अबे गुप्ता! तुम्हाई भाभी आज मिलने को बुलाई हैं. 3 बजे और यहां अभी रोल नम्बर 7 का ही वायवा चल रहा है. और ये मास्टर साला अपने आप को न्यूटन का चचा समझ के बैठा है और ऐसा ज्ञान प्रदर्शन कर रहा है की आज ही कलाम सर की अग्नि मिसाइल से दुगनी स्पीड की मिसाइल बना कर ही उठेगा.'अबे काहे इतना बौराए जा रहे हो बे. एक ही दिन होता है इन मास्टरों का जब ये अपना ज्ञान झाड़ पाते हैं. तुम भाभी को बोलो कल मिलने को.' अबे तुम मेंटल आदमी हो कतई. साले कल घर जा रहे छुट्टी पे और पूरे दो महीने बाद लौटेंगे. और तुमको बताए थे कि हमाई उनसे मिलने की प्रोबेबिलिटी सिर्फ मंगलवार, वीरवार और शनिवार को होती है और कल है बुधवार. भाई हम कुछ नहीं जानते. अगर आज तुम हमारा बेड़ा पार नहीं लगाए तो साला आज से दोस्ती खत्म. दोस्तों को फिल्मी डायलॉग मार के उकसाने में लौंडे ने कक्षा सात में ही पीएचडी कर ली थी. लौंडा क्लास के बाहर गुप्ता जी के सामने ऐसे खड़ा था जैसे महाभारत के मैदान में अर्जुन कृष्ण के सामने हाथ जोड़े गीता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए खड़े हों. गुप्ता जी के भीतर का कृष्ण जाग चुका था और ऐसे कामों में गुप्ता जी के दिमाग की तेजी राजधानी एक्सप्रेस को भी पीछे छोड़ दे. ऐसे ही थोड़े क्लास में हर कोई गुप्ता जी को "चीता" कहकर संबोधित करता था. तुरंत पहुंचे चेले को लेकर खोखे पे और छोटी गोल्ड जला ली. तसल्ली से पहला कश खींचा और धुआं छोड़ते हुए सिगरेट लौंडे की तरफ बढ़ाई और बोले 'खींचो'. "अबे हमारी सांस अटकी हुई है और तुमको बकर सूझ रही है, 2:15 बज गए हैं कुछ तो करो मालिक." वो बेक़रारी से तड़प उठा. आखिरी कश मारते हुए गुप्ता उसको लेकर क्लास की ओर चल पड़ा. गुप्ता: सुनो जैसा समझाए हैं बिलकुल वही वही कहना और एक्सप्रेशन ऐसा हो मानो तुमको दस्त लगे हों और शौचालय 200 मीटर दूर. हरामखोर मिसालें भी ऐसी देता था कि जी खराब हो जाए. खैर उसने माथा सिकोड़ा और लाचार सा चेहरा लटकाए हुए न्यूटन के चचा के सामने पंहुचा. मास्टर एक हाथ में समोसा लिए हौंकने में व्यस्त था और दूसरे हाथ से कान के बाल खजुआ रहा था. सर जी आपसे इक छोटी सी रिक्वेस्ट है . बोलो. हिचकते और नाक पे ऊंगली फिराते हुए - जो ह्यूमन बिहेवियर पढ़ा होगा जान जाएगा झूठ बोल रहा है, लेकिन मास्टर का पूरा कंसंट्रेशन समोसे पे. सर जी आप हमारा वायवा अभी ले लेंगे? काहे आप किसी विधायक के लौंडे हैं का? नहीं नहीं सर. लड़के की चोक ले गई. गुप्ता की तरफ देखा तो उसने आंख मारकर प्रोत्साहन बढ़ाया. दरअसल बात ये है कि हम कानपुर के रहने वाले हैं और 3:15 बजे की गोमती एक्सप्रेस. ट्रेन का नाम और सटीक समय गुप्ता ही बताए थे. से रिजर्वेशन है और पिताजी हमाये प्लेटफार्म पे इंतज़ार कर रहे हैं. आपसे विनती है कि हमारा प्रैक्टिकल पहले ले लीजिए. कानपुर और गोमती का नाम सुनकर मास्टर थोड़ा नरम हुआ. हावभाव और बोली से अंदाजा लग गया कि ये कानपुर-लखनऊ के आस-पास का ही था. लौंडे के लाचार चेहरे को देख के उसको दया आई और उसका नंबर पहले लगा दिया. खैर 2 बजकर 50 मिनट पे खत्म हुआ वायवा. कॉलेज से कॉम्प्लेक्स पचने के लिए 2 रिक्शा और एक टेम्पो बदलना जरूरी था, और समय लगता कुल 40 मिनट. वैसे रिक्शे वाला रास्ता वह रोज़ पैदल ही कवर करता था. पैसे बचाने के लिए, पर आज तो समय पर पहुंचना उतना ही जरूरी था जितना आर्मस्ट्रांग का चांद पर. फिर गुप्ता की तरफ मुड़कर भागा. भाई मोटरसाइकिल की चाभी दे दो, नहीं तो देर हो जाएगी और तुम्हारी भाभी चली जाएंगी.
अबे दिमाग तो सेंटर में है, हम तुमको बाइक नहीं देंगे. साले चलाना तो ढंग से सीखे नहीं अभी, खुद भी टूटोगे और बाइक भी फोड़ोगे.भाई प्लीज! हाथ जोडें, हम पक्का शाम को तुम्हें पनीर की सब्जी खिलाएंगे. गुप्ता जी पिघल गए और चाबी थमाते हुए बोले, 50 का तेल भरवा देना. आज गुप्ता 500 का तेल भराने को बोलता तो लौंडा वो भी भरा देता. एक्सीलेटर ताने हुर्र करता बाइक लेकर दौड़ पड़ा. तिरपाठी जी के अनुसार लौंडा तभी एक्सेलेरेटर हौंकता है, जब नई-नई गाड़ी सीखा हो, या नया-नया इश्क़ में पड़ा हो, या नया नया इश्क़ में पड़ा हो और यहां तो दोनों बातें लागू हो रहीं थी. उस साल मई में ही मानसून ने दस्तक दे दी थी, बादलों के नीचे एक आवारा बादल हवा को एक्सीलेटर से चीरते हुए 3:05 पे कॉम्प्लेक्स पहुंचा. दौड़कर सीढ़ियों से ऊपर पहुंचा तो मैडम जी पिंक टॉप, ब्लैक जीन्स में एक हेयर क्लिप मुंह में दबाए कॉस्मेटिक की शॉप पर दोनों हाथों से नई हेयर क्लिप ट्राई कर रहीं थीं. एक तो लौंडा वैसे ही मदहोशी में डूबा था. उनको इस मायावी रूप में देखकर रहा सहा होश भी गंवा बैठा. वहीं बुत बन गया. मैडम का चेहरा खिल उठा. पास जाकर बोलीं हमें लगा आप नहीं आओगे. अब छोरा कुछ सुन पाए तब तो बोले. मैडम ने कंधा पकड़ के हिलाया तो होश में आया जैसे अभी नींद से उठा हो. कहां खो गए थे. एक तो पहली बार इश्क़ में पड़ा, ऊपर से पहली मुलाक़ात कंधे पर उनका हाथ पड़ते ही सकपका गया. जी वो वो मैं...मैं... क्या वो-वो,मैं-मैं लगा रखा है, जादा टाइम नहीं है हमारे पास. मम्मी से झूठ बोलकर आई हूं कि सहेली को किताब लौटाने जा रही हूं. वो वो तुमको पहली बार इतनी करीब से देखा तो बोल ही नहीं निकल रहे मुंह से. वो खिलखिला कर हंस पड़ी. लौंडा मन में खुद को कोसते हुए ( इससे अच्छी कोई बात नहीं मिली बोलने को ) लेकिन उसको खिलखिलाकर हंसते देख थोड़ा कॉन्फिडेंस बढ़ा और बोला. आज आप इस मौसम से भी जादा खूबसूरत लग रहीं हैं. (खुश तो हुईं पर एक्सप्रेशन बदलकर बोलीं) जादा चने के झाड़ पर मत चढ़ाइए हमको, जो लड़के झूठी तारीफ़ करते हैं वो हमें पसंद नहीं. (हड़बड़ाहट में) नहीं मम्मी कसम आप बहुत सुंदर हैं, हम सच कह रहे हैं. (गुस्से में) पागल, इसमें मम्मी की कसम खाने वाली क्या बात है. माफ़ कर दीजिए, मुझे समझ ही नहीं आ रहा की लड़की से बात कैसे करते हैं. मुझे गुप्ता का साथ छोड़ना पड़ेगा. कुछ भी ऊलजुलूल बोल रहा हूं. लड़का: सुनिए यहां पर ये लोग और आंटियां हमे घूर रही हैं. बहुत अजीब लग रहा है. सीढ़ियों पर ऊपर चलते हैं, वहीं बैठेंगे फिर छत पर चलेंगे बहुत रोमांटिक मौसम हो रहा है. रोमांटिक नहीं होता पागल रोमेंटिक कहते हैं. हां हां वही रोमांटिक. आप नहीं सुधरेंगे. चलिए कहां चलना है. सीढ़ियों पर बैठे हुए 10 मिनट हो चुके थे. दोनों खामोश थे. आप पर ये पिंक कलर बहुत अच्छा लग रहा है. नहीं. मतलब आपके पहनने की वजह से ये कलर और सुंदर हो गया है. ख़ामोशी तोड़ते हुए लड़के ने कहा. बस भी करो, कितनी तारीफ़ करोगे? हमारी कास्ट अलग है, हमारी शादी तो हो जाएगी न? लड़के ने बिना सोचे-समझे पूछ डाला, शादी के लिए प्रपोज़ वो भी इस तरह से. खुद इतना अनिश्चित होकर. पापा और भाई कभी नहीं मानेंगे. 99% चांसेस नहीं होगी. उसने जो सच था कह दिया. पर तुम तो तैयार हो न, 1% चांसेस तो हैं न बहुत हैं. मैं तुम्हे ले जाऊंगा उठाकर. पता है मैं अक्सर सोचती हूं कि हमारी शादी होगी. एक लड़का होगा तुम्हारी तरह. नहीं पहले लड़की होगी, मेरी तरह फिर लड़का होगा तुम्हारी तरह. उसने मुस्कुराते हुए लड़के के कंधे पे सिर टिका लिया. उसने किस्से कहानियों में जिस जन्नत का जिक्र पढ़ा था आज वो खुद उस जन्नत में था. उसने भी उसके सिर पर अपना सिर टिका दिया. दोनों गुम थे ख्यालों की उस खूबसूरत नदिया में गोंते लगाते खामोश उन पलों को जीते हुए. एक दूसरे का सहारा बने हुए. बादलों की गड़गड़ाहट से अचानक वो खामोशी टूटी और दोनों के उमड़ते ख्यालों पर एक अल्पविराम लगा. लड़की : छत पर चलते हैं मुझे ये मौसम बहुत पसंद है. उसने कांच के दरवाजे का हैंडल खींचा तो वो लॉक निकला. ओह नो, रुको मैं शीशा तोड़ देता हूं. वो फिल्मी स्टाइल में बोला. नहीं चोट लग जाएगी, हम यहीं पर ठीक हैं. वो फ़िक्र मे बोली. तुम साथ हो तो हर जगह खूबसूरत है. फिर क्या फर्क पड़ता है शीशे से भी तो आसमान दिख रहा है न. दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे आसमान की और ताकते रहे. वो उसकी और मुड़ा और उसके चेहरे पे बिखरते उसके बालों को कान के पीछे ले जाते हुए बोला - आई लव... ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग मम्मी का फ़ोन है, चुप रहना. हां मम्मी... आ रही हूं किताब वापस करके... अभी बारिश थोड़ी न हो रही है...नहीं भीगेंगे...आती हूं. सुनो अब जाना होगा मम्मी बुला रहीं है, मुझे छोड़ने नहीं चलोगे? भारी क़दमों से वो उसको लेकर नीचे आया. अरे वाह! बारिश शुरू हो गई, तुम हमको पैदल घर छोड़ने चलो. वो बारिश की बूंदों में भीगकर चहकते हुए बोली. अरे हम तुमको कुछ खिलाए भी नहीं, चलो तुमको नारियल पानी पिलाते हैं, हमको बहुत पसंद है. वो मान गई. बाद में पता चला उसे नारियल पानी नहीं पसंद. दोनों ने एक ही स्ट्रॉ से नारियल पानी पिया और उसके घर की ओर बढ़ चले. पहली बारिश की बूंदों में भीगते एक-दूसरे का हाथ थामे कब घर के नज़दीक पहुंच गए पता ही नहीं चला. मैं अब चली जाऊंगी, बस सौ कदम पर है घर, तुम जाओ. मुड़ कर दो कदम ही चली थी कि सैंडल टूट गई. आउच !! अब कैसे जाओगी? मैं गोद में लेकर छोड़ आता हूं. नहीं जी. मै चली जाऊंगी. अच्छा सुनो. हां बोलो. आई लव यू ❤ पहली बार ज़नाब को बारिश में भीगना अच्छा लगा था. वहां खड़ा उसको देखता रहा जब तक वो नज़रों से गायब नहीं हो गयी. शाम को, गुप्ता जी कभी बारिश की बूंदों को चखा है ? हैं बे! सर्किट ढीला हो गया है? केमिस्ट्री में पढ़े नहीं कि पानी रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन होता है. अउर हां फ़ौरन सब्जी बनाओ पनीर की.
पर लौंडे को समझ आ गया था कि काहे गुलज़ार जी बारिशों को मीठा कहते थे.