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अस्पतालों में डॉक्टर नहीं, फुटबॉल टीमों में खिलाड़ी कम: ट्रंप की इमिग्रेशन पॉलिसी ने अमेरिका को कहां पहुंचा दिया

Trump's immigration policy: ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी का असर अब अमेरिका की ज़मीनी हकीकत में दिखने लगा है. अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स नहीं मिल रहे, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर मजदूरों की कमी है और खेल के मैदान खाली हो रहे हैं. वीज़ा, रिफ्यूजी और स्टूडेंट एंट्री पर बंदिशों से इमिग्रेंट आबादी घट रही है. सवाल ये है कि क्या अमेरिका बिना इमिग्रेंट्स के अपनी रफ्तार बनाए रख पाएगा.

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अस्पताल सूने, फुटबॉल मैदान खाली, वजह ट्रंप की इमिग्रेशन नीति

अमेरिका में इस वक्त एक अजीब सी खामोशी है. ऐसी खामोशी जो आंकड़ों में नहीं, गलियों में सुनाई देती है. कहीं हथौड़े की आवाज़ कम पड़ गई है, कहीं अस्पताल के वार्ड सूने लग रहे हैं, तो कहीं बच्चों की फुटबॉल लीग ही ठप हो गई है. वजह एक ही है. लोग गायब हो रहे हैं.

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एक साल का क्रैकडाउन और ज़मीनी असर

डॉनल्ड ट्रंप के इमिग्रेशन क्रैकडाउन को एक साल हो चुका है. असर अब जमीन पर दिखने लगा है. न्यूयॉर्क टाइम्मस की रिपोर्ट के मुताबिक लुइसियाना में कंस्ट्रक्शन कंपनियां कारपेंटर ढूंढते फिर रही हैं. वेस्ट वर्जीनिया के अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स की कुर्सियां खाली हैं, क्योंकि जो विदेशी मेडिकल प्रोफेशनल आने वाले थे, वे आ ही नहीं पाए. मेम्फिस की एक मोहल्ला सॉकर लीग में टीमें पूरी नहीं हो रहीं, क्योंकि इमिग्रेंट परिवारों के बच्चे मैदान में दिखना बंद हो गए हैं.

दरवाज़े बंद, रास्ते सिकुड़े

अमेरिका धीरे धीरे अपने दरवाज़े बंद कर रहा है. बॉर्डर पर ताले लग रहे हैं. कानूनी एंट्री के रास्ते सिकुड़ रहे हैं. जो नए लोग आना चाहते हैं, उन्हें रोका जा रहा है. जो सालों से रह रहे हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है.

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वीज़ा से लेकर रिफ्यूजी तक सब पर सख्ती

वीज़ा फीस बढ़ा दी गई है. रिफ्यूजी एडमिशन लगभग शून्य पर पहुंच गया है. इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की संख्या गिर चुकी है. बाइडन प्रशासन के दौरान जिन लोगों को अस्थायी कानूनी सुरक्षा मिली थी, उसे वापस लिया जा रहा है. इसका मतलब साफ है. सैकड़ों हजार लोग अब कभी भी डिपोर्ट किए जा सकते हैं. ट्रंप प्रशासन का दावा है कि अब तक छह लाख से ज्यादा लोगों को देश से बाहर किया जा चुका है.

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डॉक्टर गायब, खिलाड़ी कम पड़ गए: ट्रंप के इमिग्रेशन क्रैकडाउन से जूझता अमेरिका
भारतीय आईटी प्रोफेशनल और डॉक्टर भी चपेट में

इस सख्ती का असर भारतीय प्रोफेशनल्स पर भी साफ दिख रहा है. अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में काम करने वाले भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स के लिए H-1B वीज़ा अनिश्चित होता जा रहा है, नई हायरिंग रुकी है और पुराने लोग भी भविष्य को लेकर डरे हुए हैं. दूसरी तरफ भारतीय डॉक्टर, जो खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों के अस्पतालों की रीढ़ माने जाते हैं, अब अमेरिका आने से पहले कई बार सोच रहे हैं. वीज़ा देरी, नियमों की सख्ती और डिपोर्टेशन का डर ऐसा माहौल बना रहा है, जिसमें अमेरिका खुद उस टैलेंट को दूर कर रहा है जिसकी उसे सबसे ज़्यादा जरूरत है.

तुरंत नहीं घटेगी विदेशी आबादी

विदेशी आबादी एक झटके में कम नहीं होगी. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि मौजूदा नीतियों के तहत नेट इमिग्रेशन सालाना करीब साढ़े चार लाख पर आ गया है. ये संख्या बाइडन के दौर के दो से तीन मिलियन सालाना इमिग्रेशन से काफी कम है.

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इतिहास की ऊंचाई और आज की सख्ती

एक दिलचस्प विरोधाभास भी है. 2024 में अमेरिका की कुल आबादी में विदेशी मूल के लोगों की हिस्सेदारी 14.8 प्रतिशत तक पहुंच गई थी. ये आंकड़ा 1890 के बाद सबसे ज्यादा है. यानी इतिहास की सबसे ऊंची इमिग्रेंट मौजूदगी और उसी वक्त सबसे सख्त बंदिशें.

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बिना इमिग्रेंट अमेरिका अधूरा

सवाल सीधा है. क्या अमेरिका बिना इन लोगों के चल पाएगा. जो घर बनाते हैं, मरीजों का इलाज करते हैं, खेतों में काम करते हैं, क्लासरूम भरते हैं और बच्चों को मैदान में दौड़ना सिखाते हैं. फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि देश के कई कोने उनकी गैरमौजूदगी महसूस कर रहे हैं. और ये कमी सिर्फ मजदूरी या नौकरी की नहीं है. ये कमी इंसानों की है.

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