं जो 12 हज़ार से 15 हज़ार किलोमीटर की दूरी तक हमला कर सकती हैं. रॉकेट यूनिट का हेडक्वाटर राजधानी बीजिंग में स्थित है. चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा लैंड बेस्ड मिसाइल का हथियारघर भी मौजूद है. ये भी रॉकेट यूनिट के अंडर में आता है. ये सब बताने का मकसद ये कि आपको एक अंदाज़ा लग जाए कि ये रॉकेट यूनिट असल में है कितनी पावरफुल.
रॉकेट यूनिट का एक और बड़ा कारनामा आपको बताते हैं. आपको अगस्त 2022 नैन्सी पेलोसी का दौरा तो याद होगा. वो अचानक ताइवान पहुंच गई थीं. नैंसी उस वक्त अमेरिकी संसद के निचले सदन की स्पीकर थीं. अमेरिका हमेशा से अपने आपको ताइवान का हिमायती बताता आया है. चीन इस बात से चिढ़ा रहता है. चीन, ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है. वहीं, चीन को लगता है कि अमेरिका, ताइवान से ज़्यादा दोस्ती न बढ़ा ले. उसे ये भी डर है कि अमेरिका से ज़्यादा दोस्ती में ताइवान, से उसका प्रभाव कम न हो जाए, इसलिए वो अमेरिका और ताइवान की दूरी बने रहने देना चाहता है.
लेकिन अगस्त में नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन पिनक गया था. उसने अमेरिका और ताइवान दोनों को धमकी दी. वो पहले से इस दौरे का विरोध कर रहा था. लेकिन जब पेलोसी ताइवान आई तो उन्हें हाथो हाथ लिया गया. खूब स्वागत हुआ.
इसके नतीजे में चीन ने ताइवान को घेरकर मिलिटरी ड्रिल की थी. उसकी तरफ कुछ मिसाइल छोड़े. इशारा किया कि अगर ऐसा दोबारा हुआ तो बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा.
इन मिसाइलों के दागे जाने के बाद PLA के माउथपीस में रॉकेट यूनिट की जमकर तारीफ़ हुई. उनकी शान में कई कसीदे लिखे गए. सरकार के अंदर भी रॉकेट यूनिट के काम को सराहा गया. माउथपीस ने लिखा,
‘रॉकेट यूनिट किसी भी स्थिति में हमला करने के लिए अहम भूमिका निभा सकता है. यूनिट के पास तेज़ और शक्तिशाली मिसाइलें हैं. ये यूनिट जोखिमों और चुनौतियों से लड़ने के लिए तत्पर रहती है.’
इन सब तारीफों के पीछे जो शख्स था उसका नाम था जनरल ली युचाओ. वो उस वक्त रॉकेट यूनिट के हेड हुआ करते थे. युचाओ को 7 महीने पहले साल 2022 की शुरुआत में ही ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बढ़िया काम किया था.
वो साल 1980 में सेना में शामिल हुए थे. वो मार्च 2015 से अप्रैल 2020 तक अलग-अलग बेस के कमांडर रहे. अप्रैल 2020 में ही उन्हें रॉकेट का चीफ़ ऑफ़ स्टाफ बनाया गया था. फिर प्रमोशन के बाद जनवरी 2022 में यूनिट के कमांडर बन गए. ये सब बिना जिनपिंग की मर्ज़ी के होना मुमकिन नहीं था. जैसा हमने पहले बताया राष्ट्रपति के पास ही चीनी आर्मी की कमान होती है.
फिर एक दिन युचाओ अचानक गायब हो गए. कई तरह की अटकलें लगी कि उनपर खूफिया जानकारी साझा करने का आरोप हैं, तो कहीं कहा गया उनपर करप्शन के केस लगे हुए हैं. ली युचाओ के गायब होने की ख़बर ने उस वक्त ज़्यादा सुर्खी बटोरी जब विदेश मंत्री चिन गांग की गुमशुदगी दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी हुई थी. लोगों ने इन दो ख़बरों को जोड़कर देखा, पर कुछ ही दिनों में नए विदेश मंत्री की नियुक्ति कर दी गई. आलोचकों ने कहा कि मामला दबाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. नए विदेश मंत्री बनाने के कुछ दिन बाद ही रॉकेट यूनिट के भी नए चीफ मुकरर कर दिए गए. उनका नाम है वांग हूबिन.
हूबिन साल 1979 में PLA में शामिल हुए थे. उन्होंने चीनी नेवी में डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ और डिप्टी कमांडर के रूप में भी सेवा दी है. और अब जाकर वो चीनी सेना के रॉकेट यूनिट के कमांडर बना दिए गए हैं.
क्या चीन की सेना में हालात ख़राब हैं?अब अपने मूल सवाल की तरफ लौटते हैं कि क्या चीन की सेना में हालात ख़राब हैं? 2 उदाहरण से समझिए,
पहला रॉकेट यूनिट के अधिकारी की संदिग्ध मौत –
वू गुओहुआ रॉकेट यूनिट में डेप्युटी कमांडर थे, 6 जून को उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत की ख़बर आई. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक PLA ने उनकी मौत की वजह सेरेब्रल हैमरेज बताई. लेकिन असल में उनकी मौत कैसे हुई इस बात का पता नहीं चल पाया है. ये भी कहा गया कि चीनी सरकार मौत की ख़बर को दबा रही है. ये घटना चीनी सेना के अंदर उथल-पुथल को बयां करती है.
ली युचाओ पर जांच –
रॉकेट यूनिट के चीफ़ ली युचाओ पर करप्शन का केस चल रहा था, फिर उनका गायब हो जाना और शक पैदा कर रहा था. उसके ऊपर से पूर्व चीनी लेफ्टिनेंट कर्नल के एक ट्वीट ने मामला में और शक पैदा कर दिया, इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व चीनी लेफ्टिनेंट कर्नल याओ चेंग ने 29 जून को ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा रिपोर्टों से पता चलता है कि ली युचाओ का बेटा अमेरिका में पढ़ रहा है, जहां उसके चीन के खूफिया सैन्य रहस्य बेचने की आशंका है.
इस हंगामे के बाद युचाओ का गायब हो जाना, और आनन फानन में उनकी जगह किसी और को उनके पद पर बैठा देना भी चीनी सरकार पर शक पैदा करने वाला था. इसके अलावा भी रॉकेट यूनिट के दूसरे अधिकारी भी एंटी करप्शन कानून के तहत जांच के दायरे में थे.
आपने अब तक कई बार एंटी करप्शन कानून का ज़िक्र चुना, आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि ये कानून क्या है? तो आइए अब इसको भी समझ लेते हैं, –
शी जिनपिंग नवंबर 2012 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना (CCP) के जनरल-सेक्रेटरी चुने गए. बतौर जनरल-सेक्रेटरी, जिनपिंग ने पहला भाषण नवंबर 2012 में दिया. इसमें उन्होंने कहा था, “ये एक अटल सत्य है कि अगर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई गई तो पार्टी और स्टेट का समूल नाश हो जाएगा. हमें सजग रहना होगा.” जनवरी 2013 में उनका एक और संबोधन चर्चा में आया. इसमें उन्होंने वादा किया कि बड़ी और छोटी मछलियों से एक साथ निपटेंगे. उनका इशारा पार्टी के ताक़तवर नेताओं और लोकल लेवल पर काम करने वाले छोटे अधिकारियों से था.
मार्च 2013 में शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बन गए. अब पार्टी के साथ-साथ सरकार की कमान भी उनके हाथों में थी. कुछ समय बाद ही एंटी-करप्शन कैंपेन लॉन्च किया गया. सेंट्रल इंस्पेक्शन टीम के अधिकारियों को प्रांतों में भेजा गया. उन्होंने वहां स्थानीय अधिकारियों की जांच की. जो दोषी मिले, उन्हें पद से बर्खास्त किया गया. ऐसे लोगों पर मुकदमा चला और उन्हें जेल भी भेजा गया.
इसके बाद कैंपेन का मुख बड़ी मछलियों की तरफ़ मुड़ा. इसका पहला निशाना बने, चाऊ योनकांग. चाऊ CCP के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे और नेशनल सिक्योरिटी चीफ़ के तौर पर काम कर चुके थे. पोलित ब्यूरो में कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे दिग्गज नेताओं को रखा जाता है. 2013 में एक दिन चुपके से उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. फिर उनके ऊपर जांच बिठाई गई. फिर बंद दरवाज़े के अंदर मुकदमा चला.
जून 2015 में अदालत ने चाऊ को जीवनभर के लिए जेल भेज दिया. उनकी और उनके पूरे परिवार की संपत्ति ज़ब्त कर ली गई. पार्टी के जिन अधिकारियों पर उनका प्रभाव था, उनके ऊपर भी कार्रवाई हुई. चाऊ योनकांग आज भी जेल में है. वो 1949 के बाद के चीन में इतनी कड़ी सज़ा पाने वाले सबसे प्रभावशाली शख़्स थे. इस घटना से ये सबक गया कि अगर चाऊ पर शिकंजा कस सकता है तो कोई भी सुरक्षित नहीं है.
चीन में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच की ज़िम्मेदारी सेंट्रल कमिटी फ़ॉर डिसिप्लिन इंसपेक्शन (CCDI) और नेशनल सुपरविजन कमिशन (NSC) के पास है. CCDI केंद्र और प्रांत के स्तर पर पार्टी के भीतर के भ्रष्टाचार की जांच करती है. शी जिनपिंग के कार्यकाल में लगभग 40 लाख पार्टी वर्कर्स और पांच सौ से अधिक वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है.
फिर आया साल 2018. बतौर राष्ट्रपति, जिनपिंग का कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ा दिया. 2018 में ही NSC की स्थापना की गई. इसके बाद एंटी-करप्शन कैंपेन का दायरा और विस्तृत हुआ. सरकार ने भगोड़ों की लिस्ट जारी की. कईयों को बाहर से पकड़कर लाया गया और फिर उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया. NSC की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2020 के बीच लगभग चार हज़ार भगोड़ों को विदेश से अरेस्ट कर लाया गया और उनसे अरबों रुपये की रकम ज़ब्त की गई.
इन सबके अलावा, टेक और एंटरटेनमेंट सेक्टर के कई दिग्गजों को अलग-अलग आरोपों में जेल भेजा जा चुका है. इन मामलों में एक पैटर्न ये दिखता है कि ये सभी अपने-अपने सेक्टर में तेज़ी से पनपने लगे थे. कहा जाता है कि जब भी जिनपिंग को सत्ता का डर सताता है तो इसी कानून का सहारा लेकर अपने विरोधियों को ठिकाने लगाते हैं.
सेना के बड़े कमांडर पर इसी कानून का इस्तेमाल करना, फिर उनका गायब होना, और उनकी जगह दूसरे शख्स को बैठना. विदेश मंत्री का गायब होना और उसकी जगह दूसरे शख्स को बैठना. क्या ये जिनपिंग की सत्ता बचाने की एक नीति है? आपको क्या लगता है, हमें कमेंट में ज़रूर बताएं.
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