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नई शिक्षा नीति के तहत फॉरेन यूनिवर्सिटी के भारत आने का मतलब क्या है

क्या इससे भारत में पढ़ाई महंगी हो जाएगी?

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यह मीम उन लोगों के नाम जो फॉरेन यूनिवर्सिटी के ख्वाब बॉलिवुड मूवीज देख पूरे करते रहे हैं.
सलोनी की दोस्त फॉरेन यूनिवर्सिटी में पढ़ने क्या गई, घर वालों को ताने देने का नया बहाना दे गई. सलोनी की मम्मी अक्सर कहती- तू भी ढंग से तैयारी कर लेती, तो विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल जाता. लेकिन अब फिक्र करने की जरूरत नहीं. नई एजुकेशन पॉलिसी लागू होने के बाद अब देश में खुद फॉरेन यूनिवर्सिटी चलकर आएंगी. नई एजुकेशन पॉलिसी में सरकार ने विदेशी यूनिवर्सिटीज को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति दे दी है. मतलब अब कोई भी विदेशी यूनिवर्सिटी अपना कैंपस भारत में खोल सकेगी. क्या वाकई में फॉरेन यूनिवर्सिटी खुलना बड़ी बात है या इनके आने से यूनिवर्सिटी और कॉलेज की पढ़ाई महंगी हो जाएगी?
फॉरेन यूनिवर्सिटी खोलने की बात आई कहां से
वैसे फॉरेन यूनिवर्सिटी का यह चक्कर कोई नया नहीं है. कैबिनेट ने 29 जुलाई को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New Education Policy) को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस की स्थापना करने की अनुमति दे दी है. आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस स्थापित करने की मंजूरी देने की योजना बनायी थी. वही सरकार इसका प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन तब बीजेपी के द्वारा इसका विरोध किया गया था. नीति आयोग ने पीएमओ और एचआरडी मिनिस्ट्री को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस भारत में खोलने की बात कही गई थी. कहा गया था कि विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में बुलाने के लिए यूजीसी एक्ट में भी बदलाव किया जाएगा.
फॉरेन यूनिवर्सिटी का इतना हव्वा क्यों है
दुनियाभर में हायर एजुकेशन यानी क्लास 12 के बाद की पढ़ाई को लेकर ज्यादातर टॉप रैंकिंग यूनिवर्सिटी विदेशी ही हैं. हर साल दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज की एक लिस्ट निकलती है. इसमें टॉप टेन में रहने वाली यूनिवर्सिटीज अमेरिकी या यूरोप के देशों की होती हैं. कुछ के नाम तो मीडिया में सुनते-पढ़ते आपको याद भी हो गए होंगे. मिसाल के तौर पर कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी या एमआईटी आदि.
इन यूनिवर्सिटी में पढ़ना ही बड़ी बात मानी जाती है. इसका सबसे बड़ा कारण है यहां पर पढ़ाने का तरीका और पढ़ाने वाले टीचर्स की क्वॉलिटी. इन यूनिवर्सिटीज में ही दुनिया की बड़ी से बड़ी रिसर्च होती है. एक बानगी देखिए. अकेले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को अब तक 160 नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. इनमें से 33 फिजिक्स और 36 केमिस्ट्री के फील्ड में रिसर्च पर मिले हैं. कुछ ऐसा ही मामला एमआईटी का है. इसे कुल 97 नोबेल पुरस्कार मिले हैं, जिनमें से 34 अर्थशास्त्र के लिए मिले हैं. यह दुनियाभर में इकोनॉमिक्स में मिले किसी भी यूनिवर्सिटी में सबसे ज्यादा हैं.
अब अपने यहां की यूनिवर्सिटी का हाल भी सुन लीजिए. हमारी कोई भी यूनिवर्सिटी इस बार भी टॉप 300 में शामिल नहीं हैं. आईआईटी, मुंबई की रैंकिंग भी 400 से ज्यादा है. पिछले 70 साल में हमारी कोई भी यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप 100 यूनिवर्सिटी में जगह नहीं बना पाई है. बस यही कहानी है फॉरेन यूनिवर्सिटी के पीछे भागने की.
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अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से सबसे ज्यादा 160 नोबेल पुरस्कार विजेता पढ़कर निकले हैं. (फोटो- फेसबुक)

फॉरेन यूनिवर्सिटीज खुलने का मतलब क्या है
सीधा-सा मतलब है कि दुनिया की कोई भी यूनिवर्सिटी अपना दूरस्थ कैंपस या एक्सटेंडेड कैंपस भारत में खोल सकेगी. यहां पढ़ाने के लिए अपनी फैकल्टी और रिसर्च के लिए अपनी लैब को उपलब्ध कराएगी. एडमिशन कैसे होगा, फीस कितनी होगी, यूनिवर्सिटी कहां बनेगी, यह अभी तय नहीं हुआ है. मतलब, अभी मामला सरकार ने नीतिगत तरीके से मान लिया है, लेकिन उसकी बारीकियों पर काम होना बाकी है.
इसका हमें फायदा क्या होगा
ऐसा नहीं है कि देश में फॉरेन यूनिवर्सिटी खुलने से सलोनी जैसी स्टूडेंट्स को सिर्फ मम्मी के तानों से मुक्ति मिलेगी, फायदे और भी हैं. कहा जा रहा है कि इससे एजुकेशन के लेवल में भी सुधार होगा. रिसर्च को लेकर भी यूनिवर्सिटी ज्यादा चाक-चौबंद रहेंगी.
पद्मश्री से सम्मानित जेएनयू के पूर्व वीसी सुधीर कुमार सोपोरी ने 'दी लल्लनटॉप' से कहा-
रिसर्च की सुविधाएं और पढ़ाई का लचीला तरीका नामी फॉरेन यूनिवर्सिटीज को दुनियाभर में मशहूर बनाते हैं. अगर दुनिया की नामी यूनिवर्सिटीज भारत आती हैं, तो यह स्टूडेंट्स के लिए फायदेमंद होगा. उनका एक्सपोजर बढ़ेगा. अंडरग्रेजुएशन से ही दुनियाभर में होने वाली नई रिसर्च पर स्टूडेंट्स की नजर रहेगी. जो लोग विदेशों में जाकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें भारत में रहकर ही ऐसा करने का मौका मिल सकेगा.
डीयू के पूर्व वीसी डॉ. दिनेश सिंह ने भी 'दी लल्लनटॉप' से बात करते हुए माना-
फॉरेन यूनिवर्सिटी के भारत में आने से बेहतर कंपिटीशन का मौका मिलेगा. हमें भी उनके आने पर उनके मुकाबले कुछ बड़ा करने का मौका मिलेगा. सिस्टम में भी बड़े सुधार होंगे. एक अच्छा कंपिटीशन होगा, तो यूनिवर्सिटीज का स्तर सुधरेगा.
क्या वाकई एजुकेशन महंगी हो जाएगी
जब से सरकार ने एजुकेशन पॉलिसी में फॉरेन यूनिवर्सिटी खोलने की बात कही है, एजुकेशन महंगी हो जाने का हल्ला मचा है. क्या वाकई ऐसा होगा? पहले यह जान लेते हैं कि फॉरेन यूनिवर्सिटी में फीस कितनी होती है. ज्यादातर बड़ी और मशहूर यूनिवर्सिटीज प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं. ऐसे में ये अपना सारा खर्च निकालने के अलावा फायदे की भी सोचती हैं. इस वजह से यहां की फीस काफी ज्यादा होती है.
मिसाल के तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी में बैचलर डिग्री लेने के लिए 40 लाख रुपए सालाना फीस लगती है. इसमें रहने-खाने और बाकी खर्च नहीं जुड़े हैं. यह कोर्स भारत में कोई भी यूनिवर्सिटी तीन साल में कुल एक लाख रुपए से भी कम की फीस में करा देगी. हालांकि फॉरेन यूनिवर्सिटी कई तरह की स्कॉलरशिप भी देती हैं, लेकिन फिर भी भारत के लिहाज से यह फीस बहुत ज्यादा है.
जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सुरजीत मजूमदार कहते हैं कि हमें अपनी जरूरत के हिसाब से यूनिवर्सिटी खोलनी चाहिए, न कि विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत लाने के चक्कर में पड़ना चाहिए. हमारे देश में पहले ही यूनिवर्सिटी काफी कम हैं, उनकी संख्या बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.
चूंकि सभी फॉरेन यूनिवर्सिटीज काफी महंगी हैं, ऐसे में यह वक्त ही बताएगा कि कितनी यूनिवर्सिटीज भारत की जरूरतों के हिसाब से कैंपस खोल सकेंगी. इनकी फीस सरकार तय करेगी या यह अपने मन-मुताबिक ऐसा करेंगी, यह भी पता चलना बाकी है.
इन चिंताओं का क्या होगा
जेएनयू के पूर्व वीसी प्रोफेसर सोपेरी ने 'दी लल्लनटॉप' से कहा-
फॉरेन यूनिवर्सिटी के भारत आने पर सहमति तो बन गई है, लेकिन अभी इसका पूरा खाका तैयार होना बाकी है. मिसाल के तौर पर, यहां किस लेवल की यूनिवर्सिटी को आने का मौका दिया जाएगा, फीस का स्ट्रक्चर कौन तय करेगा, वहां पढ़ाएगा कौन, किन जगहों पर इन्हें खोला जाएगा आदि.
प्रो. सोपोरी जैसे शिक्षाविद का कहना है-
सरकार को फॉरेन यूनिवर्सिटीज लाने से पहले सोचना होगा कि किसे लाना है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ पैसा कमाने के लिए किसी यूनिवर्सिटी को भारत में आने की इजाजत दे दी जाए. पूरी पॉलिसी को बारीकी से डिजाइन करना होगा.
उनका यह भी कहना है कि अपने देश में एक यूनिवर्सिटी के खुलने और एडमिशन की प्रक्रिया को शुरू करते-करते ही पांच-सात साल लग जाते हैं. ऐसे में सरकार कैसे किसी बड़ी यूनिवर्सिटी को भारत ला पाएगी, यह भी सोचने वाली बात है.
ऐसा ही कुछ डीयू के पूर्व वीसी दिनेश सिंह का भी कहना है. वह कहते हैं कि किसी भी बड़ी यूनिवर्सिटी में भारत में आने का कोई उत्साह नहीं है. वो अगर भारत आती हैं, तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है. हर बात में सरकार पर शक करने की जरूरत नहीं है.


 
वीडियो - मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति में क्या ऐतिहासिक बदलाव किए?

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