हम जानेंगे, थेरानोस और एलिज़ाबेथ होम्स की कहानी क्या है? ये पूरा फ़्रॉड कैसे सामने आया? और, आज के दिन हम ये चर्चा क्यों कर रहे हैं?
एलिज़ाबेथ होम्स ने किस तरह थेरानोस के नाम पर फ़्रॉड किया?
एलिज़ाबेथ होम्स ने कैसे लोगों को बेवकूफ़ बनाकर करोड़ों डॉलर जुटा लिए?
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एलिज़ाबेथ होम्स ने कैसे लोगों को बेवकूफ़ बनाकर करोड़ों डॉलर जुटा लिए?
आज की कहानी एक सफ़र से जुड़ी है. अर्श से फर्श तक के सफ़र से. इस कहानी की मुख्य किरदार एक तेज़तर्रार लड़की है. स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से ड्रॉपआउट हुई. 19 की उम्र में सिलिकन वैली पहुंची. अपनी कंपनी बनाई. नाम रखा, थेरानोस. ये कंपनी ब्लड टेस्टिंग की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाने का दावा करती थी. दावा कुछ यूं कि ख़ून की एक बूंद से दो सौ से अधिक टेस्ट किए जा सकते हैं. इस दावे के दम पर उसने करोड़ों डॉलर्स उठाए. इस विजन में पैसा लगाने वालों में रूपर्ट मर्डोक जैसे लोग भी थे. जब ये विजन धरातल पर उतरा तो एक-एक कर भरम टूटने शुरू हुए. पता चला कि ये पूरा आविष्कार एक मज़ाक है. इस विजन से जुड़े हर व्यक्ति के साथ फ़्रॉड हुआ था. इसकी सूत्रधार थी, थेरानोस की फ़ाउंडर और अगला स्टीव जॉब्स कहलाने वाली एलिज़ाबेथ होम्स. दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छाई रहने वाली होम्स एक समय लगभग 80 हज़ार करोड़ रुपये की मालकिन थी. आज के दिन उसके ऊपर 80 बरस जेल की तलवार लटक रही है.
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एलिज़ाबेथ होम्स की कहानी सिर्फ अमेरिका में ही संभव है. उसने स्टैनफ़ोर्ड को दूसरे साल में ही छोड़ दिया. ताकि वो लोगों को हेल्थकेयर का बुनियादी अधिकार मुहैया करा सके. जब पहली बार मैं उससे मिला, तब मुझे उसका प्लान बहुत कच्चा लगा. मैंने उससे कहा कि तुम्हारे पास दो विकल्प हैं. मिट्टी में मिल जाने की हद तक की असफ़लता या सातवें आसमान पर पहुंचाने वाली सफ़लता. बीच का कोई रास्ता नहीं है. एलिज़ाबेथ ने एक ही विकल्प चुना था, दुनिया को बदलने का.
एलिज़ाबेथ होम्स को मेडिसिन के बारे में कुछ पता नहीं था. वो केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी. उसकी उम्र 19 साल की थी. मगर उसे लगता था कि वो सब जानती है.अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अप्रैल 2015 में टाइम मैगज़ीन में एक आर्टिकल लिखा. संक्षिप्त परिचय टाइप का. इसमें उन्होंने लिखा था, एलिज़ाबेथ होम्स उसी समय टाइम मैगज़ीन की 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल हुई थी. उस दौर में उसके सितारे बुलंदी पर थे. इस बुलंदी पर चढ़ने की शुरुआत 12 बस पहले ही हो चुकी थी. साल था 2002 का. स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही एक लड़की को एक प्लान सूझा. मेडिकल का एक स्टार्ट-अप शुरू करने का. वो एलिज़ाबेथ होम्स थी. होम्स सबसे पहले मेडिसिन डिपार्टमेंट की प्रफ़ेसर फ़िलिस गार्डनर के पास पहुंची. गार्डनर ने प्लान सुना और इंकार में सिर हिला दिया. कई बरस बाद गार्डनर ने 60 मिनट्स ऑस्ट्रेलिया से बात की. इसमें उन्होंने होम्स के साथ कॉलेज में हुई मुलाक़ात को याद किया. गार्डनर ने इंटरव्यू में कहा था, गार्डनर ने तो होम्स को नकार दिया था. लेकिन होम्स इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी. उसका मॉडस ऑपरेंडी ये था कि जब तक सफ़ल ना हो जाओ, तब तक कोशिश करते रहो. आख़िरकार, होम्स सफ़ल हुई. एक दूसरे प्रफ़ेसर को उसका आइडिया पसंद आया. प्रफ़ेसर ने होम्स की मुलाक़ात और लोगों से करवाई. 2003 के आख़िरी महीनों में होम्स ने स्टैनफ़ोर्ड को अलविदा कह दिया. उस समय वो सेकंड ईयर में ही थी. डिग्री अधूरी होने के बावजूद उसने कॉलेज को टाटा कर दिया. कॉलेज छोड़ने के बाद वो सिलिकन वैली में दाखिल हुई. सिलिकन वैली अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में है. दुनिया के सबसे बड़े टेक स्टार्ट-अप्स का केंद्र रहा है. इसे टेक की दुनिया की मायानगरी कहा जा सकता है. एलिज़ाबेथ होम्स ने सिलिकन वैली में ही अपने स्टार्ट-अप की बुनियाद रखी. ये आगे चलकर थेरानोस के नाम से जाना गया. कंपनी को जल्दी ही भारी-भरकम फ़ंडिंग भी मिलने लगी. जानकार बताते हैं कि निवेशक कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहते थे. वे शुरुआती चरण में फ़ेसबुक और ट्विटर की प्रतिभा पहचानने में नाकाम रहे थे. इसलिए, वे हर उस नए स्टार्ट-अप में पैसा लगा रहे थे, जिसमें उन्हें थोड़ी बहुत संभावना भी दिख रही थी. होम्स ने इस ट्रेंड को पहचान लिया था. होम्स के आइडिया में काफी निवेश जमा हो चुका था. अब बात आई क्रेडिबिलिटी की. इसके लिए प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किए जाने की दरकार थी. 2011 में होम्स ने हेनरी किसिंजर और जॉर्ज़ शॉल्ज़ को थेरानोस का बोर्ड मेंबर बना दिया. किसिंजर वियतनाम वॉर के टाइम अमेरिका के विदेश मंत्री थे. जबकि जॉर्ज़ शॉल्ज़ ने कोल्ड वॉर खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, कई फ़ोर-स्टार जनरल्स और दूसरे क्षेत्रों की दिग्गज हस्तियों को भी थेरानोस के बोर्ड में जगह दी गई. दिलचस्प बात ये थी कि थेरानोस मेडिसिन की फ़ील्ड में क्रांति लाने के लिए बनाई गई थी. लेकिन उसके बोर्ड मेंबर्स को मेडिसिन का कोई अनुभव नहीं था. पैसे और क्रेडिबिलिटी के बाद तीसरा चरण आया. ये चरण प्रचार का था. इसमें थेरानोस ने अपनी मशीन को दुनिया के सामने लाया. इस मशीन का नाम रखा गया, एडिसन. थेरानोस ने ये प्रचार किया कि एडिसन ख़ून की एक बूंद से तमाम तरह के ब्लड टेस्ट कर सकता है. आपको किसी भी तरह का इलाज कराना हो, अमूमन डॉक्टर सबसे पहले ब्लड टेस्ट कराने के लिए कहते हैं. आमतौर पर ब्लड टेस्ट की तय रीति है. इसमें आपके शरीर से ब्लड निकालकर टेस्ट ट्यूब्स में भरा जाता है. फिर अलग-अलग मशीनों में अलग-अलग परीक्षण होता है. नॉर्मल ब्लड टेस्ट में कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक का वक़्त लग जाता है. ये नॉर्मल प्रक्रिया है. थेरानोस का कहना था कि हमारी मशीन अकेले ही सारे टेस्ट कर सकती है. वो भी चार घंटों के भीतर. इसे मेडिकल हिस्ट्री में ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर देखा गया. 2013 में थेरानोस ने वॉलग्रीन्स बूट अलायंस के साथ साझेदारी की. ये कंपनी अमेरिका की सबसे बड़ी रिटेल फ़ार्मेसी चेन्स में से एक है. इस साझेदारी से थेरानोस आम जनता के और करीब पहुंच गई थी. अमेरिका में ब्लड टेस्ट का बिजनेस अरबों डॉलर्स का है. थेरानोस इसी कारोबार पर क़ब्ज़ा करने का इरादा रखती थी. इस इरादे को बढ़ावा दिया मीडिया संस्थानों ने. एलिज़ाबेथ होम्स और थेरानोस पर सबसे प्रभावित करने वाली स्टोरी जून 2014 में आई. फ़ॉर्च्यून मैगज़ीन में. इस आर्टिकल का टाइटल था,
"This CEO is out for blood"
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इसमें होम्स की शान में जमकर कसीदे पढ़े गए थे. आर्टिकल में होम्स के खान-पान से लेकर उनकी दिनचर्या की बारीक जानकारियां भरीं थी. इसमें ये भी लिखा गया था कि होम्स हफ़्ते के सातों दिन 16-16 घंटे काम करतीं है. इसी आर्टिकल में होम्स ने दावा किया था कि थेरानोस ने कई दिग्गज दवा कंपनियों और यूएस मिलिटरी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया हुआ है. ये सारे दावे बाद में झूठे साबित हुए. लेकिन फ़ॉर्च्यून के लिए वो आर्टिकल लिखने वाले रोजर पार्लफ़ ने दावों की सत्यता नहीं जांची. होम्स ने उनसे जो कुछ कहा, उसे हुबहू छाप दिया गया. जब होम्स की सत्यता बाहर आई, तब पार्लफ़ ने एक दूसरा आर्टिकल लिखा था. How Theranos misled me. इसके एक बरस बाद उन्होंने फ़ॉर्च्यून मैगज़ीन में काम करना छोड़ दिया. खैर, जून 2014 के सजावटी आर्टिकल के बाद भेड़चाल शुरू हो गई. हर कोई एलिज़ाबेथ होम्स का इंटरव्यू लेना चाहता था. लगभग हर बड़े अमेरिकी अख़बार और मैगज़ीन्स होम्स को अद्वितीय साबित करने में जुट गए. फ़ोर्ब्स ने होम्स को अमेरिका की सबसे अमीर सेल्फ़-मेड महिला घोषित कर दिया. टाइम मैगज़ीन ने होम्स को सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में जगह दी. ग्लैमर मैगज़ीन ने उसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ महिला बताया. न्यू यॉर्कर ने लिखा कि होम्स में स्टीव जॉब्स की झलक दिखती है. टीवी चैनलों ने होम्स को खुला मंच दिया. अपना प्रोपेगैंडा फैलाने का. उन्होंने कभी होम्स के दावे पर सवाल नहीं किया. दिसंबर 2021 में वॉशिंगटन पोस्ट में एक रिपोर्ट छपी. इसमें होम्स मामले में मीडिया की कवरेज़ को लेकर कई सवाल उठाए गए थे. कैसे फ़ॉर्च्यून मैगज़ीन ने होम्स की दैवीय छवि गढ़ी और कैसे बाकी संस्थानों ने कतारबद्ध होकर पूजना शुरू कर दिया. इसी रिपोर्ट में एक पंक्ति है.
The best way to drive out bad journalism is with a better kind. यानी, ख़राब पत्रकारिता से लड़ने का सबसे सटीक रास्ता अच्छी पत्रकारिता से होकर गुज़रता है.जिस समय एलिज़ाबेथ होम्स लोकप्रियता के शिखर पर बैठकर बाकी दुनिया को चिढ़ा रही थी, उस समय वॉल स्ट्रीट जर्नल बुनियाद खोदने में जुटा हुआ था. अख़बार के लिए जॉन कैरिरू सबूत जुटाने में लगे हुए थे. उन्होंने कुछ टिप और पुराने आर्टिकल्स के आधार पर अपनी पड़ताल शुरू की. पता चला कि थेरानोस के दावों को लेकर कोई पीयर-रिव्यूड डेटा पेश नहीं किया गया है. थेरानोस की तकनीक और उसके काम करने का तरीका रहस्यमयी था. जॉन के हाथ एक बड़ी स्टोरी लग चुकी थी. इसके बाद थेरानोस के कई पुराने कर्मचारियों ने उनसे संपर्क किया. इन कर्मचारियों ने अंदर की पोल खोलनी शुरू की. अक्टूबर 2015 में जॉन कैरिरू ने पहली स्टोरी पब्लिश की. इसने तहलका मचा दिया. धीरे-धीरे थेरानोस के और राज़ खुलने लगे.
मसलन, कंपनी जिस डिवाइस पर टेस्ट करती थी, उसे FDA से अप्रूवल नहीं मिला था. थेरानोस की मशीन गिनती के टेस्ट को छोड़कर कुछ नहीं कर पाती थी. अधिकतर लोगों के टेस्ट रिजल्ट बाद में ग़लत साबित हुए. इसके चलते उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी. कंपनी ने यूएस मिलिटरी और फ़ाइज़र के साथ साझेदारी की बात की थी. ये भी सरासर झूठ था.इन खुलासों के बाद थेरानोस का कद घटता चला गया. निवेशकों ने हाथ खींच लिए. कंपनी के पार्टनर्स ने कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया. थेरानोस को ब्लड टेस्टिंग से रोक दिया गया. मार्च 2018 में यूएस सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन ने होम्स, थेरानोस और होम्स के एक्स-पार्टनर रमेश बलवानी के ख़िलाफ़ फ़्रॉड का मुकदमा दर्ज़ किया. रमेश बलवानी 2009 में थेरानोस का चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर बना था. सितंबर 2018 में थेरानोस ने काम करना बंद कर दिया. निवेशकों के सारे रुपये अचानक से डूब गए. उन्होंने भी कंपनी के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज़ करा दिया. एलिज़ाबेथ होम्स पर सितंबर 2021 में मुकदमा शुरू हुआ. उसके ख़िलाफ़ 11 आरोप लगाए गए थे. उसने इन आरोपों में दोष स्वीकार नहीं किया. आज हम थेरानोस और एलिज़ाबेथ होम्स की कहानी क्यों सुना रहे हैं? दरअसल, तीन जनवरी 2022 को होम्स को चार चार्जेज़ पर दोषी करार दिया गया है. इनमें निवेशकों से धोखाधड़ी और साज़िश में हिस्सेदारी के आरोप हैं. मरीज़ों को धोखाधड़ी देने के तीन आरोपों से होम्स को बरी कर दिया गया है. तीन और आरोपों पर ज्यूरी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. उन्हें अगली तारीख़ दी गई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एलिज़ाबेथ होम्स को हर अपराध के लिए 20-20 साल की सज़ा हो सकती है. होम्स ने अगस्त 2021 में एक बच्चे को जन्म दिया है. इस वजह से अदालत रियायत भी बरत सकती है. एलिज़ाबेथ होम्स सज़ा के ख़िलाफ़ आगे अपील भी कर सकती है. होम्स ने अदालत में बार-बार ये दलील दी कि सारा किया-धरा रमेश बलवानी का है. फ़्रॉड का पूरा प्लान उसी का था. वही निवेशकों को फंसाता था. होम्स का ये भी आरोप है कि बलवानी रिलेशनशिप में उसके साथ मारपीट भी करता था. बलवानी का केस अगले महीने शुरू होगा. एलिज़ाबेथ होम्स की कहानी भ्रामक पीआर कैंपेन के तिलिस्म का सटीक उदाहरण है. ये कहानी इस बात की भी ताकीद करती है कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, जाल में लेकिन फंसना नहीं.
क्या लोग इस घटना से सबक ले पाएंगे, इस सवाल का जवाब सरल नहीं हो सकता. प्रोपेगैंडा के दम पर सरकारें बन-बिगड़ जातीं है. थेरानोस और एलिज़ाबेथ होम्स की कहानी तो एक टुकड़ा भर है.
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