
लोन और ब्याज सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों से आपको जल्द लोन मिल जाएगा, लेकिन ब्याज दरों के मामले में उनका रवैया एक समान नहीं रहता. प्राइवेट बैंक मौजूदा ग्राहकों के मुकाबले नए ग्राहकों को ज्यादा तरजीह देते हैं और उन्हें लोन पर कम ब्याज दर ऑफर करते हैं. आरबीआई की ओर से होने वाली नीतिगत ब्याज कटौती जिसे हम रेपो रेट के नाम से भी जानते हैं, उसका लाभ आप तक पहुंचाने में प्राइवेट बैंक देरी करते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2019 से नवंबर 2020 के बीच सरकारी बैंकों ने पुराने लोन पर ब्याज दरों में 0.94% कटौती की, जबकि प्राइवेट बैंकों ने 0.54% की ही राहत दी. लेकिन नया लोन लेने वालों के लिए सरकारी बैंकों ने रेट 1.1% तक घटाए, जबकि प्राइवेट बैंकों ने 1.76% तक घटा दिए. इसे इस तरह समझिए कि आपके मौजूदा होम लोन के ब्याज पर अगर सरकारी बैंकों ने साल में 9400 रुपये की राहत दी तो प्राइवेट बैंकों सिर्फ 5400 रुपये की .


बैंक कर्मचारियों पर क्या होगा असर ? सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन को लेकर जिनके माथे पर चिंता की लकीरें सबसे ज्यादा उभर आती हैं, वे इन बैंकों में काम करने वाले कर्मचारी हैं. देश में करीब 13 लाख बैंक कर्मचारी हैं, जिनमें लगभग 4.2 लाख प्राइवेट सेक्टर में हैं. लेकिन दिलचस्प यह है कि प्राइवेट बैंकों में क्लर्क लेवल के पद सरकारी बैंकों के मुकाबले काफी कम हैं और आईटी व एग्जिक्यूटिव कल्चर के चलते इन पदों में भी लगातार गिरावट आ रही है. ऐसे में सवाल यह भी है कि सरकारी क्लर्क कहां खपाए जाएंगे. सरकार जिन दो बैंकों का निजीकरण करने जा रही है, उनके हजारों कर्मचारी भी नौकरी जाने या असुरक्षित होने को लेकर चिंतित हैं. जानकारों का कहना है कि बैंकों के प्राइवेट होने से बड़े पैमाने पर लोगों के नौकरी गंवाने, अस्थायी होने या कुछ समय बाद कॉन्ट्रैक्ट साइन करने की नौबत आएगी. बैंकिंग सेक्टर में घटेंगे रोजगार के मौके ? नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के पूर्व जनरल सेक्रेट्री अश्वनी राणा ने ‘दी लल्लनटॉप ’ को बताया,
सबसे बड़ा संकट कर्मचारियों पर ही आएगा. यह देखना होगा कि क्या सरकार बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक 2021 के तहत उनकी रोजीरोटी की सुरक्षा के लिए कोई बंदोबस्त करती है. लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए लगता है कि उनकी नौकरी पर देर-सबेर खतरा बना रहेगा. इसके अलावा निजी बैंकों में आरक्षण नहीं होने से भी इस कटैगरी के मौजूदा कर्मचारियों और आने वाले नए कैंडिडेट्स के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी. बैंकिंग सेक्टर में रोजगार के अवसर घटते जाएंगेएयर इंडिया के टाटा के हाथों में जाने के दौरान सरकार ने इस बात के वैधानिक प्रावधान किए थे कि कर्मचारियों को कम से कम एक साल तक न निकाला जाए और उसके बाद अगर जरूरत हुई तो उन्हें वीआरएस व अन्य नियमों का लाभ देते हुए ही छुट्टी की जाए. अश्वनी राणा मानते हैं कि टाटा जैसी विशाल कंपनी की तुलना इन बैंकों के निवेशकों से नहीं की जा सकती. इनमें से कई पहले ही हाथ खड़े कर चुके हैं कि वे इतने बड़े स्टाफ का पूरा वित्तीय बोझ नहीं उठा सकते. अगर कर्मचारियों को कुछ समय के लिए रख भी लिया गया तो सभी वित्तीय सुविधाएं दिला पाना मुमकिन न होगा.

कितने बैंक हैं निजीकरण की कतार में? देश में फिलहाल 12 सरकारी, 22 प्राइवेट, 11 छोटे वित्तीय बैंक और 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं. इनकी 1 लाख 42 हजार शाखाएं हैं, जिनमें 46 विदेशी बैंकों की शाखाएं भी शामिल हैं. 19 जुलाई 1969 को देश के 14 प्रमुख बैंकों का पहली बार राष्ट्रीयकरण किया गया था और बाद में 6 और बैंक नेशनलाइज हुए. लेकिन 50 साल बाद सरकार रिवर्स गियर में जाती दिख रही है. पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार दो सरकारी बैंकों, एक बीमा कंपनी और कुछ अन्य वित्तीय संस्थानों में विनिवेश के जरिए 1.5 लाख करोड़ रुपये जुटाना चाहती है. उसके कुछ महीने बाद ही नीति आयोग ने इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के नाम का खुलासा कर दिया. इसके अलावा जिन बैंकों का नाम इनके साथ सुर्खियों में था अब उनका नंबर आ सकता है. निजीकरण की अगली लाइन में बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, यूसीओ, पंजाब एंड सिंध बैंक की संभावना प्रबल बताई जा रही है. सरकार पहले ही सिंडीकेट बैंक का केनरा बैंक में, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को पंजाब नेशनल बैंक में और इलाहाबाद बैंक, कारपोरेशन बैंक और आंध्रा बैंक को इंडियन बैंक में विलय कर चुकी है.