जैन धर्म का सीधा ताल्लुक है शांति और अहिंसा से. लेकिन इन दिनों वो ज़ेरे बहस है
जैन मुनि तरुण सागर के विधानसभा में प्रवचन के कारण. वहां बड़े मंच से वो पति पत्नी के बीच का गणित समझा गए. हालांकि खुद जैन मुनि का घर गृहस्थी से कुछ लेना देना नहीं है. खैर, दुनिया स्पीड से आगे बढ़ रही है. बीती बातों पर मिट्टी डालो. आगे सुनो काम की बात. इसी बहाने जैन धर्म के बारे में लोगों में उत्सुकता जागी. कुछ ने मुनि की वकालत की. गाली वाली पर भी उतर आए कुछ लोग. वहीं ऐसे भी लोग सामने आए जिन्होंने खुद मुनि को कठघरे में खड़ा किया. कि वो पब्लिसिटी पाने के स्टंट कर रहे हैं. तरुण सागर का जो मसला है, उसको दिमाग के एक कोने में चटाई डाल के बिठा दो. और जानो जैन धर्म के बारे में. इसकी शुरुआत, मान्यताओं, तीर्थंकरों के बारे में. लाइन से.
सबसे पुराना धर्म
कहने को तो हर धर्म और पंथ के मानने वाले अपने धर्म को वैज्ञानिक और प्राचीन बताते हैं. लेकिन कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों के कारण जैनिज़्म का क्लेम मजबूत हो जाता है. हालांकि सबसे पहले के तीर्थंकरों की टाइमलाइन का एकदम पक्का अता पता नहीं है. लेकिन
डॉक्टर हेनिरिच जिमर जैसे इतिहासकार इसको पाषाण काल, माने जब आदमी पत्थर के औजार से शिकार करके खाता था, तब तक लेकर जाते हैं. सिंधु घाटी सभ्यता के जो निशान मिले हैं. गुफाओं में नंगे लोगों की तस्वीरें. बैल और पद्मासन के निशान जैन धर्म के आने की बात करते हैं. ऋग्वेद तक में इसका जिक्र आता है. विष्णु और भागवत पुराण में भी. अपने दूसरे राष्ट्रपति जो थे.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन. वो अपनी किताब 'कल्चरल हेरिटेज ऑफ इंडिया' में लिख गए हैं. "अगर मैं कहूं कि वेदों के लिखे जाने से बहुत पहले जैन धर्म अस्तित्व में आ चुका था तो चौंकने की बात नहीं है."
तीर्थंकर और राजतंत्र में जैन महापुरुष
जैन धर्म को जाना जाता है महावीर की बदौलत. लेकिन ये तो आखिरी तीर्थंकर थे गुरू. इनके पहले 23 और हो चुके थे. सबसे पहले तीर्थंकर थे
ऋषभानंद. उसके बाद सीधे 22वें पर आ जाओ.
नेमिनाथ. कहते हैं कि ये अब से 84 हजार साल पहले हुए थे. उसके बाद
पार्श्वनाथ हुए. इनका टाइम ईसा से 7 या 9 सौ साल पहले का आंका जाता है. लास्ट वाले हैं
महावीर. इनके टाइम में जैन धर्म एकदम टॉप पर पहुंच गया. ये ईसा से 6 सदी पहले हुए. अब सुनो बड़े मजे की बात.
चंद्रगुप्त मौर्य हुए ईसा से कुछ सवा तीन सौ साल पहले. भौकाली मौर्य वंश उन्हीं से आगे बढ़ा. चंद्रगुप्त ने जिंदगी के आखिरी दिनों में जैन धर्म अपना लिया था. उनके पोते रहें
अशोक. जिनको सम्राट अशोक महान कहते हैं. जिनके ऊपर हमने आर्टिकल लिखा था "
महान नहीं थे अशोक" तो हमको खूब गालियां दी गई थीं. तो उन्हीं अशोक सम्राट ने लास्ट टाइम बौद्ध धर्म जॉइन कर लिया था. और उनके पोते थे
संप्रति. उनका झुकाव जैन धर्म के प्रति हुआ. और वे उसमें चले गए. माने ये खानदान कानपुर-प्रतापगढ़ इंटरसिटी एक्सप्रेस पर सवार होकर रोज एक धर्म से दूसरे में अप डाउन करता था.
दिगंबर और श्वेतांबर
देखो दिगंबर तो शुरुआत से थे. लेकिन श्वेतांबरी चोला चंद्रगुप्त मौर्य के टाइम पर चला. हुआ ये था कि जैन आचार्य भद्रबाहु निकल गए कर्नाटक. 12 साल तपस्या के चक्कर में. वहां से लौटे तो पुराने और नए शिष्यों में लफड़ा हो गया. यहां मगध में लोग सफेद कपड़े पहनने लगे थे. दिगंबरों ने कहा ये नहीं चलेगा. सॉरी. फिर दोनों के रास्ते अलग हो गए हमेशा के लिए. तो दिगंबर माने दिशाएं ही जिसके वस्त्र हैं. और श्वेतांबर तो समझ ही गए होगे.
मान्यताएं
अब पढ़ो जिसके लिए हम इत्ता लिख लाए हैं. दिगंबर रहना तो आखिरी है. उसके पहले 27 कठिन काम और करने हैं. एक जैन मुनि होने के नाते ये फर्ज होते हैं. तरुण सागर इनमें से कितने पर खरे उतरते हैं, ये वो जानें. मेन मान्यताएं 5 हैं.
अहिंसा, माने बिना मार काट की जिंदगी.
सत्य माने सच्चाई, जिसका आजकल टोंटा है.
अचौर्य माने चोरी न करना. चोरकटई जिसके बिना आजकल काम नहीं चलता.
अपरिग्रह, माने किसी चीज के मोह में न पड़ना. और ब्रह्मचर्य, माने औरत जात से दूर रहने का. इनके अलावा जो सबसे खास और कठिन हैं आज के जमाने में. वो बता रहे हैं.
1. अस्नान- माने नहाना नहीं है.
2. अदंतधावन- माने दातून नहीं करना है. टूथपेस्ट भी नहीं, लाल दंत मंजन और गुलमंजन भी नहीं.
3. भूशयन- जमीन पर चटाई बिछा के पड़ रहो. सो जाओ. जमीन पर सोने का मतलब ये नहीं कि डनलप का गद्दा डाल लो.
4. एकभुश्ति- दिन में सिर्फ एक बार खाना. और पानी भी सिर्फ एक बार. खाते वक्त.
5. स्थितिभोजन- अपनी जगह पर खड़े हो जाओ. दोनों हाथों पर अंजुली बनाकर खाना लो. और खाओ. कितना मुश्किल है, एक बार ट्राई करके देखना.
6. केश लोंच- सिर और दाढ़ी के बाल सफाचट रखने हैं. वो भी ऐसे नहीं, अपने हाथों से उखाड़कर.
7. ईर्यासमिति- इसका मतलब होता है चलते वक्त अगला पैर उठाने से पहले चार हाथ जमीन देख लो. कहीं कोई जीव पैर के नीचे न आ रहा हो.
8. प्रतिष्ठापन- टट्टी पेशाब ऐसी जगह पर करना जहां कोई जीव न हो. इतना ही नहीं. दिगंबर को अपने पास सिर्फ तीन चीजें रखने की छूट है.
1. कमंडल- माने कमंडल. लोटा, शुद्धि के लिए. हाथ, पांव, मुंह धोएंगे तो पानी इसमें लेना पड़ता है न.
2. पिच्छी- ये मोर पंख का झाड़ू जैसा होता है. बैठने से पहले हौले से बैठने की जगह को साफ करने के लिए. और कीड़े मकोड़े हुस्साने के लिए. कि उनको चोट भी न पहुंचे. मोरपंख इसलिए कि वो किसी से मांगना या चुराना नहीं पड़ता. मोर खुद ही अपने पंख छोड़ता है.
3. शास्त्र- माने अपने धरम की किताब. एक कमी ये है कि स्त्री की वैल्यू जीरो बटा सन्नाटा है. कहते हैं कि मोक्ष पुरुष रूप को प्राप्त होगा. इसीलिए औरत को दिगंबर माने नंगे रहने का कोई मतलब नहीं. अच्छाई ये है कि ये अपने, सिर्फ अपने मोक्ष पर ध्यान देने को कहता है. माने अपनी लड़ाई खुद लड़ो. बाकी दुनिया जाए 'गो टू हेल.'