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एक कविता रोज़ - ईश्वर को किसान होना चाहिए

'मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है'

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फोटो - thelallantop
विहाग वैभव BHU के छात्र हैं. समाज के मुद्दों पर अपनी राय कविताओं के माध्यम से रखना पसंद करते हैं. अपनी कविताओं के लिए युवाओं में खासे प्रसिद्ध हैं. हिन्दी कविताओं में नई खेप के कवि होते हुए भी विहाग की कविताओं में बेहतरीन स्थिरता देखी जा सकती है. इसी स्थिरता के कारण उनकी कविताओं की शुरुआत सारी वीभत्सताओं से होकर भी उनके नयेपन की अमिट छाप छोड़ने में कामयाब होती हैं. एक कविता रोज़ में आज पढ़िए, विहाग वैभव की कविता 'ईश्वर को किसान होना चाहिए'. ईश्वर को किसान होना चाहिए

विहाग वैभव

ईश्वर सेनानायक की तरह आया न्यायाधीश की तरह आया राजा की तरह आया ज्ञानी की तरह आया और भी कई-कई तरह से आया ईश्वर पर जब इस समय की फसल में किसान होने की चुनौतियाँ मामा घास और करेम की तरह ऐसे फैल गई हैं कि उनकी जिजीविषा को जकड़ रही हैं चहुँ ओर और उनका जीवित रह जाना एक बहादुर सफलता की तरह है तो ऐसे में ईश्वर को किसान होकर आना चाहिए ( मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है ) वह जेल में महल में युद्ध में जैसे बार-बार लेता है अवतार वैसे ही उसे अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार ऐसे कि चार हाथों वाले उस अवतारी की देह मिट्टी से सनी हो इस तरह कि पसीने से चिपककर उसके देह का हिस्सा हो गई हो बमुश्किल से उसकी काली चमड़ियां ढँक रही हों उसकी पसलियाँ और उस चार हाथों वाले ईश्वर के एक हाथ में फरसा दूसरे में हँसिया तीसरे में मुट्ठी भर अनाज और चौथे में महाजन का दिया परचा हो ( कितना रोमांचक होगा ईश्वर को ऐसे देखना ) मुझे यक़ीन है — ईश्वर महाजन का दिया परचा किसी दिव्य ज्ञान के स्रोत की तरह नहीं पढ़ेगा वह उसे पढ़कर उदास हो जाएगा फिर वह महसूस करेगा कि इस देश में ईश्वर होना किसान होने से कई गुना आसान है सृष्टि के किसी कोने में सचमुच ईश्वर कहीं है और वह अपने अस्तित्व को लेकर सचेत भी है तो फिर अब समय आ गया है कि उसे अनाज बोना चाहिए काटना चाहिए, रोना चाहिए ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए.

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