सेना में ब्रिगेडियर और उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों की यूनिफॉर्म एक होगी. बदलाव के तहत आर्मी ऑफिसर्स के बैज, बेल्ट, बकल और कैप एक जैसी की जाएगी ताकि वह भारतीय सेना की अलग-अलग रेजिमेंट या अलग-अलग सर्विस के न लगें.हालांकि इस खबर की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. न तो आर्मी ने और न ही सरकार ने इस खबर की पुष्टि की है. बदलाव की जो सुगबुगाहट हो रही है इस बारे में जानने के लिए हमने बात की रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार सिंह से. उन्होंने बताया कि अगर ऐसा प्रपोजल है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.
किस तरह का बदलाव हो सकता है?
मोटा-माटी भारतीय सेना में दो तरह की यूनिफॉर्म होती हैं. शांति के दौरान पहने जाने वाली यूनिफॉर्म और युद्ध के दौरान पहने जाने वाली यूनिफॉर्म. आर्मी रेजिमेंट्स में बंटी हुई है. आर्मी हेडक्वाटर में भी अफसर जो ड्रेस पहनते हैं उससे उनकी रेजिमेंट की पहचान होती है. इसी को बदलने की बात हो रही है. और ये इसलिए हो रहा है कि हेडक्वार्टर के अंदर सारे अफसर एक तरह की यूनिफॉर्म में दिखें. ब्रिगेडियर रैंक के ऊपर के अधिकारियों की यूनिफॉर्म में बदलाव की बात हो रही है.मान लीजिए कि कोई सिख रेजिमेंट का अफसर है. जब वह रेजिमेंटल पोस्टिंग पर जाता है तो यूनिफॉर्म तो वही रहेगी, लेकिन रेजिमेंट की पहचान से जुड़ा बैज और अन्य चीजें उसकी यूनिफॉर्म में जुड़ जाएंगी. ट्रूप के साथ होने पर अफसर रेजिमेंट के बैज लेकर चलेंगे. लेकिन जैसे ही पोस्टिंग रेजिमेंट के बाहर होगी तो यूनिफॉर्म से जुड़ी पहचान नहीं रहेगी. इसकी जगह सबको एक तरह के बैज, बेल्ट, कैप और अन्य चीजें मिलेंगी.

प्रतीकात्मक फोटो
आर्मी में कई तरह की पोस्टिंग होती है. कुछ रेजिमेंटल असाइनमेंट होते हैं. कुछ स्टाफ असाइनमेंट होते हैं. कुछ लीडरशिप असाइमेंट होते हैं. अगर कोई ऑफिसर रेजिमेंट से बाहर आता है तो वहां रेजिमेंट की पहचान की जरूरत नहीं है. वहां एक ही यूनिफॉर्म होनी चाहिए. उदाहरण के लिए अगर कोई गोरखा रेजिमेंट का, आर्मी का चीफ बन गया तो वह तो पूरे आर्मी का चीफ है. ऐसे में हेडक्वार्टर के अंदर उसे गोरखा रेजिमेंट के पहचान की जरूरत नहीं होगी. तो इसी यूनिफॉर्म में बदलाव की बात हो रही है.
बदलवा के बाद रेजिमेंटल प्राइड का क्या होगा?
जहां तक रेजिमेंटल प्राइड और रेजिमेंटल हिस्ट्री की बात है तो वह रेजिमेंट के अंदर की बात है. वह वैसी ही रहेगी. अमेरिका, यूके या रूस की आर्मी में जो रेजिमेंट हैं वो रीजनल बेस्ड हैं. लेकिन भारत में यह जाति बेस्ड हैं. जैसे जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट. लड़ाई के दौरान रेजिमेंट की जो पहचान है वह वैसे ही रहेगी.रेजिमेंट होती क्या है?
रेजिमेंट रेजिमेन (regimen) शब्द से बना है. इस लैटिन शब्द का मतलब होता है नियमों की एक व्यवस्था. रेजिमेंटल सिस्टम सबसे पहले इंफेंट्री (पैदल सेना) में आया. इसलिए रेजिमेंट कहने पर सबसे पहला ख्याल बंदूक थामे पैदल सैनिकों का ही आता है. इंफेंट्री में रेजिमेंट का मतलब फौज की एक ऐसी टुकड़ी से होता है जिसका अपना तौर तरीका और इतिहास हो. हर रेजिमेंट का अपना अलग झंडा, अपना निशान और वर्दी होती है. थलसेना की मानक ट्रेनिंग के अलावा हर रेजिमेंट के जवान एक खास तरह की ट्रेनिंग और परंपराओं का पालन करते हैं. एक रेजिमेंट में कई बटालियन होती हैं. हर बटालियन का एक नंबर होता है. ‘2 सिख’ का मतलब हुआ सिख रेजिमेंट की दूसरी बटालियन.
सिख रेजिमेंट के फाइटिंग ट्रूप्स जट सिख होते हैं (फोटोःरॉयटर्स)
हिंदुस्तान में किसी खास पहचान (जैसे मराठा या गढ़वाली) के आधार पर रेजिमेंट बनाने की शुरुआत अंग्रेज़ों ने की. एक थ्योरी दी गई जिसके मुताबिक चुनिंदा समुदायों से आने वाले लोग बेहतर लड़ाके माने गए. जैसे पठान, कुरैशी, अहीर और राजपूत. इन्हें मार्शल रेस कहा गया. बचे हुए समुदाय नॉन मार्शल कहलाए. इस तरह जाति या क्षेत्र वाली पहचान के आधार पर रेजिमेंट बनीं. 1857 की बगावत के बाद अंग्रेज़ों ने उन इलाकों से फौज में भर्ती कम कर दी जहां के सिपाहियों ने राज के खिलाफ हथियार उठाए थे. अब मार्शल रेस ज़्यादातर उन समुदायों को माना गया जिन्होंने बगावत में अंग्रेज़ों का साथ दिया था. भर्ती इन्हीं समुदायों से होने लगी.
कई रेजिमेंट फौज में तब शामिल हुईं जब हिंदुस्तान के राजा अंग्रेज़ों से हार गए. उदाहरण के लिए सिख रेजिमेंट की जड़ें महाराजा रणजीत सिंह की खड़ी की फौज में हैं. सिख साम्राज्य जब 1849 में अंग्रेज़ों से हारा, तब उसकी फौज अंग्रेज़ फौज में शामिल हो गई और सिख रेजिमेंट कहलाई.
जाति या क्षेत्र के आधार पर चल रहे रेजिमेंटल सिस्टम को खत्म करने की बातें होती रही हैं. क्योंकि आज़ाद भारत में कोई भी डोगरा या मराठा से पहले भारतीय है. इसलिए भारतीयों की रक्षा में लगे जवानों को भी भारतीय से कम और ज़्यादा कुछ होने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए.
बदलाव की जरूरत क्यों पड़ रही है?
कई देशों में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स सभी की वर्दी एक तरह की है. कई देशों की आर्मी में एक ही यूनिफॉर्म है, काम्बैट ड्रेस यानी लड़ाई के दौरान पहनी जानी वाली यूनिफॉर्म. पीस टाइम में और वॉर टाइम में भी काम्बैट यूनिफॉर्म ही पहनी जाती है.इंडियन आर्मी दुनिया के अन्य देशों के साथ पहले युद्ध अभ्यास बहुत कम करती थी. अन्य देशों से इंटरैक्शन नहीं था. अगर हम आजाद भारत के 70 साल के इतिहास को देखें तो भारतीय फौज को इंटरनेशनल लेवल पर एक तरह से छिपाकर रखा गया. लेकिन अब ऐसा नहीं है. दूसरे देशों के साथ युद्ध अभ्यास बढ़ा है. आर्मी देख रही है कि दुनिया के अन्य देशों में क्या सिस्टम है. दूसरे देशों की आर्मी में जो अच्छा है उसे अपने यहां लागू किया जा रहा है.
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