श्रीदेवी की बड़ी बेटी जाह्वी कपूर की फिल्म धड़क का पोस्टर. फिल्म जुलाई में रिलीज होने वाली है.
ये कोई अफवाह नहीं. काश हम कह पाते कि जो आप पढ़ रहे हैं, वो सच नहीं है. श्रीदेवी नहीं रहीं. श्रीदेवी चली गईं. शनिवार रात करीब 11-11.30 बजे उनको दिल का दौरा पड़ा. और कहानी खत्म. मैं लिख रही हूं और मेरे हाथ भटक रहे हैं. मेरा दिमाग ठहर नहीं रहा. मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखा जाए. अखबार और वेबसाइट्स एडवांस ऑबिचुरी (मरने के बाद लिखे जाने वाले लेख) लिखकर रखते हैं. बुजुर्ग हो चुकी मशहूर हस्तियों की आखिरी ख़बर. ये सोचकर कि किसी दिन एकाएक खबर आ सकती है. मगर श्रीदेवी? मैं जानती हूं कि हिंदुस्तान के किसी भी मीडिया हाउस ने श्रीदेवी की ऑबिचुरी लिखने के बारे में सोचा भी नहीं होगा. वो बहुत जवान थीं. ये उम्र नहीं थी उनके जाने की. या किसी के भी जाने की. बस 54 की ही तो थीं वो. अभी भी उतनी ही जवान, उतनी ही हसीन, जितनी उस रात को थीं, जब हवा-हवाई गाने की शूटिंग हो रही होगी. या वो गाना - काटे नहीं कटते दिन ये रात.

अपनी मौत के समय वो यूएई में थीं. किसी शादी में शामिल होने गईं थीं. पति बोनी कपूर और छोटी बेटी खुशी उनके साथ थे. एकाएक हार्ट अटैक आया. बचाया नहीं जा सका. हिंदी फिल्मों की पहली महिला सुपरस्टार बिना किसी शोर-शराबे के गुजर गई. मीडिया में भरोसा बड़ी चीज है. 15 लाइन की खबर में 14वीं लाइन का चौथा शब्द भी गलत निकले, तो शर्मिंदा होना पड़ता है. मगर तब भी मैं चाहती हूं कि ये खबर ग़लत साबित हो जाए. कोई कह दे आकर कि नहीं, वो बिल्कुल सलामत हैं. अफसोस, ऐसी कोई उम्मीद नहीं पूरी होने वाली. गए हुए लोगों के लौट आने का कोई नियम नहीं. उनका एक गाना है. मुआफ़ कीजिए, था नहीं लिखा जा सकेगा मुझसे.
न जाने कहां से आई हूं,
न जाने कहां को जाऊंगी...
मैं इस वक़्त ये गाना सुन रही हूं. मायूस हूं. यूं लग रहा है कोई अपने घर का चला गया है. बहुत दूर. उनकी अदाएं याद आ रही हैं. मुझे कोई वीडियो देखने की ज़रूरत नहीं. श्रीदेवी आंखों की पुतलियों में गुदी हुई हैं जैसे. कहीं भी गईं हों, इससे बाहर नहीं निकल पाएंगी.
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