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आपके सिर के बालों की कीमत कितनी है? हेयर बिजनेस की ये बातें आपको हैरान कर देंगी

इसे पढ़ने के बाद हर एक गिरते बाल की कीमत दर्द देगी.

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हर साल कई मंदिर दान किए हुए बालों को बेचकर करोड़ों कमाते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

10 बरस की देवना जनार्दन दवे. गुजरात के सूरत की रहने वाली हैं. हाल ही में एक सैलून में पहुंचीं और अपना सिर मुंडवा दिया. लंबे घने बाल दान दे दिए. कैंसर से जूझ रही औरतों के लिए. 'इंडिया टुडे' की गोपी मनियार की रिपोर्ट के मुताबिक, जिस सैलून में देवना ने सिर मुंडवाया, वहां और भी कई लड़कियां ऐसा कर चुकी हैं. यानी बाल दान कर चुकी हैं. कैंसर से जूझने वाली औरतों की मदद के लिए. सैलून के मालिक भी फ्री में ये काम कर रहे हैं. दान में आए बालों को वह मुंबई के कैंसर हॉस्पिटल में भेज देते हैं.

ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि इन्हीं बालों से विग बनते हैं. कैंसर के इलाज के दौरान मरीजों के बाल झड़ जाते हैं. ऐसे में कई महिला पुरुष सिर पर नकली बाल यानी विग पहनना प्रिफर करते हैं. इससे पहले कि आप खबर पढ़कर अपना बोरिया-बिस्तर बांध लें, हम आपको बताना चाहते हैं देवना के नेक काम और विग के बहाने भारत समेत दुनिया में पसरे 'बाल के बिज़नेस' के बारे में.


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बाल कटाती देवना. (फोटो- गोपी मनियार)

चौंकिए मत, कतई फैला हुआ बिज़नेस है ये!

भारत और चीन तो बाल के व्यापार में सबसे आगे हैं. दोनों देश दुनिया के कई हिस्सों में विग और बाल ट्रांसपोर्ट करते हैं. अभी आंकड़े देना बहुत भारी भोजन हो जाएगा, इसलिए स्टार्टर से शुरू करते हैं. यानी घर से.

बचपन में एक बार मैंने देखा कि मम्मी कंघी करने के बाद झड़े हुए बाल फेंकने के बजाए इकट्ठा करके रख रही हैं. सवाल आया कि ऐसा क्यों कर रही हैं? उन्होंने बताया कि एक औरत कुछ-कुछ महीने में मोहल्ले के चक्कर लगाती है. लोग जो बाल इकट्ठा करके रखते हैं, उन्हें ले जाती है. बदले में कोई बर्तन या कुछ और छोटा-मोटा सामान देती है.

'द हिंदू' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई के कुछ गांवों में ऐसे ही डोर-टु-डोर बाल इकट्ठे करने वाले लोग बालों के वज़न के हिसाब से पैसे देते हैं. एक ग्राम बाल के बदले एक रुपए. जैसे अगर कोई महिला 50 ग्राम बाल देती है, तो उसे 50 रुपए मिलेंगे. ऐसे बालों को नॉन-रेमी हेयर या कॉम्ब वेस्ट कहते हैं. आगे जाकर ये बाल बड़े बिज़नेस का हिस्सा बन जाते हैं.

आप जो बाल सैलून या पार्लर में कटवाते हैं. मंदिरों में आस्था के चलते दान करते हैं. उन्हें भी फेंका नहीं जाता. बाकायदा विग और एक्सटेंशन बनाने (यानी नेचुरल बालों को घना बनाने) वाली कंपनियों को बेचा जाता है.


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हर साल दक्षिण भारत के कई मंदिरों में हजारों लोग अपने बाल दान देते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

ये धंधा है सदियों पुराना...

एग्जेक्टली किस बरस बालों के बिज़नेस की शुरुआत हुई, ये तो साफ-साफ पता नहीं चला. लेकिन 'स्मिथसोनियन मैग्ज़ीन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1840 के आस-पास बालों के व्यापार के बारे में पहली दफा मेंशन किया गया था. फेमस इंग्लिश राइटर थॉमस एडॉल्फस ट्रॉलोप (Thomas adolphus trollope) ने फ्रांस के ब्रिटनी के कंट्री फेयर के बारे में लिखा था,

"मुझे सबसे ज्यादा बालों के डीलर्स ने हैरान किया. उस भीड़ में बालों के तीन-चार खरीदार भी मौजूद थे. वे किसान लड़कियों के बाल खरीदने उस मेले में आए थे. उन्हें अपने बाल बेचने वाली लड़कियों को खोजने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई. हमने देखा कि कई लड़कियों ने अपने मन से अपने बाल कटवा दिए."

फ्रांस के गांवों और कस्बों में बाल बेचने के लिए नीलामी तक होती थी. हार्पर्स बाज़ार ने 1873 में लिखा था,

"बाज़ार के बीच में एक मंच बनाया गया है, जहां बारी-बारी से युवा लड़कियां आती हैं और नीलामी लगाने वाले बोली लगाना शुरू करते हैं. कोई सिल्क के रूमाल ऑफर करता है, कोई सफेद कपड़ा, तो कोई हाई-हील के जूते. वगैरह-वगैरह. आखिर में जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है, बाल उसे मिलते हैं. लड़की कुर्सी पर बैठती है, उसके बाल काट दिए जाते हैं."

यूरोप और अमेरिका के कई हिस्सों में हेयरपीस (विग वगैरह) बनाने के लिए बालों की ज़रूरत बढ़ती जा रही थी. ऐसे में बाल देने वालों और बाल कलेक्टर्स की भी ज़रूरत बढ़ रही थी. स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीडन और रूस की लड़कियां बाल बेचने लगीं. ये भी रिपोर्ट्स हैं कि 19वीं सदी के आखिर तक फ्रांस समेत कुछ जगहों पर हेयर पेडलर्स पहले से ही लड़कियों के बालों को बुक कर लेते थे, उन्हें एडवांस पेमेंट देकर. और तीन से चार साल बाद, जब बाल अच्छे बड़े हो जाते थे, उन्हें काटकर ले जाते थे.


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इंसानों के बालों से विग और एक्सटेंशन बनते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

धीरे-धीरे 'हाई क्लास' की औरतों ने बड़े हैट पहनने शुरू कर दिए. उन्हें सिर पर अच्छे से अटकाने के लिए घने बाल चाहिए होते थे. ऐसे में उन्होंने ओरिजनल बालों के साथ कुछ नकली बाल भी लगाने शुरू किए. अब बालों की डिमांड और बढ़ गई थी. कैथोलिक देश जैसे फ्रांस, स्पेन और इटली के कॉन्वेंट्स इसमें बड़े काम आए. कॉन्वेंट्स में आने वाली नई लड़कियों के बाल रस्म के तौर पर काट दिए जाते और बेच दिए जाते. इन सबके बाद भी बाल के कारोबारियों को कमी महसूस होती रही. फिर जापान की लड़कियों के बाल इम्पोर्ट किए गए, लेकिन इंग्लिश मार्केट में उनकी कोई धाक नहीं जम पाई. उसके बाद यूरोप और अमेरिका के बाल कारोबारी पहुंचे चीन के पास. चीन से आने वाले बालों को खूब पसंद किया गया.

फिर आया पहले विश्व युद्ध (1914-1918) का वक्त. बालों की सप्लाई पर असर हुआ. यूरोप की औरतें अपने बाल सबमरीन की ड्राइव बेल्ट बनाने के लिए देने लगीं. बड़े बालों की दीवानगी का दौर अस्थायी तौर पर ठहर गया. हालांकि वक्त के साथ इंसानों के बालों का बिज़नेस फिर से खड़ा हो गया. एशिया के कई देश बाल के बिज़नेस में जमने लगे. चीन बड़ा एक्सपोर्टर बनकर उभरा.

चीन का बुरा वक्त!

कल्चरल एंथ्रोपॉलजिस्ट प्रोफेसर एम्मा टार्लो, जिन्होंने तीन साल तक एशिया में पनप रहे बालों के बिज़नेस पर रिसर्च की, उन्होंने 'BBC' की एक रिपोर्ट में बताया कि 1960 तक यूरोप और अमेरिका में विग और एक्सटेंशन के काम में चीन का बोलबाला था. लेकिन 1960 दशक के आखिरी बरसों में अमेरिका ने चीन के बालों को 'कम्युनिस्ट हेयर' बताते हुए बैन लगा दिया. टार्लो कहती हैं,

"ये वो वक्त था, जब भारतीय बाल इंडस्ट्री के लिए अहम हो गए."


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बालों को इस तरह से साफ किया जाता है. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

थोड़ा और फोकस इंडिया के बाल बिज़नेस पर

'दी लल्लनटॉप' ने ए.एल किशोर से बात की. ये इंडियन ह्यूमन हेयर प्रोसेसर हैं. चेन्नई में इनकी ह्यूमन हेयर की फैक्ट्री है. उन्होंने बताया कि उनके पिता, दादा, परदादा तक इस बिज़नेस में शामिल थे. शुरुआत परदादा ने की थी. किशोर के मुताबिक,

"आज़ादी से पहले की बात है. मेरे परदादा की कुछ अंग्रेज़ों से अच्छी दोस्ती थी. उनसे कहा गया कि ब्रिटेन के जजों के लिए सफेद विग चाहिए. तब मेरे परदादा ने बालों का बिज़नेस शुरू किया. उन्होंने मंदिरों में दान दिए गए बाल लिए. उन्हें साफ किया और उससे जजों के लिए सफेद विग बनाए. इसके बाद से ही मेरा परिवार इस बिज़नेस में है."

कैसे काम करता है बालों का बिज़नेस?
बेसिकली तीन तरीकों से बाल कारोबारियों तक पहुंचते हैं. डोर-टु-डोर कलेक्टर, सैलून और मंदिरों से. केएस गुप्ता, 'श्रीनिवास हेयर इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड' के मालिक हैं. इनकी कंपनी डोर-टु-डोर कलेक्टर्स से मिलने वाले बालों पर काम करती है. गुप्ता इन बालों को गोली कहते हैं, क्योंकि गुच्छे में लिपटे हुए मिलते हैं. 'दी लल्लनटॉप' को उन्होंने बताया,

"जो लोग घर-घर जाकर बाल इकट्ठे करते हैं, वो कुछ कलेक्टर्स के अंडर काम करते हैं. ये कलेक्टर उनसे बाल लेकर हमें बेचते हैं. हम चार हज़ार रुपए प्रति किलो (4000/Kg) के हिसाब से खरीदते हैं. फिर इन गोलियों को हमारे कर्मचारी सुलझाते हैं. खराब बाल अलग करते हैं. ठीक-ठाक बालों को लंबाई के हिसाब से इकट्ठे करते हैं. उनका सुलझा हुआ गुच्छा बनाते हैं. उसे धोते हैं. सुखाते हैं. फिर सुलझाते हैं. छंटाई करते हैं. बंडल बनाकर एक्सपोर्ट करते हैं. चीन, मलेशिया, थाईलैंड, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, बर्मा में इन्हें हम ट्रांसपोर्ट करते हैं. बालों की लंबाई के हिसाब से रेट मिलते हैं. वैसे मोटा-मोटी 6-7 हज़ार रुपए प्रति किलो के हिसाब से एक्सपोर्ट करते हैं. उन देशों में इनसे कस्टमाइज़ विग बनाए जाते हैं."


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बाल धोकर सुखाने के बाद उसमें से लीक वगैरह भी हटाई जाती है. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

केएस गुप्ता ने बताया कि दक्षिण भारत के कई मंदिरों में जो बाल दान दिए जाते हैं, उन्हें बेचने के लिए मंदिर की एक टीम नीलामी करती है. तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर की अगर बात करें, तो वहां दो-तीन महीनों में इकट्ठे हुए बालों को लंबाई के हिसाब से अलग किया जाता है. कई तरह की वैरायटी तय करके ऑनलाइन नीलामी होती है. तिरुमला तिरुपति देवास्थानम बोर्ड रोजाना करीब 500 किलो बाल इकट्ठा कर लेता है. ई-ऑक्शन से इन बालों को करीब 25,000 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है. 2015-16 में इन बालों को बेचकर ही टीटीडी ने 200 करोड़ रुपए इकट्ठे किए थे. कंपनियां इन बालों को खरीदकर साफ करके, धोकर, सुखाकर, सुलझाकर बंडल बनाती हैं. फिर दुगुनी कीमत पर इन्हें बेचा जाता है. एक्सपोर्ट किया जाता है.

केएस गुप्ता ने ये भी बताया कि मार्केट में सिंथेटिक बालों के आने से कुछ बरसों के लिए असल बालों के बिज़नेस पर फर्क पड़ा था, लेकिन अब इस बिज़नेस ने फिर से स्पीड पकड़ ली है.

दो तरह के बालों की बड़ी डिमांड है-

1. रेमी हेयर- ऐसे बालों का गुच्छा समान लम्बाई का होता है. सारे बाल एक ही दिशा में बढे़ होते हैं. इनसे बनने वाली विग सबसे महंगी और अच्छी क्वॉलिटी की होती है. इससे बनी विग एक साल से ज्यादा समय तक चल सकती है.

2. वर्जिन हेयर- ये बाल सबसे अच्छी क्वॉलिटी के माने जाते हैं. इन पर किसी भी तरह के केमिकल का उपयोग नही हुआ होता है इसलिए इनकी चमक बरकरार रहती है. इन्हें बिना किसी केमिकल प्रोसेस के सीधे ही बेच दिया जाता है.

अब थोड़ी गणित वाली बात हो जाए

असल दिखने वाले विग और एक्सटेंशन्स की मांग दिन-ब-दिन बढ़ने की वजह से ही विश्व में इंसानी बालों की सप्लाई 40% तक बढ़ गई है. इंसानी बालों के कारोबार में इस तेज बढ़ोतरी का सीधा श्रेय जाता है फैशन इंडस्ट्री और हाई क्लास सोसायटी यानी अमीर लोगों को. उनके बीच विग और हेयर एक्सटेंशन खासे पॉपुलर हैं.

सेलिब्रिटीज अपनी हेयर स्टाइल के साथ काफी एक्सपेरिमेंट्स करते रहते हैं. इन्हीं के नक़्शे कदम पर अमीर लोगों का फैशन सेंस भी चल पड़ा है. - पूरी दुनिया में इंसानी बालों का कुल कारोबार 22,500 करोड़ रुपयों का है. - हेयर प्रोडक्ट्स की नामी कंपनी Nielsen की रिपोर्ट के मुताबिक, ये कारोबार हर साल लगभग 10 फीसद की दर से बढ़ रहा है. आंकड़े बताते हैं, 2023 तक ये कारोबार 75,000 करोड़ का हो जाएगा. - 2018 में अकेले भारत ने 250 करोड़ रुपयों का बालों का कारोबार किया. ये दुनिया के कुल एक्सपोर्ट का लगभग आधा है. - डेनियल वर्कमैन की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ऐसा है इंटरनेशनल मार्केट-

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2014 से लेकर अब तक इस कारोबार में लगभग 40 फीसद इज़ाफा हुआ है. स्टैटिस्टा एस्टिमेट्स के मुताबिक, दुनियाभर में बालों की मार्केट वैल्यू कुछ ऐसी रहेगी-
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छोटे और रफ़ बालों का इस्तेमाल सॉफ्ट टॉय, गद्दे, कपड़े, खाद और दवा वगैरह बनाने में किया जाता है. सबसे ज्यादा बाल खरीदने वाले देशों में चीन का नाम सबसे ऊपर है. यहां विग और एक्सटेंशन बनाने के सबसे ज्यादा कारखाने हैं. चीन के बाद अमेरिका, अफ्रीका और यूरोप के देशों का नाम इंसानी बाल खरीदने वाले देशों की लिस्ट में आता है.

यानी आप जिन बालों को ऐसे ही फेंक देते हैं, सैलून में कटवाकर छोड़ आते हैं, दान दे देते हैं, उनसे बनने वाले विग लाखों रुपयों में बिकते हैं. और गज़ब बात तो ये है कि विग पहनने वाले को भी ये नहीं पता होता कि किस देश की महिला के बालों से बना है.



वीडियो देखें: सेहत: सारी कोशिशों के बाद भी बाल झड़ना बंद नहीं हो रहा, तो ये उपाय करिए