दुनिया की हर सेना अपने सैनिकों को 'जी जनाब' कहने के लिए तैयार करती है. हम एहसानमंद हैं कि एक रूसी सैनिक ने ये 'जी जनाब' कहने से इनकार कर दिया था.सिपाही! जी जनाब! आगे बढ़ो! जी जनाब! मार दो! जी जनाब! मर जाओ! जी जनाब!
आपने भी पढ़े होंगे नायकों के किस्से. किसी ने ये किया. किसी ने वो कर दिखाया. ऐसी कहानियां जिन्हें सुनकर जिस्म में अड्रेनलिन की बाढ़ आ जाती होगी. रोमांच और आवेश की हालत में यही हार्मोन निकलता है. आपने कई ऐसे किस्से सुने होंगे. बस ये वाला नहीं सुना होगा शायद. स्तेनिस्लाव पैत्रोव. आज की हमारी इस कहानी का हीरो. जिसने दुनिया को बर्बाद होने से बचाया. बस एक कदम का फासला था. उसके पार तबाही थी. परमाणु युद्ध. उस घड़ी में स्तेनिस्लाव पैत्रोव ने जो किया, वो अद्भुत था. ये कहानी सुनाते हुए हमें बड़ा गर्व हो रहा है. तकलीफ बस इतनी है कि उस शख्स की मौत के बाद ये कहानी आप तक पहुंच रही है.

स्तेनिस्लाव पैत्रोव 19 मई को ही गुजर गए, लेकिन दुनिया को अब उनकी मौत का पता चला है...
रेडार स्क्रीन पर चेतावनी चमकी- अमेरिका ने मिसाइल दाग दिया है 26 सितंबर, 1983. शीत युद्ध अपने चरम पर था. मॉस्को के पास का एक सीक्रेट कमांड सेंटर. रूसी सेना का. सामने अर्ली वॉर्निंग रेडार सिस्टम की एक बड़ी सी स्क्रीन थी. रूस पर मिसाइल हमला होने पर ये ही स्क्रीन सबसे पहले सावधान करती. एकाएक उस पर कुछ अक्षर उभरे. 44 साल के लेफ्टिनेंट कर्नल स्तेनिस्लाव पैत्रोव इन-चार्ज थे. ओवरनाइट शिफ्ट कर रहे थे. स्क्रीन पर जो लिखा था, उसे पढ़कर पैत्रोव के हाथ-पैर फूल गए. लगा, शरीर का खून जम गया है. स्क्रीन दिखा रही थी. अमेरिका ने रूस पर एक मिनटमैन मिसाइल छोड़ दिया है. अंतर्महाद्वीपीय बलिस्टिक मिसाइल (ICBM). फिर दूसरे मिसाइल की वॉर्निंग आई. फिर तीसरी, चौथी और पांचवीं वॉर्निंग. पांच मिसाइल दागने की वॉर्निंग थी.

कोल्ड वॉर के वक्त माल्टा में बने एक अंडरग्राउंड NATO हेडक्वॉर्टर के अंदर पड़ा एक टेलिफोन सेट और घड़ी...
कितना अच्छा हुआ कि उस दिन एक सैनिक ने ड्यूटी नहीं निभाई एक सैनिक को ऐसी स्थितियों के लिए तपाया जाता है. उठ तो उठ, बैठ तो बैठ. पैत्रोव की ड्यूटी तय थी. अब क्या करना था, ये भी तय था. रिसीवर उठाकर एक नंबर घुमाना था. सीनियर्स को बताना था और फिर क्रेमलिन को फैसला लेना था. म्यूचुअली अश्योर्ड डिस्ट्रक्शन. यानी जब कोई देश परमाणु हमला करे, तो जवाबी न्यूक्लियर अटैक करो. ताकि हम तो खत्म हों ही, हमलावर भी न बचे. दोनों देश पूरी तरह से तबाह हो जाएं. लेकिन पैत्रोव ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई. कुछ था उनके अंदर जो रोक रहा था. कह रहा था, ये नहीं हो सकता. उन्हें लगा, कुछ तो गड़बड़ है. कोई चूक हुई है. अमेरिका यूं रूस पर हमला करने की भूल नहीं करेगा.

लातिविया स्थित सोवियत संघ के एक सीक्रेट अंडरग्राउंड ठिकाने के अंदर रूसी भाषा में लिखे गए कुछ संकेत...
पैत्रोव के सामने दो ही रास्ते थे सैनिकों को इसी 'जी जनाब' के लिए तैयार किया जाता है. अनुशासन. समर्पण. इन सबका सार है, निर्देशों पर हर हाल में अमल हो. अनसुनी क्या, सवाल की भी जगह नहीं. पैत्रोव के पास सोचने का समय नहीं था. रूस के पास जवाबी हमले के लिए बस 30 मिनट थे. एक-एक सेकेंड कीमती था. दो रास्ते थे.
पहला हैलो, क्रेमलिन. अमेरिका ने तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी है. 5 मिसाइल रूस की ओर चले आ रहे हैं.
दूसरा कमांडर, सोवियत रूस के अर्ली वॉर्निंग सिस्टम में खामी है. ये गलत जानकारी दे रहा है.

जंगल में छुपे एक सोवियत न्यूक्लियर बेस का एंट्री-गेट...
अलग थी पैत्रोव की परवरिश, तब ही ऐसा फैसला ले पाए! स्तेनिस्लाव पैत्रोव की परवरिश थोड़ी अलग थी. सख्त आर्मी ट्रेनिंग से पहले सिविलियन जिंदगी जी थी. अपनी टीम के इकलौते ऑफिसर जिसने आम स्कूलों-कॉलेजों से पढ़ाई की. ये ही काम आया शायद. बस ऑर्डर फॉलो नहीं किया, दिमाग भी लगाया. पैत्रोव ने संभावनाओं को खंगाला. सोचा, अगर अमेरिका हमला करता, तो बस 5 मिसाइल नहीं दागता. सैकड़ों मिसाइलें छोड़ता.

जर्मनी में मीडिया पुरस्कार लेते हुए स्तेनिस्लाव पैत्रोव...
पैत्रोव जैसे IT विशेषज्ञों के अलावा और भी विभाग थे अमेरिका की हरकतों पर नजर रखने के लिए. पैत्रोव ने आनन-फानन में सैटेलाइट रेडार ऑपरेटर्स के एक ग्रुप को फोन मिलाया. उनके पास मिसाइल हमले की कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन उनकी बातों का क्या? प्रोटोकॉल तो तय था. फैसला तो कंप्यूटर की वॉर्निंग पर ही होना था. पैत्रोव जुआ खेल रहे थे. 50-50 की स्थिति थी. लेकिन फिर पैत्रोव ने मन पक्का किया. सोवियत सेना के मुख्यालय में फोन घुमा दिया और कहा:
हैलो, अर्ली वॉर्निंग रेडार सिस्टम में खामी आ गई है. सिस्टम में गड़बड़ी है.

ये शीत युद्ध के समय की एक सुरंग है, जिसका इस्तेमाल NATO किया करता था. ये NATO का युद्ध मुख्यालय था...
34 साल पहले बीबीसी रशियन सर्विस को दिए गए एक इंटरव्यू में पैत्रोव ने कहा था:
जब मैंने पहली बार अलर्ट को देखा, तो अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ. सिस्टम दिखा रहा था कि अमेरिका ने रूस पर मिसाइल छोड़ा है. अब मेरे सामने दो सवाल थे- जो दिख रहा है, क्या वो सही है? या फिर ये कंप्यूटर की गलती से हुआ है? फिर एक बार जोर से सायरन बजा. मेरी आरामकुर्सी मानो गर्म फ्राइंग पैन में तब्दील हो गई थी. मैं इतना नर्वस था कि लगा अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकूंगा.

शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी जर्मनी के सेंट्रल बैंक ने इमर्जेंसी की स्थिति के लिए खूब बड़ी धनराशि अंडरग्राउंड बंकर्स में जमा की हुई थी. ये सीढ़ियां इमर्जेंसी में लोगों को बाहर निकालने के लिए बनाई गई थीं...
पैत्रोव ने क्या खूब जुआ खेला जुआ खराब लत है. लेकिन पैत्रोव ने उस दिन क्या खूब जुआ खेला. 23 मिनट बाद पैत्रोव को महसूस हुआ. हमला नहीं हुआ है. उस घड़ी उस शख्स ने क्या महसूस किया होगा? चूंकि हम कभी उनकी जगह नहीं हो सकते, तो शायद हम ठीक-ठीक कल्पना न कर सकें. लेकिन उस फैसले के असर को महसूस करना आसान है. ऐसा न हुआ होता, तो? पैत्रोव ने फोन कर दिया होता, तो? बाद में इस मामले की जांच हुई. सोवियत उपग्रहों ने गलती की थी. सूरज की जो किरणें बादलों पर चमक रही थीं, उन्हें रॉकेट इंजन समझ लिया था.

सोवियत सेना के पूर्व अधिकारी व्लादीमिर प्रोसेनको सोवियत R12 न्यूक्लियर मिसाइल की एक तस्वीर दिखाते हुए...
अमेरिका और सोवियत के बीच पहले ही बहुत टेंशन पसरा पड़ा था वो वक्त विस्फोटक था. इस तारीख से तीन हफ्ते पहले सोवियत ने कोरिया के एक यात्री विमान को निशाना बनाया था. विमान में बैठे सभी 269 लोग मारे गए थे. रोनाल्ड रीगन ने सोवियत को 'बुराई का साम्राज्य' कहा था. यूरी ऐंद्रोपोव सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रटरी थे. उनको पूरा यकीन था कि अमेरिका सोवियत पर न्यूक्लियर हमला करेगा.

जेलटिनी में ये खाली पड़ी जगह कभी सोवियत R12 मिसाइल का मुख्यालय थी. इस बेस पर जो न्यूक्लियर रॉकेट थे, वे उसी मॉडल के थे, जिन्हें सोवियत ने क्यूबा में तैनात किया था...
फोन नहीं करके पैत्रोव ने तीसरा विश्व युद्ध शुरू होने से रोक लिया रेडार सिस्टम की चेतावनी पर सोवियत सरकार क्या फैसला लेती, ये लगभग पक्का था. ऐसा होता, तो विश्व युद्ध छिड़ता. सामान्य नहीं, परमाणु युद्ध. विश्व की दो सबसे बड़ी महाशक्तियां एक-दूसरे को मिटाने में लग जातीं. ऐसा होता, तो बाकी देशों को भी खेमा चुनना होता. ऐसा नहीं हुआ, तो बस पैत्रोव के कारण.
हम कभी परमाणु युद्ध की संभावना तक नहीं पहुंचे थे. न तो इस घड़ी के पहले और न इसके बाद. मैं कोई हीरो नहीं हूं. मैंने कोई अद्भुत काम नहीं किया. मैं बस अपना फर्ज पूरा कर रहा था. यही मेरी ड्यूटी थी.
- स्तेनिस्लाव पैत्रोव, 2014 की शॉर्ट फिल्म 'द मैन हू सेव्ड द वर्ल्ड' में

शीत युद्ध के दौर की एक सुरंग में पड़ी हुई NATO की कुछ रील्स...
...तो उसी दिन शुरू हो गया होता परमाणु युद्ध पैत्रोव के पास मिसाइल अटैक का स्विच दबाने का अधिकार नहीं था. लेकिन अगर वो अपने सीनियर्स को अलर्ट की जानकारी देते, तो कुछ भी हो सकता था. उस समय के हालात ही कुछ ऐसे थे. रूस को लगता था कि किसी भी पल अमेरिका उस पर हमला कर सकता है. ऐसे में पैत्रोव के सीनियर अधिकारी भी उनकी ही तरह संयम दिखाते, इस बात की संभावना बहुत कम है. पैत्रोव ने सेना के नियम जरूर तोड़े, लेकिन दुनिया को परमाणु युद्ध से बचा लिया. रूस को भी बचा लिया. अमेरिका को भी बचा लिया. यहां रहने वाली करोड़ों की आबादी को बचा लिया. पैत्रोव की जितनी तारीफ की जाए, कम है. लेकिन रूस ने उन्हें कभी वो क्रेडिट नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. पैत्रोव को परेशान किया गया. लॉगबुक में एक एंट्री न करने के लिए सुनाया गया.

अप्रैल 1961 की इस तस्वीर में क्यूबा का एक जवान अमेरिका में बने हथियारों की एक जब्त हुई खेप के पास ड्यूटी पर तैनात है. क्यूबा ने CIA द्वारा प्लान किए गए एक हमले को नाकाम किया था...
बहुत सालों तक छुपी रही कहानी स्तेनिस्लाव पैत्रोव की सोवियत के टॉप आर्मी अफसरों को शर्मिंदा होना पड़ा था. जाहिर है. उनके रेडार सिस्टम ने इतनी बड़ी चूक की थी. इतिहास बदलने वाली चूक. ये बहुत महंगी पड़ सकती थी. परमाणु बम का असर बॉर्डर देखकर तबाही नहीं मचाता. सोवियत सिस्टम के फेल होने की शर्मिंदगी बहुत बड़ी थी. इसका बोझ पैत्रोव के कंधों पर लादने की कोशिश हुई.

सोवियत के R12 न्यूक्लियर मिसाइल बेस के अंदर जंग खा रहे स्विच बोर्ड की तस्वीर. ये सीक्रेट अंडरग्राउंड सुरंग घने जंगलों के अंदर थी...
1984 में पैत्रोव को रिटायरमेंट लेना पड़ा. समय से काफी पहले. इसकी जानकारी पब्लिक नहीं हुई. सोवियत के विघटन के काफी बाद 1998 में पैत्रोव और 26 सितंबर का वो मामला दुनिया के सामने आया. उस समय पैत्रोव के सीनियर रहे जनरल यूरी वोंतिस्तेव ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया. 2014 में पैत्रोव पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी. द मैन हू सेव्ड द वर्ल्ड. उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले. संयुक्त राष्ट्र ने भी उन्हें शांति पुरस्कार से नवाजा.

उत्तरी आयरलैंड में बने ब्रिटेन के इस न्यूक्लियर बंकर को 2016 में बिक्री के लिए पेश किया गया. परमाणु हमले की स्थिति में यहां 236 लोग रह सकते थे...
मर चुके हैं पैत्रोव, लेकिन हम हमेशा उनके एहसानमंद रहेंगे स्तेनिस्लाव पैत्रोव गुजर चुके हैं. उन्होंने कहा था,
मेरे सभी सहकर्मी प्रोफेशनल सैनिक थे. उन्हें आदेश देना और हर कीमत पर आदेश मानना सिखाया गया था. अगर मेरी जगह कोई और उस दिन शिफ्ट में होता, तो उसने यकीनन क्रेमलिन को फोन मिला दिया होता. मैं हीरो नहीं हूं. मैंने जो किया, वही मेरी ड्यूटी थी. ये किस्मत थी कि उस रात मैं शिफ्ट कर रहा था.18 सितंबर, 2017 को दुनिया ने जाना कि उनकी मौत हो गई है. अभी नहीं. मई में. 19 मई, 2017 को मौत हुई. 7 सितंबर को पैत्रोव का जन्मदिन होता है. कार्ल शूमाकर एक जर्मन फिल्म मेकर हैं. सबसे पहले उन्होंने ही पैत्रोव की कहानी से दुनिया को रूबरू कराया था. उन्होंने पैत्रोव को 'हैपी बर्थडे' कहने के लिए फोन किया. पैत्रोव के बेटे दिमित्री ने अपने पिता की मौत के बारे में बताया. कार्ल के रास्ते ये खबर दुनिया के पास पहुंची. बहुत देर से पहुंची.

स्तेनिस्लाव पैत्रोव ने सोवियत के इस झंडे को जंग से बचाने के लिए जो जोखिम उठाया, उसके एवज में उन्हें उनके देश के अंदर जो सम्मान मिलना चाहिए था वो कभी नहीं मिला...
कायदे से तो रूस को सबसे ज्यादा शोक मनाना चाहिए. रूस के हर एक शख्स को पैत्रोव का शुक्रगुजार होना चाहिए. अमेरिका को भी. पैत्रोव की कहानी दुनिया की हर सेना, हर सैनिक के पास पहुंचनी चाहिए. ताकि वो जानें कि मशीन की तरह हर आदेश मानना ही देशभक्ति नहीं. दिमाग का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा जरूरी है. युद्ध में लड़ना ही बहादुरी नहीं. युद्ध को टालना सबसे बड़ी बहादुरी है. पैत्रोव ने जो किया, वो सबके बस की बात नहीं. हम उनके एहसानमंद रहेंगे.
इंसान कंप्यूटर से ज्यादा समझदार होता है. हमारा दिमाग किसी भी मशीन के मुकाबले ज्यादा तेज है. आखिरकार, हम इंसानों ने ही तो मशीनों को बनाया है. - स्तेनिस्लाव पैत्रोव
वो राष्ट्रपति जो दो प्रधानमंत्रियों की मौत और दो युद्ध का गवाह रहा
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