इस राक्षस के सांस छोड़ने से सात दिनों तक आता था भूंकप
महाराक्षस धुंधु की धुआं धुआं कर देने वाली कहानी

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एक थे राजा बृहदश्व. मन में धूनी रमाने का रूमानी ख़्याल आया तो राज-पाट अपने लड़के कुवलाश्च को देकर चल पड़े तपस्या करने. रास्ते में ब्रह्मर्षि उत्तंक ने उन्हें रोक लिया और बोले कि हमारी समस्या सुलझाकर जाओ. का बताएं हमारे आश्रम के पास बालू के भीतर रहता है धुंधु नाम का एक डेंजरस राक्षस. सब लोकों को खतम करने के लिए तपस्या करता रहता है और साल में एक बार बड़े जोर की सांस छोड़ता है. उसकी सांस से ऐसा भूकंप आता है कि दूर दूर तक धरती सात दिनों तक डोलती रहती है. आप चलो और धुंधु को माड्डालो. राजा बृहदश्व अपने लड़के को आगे कर बोले- मैं तो अब अहिंसा का पुजारी हो गया हूं. ये लड़का है अपना- कुवलाश्च. धुंधु को धुआं धुआं कर देगा. कुवलाश्च के सौ लड़के थे. सब एक से एक तिकड़मी योद्धा. सबको साथ लेकर वह चल पड़ा धुंधु की बैंड बजाने. कहते हैं ऋषि उत्तंक की रिक्वेस्ट पर खुद भगवान विष्णु कुवलाश्च के शरीर में प्रवेश कर गए. कुवलाश्च की पुत्रसेना का ऑपरेशन शुरू हो गया. उन्होंने समुद्र खोदकर बालू के भीतर टारगेट का पता लगा लिया. धुंधु ने देखा कि हमला हुआ है तो उसने मुंह से आग फेंकनी शुरू कर दी और पानी का फ्लो तेज करने लगा. समुद्र में ज्वार आ गया. कुवलाश्च के तीन बेटों को छोड़कर सब मारे गए. फिर कुवलाश्च ने धुंधु पर अटैक किया. कुवलाश्च योगी आदमी थे. वह सारा जल पी गए और आग भी बुझा दी. फिर अपनी जिस्मानी ताकत के बल पर पानी में रहने वाले उस महालुच्चे राक्षस को मार डाला महर्षि उत्तंक ने मुक्त कंठ से उन्हें खूब सारा आशीर्वाद दिया. स्रोत: ब्रह्मपुराण, गीता प्रेस, पेज- 21,22