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यूपी पंचायत चुनाव: प्रधान जी चुनने जा रहे हैं? उनकी ये बातें तो जान लीजिए

गांव के लिए क्या-क्या करते हैं 'प्रधान जी'?

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वेब सीरीज सरपंच का एक सीन.
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण की लिस्ट जिला स्तर पर जारी की जा रही है. हालांकि फाइनल लिस्ट 15 मार्च को जारी होगी. इसके बाद चुनाव की अधिसूचना जारी की जाएगी. अप्रैल तक गांव प्रधान चुन लिए जाने की संभावना है. इसी बहाने हम ये जानने की कोशिश करते हैं कि गांव का प्रधान बनने की योग्यता क्या होती है? ग्राम प्रधानों का चुनाव कैसे होता है? उनका काम क्या होता है? उनके अधिकार क्या होते हैं? प्रधान बनने पर विधायकों और सांसदों की तरह सैलरी मिलती है कि नहीं?. गांव के विकास के लिए उन्हें हर साल कितना फंड मिलता है? अगर किसी प्रधान को पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के पहले हटाने की जरूरत आन पड़े तो कैसे हटा सकते हैं? एक-एक कर इन सवालों के जवाब तलाशते हैं. क्या कोई भी प्रधान बन सकता है? गांव का प्रधान बनने के लिए चुनाव लड़ना पड़ता है. चुनाव लड़ने के लिए जरूरी है कि कैंडिडेट की उम्र कम से कम 21 साल हो. वह उसी गांव का रहने वाला हो. वोटर लिस्ट में उसका नाम हो. वह सरकारी नौकरी न कर रहा हो. अगर वह आरक्षित सीट से अपनी दावेदारी पेश कर रहा है तो इसका सर्टिफिकेट उसके पास हो. कई राज्यों ने अपने यहां प्रधानी के चुनाव में शैक्षिक योग्यता जैसे आठवीं या हाईस्कूल पास या बच्चों को लेकर कुछ सीमाएं तय की हैं. जैसे कि ग्राम प्रधान का चुनाव वही लड़ सकता है जिसके दो ही बच्चे हैं.
एक गांव की सांकेतिक तस्वीर एक गांव की सांकेतिक तस्वीर

कुछ सीटें होती हैं आरक्षित
पंचायत चुनाव से पहले राज्य निर्वाचन आयोग गांव की जनसंख्या के अनुपात और रोस्टर व्यवस्था के आधार पर SC/ST/OBC के लिए सीट निर्धारित करता है. वर्तमान में कई राज्यों में महिलाओं के लिए पंचायती राज अधिनियम में 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. गांव में उसी वर्ग का सरपंच बनता है, जिस वर्ग के लिए पंचायत में सीट आरक्षित की गई है. महिला सीट निर्धारित है, तो वहां सिर्फ महिला ही सरपंच बन सकती हैं. इसी प्रकार SC/ST/OBC के लिए निर्धारित सीट पर उसी वर्ग की महिला या पुरुष उम्मीदवार हो सकते हैं.
उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक, इस बार ग्राम प्रधान पद के प्रत्याशी को नामांकन पत्र के लिए 300 रुपये और दो हजार रुपये जमानत राशि देनी होगी. चुनाव प्रचार पर उम्मीदवार कितना खर्च कर सकते हैं ये भी राज्य निर्वाचन आयोग तय करता है.
गांव का प्रधान बनने के लिए चुनाव जीतना जरूरी है. (वोटिंग की सांकेतिक तस्वीर) गांव का प्रधान बनने के लिए चुनाव जीतना जरूरी है. (वोटिंग की सांकेतिक तस्वीर)

वर्ष 2011 की जनसंख्या के मुताबिक, 16 करोड़ की ग्रामीण आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 59,163 ग्राम पंचायतें हैं. औसतन एक ग्राम पंचायत में 2700 लोग रहते हैं. गांव प्रधान का काम क्या होता है? एक लाइन में कहें तो गांव का विकास करना. गांव की सड़कों का निर्माण कराना, पानी निकासी की व्यवस्था करना. गांव वालों के पशुओं के पीने के पानी की व्यवस्था करना. किसानों की फसलों की सिंचाई के लिए सरकारी ट्यूबवेल की व्यवस्था, नालियों की साफ-सफाई का काम. ग्राम पंचायत के सार्वजनिक स्थान, जैसे मंदिर, मस्जिद आदि स्थानों पर लाइट की व्यवस्था करना. पंचायत में अलग-अलग धर्म व समुदाय के लोगों के लिए दाह संस्कार स्थल और कब्रिस्तान की देख-रेख का काम. कब्रिस्तान की चारदीवारी का निर्माण भी ग्राम प्रधान को कराना होता है.
राजू की ग्राम पंचायत. एक ग्राम पंचायत की सांकेतिक तस्वीर

इसके अलावा, बच्चों के लिए खेल के मैदान का इंतजाम करना. ग्राम पंचायत में जन्म मृत्यु विवाह आदि का रिकॉर्ड रखना, जिससे जनगणना जैसे कामों में आसानी हो. शिक्षा के अधिकार के तहत एक से लेकर आठवीं तक बच्चों की शिक्षा की मुफ्त व्यवस्था करना. ग्राम पंचायत स्तर पर बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की होती है. वो काम कर रही हैं कि नहीं, सभी को पोषाहार मिल रहा है कि नहीं ये सब देखने की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की होती है. साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को गांवों में लागू कराना भी ग्राम प्रधान का अहम काम है.. गांव का प्रधान कैसे तय करेगा कि पहले क्या कराना है? ये जानने के लिए हमने बात की ग्राम सभा भिखारीपुर के प्रधान डॉक्टर दिनेश कुमार सिंह से. उन्होंने बताया,
ग्राम प्रधान पहले कार्य योजना तैयार करता है. मान लीजिए कि मुझे गांव की कोई सड़क बनवानी है तो मैं ये देखूंगा कि कौन सी सड़क ज्यादा खराब है. किस सड़क का काम पहले कराना चाहिए, किसे बाद में कराना चाहिए. जरूरत के हिसाब से चुनाव करूंगा. क्योंकि बहुत लंबा काम एक साथ नहीं मिलता है. बजट के आधार पर दो तीन भागों में काम को बांटा जाता है.
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दिनेश कुमार ने आगे कहा,
मान लीजिए कि हमने कार्ययोजना बनाई. उसका पैसा पास हुआ. अगर 60 मीटर पाइप डालना है, तो जो भी रिक्वायरमेंट होगी उसके लिए दुकानदार या होलसेलर कोटेशन देगा. टेंडर प्रक्रिया के तहत, इसके बाद पैसा उनके खाते में जाएगा. दो साल पहले तक प्रधान चेक काटकर पैसा दे देता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब पैसा सीधे उस एजेंसी या संस्था को जाता है जो काम करती है.
सभी गांवों को एक समान बजट मिलता है? नहीं. गांव को विकास के कार्यों के लिए मिलने वाला बजट गांव के क्षेत्रफल और आबादी के आधार पर तय होता है. अगर गांव छोटा है, आबादी कम है तो विकास के लिए मिलने वाला बजट भी कम होगा. लेकिन गांव का क्षेत्रफल ज्यादा है, आबादी भी ज्यादा है, तो बजट भी ज्यादा मिलेगा.
डॉक्टर दिनेश कुमार सिंह बताते हैं कि छोटा गांव है तो दो-तीन लाख का बजट एक साल का आता है, कुछ अलग से आ गया तो पांच लाख तक हो जाता है. बड़े गांवों के लिए हर साल 10 से 15 लाख तक का बजट हो सकता है. गांवों के विकास के लिए पैसा कहां से आता है? गांवों के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार हर साल एक-एक ग्राम पंचायत को लाखों रुपये देती हैं. इन पैसों से शौचालय, नाली खडंजा, पानी, साफ सफाई, पक्के निर्माण होने चाहिए. गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्राम सभा को 14वें वित्त आयोग की तरफ से प्रति मतदाता करीब 1130 रुपये (केंद्र और राज्य वित्त को मिलाकर) दिए जाते हैं. इनमें मनरेगा और गरीबी उन्मूलन समेत कई योजनाएं शामिल नहीं हैं. यानी औसतन हर पंचायत को 7 से 10 लाख रुपये मिलते हैं. गांव प्रधान को काम कराने में किस तरह की दिक्कत आती है? एक गांव में कई विचारधारा के लोग रहते हैं. इनमें कई पार्टियों के समर्थक भी होते हैं. दिनेश कुमार का कहना है कि वैसे तो छोटी-मोटी दिक्कते आती रहती हैं, लेकिन उनका समाधान हो जाता है. किसी तरह की अड़चन नहीं आती. अगर आप व्यवहार कुशल हैं तो. मान लीजिए कि आप कोई सड़क बनवा रहे हैं. 8 फीट का रास्ता है, पता चला कि जिसके दरवाजे के सामने से जा रहा है वो कह दे हमारे सामने से नहीं जाएगा. वैसे ही सड़क बनानी है मिट्टी का पैसा मिलता नहीं है, ऐसे में लोग दूसरे के खेत में से मिट्टी लेते हैं. लेकिन अगर कोई देने से मना कर दे, तब इस तरह की बातों में गांव के लोगों के सहयोग की जरूरत होती है.
Road Jaipur Congress Mla गावों में बनने वाली सड़कों के लिए लोग अपनी एक इंच जमीन भी आसानी से देने को तैयार नहीं होते. (सांकेतिक फोटो)

एक और प्रधान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लोग प्रधानों की शिकायत करते रहते हैं. लेकिन अब तो कई मामले में उनका सीधा रोल रहा ही नहीं. किसी को घर दिलाना हो, शौचायल दिलाना हो, राशन कार्ड बनाना हो, इस तरह के कामों में अब प्रधान की पहले जैसी भूमिका नहीं रही.
इन प्रधान ने बताया,
आवास किसको मिलेगा, इसका एक क्राइटेरिया है. दो तीन बार जांच होती है. आवास के लिए आवेदन करने के बाद जिले या ब्लॉक से इंक्वारी आएगी. जिन लोगों का नाम दिया है उनका ब्योरा मांगा जाता है. नाम जाने के बाद एक और टीम आती है निरीक्षण करती है. प्रधान का काम है आवेदन करवा देना. प्रधान ना मीटिंग में रहते हैं ना सिफारिश करते हैं.
प्रधानों की सैलरी कितनी है? उत्तर प्रदेश में वर्तमान में प्रधानों का मानदेय 3500 रुपये है. पहले 1000 था, फिर 2500 हुआ अब 3500 है. कई ग्राम प्रधान शिकायत करते हैं कि ये बहुत कम है. उनका मानदेय कम से कम 10 हजार होना चाहिए.
प्रधान दिनेश कुमार सिंह बताते हैं,
एक प्रधान का काम सिर्फ गांव तक ही सीमित नहीं है. उसे ब्लॉक पर जाना पड़ता है. मीटिंग में भाग लेना होता है. योजनाओं को समझना है तो उसे ब्लॉक पर जाना ही पड़ेगा. ग्राम सेवक का काम 24 घंटे का होता है. प्रधानों का मानदेय कम से कम 10 हजार होना चाहिए, उससे प्रधानी लड़ने का जज्बा बढ़ेगा, कार्य करने की क्षमता बढ़ेगी. पांच साल तक 10 हजार मिलेगा तो लगेगा कि हम लोगों का सम्मान है, पढ़े लिखे लोग आएंगे. युवा पीढ़ी आएगी तो गांव का और विकास होगा.
क्या प्रधान को पांच साल से पहले हटा सकते हैं? अगर ग्राम प्रधान ठीक से काम नहीं कर रहा है तो उसे पद से हटाया जा सकता है. समय से पहले पदमुक्त करने के लिए एक लिखित सूचना जिला पंचायत राज अधिकारी को देनी होती है. इसमें ग्राम पंचायत के आधे सदस्यों के हस्ताक्षर होने ज़रूरी होते हैं. 1000 तक की आबादी वाले गांवों में 10 ग्राम पंचायत सदस्य, 2000 तक 11 तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य होने चाहिए. सूचना में पदमुक्त करने के सभी कारणों का उल्लेख होना चाहिए. हस्ताक्षर करने वाले ग्राम पंचायत सदस्यों में से तीन सदस्यों का जिला पंचायतीराज अधिकारी के सामने उपस्थित होना अनिवार्य है. सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के अंदर जिला पंचायत राज अधिकारी गांव में एक बैठक बुलाएगा जिसकी सूचना कम से कम 15 दिन पहले दी जाएगी. बैठक में उपस्थित और वोट देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रधान को पदमुक्त किया जा सकता है.
Sarpanch सांकेतिक तस्वीर

चलते-चलते ये भी जान लीजिए कि पूरे देश में दो लाख 39 हजार ग्राम पंचायतें हैं. पंचायती राज अधिनियम 1992 के बाद प्रधान या मुखिया पद का महत्व और भी बढ़ गया है. संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा और ग्राम पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है. इसके लिए 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में प्रभावी हुआ. विधेयक के संसद द्वारा पारित होने के बाद 24 अप्रैल, 1993 से 73वां संविधान संशोधन अधिनियम लागू हुआ. 24 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय पंचायत दिवस’के रूप में मनाया जाता है.