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'बारिश की संभावना है', मौसम विभाग की ये जानकारी कई बार गलत क्यों होती है?

बारिश की भविष्यवाणी होती है लेकिन बारिश नहीं होती. कभी-कभी तेज आंधी आ जाती है. मूसलाधार बारिश हो जाती है और मौसम विभाग का अलर्ट सब होने के बाद आता है. बारिश को लेकर मौसम विभाग के अलर्ट कई बार फेल हो जाते हैं. मौसम वैज्ञानिकों ने बताया है कि ऐसा क्यों होता है?

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बारिश के पूर्वानुमान बार-बार क्यों गलत साबित हो रहे हैं (India Today)

‘मौसम बड़ा बेईमान है.’ इसके 'मिजाज' की सही भविष्यवाणी किसी के लिए भी मुश्किल है. भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र दुनिया भर में सटीक पूर्वानुमानों के लिए जाना जाता है लेकिन हाल-फिलहाल के उसके प्रेडिक्शन को देखें तो लगता है, उसका ‘सिस्टम भी थोड़ा हिल गया है’. बारिश की भविष्यवाणी होती है लेकिन बारिश नहीं होती. कभी-कभी तेज आंधी आ जाती है. मूसलाधार बारिश हो जाती है और मौसम विभाग का अलर्ट सब होने के बाद आता है. 

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अब बुधवार यानी 9 जुलाई की ही बात है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जमकर बारिश हुई. सड़कें तालाब बन गईं. अचानक बदले मौसम ने लोगों को जहां-तहां रोक दिया. इसके बाद सबके फोन पर मेसेज आया कि आपके इलाके में तेज बारिश का अलर्ट है. सतर्क रहिएगा. अब जब बारिश में लोग फंस ही गए तो सतर्कता के अलर्ट का क्या फायदा? 

मौसम विभाग की ऐसी ही भविष्यवाणियां हैं, जिस पर सवाल उठते हैं. क्या पूर्वानुमान गलत हो रहे हैं? हो रहे हैं तो क्यों हो रहे हैं? सिस्टम में कहां गड़बड़ी है? बार-बार एक ही तरह की गलती क्यों हो रही है? 

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इन सबका जवाब दिया है आईएमडी पुणे के प्रमुख के एस होसालिकर ने. वह कहते हैं कि मौसम विभाग गलत प्रेडिक्शन नहीं करता और न ही फोरकास्ट गलत होते हैं. बल्कि लोग पूर्वानुमानों को ठीक तरह से समझने में चूक जाते हैं और इसे ही मौसम विभाग की गलती कहने लगते हैं. होसालिकर समझाते हैं

वेदर फोरकास्ट भारतीय मौसम विभाग का ‘प्रोडक्ट’ है. जनता इसकी ‘यूजर’ और हम यानी मौसम विभाग ‘प्रड्यूसर’. यूजर को अपने प्रोडक्ट के बारे में ठीक से जानकारी होनी चाहिए. यूजर जो प्रोडक्ट यानी फोरकास्ट देखता है, हम उसे यूजर फ्रेंडली बनाकर पेश करने की कोशिश करते हैं. हम उसमें से प्रोबैबिलिटी फैक्टर जैसे टेक्नीकल टर्म्स हटाकर फोरकास्ट जारी करते हैं ताकि जनता के लिए उसे समझना मुश्किल न रहे.

अब ये यूजर फ्रेंडली क्या होता है?

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मान लीजिए मौसम विभाग एक फोरकास्ट जारी करता है, जिसमें अलग-अलग समय में अलग-अलग जगहों पर बारिश होने की प्रोबैबिलिटी को दर्शाया गया है. ये ऐसी जटिल बात हो जाती है कि सामान्य लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल हो जाता है. इसलिए मौसम विभाग जब पूर्वानुमान जारी करता है तो सीधे-साफ शब्दों में कहता है कि फलां जगह पर फलां समय में बारिश होने की 'संभावना है'. इसमें 'संभावना' शब्द पर ज्यादा जोर होता है. होसालिकर कहते हैं, 

फोरकास्ट हमेशा 100 फीसदी सही नहीं होता. हर अच्छे फोरकास्ट में सब अच्छा नहीं होता और हर बुरे फोरकास्ट में सब बुरा नहीं होता. ये कोई आकाशवाणी नहीं है. ये फोरकास्ट है. पूर्वानुमान. यानी ‘होने की संभावना’. विभाग ये कभी नहीं कहता कि ऐसा मौसम ‘होने वाला’ है. वो बोलता है कि ऐसा मौसम होने की संभावना (Probability of Occurrence) है. फोरकास्ट में हमेशा ‘इनबिल्ट इनएकुरेसी’ होती है. यानी हर पूर्वानुमान में एक स्वाभाविक गलती की गुंजाइश होती है, जो सिस्टम की अपनी सीमा के कारण होती है.

इस संभावना से ‘सही के करीब’ निष्कर्ष कैसे निकाला जाता है?

होसालिकर बताते हैं,   

किसी बारिश के पूर्वानुमान में अगर प्रोबैबिलिटी 70 फीसदी से ज्यादा है तो मानकर चलते हैं कि बारिश होकर ही रहेगी. अगर 50 से 75 फीसदी है तो कुछ जगह होगी और कुछ जगह पर नहीं होगी लेकिन अगर 50 से कम है तो हम कहते हैं कि बस तैयार रहो और मौसम पर नजर बनाए रखो.

उन्होंने बारिश को लेकर जारी होने वाले अलर्ट के मतलब भी समझाए और कहा, 

बारिश के फोरकास्ट को लेकर कुछ सिग्नल बने हैं, जो पूरी दुनिया में इस्तेमाल होते हैं. जैसे यलो अलर्ट का मतलब होता है कि देखते रहो. तैयार रहो. अगर आगे कुछ हो गया तो ऑरेन्ज अलर्ट बनेगा. इसमें सब तैयारी रखो. घटना होने ही वाली है. रेड अलर्ट का मतलब होता है कि एकदम एक्शन मोड में आ जाओ. वहीं, जब ग्रीन अलर्ट होता है तो इसका मतलब है कि किसी भी एक्शन की जरूरत नहीं है.

मौसम वैज्ञानिक डीएस पाई भी तकरीबन यही बात कहते हैं. उनका कहना है कि फोरकास्ट ‘गलत’ होने की संभावना ज्यादातर बारिश को लेकर ही होती है. बारिश (Rainfall) एक continuous variable नहीं है, बल्कि यह असतत (discrete) प्रकृति की होती है. मतलब यह कि बारिश एक साथ पूरे क्षेत्र में समान रूप से नहीं होती. अगर बिहार में बारिश हो रही है तो जरूरी नहीं कि महाराष्ट्र में भी हो. यहां तक कि बिहार के अंदर भी किसी एक जिले में बारिश हो सकती है और दूसरे में नहीं और एक ही जिले में भी, किसी गांव या इलाके में बारिश हो सकती है, जबकि कुछ किलोमीटर दूर दूसरे इलाके में नहीं होती.

पाई के मुताबिक, जब मौसम विभाग किसी क्षेत्र विशेष के लिए बारिश का पूर्वानुमान देता है तो हो सकता है कि बारिश उस क्षेत्र के कुछ दूरदराज हिस्सों में हो और मुख्य आबादी वाले हिस्सों में न हो. फिर लोग कहने लगते हैं कि ‘यहां तो बारिश हुई ही नहीं.’ 

एसएमएस वाला अलर्ट

अब आते हैं एसएमएस पर आने वाले अलर्ट पर. डीएस पाई ने बताया कि तेज बारिश, आंधी और बिजली गिरने का पूर्वानुमान बताने के लिए हम नाउकास्ट का सहारा लेते हैं. इसमें लोगों के फोन पर एसएमएस आता है कि दो तीन घंटे में क्या हो सकता है? ये अलर्ट देने में हमें बहुत कम समय मिलता है. ऐसी घटनाओं की भविष्यवाणी करना भी बहुत मुश्किल होता है क्योंकि ये बहुत जल्दी बनते हैं. अचानक दिशा बदलते हैं और इनके लिए बहुत हाई-क्वालिटी डेटा चाहिए होता है. भारत अभी इस मामले में प्रगति कर रहा है. 

बिजनस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में पहले से ही बहुत मजबूत मौसम सिस्टम है. वहां हजारों वेदर स्टेशन्स हैं. फास्ट डेटा ट्रांसमिशन और एकदम नए जमाने के कंप्यूटर के प्रबंध हैं. भारत अभी उस स्तर तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है. भारत सरकार के 'मिशन मौसम' के तहत अपनी राडार क्षमता बढ़ाने में लगा है. पहले देश में सिर्फ 26 रडार थे. अब ये बढ़कर 39-40 हो गए हैं. आने वाले समय में 126 रडार लगाने की योजना है.

इसके अलावा बड़े शहरों में नई ऑटोमैटिक वेदर मशीनें लगाई जा रही हैं, जिन्हें हाई-डेंसिटी मेसोनैट कहते हैं. ये हर कुछ किलोमीटर पर मौसम की सटीक जानकारी देने की क्षमता रखती हैं. 

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