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मोतीलाल नेहरू के किस्से, जिन्होंने एक पेन के लिए जवाहरलाल नेहरू को पीट दिया था

6 मई, 1861 को मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था, जानिए उनसे जुड़ी बातें.

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फोटो - thelallantop

­­­­­­­­­­­­­­­­­­­ भारतीय राजनीति में मोतीलाल नेहरू काफी चर्चित व्यक्ति रहे हैं. इनका जन्म 6 मई 1861 को उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनके बारे में उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं. आगे पढ़ें.

#1. मोतीलाल नेहरू के पिता दिल्ली मे एक पुलिस अधिकारी के रूप में काम करते थे लेकिन 1857 की क्रांति में उनकी नौकरी और प्रापर्टी सब छिन गयी.

#2. मोती लाल नेहरू की दो शादियां हुई थीं. उनकी पहली पत्नी की मौत जल्दी हो गयी थी. उनसे मोतीलाल नेहरू को एक बेटा भी था. लेकिन वह भी असमय कम उम्र में मर गया. दूसरी बीवी से मोतीलाल नेहरू के एक बेटा और दो बेटियां हुईं. बेटे का नाम जवाहर और बेटियों का नाम विजय लक्ष्मी और कृष्णा था.

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#3. जवाहर लाल नेहरु ने अपनी जीवनी में एक घटना का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि उस समय के दूसरे वकीलों की तरह मेरे पिता जी का भी एक पढ़ने का कमरा था, जिसमें तमाम किताबें रखी हुई थीं. जवाहर लाल नेहरू को उस कमरे में जाना काफी पसंद था. अपने कई दोस्तों के साथ वे उस कमरे में अक्सर जाया करते थे. मोतालाल नेहरू मेज पर हमेशा दो पेन रखते थे. एक दिन जवाहर को एक पेन की ज़रूरत थी तो उन्होंने अपने पिता के कमरे से एक पेन ले लिया. उन्होंने सोचा कि पिता जी कभी भी दो पेन एकसाथ यूज़ नहीं करेंगे.

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उस दिन शाम को अचानक शोरगुल मचना शुरू हो गया. सभी लोग डरे हुए थे. नौकर एक कमरे से दूसरे कमरे में पेन के लिये दौड़ रहे थे.  मोती लाल नेहरू को पूरा यकीन था कि किसी ने उनकी कीमती कलम चुराई है.


आखिरकार पेन जवाहर के कमरे में मिल गयी. पिता जी काफी गुस्से में थे कि मैने क्यों बिना पूछे पेन ले लिया. उन्होंने जवाहर को जमकर पीटा. जवाहर रोते हुए मां के पास भाग गए. इस दिन उन्होंने सबक सीखा कि हमेशा पिता जी की बात माननी है और कभी भी उनसे चालाकी नहीं दिखानी. लेकिन आगे वह लिखते हैं कि उसके बाद पिता के लिए जो उनका प्यार था उसमें डर भी शामिल हो गया.

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#4. जिसे हम आज आनंद भवन के नाम से जानते हैं और जो गांधी परिवार की पहचान है वह वास्तव में सर सैय्यद अहमद खां का था और इसका नाम स्वराज भवन था. मोतीलाल नेहरू ने इसे 19,000 रूपये में खरीद लिया. उस समय यह बहुत अच्छी स्थिति में नहीं था. लेकिन बाद में उसे मोतीलाल नेहरू ने रिनोवेट कराया. बाद में इंदिरा गांधी ने इसे म्यूज़ियम में बदल के भारत सरकार को सौंप दिया. गांधी जी पहली बार 1919 में स्वराज भवन आये और 1920 मे असहयोग आंदोलन यहीं से शुरू हुआ. कुछ स्रोतों से यह भी पता लगता है कि आनंद भवन नाम अकबर इलाहाबादी ने रखा था.


Source| Ravi Kant Facebook
Source| Ravi Kant Facebook

#5. लोगों का कहना है कि मोतीलाल नेहरू पोता चाहते थे. इसलिए इंदिरा गांधी का जन्म जब हुआ तो वह दुखी हो गये. लेकिन फिर अपने को संभाला और और बोले कि जवाहर की बेटी सौ बेटियों पर भारी पड़ेगी. भले ही उन्होंने ये बात यूं ही कही हो लेकिन आगे चलकर ये बिल्कुल सच साबित हुई और इंदिरा गांधी भारत की ऐसी प्रधानमंत्री बनी जिसको आयरन लेडी कहा जाता था.



ये स्टोरी शिव ने की है.




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