हिमा दास. 19 साल की उम्र. महीने भर में 5 गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. यूरोप के अलग-अलग शहरों में हुई अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में. किसी भी ग्लोबल ट्रैक इवेंट में गोल्ड का तमगा झटकने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी. एले इंडिया, फेमिना, वोग जैसी मैगजीनों के कवर पर चमकने वाली लड़की. जहां तक पहुंचने के लिए सुंदरता के मानक तय हैं. हिमा ने उन मानकों को चुनौती दी है. अपनी जगह हासिल की है. अपने हुनर के दम पर.
हिमा दास की कहानी बताती है कि ज़िंदगी में भी जीतने के लिए दौड़ना पड़ता है, जान लगाकर
आइंदा एडीडास के जूतों में हिमा दास भी लिखा देखेंगे तो उनकी इस स्टोरी को ज़रूर याद करेंगे.

हिमा के ट्रैक पर दौड़ने और जीतने का अंदाज भी कुछ अलग है. वे मुख्य तौर पर 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में हिस्सा लेती हैं. रेस के शुरू के हिस्से में वे धीमा स्टार्ट करती हैं. और, आखिरी हिस्से में, जब दुनिया उनके जीतने की उम्मीद छोड़ देती है, हिमा अपनी रफ्तार बदलकर सबसे आगे निकलने का हुनर जानती हैं.

हिमा ने जुलाई महीने में 5 गोल्ड मेडल जीते हैं(फोटो: ट्विटर)
हिमा दास का घर देश की राजधानी से दो हजार किलोमीटर से अधिक दूर है. असम का नागौन जिला. इसी जिले का धींग गांव. गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकल आया है. वजह हैं हिमा दास. 9 जनवरी 2000 को जन्म हुआ. 17 लोगों का परिवार है. पूरा परिवार धान की खेती करता है. हिमा ने भी अब तक के जीवन का लंबा हिस्सा खेतों में बुआई और निराई करते बिताया है. रंजीत और जोनाली के 6 बच्चों में सबसे छोटी हिमा की उपलब्धियां बेजोड़ हैं.
दौड़ने की शुरुआत हिमा दास का इरादा फुटबॉलर बनने का था. स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं. मैदान में उनकी फुर्ती देखकर एक टीचर ने एथलेटिक्स में करियर बनाने की सलाह दी. हिमा ने सलाह मानी. रेस चुना. सबसे तेज होने की चाहत. हिमा इस कला की बेताज बादशाह बनना चाहती थी. लोकल लेवल पर एथलेटिक्स का कंपटीशन हुआ. हिमा ने उम्दा खेल दिखाया. यह उम्दापन गुम हो गया होता अगर कोच निपोन दास ने उसपर ध्यान नहीं दिया होता. हिमा ने गुवाहाटी में स्टेट चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. उनके हिस्से कांसा आया. फिर उन्हें जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के लिए भेजा गया. उनकी ट्रेनिंग कम थी. अनुभव न के बराबर था. फिर भी वे 100 मीटर की रेस के फाइनल तक पहुंची. इस बार कोई मेडल हाथ नहीं आ सका. हिमा काफी निराश थीं.

हिमा के माता-पिता ने करियर में उनका साथ दिया. (फोटो: ट्विटर)
यह एक सुंदर करियर का दुखद अंत हो सकता था. लेकिन कोच ने ऐसा होने नहीं दिया. उन्होंने हिमा के घरवालों को मनाया कि वे अपनी बेटी को ट्रेनिंग के लिए गुवाहाटी जाने की अनुमति दें. यह थोड़ा मुश्किल था, लेकिन घरवालों ने हां कर दी. पिता इस बात से खुश थे कि उनकी बेटी को तीन वक्त का भोजन मिल सकेगा. लेकिन यह एक नए संघर्ष की शुरुआत थी. हिमा को रोज गांव से बस पकड़नी होती थी. 140 किलोमीटर दूर गुवाहाटी के लिए. फिर ट्रेनिंग कर वापस आना होता था. रात के 11 बज जाते थे. घरवालों की चिंता बढ़ने लगी. एक बार फिर कोच ने साथ दिया. उन्होंने एक लोकल डॉक्टर की मदद से हिमा के रहने का इंतजाम करवाया. स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स के ठीक बगल में. हिमा के लिए राह थोड़ी आसान हो गई थी.
जब पिता ने खरीदे 1200 के जूते एक किसान परिवार में पैसों की अहमियत काफी होती है. तमाम किस्म के समझौतों से रू-ब-रू होते हुए समय बीतता है. हिमा की ट्रेनिंग अच्छी चल रही थी. मेहनत करने में उनका कोई जोड़ नहीं था. यह सब देखकर पिता का दिल जुड़ा गया. ट्रेनिंग के लिए अच्छे जूतों की दरकार थी. हिमा ने कभी मांगा नहीं. पिता गुवाहाटी गए. अपनी गाढ़ी कमाई से 1200 के जूते खरीदे. हिमा की ट्रेनिंग के लिए. उन जूतों को यूं सहेज कर घर लाए मानो कोई बच्चा हो. उस दृश्य की कल्पना कीजिए, जब पिता ने वे जूते हिमा को सौंपे होंगे. जैसे कोई अपनी विरासत सौंप रहा हो. ADIDAS. फुटवियर बनाने वाली जर्मन कंपनी. इस क्षेत्र में उसकी तूती बोलती है. सितंबर 2018 में उसने एक चिट्ठी लिखकर हिमा दास को अपना एम्बेसडर बनाया. उनका नाम ADIDAS के जूतों पर छपता है. आज हिमा खुद एक ब्रांड हैं, जिसकी रफ्तार लगातार तेज हो रही है.

ADIDAS ने चिट्ठी लिखकर हिमा को अपना ब्रांड एम्बेसडर बनाया था. (फोटो: ट्विटर)
गेम के लिए परीक्षा छोड़ दी 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए. 4 से 15 अप्रैल के बीच. हिमा टूर्नामेंट से पहले दुविधा में थी. उसी दौरान उनकी बोर्ड परीक्षाएं होने वाली थी. घरवालों ने कहा कि खेलने का ऐसा मौका 4 साल के बाद ही मिलेगा, बोर्ड परीक्षा अगले साल भी हो सकती हैं. हिमा की उलझन दूर हुई. कॉमनवेल्थ में 400 मीटर की रेस में वे छठे स्थान पर रहीं. 4*400 रिले रेस में उनकी टीम सातवें स्थान पर रही. अगले साल उन्होंने परीक्षा दी. सई 2019 में असम बोर्ड के रिजल्ट आए. हिमा ने फर्स्ट डिविजन से बारहवीं की परीक्षा पास की है.

25 सितंबर 2018 को हिमा दास को अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था. (फोटो: ट्विटर)
12 जुलाई 2018. फिनलैंड के ताम्पेर में वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप खेली जा रही थी. इस दिन हिमा ने इंडिया के लिए नया इतिहास बनाया. 400 मीटर की रेस में 51.46 सेकंड का समय लेकर रेस जीत ली. यह किसी भी वर्ल्ड लेवल के कंपटीशन में इंडिया का पहला गोल्ड मेडल था. पहले 300 मीटर तक हिमा काफी पीछे चल रही थी. अंतिम सौ मीटर में उन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया. यही उनकी ताकत भी है. जब बाकी लोग उनसे उम्मीदें छोड़ देते हैं, हिमा सबको हैरान कर देती हैं.
इंडोनेशिया की राजधानी है जकार्ता. 2018 के अगस्त महीने में यह शहर सज-धज कर तैयार हो रहा था. जकार्ता 18वें एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था. कुल 45 देश इस टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे थे. 26 अगस्त को हिमा ने 400 मीटर की रेस 50.79 सेकंड में पूरी की. उन्हें चांदी के तमगे से संतोष करना पड़ा. हालांकि, 4*400 की रिले रेस में उनकी टीम ने दो गोल्ड अपने नाम किए.
बहुत कठिन है डगर पनघट की 2019 का जुलाई का महीना हिमा का है. 20 दिनों के अंतराल में 5 गोल्ड मेडल एक बड़ी उपलब्धि है. देश इसपर लहालोट हो रहा है. होना भी चाहिए. आखिरकार क्रिकेट से इतर आंखें तो पहुंची. लेकिन यह हिमा के सफर का हासिल नहीं है. वे अपने खेल से खुश तो हैं, लेकिन यहीं पर ठहरने का उनका इरादा नहीं है. 5 गोल्ड मेडल अपने नाम करने के बाद भी उन्हें सितंबर में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप का टिकट नहीं मिला है. 400 मीटर की स्पर्धा में 51.80 सेकंड क्वालीफाइंग मार्क था. हिमा 52.09 पर अटक गईं. 200 मीटर की केटेगरी में क्वालीफाय करने के लिए 23.02 सेकंड में रेस पूरी करनी थी. हिमा ने 4 गोल्ड जरूर जीते, लेकिन किसी में भी इस पॉइंट तक पहुंचने में नाकाम रहीं. जिन प्रतियोगिताओं में हिमा ने सोने का तमगा हासिल किया है, वे E और F केटेगरी में आते हैं. इन्हें इंटरनेशनल लेवल पर सबसे निचले स्तर पर रखा जाता है.

हिमा को ओलंपिक में क्वालीफाई करने के लिए और भी कड़ी मेहनत करनी होगी. (फोटो: ट्विटर)
हिमा दास. किसी भी ग्लोबल ट्रैक इवेंट में गोल्ड का तमगा झटकने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी. एले इंडिया, फेमिना, वोग जैसी मैगजीनों के कवर पर चमकने वाली लड़की. जहां तक पहुंचने के लिए सुंदरता के मानक तय हैं. हिमा ने उन मानकों को चुनौती दी है. अपनी जगह हासिल की है. अपने हुनर के दम पर.
हिमा हर एक पल की अहमियत जानती हैं. हिस्से दर हिस्से आगे बढ़ने की कला में महारत है. पीटी ऊषा 1984 के ओलंपिक में सेकंड के सौवें हिस्से के अंतर से कांस्य पदक जीतने से चूक गई थी. हिमा ऐसी चूकों को पीछे छोड़ने की काबिलियत रखती हैं.
हिमा की उपलब्धियां ज्यादा बड़ी नहीं हैं पर कई मायनों में खास हैं. उन्होंने बताया है कि इस देश में खेल के सितारे क्रिकेट के इतर के खेल से भी आ सकते हैं. जिनपर गर्व किया जा सकता है. संसाधन मिलें तो हिमा दास सरीखे अगणित सितारे विश्व-पटल पर चमक सकते हैं. हिमा दास को बधाई देने के साथ-साथ इस सवाल पर भी बहस जरूर कीजिएगा.
VICE एक चर्चित हॉलीवुड फिल्म है. 2018 में बनी. ऑस्कर तक पहुंची. एक केटेगरी में अवॉर्ड भी मिला. इस फिल्म की शुरुआत में अंधेरी स्क्रीन पर कुछ लाइनें प्रकट होती हैं.
पंक्तियों का मजमून कुछ यूं है-
शांत इंसान से सतर्क रहिए; जब तक कि दूसरे लोग शोर मचाते हैं, वह देखता है. जब दूसरे लोग काम करते हैं, वह योजना बनाता है. और, जब दूसरे लोग पूरी तरह निश्चिन्त होकर आराम करते हैं, वह अपनी चाल चल देता है.
हिमा के खेल का लहजा कुछ ऐसा ही है. असम की हिमा दास अब देश की हिमा दास हो गई हैं. उन्होंने शुरुआत कर दी है. किसी दिन चौंकने के लिए खुद को तैयार कर लीजिए.
वीडियो: एथलीट हिमा दास का ये टेलेंट आपने अब तक नहीं देखा होगा