The Lallantop

समुद्र में 36 हजार फीट की गहराई, घुप अंधेरा और छोटी सी पनडुब्बी... दो लोगों को जो दिखा देखते रह गए!

समंदर कितना गहरा है? वैज्ञानिकों की मानें तो चैलेंजर डीप के बारे में हमारे पास जितनी जानकारी है, उससे ज्यादा बातें तो हमें मार्स के बारे में पता है. समुद्र में पाए जाने वाले अजीबोगरीब एलियन जैसे जीवों जी तस्वीरें इंटरनेट पर खूब घूमती हैं. लेकिन ये जीव मैरियाना ट्रेंच के बाकी हिस्सों में पाए जाते हैं.

post-main-image
समंदर की खाई चैलेंजर डीप की अनसुलझी बातें.

एक छोटे से विमान में बैठे दो लोग एक ऐसी यात्रा पर निकले हुए थे, जो इससे पहले किसी मनुष्य ने नहीं की थी. उस गोलाकार विमान में बैठे उन दोनों में से एक वैज्ञानिक और एक मिलिट्री अफसर था. विमान में सिर्फ सांस लेने बराबर जगह थी. एक खिड़की थी, जिससे वे लोग बाहर झांकने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन बाहर घुप्प अंधेरा था. कुछ दूर जाने के बाद उन्होंने धरती की सतह पर मौजूद अपनी टीम से संपर्क करने की कोशिश की. दूसरी तरफ से आवाज आई. “आपकी आवाज हल्की है, लेकिन मैं सुन सकता हूं”. इसके बाद पूछा गया वो सवाल, जिसके जवाब ने इंसानी इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी. टीम ने यान में मौजूद वैज्ञानिक से पूछा, “प्लीज़ बताएं आप कितनी गहराई पर हैं? यहां बात समंदर कीे गहराई में मौजूद सबसे गहरे बिंदु की हो रही थी. 

भारत के दक्षिण पश्चिम में फिलीपींस से आगे जाएंगे तो प्रशांत महासागर की शुरुआत हो जाती है. इस हिस्से में गुआम नाम का द्वीप है. गुआम अमेरिका के कंट्रोल में है. गुआम से करीबन साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर पड़ता है मरियाना ट्रेंच. ये समंदर के अंदर बनी एक तरह की खाई है. और इसे जाना जाता है, चैलेंजर डीप के लिए. चैलेंजर डीप यानी समंदर का सबसे गहरा हिस्सा. कम से कम जितना हम इंसानों को अब तक पता चल पाया है, उसके हिसाब से. 

समंदर की गहराई के कितने हिस्से?

समंदर की गहराई को वैज्ञानिकों ने 6 हिस्सों में बांटा है. सतह से लगभग 650 फ़ीट तक के हिस्से को एपिपेलेजिक जोन या सनलाइट जोन कहते हैं. नाम से आप समझा जा सकता है कि ये समंदर का वो हिस्सा है, जहां तक सूर्य का प्रकाश जाता है. इससे नीचे बस अंधेरा है, जो नीचे जाते हुए बढ़ता जाता है. इससे नीचे जाते हुए, अंत में हम पहुंचते हैं, हैडोपेलेजिक जोन तक. इस हिस्से का नाम ग्रीक देवता हेडीज के नाम पर रखा गया है. जो मिथकों के अनुसार पाताल का देवता है. हेडीज़ के इलाके में ही पड़ता है चैलेंजर डीप. जिसकी गहराई है लगभग 36 हजार फ़ीट. इसे ऐसे समझ सकते है कि टाइटैनिक जहां डूबा, ये पॉइंट उससे भी गहरा है. धरती के ऊपर मौजूद चीजों से तुलना करें माउंट एवेरेस्ट की ऊंचाई से ज्यादा गहरा है चैलेंजर डीप. 

चैलेंजर डीप की खोज 

ज्ञानियों ने कहा है, 'जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ’. गहराई में जाना ज्यादा मुश्किल है. इसलिए सैटेलाइट इंसान ने पहले लॉन्च की. और चैलेंजर डीप की खोज बाद में हुई. चैलेंजर डीप का नाम पड़ा है, दो समुद्र अभियानों के नाम पर. इसकी खोज की कहानी शुरू होती है साल 1872 से. HMS चैलेंजर नाम का एक जहाज, जो बैटलशिप हुआ करता था, उसे एक साइंटिफिक वेसल में तब्दील कर मैरियाना ट्रेंच की तरफ भेजा गया. शोध करने के लिए. 

HMS चैलेंजर
मैरियाना ट्रेंच की तरफ जाने वाला बैटलशिप HMS चैलेंजर जहाज

चैलेंजर डीप मैरियाना ट्रेंच का ही एक हिस्सा है. और इस इलाके को तब भी समंदर के सबसे गहरे हिस्से के तौर पर जाना जाता था. चैलेंजर अभियान के तहत वैज्ञानिकों ने कुछ पौधों और समुद्री जानवरों की लगभग 4000 नई प्रजातियों की खोजीं. वैज्ञानिकों को तब लग रहा था कि वे समंदर के अंदर सबसे गहरे हिस्से तक पहुंच चुके हैं. लेकिन साल 1875 में ये धारणा टूट गई.

दरअसल, अपने अभियान के दौरान चैलेंजर जहाज एक तूफ़ान में भटक गया. रास्ता तय करने के लिए जहाज के कप्तान ने एक तरकीब निकाली. उन्होंने समंदर के अंदर एक लैंडिंग उपकरण डाला ताकि गहराई माप सकें. इस तरह वे पता कर सकते थे कि वे ठीक ठीक कहां है. उपकरण जब डाला गया, तो पता चला कि वहां समंदर की गहराई लगभग 27 हजार फ़ीट है. ये तब दुनिया में मनुष्य द्वारा नापी गई सबसे अधिक गहराई थी. 

ये भी पढ़ें - तारीख: हैदराबाद का सेक्स स्कैंडल जिसने देश हिला दिया था

इस घटना के 75 साल बाद चैलेंजर अभियान एक और बार चलाया गया. वैज्ञानिक ये पुष्टि करना चाहते थे कि 1875 में जो रीडिंग ली गई, वो सटीक थी. इस अभियान के मुख्य वैज्ञानिक थे - थॉमस गॉस्केल. अपनी किताब "अंडर द डीप ओशन: ट्वेंटीथ सेंचुरी वॉयेजेज ऑफ डिस्कवरी" में गास्केल बताते हैं, “चैलेंजर टू अभियान में वैज्ञानिकों के पिछली बार की ही तरह लैंडिंग उपकरण इस्तेमाल करने की कोशिश की. लेकिन वो बीच में ही टूट गया. वैज्ञानिकों ने तब एक जुगाड़ निकाला. एक भारी पत्थर को एक तार से बांधकर समंदर में डाल दिया गया.”

ये सब हुआ था शाम के 5 बजे. वैज्ञानिक इंतज़ार में थे कि पत्थर कहीं जाकर रुकेगा. पत्थर जब रुका, तब तक पौने सात बज चुके थे. और तार की रीडिंग बता रही थी कि वे 35,394 फ़ीट की गहराई नाप चुके हैं. ये एक रिकॉर्ड था. समंदर के अंदर इतनी गहराई किसी ने नहीं नापी थी.जैसे ही ये खोज हुई, वैज्ञानिक उत्साह से भर गए. कौतुहल होना स्वाभाविक था. इतनी गहराई पर कौन से जानवर होंगे, कौन से पौधे होंगे, क्या इतनी गहराई पर जीवन संभव भी है? इन सवालों के जवाब हर कोई जानना चाहता था. लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि वहां जाएगा कौन? 

चैलेंजर डीप
समंदर के अंदर स्थित खाई

समंदर के अंदर इतनी गहराई में तापमान लगभग शून्य डिग्री सेल्सियस होता है. उससे भी बड़ी दिक्कत पानी के अंदर हर फ़ीट के साथ प्रेशर बढ़ता जाता है. और 36 हजार फ़ीट की बात करें तो वहां प्रेशर नार्मल एटमोस्फेरिक प्रेशर से हजार गुना ज्यादा पहुंच जाता है. ऐसे समझिए कि इंसान अगर इतनी गहराई में जाए तो उसका पूरा शरीर पिचक जाएगा. हड्डियों तक का कचूमर बन जाएगा. 

जून 2023 में एक घटना हुई थी. टाईटैनिक का मलबा देखने के लिए कुछ लोग एक पनडुब्बी लेकर गए थे. लेकिन पनडुब्बी से संपर्क बीच में ही टूट गया. बाद में पता चला कि प्रेशर के चलते पनडुब्बी का हल पिचक गया था. और उसमें बैठे पांच लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई थी. ये सब टाइटैनिक की गहराई पर हुआ था. जबकि चैलेंजर डीप तो इससे कहीं गहरा है. इसलिए वहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल है. कोई शिप या पनडुब्बी लेकर जाएं तब भी बहुत खतरा है. खतरे हालांकि इंसान को कब ही रोक पाते हैं. 1960 के दशक में जब कुछ लोग चांद तक यात्रा की प्लानिंग कर रहे थे. दो लोगों ने तय किया कि वो ऊपर जाने की बजाय नीचे जाएंगे.

पाताल तक का सफर 

23 जनवरी, 1960 की तारीख. स्विस वैज्ञानिक जैक्स पिकार्ड और अमेरिकी नौसेना लेफ्टिनेंट डॉन वॉल्श एक छोटे से यान में बैठे और मैरियाना ट्रेंच में उतर गए. इस यान का नाम था - ट्रायेस्ट, ये 60 फ़ीट लम्बी एक छोटी सी पनडुब्बी थी. जिसे पिकार्ड और उनके पिता ने तैयार किया था. दोनों का ये मिशन टॉप सीक्रेट था, क्योंकि फेल होने की दशा में वे नहीं चाहते थे, इस बारे में जनता को खबर लगे. पांच घंटे तक एक संकरी सी जगह में बैठे बैठे दोनों ने चैलेंजर डीप तक यात्रा की. 

Trieste
 ट्रायेस्ट में स्विस वैज्ञानिक जैक्स पिकार्ड और अमेरिकी नौसेना लेफ्टिनेंट डॉन वॉल्श

जहां उन्हें भयानक सन्नाटा मिला, बीच बीच में बस किसी चिड़िया के फड़फड़ाने जैसी आवाज सुनाई देती रही. बाद में उन्हें पता चला कि खिड़की का बाहरी प्लास्टिक टूट गया है. जिसकी वजह से आवाज आ रही थी. हालांकि इसमें कोई खतरा नहीं था”. पिकार्ड और वाल्श के अनुसार चैलेंजर डीप की गहराई में जब विमान उतरा, वहां एक सफ़ेद चादर फ़ैली हुई थी. यान की हल्की सी रौशनी में उन्होंने 20 मिनट तक आसपास के माहौल का जायजा लिया और वापस लौट गए.

क्या दिखा चैलेंजर डीप में? 

पिकार्ड और वॉल्श के अनुसार, वहां उन्होंने एक फुट लम्बी एक मछली देखी. जिसके सर पर ऊपर की ओर दो आंखें थी. बकौल पिकार्ड, एक मछली के अलावा वहां उन्हें कोई जीवित चीज नहीं दिखाई दी. हालांकि एक ही मछली काफी थी. ये पक्का करने के लिए कि इतनी गहराई में भी जीवन हो सकता है. दिलचस्प बात ये कि चैलेंजर डीप में कितने जीव हैं, इसकी पूरी जानकारी आज भी वैज्ञानिकों के पास नहीं है. 

1960 में पहली यात्रा के बाद चैलेंजर डीप तक पहुंचने में इंसानों को 50 साल लग गए. जबकि इसी अवधि में हमने चांद के इतने चक्कर काट लिए थे कि आम बात हो गई थी. साल 1995 और 2009 में चैलेंजर डीप तक जाने की दो बार कोशिश हुई. दोनों बार हालांकि एक रिमोट कंट्रोलर यान भेजा गया था. 21 वीं सदी में चैलेंजर डीप की यात्रा करने वाला शख्स असल में किसी और चीज के लिए फेमस है. 

टाइटैनिक के डायरेक्टर जब चैलेंजर डीप गए

टाइटैनिक, एवेटार और द टर्मिनेटर जैसी फेमस फ़िल्में बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरून ने 2012 में चैलेंजर डीप का सफर किया था. खुद के द्वारा डिज़ाइन किए गए एक वेसेल में बैठकर कैमरून चैलेंजर डीप तक गए, वो भी अकेले. ये यात्रा भी खतरे से खाली नहीं थी. बकौल कैमरून, यात्रा के बीच में उनकी कुछ बैटरियां बंद हो गई. कम्पस ख़राब हो गया. और सोनार भी बंद पड़ गया था. लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद कैमरून ने यात्रा पूरी की.

जेम्स कैमरून
टाइटैनिक के डायरेक्टर जेम्स कैमरून


हालांकि, इस दौरान उन्होंने सिर्फ पर्यटन ही नहीं किया, बल्कि कई महत्वपूर्ण सैम्पल और रिकॉर्डिंग लेकर भी वापिस आए थे. कैमरून की यात्रा से वैज्ञानिकों को जीवाणुओं की 68 नई प्रजातियों के बारे में पता चला जो इतनी गहराई में भी सर्वाइव कर पाई थीं.  

कैमरुन के अलावा और कौन गया?

कैमरून के बाद कई अन्य लोग भी चैलेंजर डीप की यात्रा कर चुके हैं. इनमें दो नाम शामिल हैं. विक्टर वेसकोवो जो कि 2019 में चैलेंजर डीप तक गए थे. खास बात ये कि वेसकोवो माउंट एवेरेस्ट भी चढ़ चुके हैं. इस हिसाब से वेसकोवो धरती की गहराई और ऊंचाई दोनों नाप चुके हैं. लेकिन वर्टिकली सबसे लम्बी डिस्टेंस नापने का श्रेय कैथरीन सुलिवन को जाता है.

कैथरीन सुलिवन साल 2020 में चैलेंजर डीप तक गई थीं. इन्हें ‘world's most vertical woman’ के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि ये इससे पहले एक एस्ट्रोनॉट थीं. और NASA की तरफ से अंतरिक्ष यात्रा कर चुकी थीं.

हजारों फीट की गहराई में कैसा है जीवन?

तमाम डिटेल्स के बाद अब सबसे दिलचस्प सवाल ये कि 36 हजार फ़ीट की गहराई में कौन से जीव रहते हैं? वैज्ञानिकों की मानें तो चैलेंजर डीप के बारे में हमारे पास जितनी जानकारी है, उससे ज्यादा बातें तो हमें मार्स के बारे में पता है. समुद्र में पाए जाने वाले अजीबोगरीब एलियन जैसे जीवों जी तस्वीरें इंटरनेट पर खूब घूमती हैं, लेकिन ये जीव मैरियाना ट्रेंच के बाकी हिस्सों में पाए जाते हैं. मैरियाना ट्रेंच का बाकी हिस्सा भी काफी गहरा है. लेकिन चैलेंजर डीप जितना नहीं. अपने नाम की ही तरह चैलेंजर डीप में जीवन का पनपना भी उतना ही चैलेंजिंग है.

Sea cucumber
 चैलेंजर डीप में पाया जाने वाला जीव 'सी कुकुम्बर'

साल 1960 में चैलेंजर डीप की यात्रा करने वाले वैज्ञानिक जैक्स पिकार्ड के अनुसार उन्होंने वहां मछली देखी थी. लेकिन ताजा रिसर्च के अनुसार, चैलेंजर डीप में मछलियां नहीं पाई जाती. वैज्ञानिकों के अनुसार पिकार्ड ने संभवतः सी कुकुम्बर नाम के एक जीव को वहां देखा होगा. क्योंकि चैलेंजर डीप में प्रेशर इतना है कि सामान्य बायोलॉजी वाले जीवों का वहां जीवित रहना मुश्किल है. इसके बावजूद चैलेंजर डीप में समुद्र में पाए जाने वाले कुछ कीड़े, झींगे टाइप के जीव देखे गए हैं. इसके अलावा, जीवाणुओं की अच्छी खासी संख्या यहां मौजूद है. चैलेंजर डीप के बारे में बहुत सी बातें हैं, जिनका पता लगाया जाना अभी बाकी हैं.

वीडियो: केविन पीटरसन मचा चुके हैं दलीप ट्रॉफ़ी टूर्नामेंट में धमाल, जानें पूरी कहानी