स्पेस यानी अंतरिक्ष के बारे में सोचकर क्या दिखता है? एक विराट शून्य. गहरा सन्नाटा. एकदम स्याह आसमान. आदमी छोड़िए एक तिनके तक का कहीं नामोनिशान नहीं. हवा भी नहीं कि वही ‘सांय-सांय’ करती हो. 14 अक्टूबर 2012 को फेलिक्स बॉमगार्टनर हीलियम भरे गुब्बारे पर चढ़कर जब अंतरिक्ष के किनारे पर पहुंचे थे तो उन्हें ऐसा ही नजारा दिखा था. हां, वह किसी स्पेसक्राफ्ट से या रॉकेट में बैठकर वहां नहीं गए थे. न ऐसे किसी यान से उन्हें वापस ही आना था. अंतरिक्ष सूट पहने वह जिस गुब्बारे में बैठकर स्पेस के दरवाजे पर पहुंचे थे, वहां से वापस आने के लिए उन्हें वहीं से धरती की ओर कूदना था.
जब एक शख्स गुब्बारे में बैठकर अंतरिक्ष के दरवाजे तक गया और फिर कूद गया
ऑस्ट्रिया में जन्मे फेलिक्स ने 16 साल की उम्र से स्काईडाइविंग शुरू कर दी थी. वह बताते हैं कि उनका सपना था कि वह पहले ऐसे इंसान बनें, जो बिना जहाज के फ्रीफाल (Freefall) में ही आवाज की स्पीड को मात दे दे.
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ये कोई ‘कपोल-कल्पना’ नहीं है.
आज से 13 साल पहले यह कारनामा किया जा चुका है. 40 किमी दूर स्ट्रेटोस्फीयर से फेलिक्स बॉमगार्टनर न सिर्फ कूदे थे बल्कि सुरक्षित तरीके से धरती पर लैंड भी हुए. कैसे यह असंभव दिखने वाला कारनामा उन्होंने कर दिखाया और रास्ते में उन्हें क्या-क्या अनुभव हुआ, यह जानकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
ऑस्ट्रिया में जन्मे फेलिक्स ने 16 साल की उम्र से स्काईडाइविंग शुरू कर दी थी. वह बताते हैं कि उनका सपना था कि वह पहले ऐसे इंसान बनें, जो बिना जहाज के फ्रीफाल (Freefall) में ही आवाज की स्पीड को मात दे दे. उनके सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी ली रेडबुल कंपनी ने. साल 2005 में सबसे पहले इस प्रोजेक्ट का आइडिया लाया गया कि फेलिक्स स्ट्रैटोस्फेयर (वायुमंडल की ऊंचाई वाली परत) से छलांग लगाएंगे. यह करीब 40 किमी की ऊंचाई थी, जो एकदम स्पेस की सीमा से लगती थी. इस प्रोजेक्ट का नाम रखा गया रेड बुल स्ट्रैटोस और इसका मकसद बताया गया- पिछले 50 सालों की इंसानी सीमाओं को पार करना.
सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में सिर्फ दो साल लगने थे, लेकिन तैयारियों और इसे जमीन पर उतारने के काम में कुल 6 साल लग गए. बॉमगार्टनर सीएनएन को बताते हैं,
हमने सोचा था कि कैप्सूल बनाएंगे. स्पेशल स्पेस सूट तैयार करेंगे. कुछ प्रैक्टिस करेंगे और फिर सीधे ऊपर जाकर छलांग लगा देंगे. लेकिन असल में हर मीटिंग में तीन समस्याओं के साथ जाते थे और 8 घंटे बाद निकलते थे 5 नई समस्याओं के साथ. पुराने का हल भी नहीं मिलता था.
फेलिक्स को ऊपर स्ट्रेटोस्फीयर तक ले जाने के लिए एक हीलियम से भरा विशाल गुब्बारा तैयार किया गया था. इसका आकार 33 फुटबॉल के मैदान के बराबर था और वजन था 1700 किलो. गुब्बारे को नुकसान पहुंचाए बिना उसे हिलाने के लिए भी 20 लोगों की जरूरत पड़ती थी. इसका मैटीरियल एक सैंडविच बैग से भी 10 गुना पतला था. फेलिक्स को एक खास स्पेस सूट पहनाया गया जो बहुत ज्यादा भारी और टाइट था. यह माइनस 72 डिग्री सेल्सियस का तापमान झेल सकता था.
फेलिक्स बताते हैं कि इस सूट में सांस लेने पर ऐसा लगता था, जैसे किसी तकिए के आरपार सांस ले रहे हों. एक बार इसे पहन लेने के बाद दुनिया से पूरी तरह से कट जाने का आभास होता था. सिर्फ अपनी सांसें ही सुनाई देती थीं. बहुत घुटन वाली स्थिति थी और इसी स्थिति में उन्हें 8 घंटे तक रहना था.
अब बारी थी मिशन कीहीलियम भरे गुब्बारे में बैठकर फेलिक्स अंतरिक्ष की ओर रवाना हुए. जमीन से 40 किमी दूर स्ट्रेटोस्फीयर तक पहुंचे, जहां से उन्हें छलांग लगानी थी. हालांकि, जहां वह पहुंचे थे उसे टेक्नीकली स्पेस नहीं कहा जा सकता था. वह अभी तक पृथ्वी के वातावरण में थे, जहां पर गुरुत्वाकर्षण बल का असर तो था ही, निर्वात भी नहीं था. हवा मौजूद थी लेकिन वह इतनी हल्की थी कि न होने के बराबर थी.
ये 14 अक्टूबर 2012 का दिन था. पूरी दुनिया में तकरीबन 80 लाख लोगों की निगाहें फेलिक्स पर थीं, जो उस वक्त दुनिया के सबसे गहरे एकांत वाले स्थान पर थे. जहां उन्हें चारों तरफ सन्नाटों और घुप्प अंधेरे के समुद्र के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था. सब रेडी था और अब सिर्फ छलांग लगाने का काम बाकी था. कैप्सूल से बाहर आने के बाद फेलिक्स को अपना सूट दोगुना भारी लग रहा था. ऐसे में छलांग लगाना थोड़ा मुश्किल था. फिर भी फेलिक्स बॉमगार्टनर धरती से 40 किमी की ऊंचाई से कूद गए.
शुरुआत के 25 सेकेंड तक सब कुछ ठीक रहा. सब कंट्रोल में था लेकिन 34 सेकंड बाद फेलिक्स ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जो आज तक कोई इंसान नहीं कर पाया था. फेलिक्स खुद इस बारे में बताते हैं,
“मैंने Mach 1 की स्पीड को पार कर लिया था और ध्वनि की स्पीड की सीमा तोड़ दी थी. उस वक्त मेरी रफ्तार 1357 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच गई थी.”
फेलिक्स के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने उन्हें पहले से ही चेतावनी दी थी कि इतनी ऊंचाई से कूदने पर शरीर तेजी से घूम सकता है और वो कंट्रोल से बाहर हो सकता है. वह इसके लिए मन से तैयार थे और उम्मीद कर रहे थे कि ऐसा न हो. लेकिन वही हुआ जिसका डर था.
फेलिक्स पहले धीरे-धीरे और फिर बहुत तेज-तेज स्पिन करने लगे. वह जिस ऊंचाई पर थे, वहां हवा बहुत कम होती है. ऐसे में उन्हें अपने शरीर को स्थिर कर पाना मुश्किल हो रहा था. वह बताते हैं,
ऐसे समय में कोई प्रोटोकॉल नहीं होता. कोई नहीं बताता कि अगर ऐसा हो तो तुम्हें ये करना है. लेकिन पूरी दुनिया तुम्हें देख रही होती है.
उन पर गुरुत्वाकर्षण बल का ऐसा दबाव था कि खून दिमाग से बाहर आ जाना चाहता था. 600 मील प्रति घंटे की रफ्तार में खून के खोपड़ी से बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता था और वह है आपकी आंखों के रास्ते. अगर ऐसा होता तो मौत तय थी.
इमरजेंसी सिस्टम ने बचाई जानफेलिक्स के स्पेस सूट में ऐसी स्थिति से बचाने के लिए एक इमरजेंसी सिस्टम लगाया गया था. यह था G-Wiz. एक ऐसी डिवाइस जो जरूरत पड़ने पर छोटा पैराशूट खोल देती है ताकि शरीर का स्पिन करना रुक जाए. लेकिन इसके लिए भी सघन हवा की जरूरत होती है. थोड़ा और नीचे आने पर उनका स्पिन करना थोड़ा कम हुआ और वह धीरे-धीरे स्थिर होने लगे. अब जाकर फेलिक्स और उन्हें देखने वाले लोगों ने राहत की सांसें लीं.
धीरे-धीरे नीचे आने के क्रम में अचानक उन्होंने देखा कि अब आसमान काला नहीं है. वह नीला होता जा रहा है. यह उनके धरती के करीब आने की सूचना थी और शायद इससे ज्यादा सुंदर और राहतभरा दृश्य उन्होंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा होगा.

अब वह इंसानों के घर अपनी धरती के काफी करीब थे. सो उन्होंने अपना पैराशूट खोल दिया और धीरे-धीरे न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में सुरक्षित लैंडिंग की. अंतरिक्ष के दरवाजे से जमीन की गोद में उतरने का सुकून ऐसा था, जिसे शायद फेलिक्स कभी बयान नहीं कर पाएंगे. लैंडिंग के बाद वह कहते हैं,
मिशन पर उठे सवाल"जब मैंने पैराशूट खोला और हेलमेट का शीशा उठाया तो 7 घंटे बाद पहली बार बाहर की हवा में सांस ली. वो ऐसा पल था जब मैं फिर से इस दुनिया से जुड़ गया और यह बेहद खुश करने वाला था."
रेडबुल ने इस मिशन को 'स्पेस से छलांग' बताया था लेकिन कुछ लोग उनकी इस बात से सहमत नहीं थे. एमी शिरा टाइटेल एक फ्रीलांस स्पेस राइटर हैं. उन्होंने डिस्कवरी न्यूज पर लिखे अपने एक लेख में सवाल उठाते हुए कहा कि 40 किमी की ऊंचाई कोई स्पेस नहीं होती. स्पेस का कोई बॉर्डर नहीं होता लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि अंतरिक्ष कम से कम 62 मील की ऊंचाई से शुरू होता है. उन्होंने कहा कि रेडबुल को ये बातें साफ करनी चाहिए थीं ताकि लोगों में ये गलतफहमी न रहे कि फेलिक्स की ये छलांग पृथ्वी के वायुमंडल की सीमा के भीतर स्थित स्ट्रेटोस्फीयर से नहीं, स्पेस से थी. उन्होंने मिशन के मकसद पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह सिर्फ कंपनी के प्रचार का एक तरीका था. कोई वैज्ञानिक रिसर्च नहीं थी.
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