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अब सरकार के इन नियमों के हिसाब से टायर बनेंगे, वरना गाड़ी नहीं चलेगी!

सरकार ने टायरों के डिजाइन और क्वालिटी को लेकर नए नियम जारी कर दिए हैं.

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इन नियमों से बनेंगे टायर वरना कंपनी की गाड़ी नहीं चलेगी (प्रतीकात्मक फोटो आज तक)

आपने गाड़ियों के टायर के ऐड देखे होंगे. तेज रफ़्तार गाड़ी ऐन वक़्त पर रोक ली जाती है, बड़ा हादसा टल जाता है. इसका क्रेडिट ड्राइवर की चपलता को भी दिया जाना चाहिए. लेकिन इन विज्ञापनों में बताया जाता है कि गाड़ी के टायर बढ़िया थे. टायर की गुणवत्ता की जरूरत से सरकार भी इत्तेफ़ाक रखती है. इसीलिए सरकार ने टायरों के डिजाइन और क्वालिटी को लेकर नए नियम जारी कर दिए हैं. क्या नियम हैं, कब से लागू हो रहे हैं, ये जान लीजिए.

सरकार के नोटिफिकेशन में क्या है?

सड़क सुरक्षा को लेकर सजगता के कुछ नियम भी बनते हैं. सरकार ने बीते दिनों कारों में एयरबैग मैंडेटरी कर दिए. फिर इनकी संख्या बढ़ाकर 6 कर दी गई. और बीते करीब एक साल से जारी कवायद के बाद बीते मंगलवार, 28 जून को सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट में 10वें संशोधन की अधिसूचना जारी कर दी. इसके मुताबिक़ देश में 1 अक्टूबर, 2022 से नए नियमों के हिसाब से बनाए गए टायर ही मिलेंगे. माने डिज़ाइन नया होने वाला है. और अगले साल 1 अप्रैल, 2023 से गाड़ियों में लगाए जाने वाले टायर भी नए डिज़ाइन के होना अनिवार्य होगा.

टायर बनाने के मापदंड क्या हैं?

टायरों के लिए मोटा-माटी 3 कैटेगरी हैं- C1, C2 और C3. पैसेंजर कार के टायर की कैटेगरी C1 कही जाती है. इसी तरह C2 माने छोटे कमर्शियल व्हीकल और C3 यानी हैवी कमर्शियल व्हीकल के टायर की कैटेगरी. अब से इन सभी कैटेगरी के टायर्स पर ऑटोमोटिव इंडियन स्टैंडर्ड (AIS) के दूसरे स्टेज के कुछ नियम और पैरामीटर्स अनिवार्य रूप से लागू होंगे. इन पैरामीटर्स में ख़ास हैं- रोलिंग रेजिस्टेंस, वेट ग्रिप और रोलिंग साउंड एमिशन्स.

आप में से जो लोग फिजिक्स (भौतिकी) के विद्यार्थी रहे हैं वो इन शब्दों के मायने आसानी से निकाल सकते हैं. रोलिंग रेजिस्टेंस को ऐसे समझिए कि जब कोई भी बॉडी सर्फेस पर ट्रैवेल करती है तो उस पर पीछे की दिशा में एक बल लगता है. जिसे फ्रिक्शन यानी घर्षण बल कहते हैं. चूंकि आपकी गाड़ी का पहिया घूमता है तो इस पर गाड़ी चलने की विपरीत दिशा में सामान्य फ्रिक्शन के बजाय रोलिंग फ्रिक्शन लगता है. ये फ्रिक्शन फ़ोर्स कितना है. ये टायर के शेप, साइज़ और उसके मटेरियल पर भी निर्भर करता है. 

यानी अब टायर बनाने वाली कंपनियों को इन चीजों का ध्यान रखना होगा. इसी तरह ‘वेट ग्रिप’ यानी गीली सड़क पर पहिए की पकड़ के लिए भी कुछ मानक तय किए गए हैं, ताकि गीली सड़क पर पहिए की फिसलन का खतरा न हो. जबकि रोलिंग साउंड एमिशन्स के मायने उस आवाज से हैं जो पहिए के घूमने पर आती है. सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि AIS-142:2019 के स्टेज 2 के मुताबिक़ इन सभी पैरामीटर्स को ध्यान में रखते हुए ही नए टायर बनाए जाएंगे.

स्टार रेटिंग सिस्टम लाया जाएगा

इसके अलावा सरकार ने फ्यूल एफिशिएंसी के हिसाब से टायरों की स्टार रेटिंग का भी एक सिस्टम बनाया है. मौजूदा वक़्त में, भारत में बेचे जाने वाले टायरों की क्वालिटी के लिए BIS नियम है. लेकिन इन नियमों से ग्राहकों को वो जानकारी नहीं मिलती जो उनके लिए टायर खरीदने में मददगार हो. इसीलिए सरकार रेटिंग सिस्टम लाने की तैयारी कर रही है.

आपका क्या फायदा है?

फिलहाल हमारे यहां चीन जैसे देशों से बड़े पैमाने पर टायर आते हैं. इन नए मानकों के प्रभावी होने से विदेशों से घटिया क्वालिटी के टायर इंपोर्ट पर रोक लगेगी. दूसरा फायदा ये है कि टायर की रेटिंग के आधार पर उसकी क्वालिटी पहचानना आसान होगा. भारत में ऑटोमोबाइल बाजार बढ़ रहा है. ऑटो इंडस्ट्री के एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि नए नियम आने से विदेशी कंपनियों से चल रहा कॉम्पिटीशन भी कम होगा.