The Lallantop

'लड़की को गुस्सा आता कि बुद्धू कुछ कहता क्यों नहीं'

आज पढ़िए मनोज कुमार पांडेय की कहानी.

post-main-image
फोटो - thelallantop
एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए मनोज कुमार पांडेय की कहानी-

और हंसो लड़की

लड़का सुबह के चार बजे उठता था और पिता की चारपाई की बगल की चौकी पर लालटेन जला कर रट्टा मारता था.उसकी सुबह नियमित रूप से चार से छह साइन थीटा और काश थीटा से शुरू होती थी और रात खत्मह.लड़का उन दिनों बारहवीं में था और उसके पिता उस पर लगातार इस बात का दबाव बनाए रखते कि इस साल उसे बोर्ड का इम्तहान देना है.तो लड़का सुबह के चार बजे उठ जाता और न उठ पाने पर कान पकड़ कर उठा दिया जाता और चार से छह के साइन थीटा और काश थीटा के बाद उठता, मैदान जाता, नहाता, नाश्ता, वगैरह करता, साइकिल निकालता, साइकिल झाड़ता-पोंछता और टिफिन ले कर कोचिंग के लिए निकल जाता.कोचिंग घर से लगभग दस किलोमीटर दूर थी जो कि स्कूल के गणित अध्यापक ने खोल रखी थी.हालांकि समझदार बच्चे फिजिक्स अध्यापक या कैमेस्ट्री अध्यापक द्वारा खोली गई कोचिंग में पढ़ना पसंद करते थे, क्योंकि इस तरह कम से कम कम एक विषय के प्रैक्टिकल में अच्छे अंक बिना कुछ किए-धरे मिल जाते थे, पर लड़के के मामले में स्थिति दूसरी थी.लड़के के किसान पिता का तर्क था कि गणित अध्यापक द्वारा चलाई जा रही कोचिंग में पढ़ने से लड़के की स्थिति बेहतर रहेगी.इससे फिजिक्स और केमेस्ट्री दोनों के अध्यापक बराबर रहेंगे.कम से कम वह प्रैक्टिकल वाले अध्यापक की कोचिंग में तो नहीं ही पढ़ रहा था कि एक को खुश करने के चक्कर में दूसरा नाराज हो जाए.बाकी लड़के के पिता को लड़के की मेहनत पर पूरा भरोसा था और इस बात को समझने में उसे मुश्किल होती थी कि कोई अध्यापक सिर्फ कोचिंग न पढ़ने की वजह से अपने किसी होनहार छात्र का नुकसान कर सकता था.

तो इसी कोचिंग से कॉलेज जाते हुए लड़की उसे रोज-ब-रोज रास्ते में मिलती थी.शुरू में तो लड़के को लड़की में ऐसी कोई खास बात नहीं दिखाई पड़ी पर जब एक दिन लड़के ने पाया कि हर अगले दिन वह लड़की को बीते दिन की अपेक्षा ज्या़दा मुग्ध भाव से देख रहा था और बीच में जब दो दिन लड़की रास्ते में नहीं मिली तो लड़के को पूरे दिन जाने कैसा-कैसा लगता रहा था तो लड़के का माथा ठनका.उसने तय किया कि अब वह लड़की को नहीं देखेगी और संभव होगा तो रास्ता बदल देगा.

जिस सुबह लड़के ने यह तय किया उस दिन सुबह ही उसे आभास हो गया कि आज कुछ गजब का होनेवाला है.जल्दी कहीं घर से बाहर न जानेवाले लड़के के पिता रात में घर पर नहीं थे, सो लड़का आराम से सुबह चार की बजाय साढ़े पांच-पौने छह तक उठा था.घर में घड़ी एक ही थी जो उसके पिता अपने हाथों में बांध कर गए थे.सुबह लड़का अपनी नींद पूरी कर उठा तो उसका पूरा बदन नींद की मस्ती में डूबा हुआ था.उठ कर लड़के ने भरपूर अंगड़ाईयां लीं और खड़ा हो गया.

जब वह मैदान जा रहा था तो उसे रास्ते में रुपयों से भरा एक पर्स मिला.लड़के का प्रेशर तुरंत खत्म हो गया.वह एक गड्ढे में बैठ कर रुपए गिनने लगा पर कई बार गिनने के बाद भी वह पूरा सही-सही नहीं गिन पाया.आधी बार रुपए तेरह सौ छब्बीस आए तो आधी बार तेरह सौ सत्ताईस.लड़के के पास एकमुश्त इतने रुपए कभी नहीं आए थे.हार कर उसने दोनों संख्याओं का औसत निकाला और मान लिया कि उसके पास तेरह सौ छब्बीस रुपए पचास पैसे हैं.और इस निर्णय के साथ लड़के का प्रेशर बन आया.खुशी के मारे उसका पेट पलभर में ही साफ हो गया.लड़का खुश हो गया कि आज ही उसने लड़की को न देखने का फैसला किया और आज ही उसके दिन की शुरुआत इतनी धमाकेदार हो रही है.

लड़का खुशी-खुशी घर आया और सारे कामों को निपटाने के बाद कोचिंग के लिए निकलते समय जब बाल संवारने के लिए आईना देखा तो आईने में लड़के ने खुद को थोड़ा बहादुर देखा.अचानक लड़के को कुछ याद आया.उसने अपनी पैंट उतारी, एक दूसरी पैंट पहनी, इसके बाद पहले वाला पैंट फिर से पहन लिया.नीचेवाले पैंट को मोजे के नीचे दबाया, चप्पल की जगह पर किरमिच का जूता पहला और साइकिल पर सवार हो कर गुनगुनाता हुआ अपने रास्ते निकल आया.रास्ते में चल रही हल्की खुशनुमा हवा ने उसे और भी खुश कर दिया. आगे का रास्ता लंबा और ऊबड़-खाबड़ है.रास्ते में पहले दो छोटे नाले मिलेंगे, फिर एक थोड़ा बड़ा नाला.छोटे नालों में ज्यादा पानी नहीं होता, इसलिए लड़का दोनों पैर पैडिल पर से ऊपर उठाता है और साइकिल नाले में कुदा देता है.बड़े नाले पर बांस की पट्ठियों से संकरा-सा पुल बना हुआ है जिस पर साइकिल से या पैदल जाया जा सकता है.अमूमन इसे पार करनेवाले साइकिल सवार साइकिल से उतर कर ही इसे पार करते हैं पर लड़का साइकिल पर बैठे-बैठे ही निकल जाता है.एक-दो बार तो वह साइकिल का हैंडिल छोड़ कर भी खुद को आजमा चुका है.बड़े नाले के बाद एक गाँव पड़ता है.रास्ता गांव के बीच से हो कर तमाम घरों की परिक्रमा करते हुए आगे जाता है.लड़का जैसे ही इस गांव को पार करता, एक कुत्ता भौंकता हुआ उसे खदेड़ देता.लड़का जितना दम लगा कर साइकिल भगाता, कुत्ता भी उतनी ही तेजी से उसका पीछा करता.डर के मारे लड़के का बदन गनगना जाता और रोएं खड़े हो जाते.लड़का रोज-रोज इस डर का सामना करता क्योंकि कोई वैकल्पिक रास्ता अपनाने से उसका रास्ता कम से कम मील भर और लंबा हो जाता और उसे रोज एक छोटा नाला और पार करना पड़ता.

उस ऐतिहासिक दिन जब लड़के ने लड़की को न देखने का प्रण किया था और उसे रुपयों से भरा एक पर्स मिला था और उसने अपने पैंट के नीचे एक और पैंट पहना था और खुश करती हुई हवावाले रास्तेा पर आ गया था, उस दिन भी कुत्ता भौंकते हुए उसके पीछे दौड़ा.जब कुत्ता लड़के की साइकिल के पहिए के एकदम नजदीक आ गया तो लड़के ने पूरी ताकत से दोनों पहियों के ब्रेक एक साथ दबा दिए.साइकिल अचकचाते और हल्का और हल्का-सा प्रतिरोध करते हुए रुक गई.कुत्ता लड़के के दाहिने पैर के पास तक चला आया और तब लड़के ने अपना पैर पैडिल पर से उठाया और एक भरपूर लात कुत्ते के सिर पर मारी.कुत्ता पलट गया और पों-पों करता हुआ भाग निकला.अपने इस पराक्रम पर लड़का मुदित हो गया और साइकिल छोड़ उसने कुत्ते को खदेड़ लिया, निहत्थे ही.उसे ईंट का एक बड़ा-सा टुकड़ा दिखा.लड़के ने ईंट उठा कर कुत्ते पर दे मारी जो संयोग से कुत्ते के पिछले पैरों पर जा लगी.कुत्ता दुबारा चिल्लाया और दुम दबा कर भाग गया.

कोचिंग में गणित अध्यापक ने जैसे चुन-चुन कर वही सवाल पूछे जो लड़के को आते थे सो वहां भी उसे शाबाशी मिली.लड़के को और क्या- चाहिए था.लड़का खुश हो कर कोचिंग से निकला और एक पतली-सी कच्ची. सड़क पर आ गया.यह सड़क एक ऊसर के बीच से हो कर जाती थी और सड़क पर रेह फूली रहती थी, जिसे लड़का भस्से. के नाम से जानता था.इसी भस्से के बीच बनी पगडंडी पर लड़का चला जा रहा था कि उसे सामने से लड़की आती दिखी.पैदल.लड़के के भीतर कुछ चटका.लड़की और पास आई तो लड़के के भीतर विस्फोट सा होने लगा.लड़के का पूरा ध्यान अपने भीतर हो रहे विस्फोट पर केंद्रित हो आया.इस बीच लड़के के हाथ आदतन हैंडिल पर जमे रहे और पांव पैडिल पर.लड़की एकदम सामने थी जब लड़के को उसे न देखने का अपना प्रण याद आया.लड़के ने जल्दी़ से आंखें मूंद लीं और इसी के साथ उसकी साइकिल का पहिया पगडंडी से भस्से में उतर गया.लड़के के होश गुम थे.वह ब्रेक लगा कर साइकिल रोक सकता था पर वह घंटी बजाने लगा.लड़की ने जब उसे इस हाल में घंटी बजाते देखा तो वह हंसने लगी.लड़के ने आंखें खोलीं और गुस्से से हंसती हुई लड़की की तरफ देखा तो देखता ही रह गया.और इसी के साथ वह साइकिल समेत भस्से में पलट गया.लड़की ने भस्सेे में पड़े हुए लड़के को देखा तो और जोर से हंसने लगी और हंसती हुई आगे बढ़ गई.

लड़की आगे बढ़ गई तो लड़का उठा और अपने को झाड़-पोंछ कर ठीक करने लगा.एक बार तो लड़के का मन किया कि वह लड़की के पीछे जाए और उसे रोक कर पूछे कि लड़के के गिरने पर वह हंस क्यों रही थी, पर वह अपने कॉलेज के रास्तेे पर बढ़ गया.वह लड़की के पीछे जाता तो भी कुछ पूछ तो नहीं ही पाता.ज्यादा से ज्यादा वह यही कर सकता था कि लड़की के सामने जा कर दुबारा अपने भीतर विस्फोट पैदा करता और उस विस्फोट के प्रभाव में पलट जाता.लड़की शायद फिर से उस पर हंसती, पर दुबारा वाली हंसी में पहली वाली हंसी की ताजगी नहीं होती.लड़की तब इसे लड़के की बदमाशी या चाल समझती.पर यह सब हुआ ही नहीं.लड़का दिनभर भस्सेा की धूल में सना रहा.लड़की उस दृश्य को याद कर पूरे दिन हंसती रही.लड़का पूरे दिन लड़की की हंसी के वैभव में गुम रहा.लड़के का शाम का रास्ता दूसरा था जो कोचिंगवाले रास्ते़ से न जा कर दूसरे रास्ते़ से जाता था.लड़के का मन किया कि वह रोजवाले रास्ते पर न जा कर कोचिंगवाले रास्ते से घर लौटे, पर न जाने क्या सोच कर वह रोजवाले रास्ते पर ही चल पड़ा, लेकिन लड़की उसकी आँखों के सामने खि‍लखिलाती रही.लड़की को न देखने का उसका प्रण उसी भस्से़ में गिर कर खो गया था.

लड़का रात भर उसी भस्सें में पड़ा रहा और लड़की उस पर खिलखिलाती रही.लड़की के खिलखिलाने से लड़के की पूरी रात चांदनी में नहाई रही.चांदनी दूधिया पर उसके भीतर न जाने कितने रंग छुपे हुए.दूसरे दिन सुबह तक पिता नहीं आए थे पर लड़का चार बजे ही उठ गया और रट्टा मारने लगा.रट्टा मारने में लड़ने का मन नहीं लगा तो लड़के ने न जाने क्या सोच कर हिंदी का काव्य संकलन निकाला और कविताएं पढ़ने लगा - 'बूंद टपकी एक नभ से / किसी ने झुक कर झरोखे से / कि जैसे हंस दिया हो / हंस रही सी आंख ने / जैसे किसी को कस दिया हो / ठगा सा कोई किसी की / आंख देखे रह गया हो / उस बहुत से रूप को / रोमांच रोके सह गया हो।'

कविता लड़के के थोड़ी समझ में आई, ज्यादा समझ में नहीं आई.फिर भी कविता पढ़ते हुए उसे अच्छा लगा.लगा, जैसी उसी के भीतर की कोई छुपी हुई बात है जिसके बारे में वह खुद भी नहीं जानता.इसके बाद वह एक के बाद एक कई कविताएँ पढ़ गया पर जल्दी ही कविताओं पर से उसका ध्यान उचट गया.किताब में ज्यादातर कविताएँ ऐसी थीं जो उसे जरा भी अपनी नहीं लगीं.कइयों की तो भाषा ही उसकी समझ में नहीं आई.उसने किताब परे रख दी और उठ कर मैदान की तरफ चला गया.बाहर हवा रही थी जो एक पल तो लड़के को ठंडी सुहावनी लगी पर दूसरे ही पल गर्म और झुलसानेवाली.

लड़के का मन आज कहीं भी नहीं लग रहा था.कोचिंग जाते समय वह पूरे रास्ते लड़की की हँसी की खनखनाहट में गुम रहा.रास्ते में उसे रोज की जगह पर कुत्ता मिला.कुत्ता उसे देख कर भौंका नहीं, बल्कि अदब से पूँछ दबा कर खड़ा हो गया.लड़के को कल के लिए कुत्ते पर दया आई पर तुरंत ही उसने सोचा कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी.कोचिंग में उसके कल के प्रदर्शन से उत्साहित गणित अध्यापक पढ़ाते हुए उसकी तरफ देखते तो वह ब्लैकबोर्ड देखने लगता या अपनी कॉपी में सर घुसा लेता.हालाँकि अध्यापक द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब उसने सही-सही दिए पर उनमें कल की निश्चिंतता की जगह एक संशय था.लड़का जवाब देते समय भी भीतर ही भीतर सोच रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि लड़की उसकी कोचिंग छूटने के पहले ही स्कूल पहुँच जाए, क्या पता लड़की की कोई एक्स्ट्रा क्लास हो, पता नहीं लड़की उसे आज भी रास्ते में मिलेगी या नहीं, मिलेगी भी तो उसे पहचानेगी भी या नहीं, पहचान लेगी तो उसे देख करके मुस्कुराएगी या नहीं, मुस्कुराएगी तो उसमें लड़के के लिए प्यार भी होगा या वह लड़के के लद्धड़पन पर मुस्कुराएगी.और भला लड़की का नाम क्याे होगा? गणित के सवालों के बीच ऐसे संशय गणित अध्या पक कहाँ से समझ पाते या कौन जाने कि ऐसे सवालों ने ही उन्हें गणित का अध्यापक बना दिया हो, नहीं तो वह लड़के से यह क्यों पूछते कि लड़के आज तुम्हाारा ध्यान कहाँ है. रास्ते में लड़के को उसी जगह लड़की फिर मिली जहाँ वह कल मिली थी.वैसे ही दूर से धीरे-धीरे लड़के की तरफ आती हुई.लड़के ने साइकिल धीमी कर दी.लड़की उसके और करीब आ पहुँची थी.

लड़की की निगाह नीचे की तरफ थी.लड़के को लगा कि लड़की उसे देखेगी भी नहीं और चली जाएगी और कल उसके गिरने और लड़की के मुस्कुराने से दोनों के बीच जो परिचय कायम हुआ है वह लड़की के भीतर से गायब हो जाएगा.लड़के की समझ में नही आया कि वह क्या करे कि लड़की उसकी तरफ देखे.इतना भी नहीं हुआ कि लड़की के पास ब्रेक मार कर रुक ही जाए.उसके पाँव पैंडिल पर वैसे ही चलते रहे पर उसकी आँखें लड़की की तरफ घूमती चली गईं.और लड़के की मुराद कुछ इस तरह से पूरी हुई कि उसकी साइकिल के सामने आ रही गाय ने रास्ता नहीं छोड़ा और साइकिल गाय से जा टकराई.

लड़की ने पलट कर देखा और लड़के को पहचान कर रुक गई और हँसने लगी.लड़की हँसते हुए थोड़ा सा झुक आई और उसके मुँह से निकला 'बौड़म।' लड़के ने हँसी की ऐसी खनक पहले कभी नहीं सुनी थी.लड़के का पूरा वजूद उसकी आँखों और कानों में सिमट आया.लड़की का हँसना देर तक थमा नहीं तो लड़का शरमा गया.तब तक गाय छिटक कर दूर खड़ी हो गई थी.शरमाए हुए लड़के ने जल्दी से उठने की कोशिश की.जवाब में लड़की भी सीधी खड़ी हो गई.उसने मुस्कुराते हुए लड़के की तरफ देखा और अपने रास्ते मुड़ गई.लड़के ने देखा कि उसके दाहिने हाथ में गाय की सींग से खरोंच आ गई थी और खून रिस रहा था.उसने सोचा कि उसका चोटवाला हाथ कहीं लड़की ने देख न लिया हो.उसने साइकिल उठाई तो देखा कि साइकिल की हैंडिल घूम गई थी.लड़के ने साइकिल के आगे जा कर अगला पहिया दोनों टाँगों के बीच फँसाया और हैंडिल सीधी करने लगा पर उसकी निगाह लड़की की पीठ पर जा कर रुक गई.उसी समय लड़की ने पीछे पलट कर देखा तो लड़के ने अपना पूरा ध्यान हैंडिल सीधी करने में लगा दिया कि वह लड़की की तरफ देख ही नहीं रहा है.लड़की मुस्कराई और अबकी उसके मुँह से निकला 'बुद्धू।' लड़के को उसका 'बु्द्धू' बोलना नहीं सुनाई पड़ा.

दिन भर लड़की के बारे में सोचते हुए शाम तक लड़के ने तय किया कि वह लड़की को खत लिखेगा.अगले पूरे दिन वह कॉलेज के पीछे की महुआरी में बैठ कर लड़की के लिए प्रेमपत्र लिखने की कोशिश करता रहा.वह लड़की को ऐसा प्रेमपत्र लिखना चाहता था.जैसा कभी भी किसी लड़के ने किसी लड़की को न लिखा हो.एकदम अनोखा पत्र.वह अपने खत में ऐसा असर पैदा करना चाहता था कि उसे पढ़ते ही लड़की के भीतर बिजली दौड़ जाए और खत का एक-एक शब्दन लड़की के भीतर कुछ इस तरह से बस जाए की लड़की भी उसी तरह से मर-मिटने लगे, जिस तरह से लड़का लड़की पर मर-मिटा था.तो लड़के ने कुछ प्रेम भरी पंक्तियाँ लिखीं, फिर कुछ पंक्तियाँ काट दीं.इसके बाद उसने कुछ नई पंक्तियाँ लिखीं.उसे न जाने कहाँ से बहुत सारे शेर याद आए जो उसने उन पंक्तियों के बीच में भर दिए.पर लड़के ने जब अपने लिखे को दुबारा पढ़ा तो उसे लगा कि इन शेरों को पढ़ कर लड़की उसके प्यार को चालू समझेगी और उसे सड़कछाप गंदा समझेगी.उसने अपने लिखे हुए को दुबारा काट दिया.तब अचानक लड़के ने सोचा कि अगर वह अपने खत में इतना असर न पैदा कर पाया कि उसके एक ही खत को पढ़ कर लड़की उस पर मर-मिटने लगे और कहीं उस पर मर-मिटने की बजाय लड़की उस पर नाराज हो गई और उसे नापसंद करने लगी तो...? तो लड़के ने सोचा कि खत कम से कम ऐसा होना चाहिए कि लड़की नाराज तो न ही हो, बल्कि अच्छा होगा कि खुश हो जाए और हँसने लगे.जिस तरह से वह उस दिन लड़के के भस्से में गिरने पर या गाय से टकरा कर गिरने पर हँसी थी.

तब लड़के को बहुत सारे चुटकुले याद आए.अकबर-बीरबल के किस्से याद आए और चुटकलों की उसके पास उपलब्धा किताब 'रँगीली दुनिया' याद आई और उसने अपने दिल का हाल बयान करने के बाद खत में पसंद के ढेर सारे चुटकुले लिख डाले.एक से बढ़ कर एक चुटकुले, पर फिर वही बात कि कई बार पढ़ने के क्रम में लड़के ने पू्रे खत को फिर से काट डाला.उसे लगा कि लड़की कहीं उसे मसखरा ही न समझ ले और कभी गंभीरता से ले ही न पाए.लड़का बेचैन हो गया.उसकी पूरी कॉपी भरने को आ रही थी.हाशिये तक पर आड़ी-तिरछी पंक्तियाँ खड़े-खड़े थक गई थीं और हाँफ रही थीं, पर लड़के को अपनी पसंद की चार पंक्तियाँ नहीं मिल पा रही थीं.लड़का समझता था कि उसकी भाषा अच्छीप है क्योंकि निबंध के पर्चों में उसे हमेशा अच्छे अंक और अध्यापकों की शाबाशी मिलती रही थी, पर आज वह अपने आपको असहाय पा रहा था.उसे अपने मनमाफिक शब्द ही नहीं मिल पा रहे थे.वह पूरा खत तो क्या, एक अच्छा वाक्य तक नहीं लिख पा रहा था, जो लड़की के दिल में तीर की तरह उतर जाए.

ऐसे ही कई दिनों तक चलता रहा.लड़का एक के बाद एक खत लिखता रहा और फाड़-फाड़ कर फेंकता रहा.इस बीच उसकी पढ़ाई भी जस की तस चलती रही, बल्कि अब उसमें एक नई चीज आ गई.वह लड़की की हँसी याद करता और पढ़ाई में डूब जाता.वह बार-बार तय करता कि उसे लड़की के लिए कुछ बन कर दिखाना दिखाना है.यह कुछ बन कर दिखाने का भाव कई बार इतना प्रबल हो जाता कि वह उस समय लड़की को याद करता और उदास हो जाता.उसे डर सताने लगता कि लड़की ने कहीं उसे न पसंद किया तो! आखिर तो वह इतना नाकारा साबित हो रहा है कि इतने दिनों की मेहनत के बावजूद लड़की के लिए एक खत तक नहीं लिख पा रहा है.ऐसे में लड़का बेचैन हो जाता और बेचैनी में फिर से खत लिखने बैठ जाता.इस बीच वह लड़की को रोज उसी जगह पर देखता और पाता कि लड़की के प्रति उसका लगाव हर बीते पल के साथ और बढ़ जाता.वह लड़की को रोज देखता पर देखते हुए इस बात का भी ख्याल रखता कि लड़की उसे देखते हुए न देखे पर अक्सर दोनों की नजरें मिल जाती और तब लड़की के चेहरे पर एक मुस्कान तैर जाती.लड़का कभी इस मुस्कान को अपने लिए समझ कर खुश हो जाता तो कभी उसे लगता कि लड़की उसके बौड़मपने पर मुस्कुरा रही है, पर वह आखिरी तौर पर कुछ भी नहीं तय कर पाता.

सब कुछ ऐसे ही चल रहा था कि उसने निश्चय किया कि उसे जानना ही होगा कि लड़की के मन में क्या है.आखिर कब तक ऐसे चलता रहेगा? इस निश्चय के बाद उसने लड़की के लिए कामचलाऊ ही सही, पर एक खत लिख ही लिया.लड़के ने लिखा, ऐ लड़की मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ - तुम्हारा बौड़म लड़का.इस एक पेज के खत में उसने कुछ फूल-पत्तियाँ बनाई और नीचे जहाँ बौड़म लिखा था उसके नीचे एक जोकर का चित्र बनाया.लड़का अपने इस खत से बेहद निराश था पर उसने पाया कि फिलहाल तो इससे बेहतर खत वह नहीं लिख सकता.लड़के ने इस खत को अपने ही बनाए कागज के एक पर्स में रखा पर इसी के साथ एक दूसरी समस्याख आ खड़ी हुई कि वह इस खत को लड़की को दे कैसे.रोज सुबह जब वह कोचिंग से निकलता तो खत निकाल कर हाथ में ले लेता और हथेली और हैंडिल की मुठिया के बीच छुपाए रखता.जब लड़की सामने होती तो लड़के की हथेली पसीने से चिपचिपी हो जाती, उस्के सीने में रेल चलने लगती और सामने कुहरा छा जाता.इस तरह जब लड़की उसे दिखाई ही न देती तो वह खत किसे पकड़ाता.खत उसके साथ कॉलेज पहुँच जाता और लड़के के हाथ की बनी कागज की पर्स पसीने से पसीज जाती और तुड़मुड़ जाती.लड़के को रोज एक नया पर्स बनाना पड़ता.अगले दिन फिर से यही सब दोहराया जाता.ये सब न जाने कब तक चलता रहता कि एक दिन जब वह हथेली और हैंडिल के बीच खत छुपाए लड़की को देख रहा था तो रेल के शोर और बढ़ते हुए कुहरे के बीच वह पहिए के नीचे आ रही ईंट को नहीं देख पाया.इसी के साथ साइकिल का संतुलन गड़बड़ा गया.लड़का गिरा तो नहीं पर साइकिल सँभालने के चक्कपर में खत उसकी हथेली से नीचे फिसल गया.जब तक लड़का कुछ करता, साइकिल आगे बढ़ आई और लड़की गिरे हुए खत के पास पहुँच गई.लड़की ने खत उठा लिया.

लड़की भी सुबह ही उठती थी पर उसके काम लड़के से उलट थे.उठ कर मुँहअँधेरे ही जानवरों को उनके बाड़े से निकालती, सानी-पानी करती, तब तक उजाला होने लगता.उजाला होने के पहले ही दिशा मैदान जाती.लौट कर घर में झाड़ू लगाती.इसके बाद तो चाल बीनने, दाल बीनने, आटा गूँथने या सब्जीा काटने जैसे काम आते रहते जिन्हेंर लड़की खुशी-खुशी निपटाती रहती.लड़की अपने मामा के यहाँ रहती थी.लड़की की मामी हर थोड़ी देर बाद उसका नाम ले कर चिल्लाती रहती और साथ में इस बात का बखान भी करती रहती कि वह लड़की को वैसे तो कुछ करने के लिए कहती ही नहीं पर अगर लहसुन छीलने जैसा मामूली काम भी उसे देती है तो लहसुन का एक जवा भी कायदे से छिला नहीं मिलता.लहसुन के छिलके उसमें लिपटे रहते हैं, ऊपर से आधा लहसुन लड़की के फैशनेबल नाखूनों में फँस कर खर्च हो जाता है.लड़की इन बातों को सुनती और इन पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करती और एक न दिखनेवाली मुस्कान के साथ अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती है.लड़की अपनी इस अदा के लिए बेशर्म भी कही जाती है.

लड़की कुल तीन बहनों में सबसे बड़ी है.लड़की के बड़े मामा को कोई बच्चा नहीं था, सो उन्होंने अपनी बहन से गुजारिश की कि वह लड़की को अपने साथ रखना चाहते हैं.थोड़े से इधर-उधर के बाद बहन मान गई और इस तरह लड़की अपने मामा के यहाँ आ गई.बड़े मामा सचमुच उसे खूब प्यार करते थे.पर वह पुलिस में थे.उनकी पोस्टिंग पड़ोसी जिले के किसी इलाके में थी जहाँ से वह सिर्फ रविवार के लिए घर आ पाते थे.रविवार का दिन लड़की के लिए अलग दिन होता.वह रोजवाले सारे काम करती रहती पर मामी साथ में टोकती भी रहती कि लड़की मैं कर रही हूँ, न, तू क्यों परेशान हो रही है.अभी तो पढ़ने-लिखने और खेलने-कूदने की उमर है तेरी.लड़की सिर नीचे किए मुस्कराती रहती और अपना काम करती रहती.उसे पता था कि वह अगर सचमुच खेलने-कूदने चली गई तो उसका अगला हफ्ता किस तरह से बीतेगा.तो मामी के इस लाड़ पर वह हँस देती पर दिन का सबसे मजेदार प्रसंग तक घटता जब वह खाना खाने बैठती.मामी उसे भूख का डेढ़ गुना खाना परोस देती और बार-बार पूछती भी रहती कि बता लड़की और क्याा लेगी.लड़की मुस्कुरा-मुस्कुरा कर मना करती रहती. इसी मुस्कुराती  हुई लड़की ने जब उस ऐतिहासिक दिन लड़के को देखा तो हँस पड़ी.लड़का उसे अच्छा लगा.बौड़म, पर सच्चा और प्यारा.लड़की बड़ी हो रही थी.रोज आते-जाते लड़की को अपने बदन पर ऐसी बहुत सारी नजरों को झेलना पड़ता जो उसे असहज बना देतीं.इस असहजता से बचने के लिए उसने सिर नीचे करके चलते जाना सीख लिया था.इस तरह वह कौन उसे देख रहा है या किस नजर से देख रहा है जैसी चीजों से परे हो गई थी.जिस दिन लड़का भस्से में फँस कर गिरा उसके पहले लड़की ने कभी उसे देखा ही नहीं था इसलिए वह जान ही नहीं पाई कि लड़का उसी के जादू में फँस कर गिरा है.मुस्कुराने वाली लड़की ने जब लड़के को भस्से में फँसने पर घंटी बजाते देखा तो ये दृश्य उसे बहुत मजेदार लगा और वह हँस पड़ी.उसे दिनभर यह प्रसंग याद आता रहा और वह मुस्कुराती रही.लड़के से ज्यादा उसे लड़के का घंटी बजाना याद आता रहा.दूसरे दिन जब लड़का उसे देखते हुए गाय से जा भिड़ा तो उसे फिर से हँसी आई और इसी के साथ वह समझ गई कि इस सबके पीछे उसका ही जादू काम कर रहा है.लड़का जिस तरह से उसे देख रहा था, लड़की को बहुत अच्छा लगा.उसका मन किया कि लड़का ऐसे ही उसे देखता रहे.तब उसे लड़के की थोड़ी चिंता भी हो आई कि कहीं लड़के को चोट न लगी हो.उस दिन के बाद वह स्कूल आते-जाते सतर्क हो गई.अब लड़का ही उसे नहीं देखता था बल्कि वह भी उसे देखती थी.दोनों एक-दूसरे को ऐसे देखते कि दूसरा उसे देखते हुए न देखे पर ऐसा रोज होता कि दोनों की नजरें मिल ही जातीं और मिली ही रह जातीं.लड़की मुस्कुराती और आगे बढ़ जाती.लड़का भी यही करता.दोनों सुबह से ही उस पल का इंतजार करते जब वो एक दूसरे की बगल से गुजरेंगे.ये गुजरना पल भर का ही होता.दोनों का ही इससे दिल नहीं भरता था पर कोई और रास्ता भी दोनों अब तक नहीं खोज पाए थे.और शायद यह भी कि एक-दूसरे को पसंद करने क बावजूद दोनों ही एक दूसरे के बारे में निश्चिंत नहीं हो पाए थे.

ऐसे में लड़के के हाथ से गिरी चिट्ठी ने दोनों का काम आसान कर दिया.लड़की को कई दिनों से लग रहा था कि लड़का उससे कुछ कहना चाहता है.लड़का जब बिना कुछ कहे निकल जाता तो लड़की को गुस्सा़ आता कि बुद्धू कुछ कहता क्यों नहीं.तो जब उसे बु्द्धू का खत मिला तो खत पढ़ कर वह दिल खोल कर हँसी.सिर्फ एक पंक्ति का खत, वह भी एकदम सीधा, साथ में फूल-पत्तियाँ और जोकर.आज तक उसने ऐसे किसी खत के बारे में नहीं सुना था.लड़की को सबकुछ जादू-जादू सा लगा.वह एक अनोखे एहसास से रोमांचित हो उठी.पल भर में उसने अपनी जी जा रही दुनिया को हाशिये पर छोड़ दिया और एक ऐसी अनजानी दुनिया में रहने लगी जो उसके लिए हर पल नई थी और उसमें हमेशा डूबे रहने के बाद भी उसका नयापन खत्म नहीं हो रहा था.लड़की इसलिए भी अपने आपको जमीन से थोड़ा ऊपर उठा हुआ पा रही थी कि उसने अपने लिए एक ऐसी छुपी हुई दुनिया खोज निकाली थी जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं था.इस दुनिया में वह लड़के के साथ या उसके साथ के बिना भी, कभी भी गुम हो सकती थी और सबसे बढ़ कर यह कि उसके लिए यह दुनिया किसी माँ- बाप या मामा-मामी ने नहीं खोजी थी, बल्कि लड़की ने इसे अपने लिए खुद रचा था.इस दुनिया को रचते-रचते लड़की के सपनों में पंख उग आए और उनमें अनवरत बिजली दौड़ने लगी.

खत मिलने के दूसरे ही दिन लड़की ने भी लड़के की ही तर्ज पर सिर्फ एक पंक्ति का खत लड़के के हाथों में पकड़ाया जिसमें लिखा था कि, मेरे बौड़म मैं भी तुम्हें प्यार करती हूँ - तुम्हारी लड़की.लड़का उसे वहीं खोलने लगा तो उसने कहा कि अभी नहीं, बाद में.लड़का खुशी के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था.वह उछल पड़ना चाहता था.वह वहीं लोट जाना चाहता था.वह लड़की से कुछ और कहना चाहता था जब उसके मुँह से निकला कि चलो मैं तुम्हें स्कूल छोड़ देता हूँ.लड़की हँसने लगी.उसने कहा, न बाबा, तुम्हारा क्या भरोसा.रास्तेे में भस्सा आएगा तो घंटी बजाने लगोगे.मैं ऐसे ही चली जाउँगी.कल मिलना.लड़के ने स्कूल जाती हुई लड़की को देखा तो उसे लगा कि लड़की चलते हुए नहीं, बल्कि उड़ते हुए जा रही है.जाती हुई लड़की ने अपने पैरों से भस्से की धूल उड़ाई जिसे हवा लड़के के चेहरे तक ले आई.लड़का खुश हो गया और वह भी अपनी साइकिल पर उड़ चला.

इस तरह प्रेम की गाड़ी चल निकली.लड़का-लड़की रास्तेे में मिलने लगे पर यह मुलाकात सिर्फ चिट्ठियाँ बदलने भर की हो पाती और इस बीच मुश्किल से दो चार बातें ही हो पातीं.जल्दी ही दोनों ने पाया कि राह चलते हुई मुलाकातें दोनों में से एक को भी पूरी तरह से खुश नहीं कर पातीं.दोनों देर तक एक-दूसरे से मिलना-बतियाना चाहते.इस तरह जल्दी ही कहीं और मिलने की जगह तय हुई.सुबह के समय लड़का-लड़की दोनों ही घर, स्कूल, रास्ता और कोचिंग जैसी चीजों से बँधे हुए थे तो तय हुआ कि वे दोपहर बाद मिलेंगे, स्कूल से लौटते हुए.इससे लड़के का रास्ता मील भर और बढ़ जानेवाला था पर लड़की उसे बहुत प्यारी लगी.

यह एक आधा बाग, आधा खेत जैसी जगह थी जहाँ दोनों ने मिलना तय कर रखा था.बाग के आधे पेड़ सूख या गिर चुके थ, तो बाग जिसका भी रहा होगा, उसने वहाँ अरहर बो रखी थी जो, अगर लड़का-लड़की बैठ कर मिलें तो उनको छुपाने के लिए पर्याप्तय थी.लड़का अपनी साइकिल दूर खड़ी करके आया था और एक पेड़ की ओट में अपनी रूमाल बिछा कर लड़की के बैठने की जगह बना रहा था.लड़की हाँफते हुए आई.उसकी साँसें तेज हो रही थीं और चेहरा लाल हो रहा था.लड़के ने रूमाल दिखा कर लड़की से कहा कि बैठ जाओ.लड़की हँसने लगी और उसने पूछा कि तुम कहाँ बैठोगे? जवाब में लड़के ने अरहर के दो-तीन पेड़ गिराए और उनकी पत्तियोंवाले हिस्से पर बैठ गया.लड़की ने हँसते हुए कहा कि मेरा बौड़म कितना समझदार है, पूरा इंतजाम करके रखा है.बौड़म लड़का पहले ही शरमाया-सा था, लड़की की इस बात पर और शरमा गया.वह लड़की से आँख मिलाता तो उसके भीतर रेल दौड़ने लगती और वह अरहर के मनोहारी खेत की खूबसूरती में डूब जाता.आखिरकार लड़की ने पूछा कि लड़के तुम्हाररा नाम क्या है? लड़के ने जवाब दिया कि श्याम कुमार और बदले में लड़के ने लड़की का नाम पूछा.लड़की ने कहा कि मेरे श्याम मेरा नाम राधा है और हँसने लगी.हँस लेने के बाद लड़की ने बताया कि उसका नाम बबिता है.नाम बताने के बाद लड़की दुबारा हँसने को हुई तो लड़के को डर लगा कि उसकी हँसी की खनक खेत को पार कर दूर रास्तेे तक न पहुँच जाए और किसी को पता चल जाए कि वहाँ खेत में लड़का-लड़की बैठे हैं और हँस रहे हैं.तब लड़के ने कहा कि बबिता तुम जोर से हँस रही हो, कोई सुन लेगा, तुम्हें धीरे हँसना चाहिए.लड़की ने कहा कि मैं तो ऐसे ही हसूंगी, कोई सुने तो मेरी बला से, तुम भी हँसो.

तब लड़के ने कहा कि, मेरी बबिता मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ.लड़की ने जवाब दिया, चल हट झूठे श्याम, प्यार करनेवाला श्याम कहीं इतनी दूर बैठता है.लड़का थोड़ा और पास हो आया, फिर भी दोनों के बीच इतनी दूरी बची रही कि कोई तीसरा उनके बीच आराम से बैठ सकता था.लड़की ने कहा कि प्यार करनेवालों को अपने बीच इतनी जगह नहीं छोड़नी चाहिए कि उनके बीच कोई तीसरा आ बैठे.मेरे और पास आओ श्याम.लड़का थोड़ा और पास आया फिर भी दोनों के बीच जगह बची रही तो लड़की ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया.लड़के के भीतर नगाड़ा बजने लगा.उसने अपने दूसरे हाथ से लड़की का दूसरा हाथ पकड़ लिया.इस तरह मामला बराबर हो गया.लड़का-लड़की ने एक-दूसरे को इतने पास से कभी नहीं देखा था.लड़के को लड़की जितनी सुंदर और प्या़री लगी, उतरी सुंदर और प्यार भरी लड़की उसने दुनिया में कभी नहीं देखी थी.लड़का इतना खुश था जितना अपनी जिंदगी में पहले शायद कभी नहीं हुआ था.लड़की का भी लगभग यही हाल था पर सबसे ज्यादा मजा उसे लड़के के शर्मीलेपन पर आ रहा था.आज के पहले वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कोई लड़का इतना भी शर्मीला हो सकता है.पर इसी शर्मीले लड़के ने लड़की को अपनी बाँहों में घेरे में ले कर उसके गालों को चूम लिया.जैसे लड़की की लटें उसे जहाँ-तहाँ चूमती रहती थीं उसी तरह लड़के ने लड़की के गालों पर अपने होंठ रख दिए.पर जब लड़की ने लड़के के होंठो को अपने गालों से दबाया तो लड़के के होंठ काँपने लगे.लड़की का गाल उसे ऐसे लगा जैसे ठोस हवा हो.लड़के ने अपने होठों पर हवा का ऐसा ठोस दबाव पहले कभी नहीं महसूस किया था.इस दबाव में कोई ऐसा एहसास छुपा था कि वह काँपने लगा.काँपते हुए ही उसने अपने होठों को हवाओं से जूझने दिया पर अचानक ही उसने लड़की को छोड़ दिया और दूर हो कर बैठ गया.लड़की को चूमते हुए उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था और वह पहली बार मिलनेवाले इस सुख में डूब ही रहा था कि उसे लगा वह कोई गंदा काम करने जा रहा है.लड़की ने जब उससे पूछा कि क्या हुआ तो लड़के ने कहा कि प्यार एक पवित्र भावना का नाम है.लड़की हँसते-हँसते दोहरी हो गई.वह लड़के के पास आई और उसके गालों को अपने मुँह में भर लिया, दँतियाया और यह कहते हुए छोड़ दिया कि यह तुम्हारा वाला गंदा प्यार नहीं है.यह पवित्र प्यार है.लड़का दुबारा शरमाने लगा.लड़की को उसके शरमाने पर मजा आया.वह बोली कि मेरा बौड़म इतना समझदार है कि भस्सा सामने आता है तो घंटी बजाने लगता है.ऐसे ही सामने कभी दलदल आ जाए तो भी घंटी बजाओगे मेरे जानूमानू? बता न श्याम, तू साइकिल से चला जा रहा है और सामने से ट्रेन आ गई तो मेरा श्याम क्या करेगा... घंटी बजाएगा? लड़के ने अपना होंठ दाँतों से दबा लिया और मुस्कडराने लगा.लड़की ने उसे इस तरह से मुस्कुराते हुए देखा तो उसे बड़ा मजा आया और वह हँसने लगी.

इसके बाद दोनों अक्सर मिलने लगे और उनका प्यार दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ने लगा.पर्स में मिले रुपयों से लड़के ने कुछ सुंदर-सी रूमालें खरीदीं और एक सुंदर कागजोंवाली कापी भी.कागज लड़की को अपने दिन की बात लिख कर जताने के लिए और रूमालें... लड़के की पहुँच में खाने की जो भी चीजें उपलब्ध होतीं, लड़का रूमाल में बाँध कर लड़की के लिए ले जाता.तमाम मौसमी फल जैसे बेर, चीकू, करौंदा, आम, नींबू, कैथा, कच्ची इमली, बढ़हल, आँवला या घर में बनी कोई ऐसी चीज जो लड़का लड़की के लिए छुपा पाता.और कुछ नहीं तो चूरन, टॉफी या मूँगफली जैसी चीजें तो थीं ही.कई बार वह अपने दिल की दास्ताऔन बतानेवाला खत भी उसी रूमाल में गठिया देता और लड़की के बगल से गुजरते हुए उसके हाथों में थमा देता.लड़के की इस आदत पर लड़की नकली गुस्सा और असली खुश होती.वह लड़के को रोज झूठ-मूठ का मना करती पर लड़का किसी दिन कुछ भी न ला पाता तो उसे दिन भर खाली-खाली लगता रहता और रह-रह कर भूख सताती रहती.

लड़के की ऐसी ही आदतों से लड़की को यह प्रेरणा मिली होगी कि वह लड़के को हर बार अलग नाम से पुकारे.शुरुआत कुछ ऐसी हुई कि कैसे हो मेरे गुलाब? लड़के ने जवाब दिया कि अच्छा हूँ मेरी चमेली.पर लड़के की ये हाजिर जवाबी बेला, गेंदा और रातरानी पर आ कर खत्म हो गई जबकि लड़की की लिस्ट कभी नहीं खत्म हुई.लड़की के भीतर जैसे-जैसे लड़के के लिए प्यार बढ़ रहा था वैसे-वैसे वह लड़के पर प्रेम जतानेवाली शब्दावलियों का भी विस्तार कर रही थी.फूलों से वह फलों में घुसी और लड़का मेरे आम, मेरे सेब, मेरा अंगूर हुआ और इस तरह से मेरे परवल, मेरे कद्दू के रास्ते होते हुए मेरे शाहरुख खान, मेरे अभिषेक बच्चन और कई बार स्थितियों के अनुरूप मेरे गधे, मेरे चूहे तक पहुँचा.लड़की लड़के को कुछ भी कहती पर उसमें 'मेरा' लगा होता इसलिए लड़का खुश हो जाता.वह जिस तरह के संबोधन से लड़के को पुकारती, उससे लड़का लड़की के मूड का अंदाजा लगा लेता और उसी हिसाब से अपने को ढाल लेता.

यही सब चल रहा था कि बातचीत के क्रम में लड़की ने लड़के को बताया कि उसके छोटे मामा कुलीबाज सिंह लड़के के स्कूल में ही पढ़ाई कर रहे थे.कुलीबाज पिछले साल इंटर की परीक्षा में फेल हो गए थे और इस साल फिर से उसी परीक्षा में बैठने जा रहे थे.लड़का कुलीबाज सिंह को जानता था.कुलीबाज एक लंबा-चौड़ा लड़का था और भाला फेंक, गोला फें‍क जैसी प्रतियोगिताओं में तहसील स्तर पर पहला स्थान पा चुका था.कुलीबाज की पढ़ने-लिखने में कोई रुचि नहीं थी और वह हमेशा आवारा टाइप के दस-बारह लड़कों से घिरा रहता था.आए दिन उसके झगड़े किसी न किसी से होते रहते थे और लड़का ही क्या कॉलेज के सभी लड़के चपरासी और अध्यापक तक उसकी दबंगई के कायल थे और गाहे-बगाहे अपने कामों के लिए भी उसकी मदद लेते रहते थे. लड़के ने सोचा कि अगर उसकी दोस्तीे कुलीबाज सिंह से हो जाए तो उसकी मोहब्बत की राह आसान हो सकती है और उसकी पहुँच लड़की के घर तक बन सकती है.पर लड़का पढ़ाकू और सीधा-सादा था और कुलीबाज सिंह के एकदम उलट था, तो ऐसे में लड़का उससे दोस्ती कैसे बनाए या उसके नजदीक कैसे पहुँचे, यह एक बड़ा सवाल था.ऐसे में लड़के की तकदीर ने काम किया और उसके हाथ एक मौका लग ही गया.लड़के ने अपनी जान पर खेल कर इस मौके को लपक लिया. हुआ यह कि एक दिन जब वह कॉलेज से लौट रहा था तो उसने देखा कि अमबगिया के बगल में दो मजबूत लड़के मिल कर कुलीबाज सिंह को पीट रहे थे.कुलीबाज सिंह भी मजबूत कद-काठी का था पर दो लोगों से हार रहा था और एक मार रहा था तो बदले में चार खा रहा था.लड़के ने अपनी मोहब्बात के वास्तेा कुलीबाज की तरफ से लड़ाई में कूदने का फैसला किया हालाँकि लड़का लगभग निश्चित था कि इससे कुलीबाज का कोई फायदा नहीं होगा और उसके साथ में लड़का भी पिटेगा, फिर भी ये दाँव खेलने में लड़के ने जरा भी वक्ते नहीं लगाया.उसने सारी सुनी हुई गालियाँ मन में दोहराईं और एक उपयुक्त गाली को चबा और चिल्ला कर बकते हुए और कोई हथियार न पा कर पाठ्यपुस्तकों में देखे गए अभिमन्यु के चित्र की तरह साइकिल हाथों में उठा कर दौड़ा.दोनों लड़कों ने उसे अचानक इस तरह अपनी ओर हमलावर होते हुए पाया तो घटना की अचानकता से वह दिग्भ्रमित हो गए.एक लड़का कुलीबाज से‍ भिड़ा रहा और दूसरा लड़का लड़के की तरह बढ़ा.लड़के ने प्रतिद्वंद्वी लड़के पर अपनी पूरी ताकत लगा कर साइकिल उछाल दी.प्रतिद्वंद्वी लड़का साइकिल के नीचे आ गया.दूसरी तरफ कुलीबाज सिंह को सँभलने का मौका मिल गया और बाजी पलट गई.इस तरह लड़के की मनचाही मुराद पूरी हो गई. कुलीबाज सिंह के पूछने पर लड़के ने आवाज में थोड़ा गहराई लाते हुए कहा कि उसके किसी सहपाठी पर बाहरी लड़का हाथ उठाए, इसे वह अपनी आँखों से कैसे देख सकता है.और कुलीबाज सिंह तो कॉलेज की शान हैं, जिन्होंने खेलों में कॉलेज का नाम बार-बार रोशन किया है.इस दिन के बाद से लड़का और कुलीबाज अक्सर मिलने-जुलने लगे और धीरे-धीरे करके वह दिन आ ही गया जब लड़का पहली बार कुलीबाज सिंह यानी लड़की के घर पहुँचा.लड़के ने इस बारे में लड़की को कुछ भी नहीं बता रखा था. लड़की ने जब उसे कुलीबाज सिंह के साथ बैठ कर ठहाका लगाते हुए देखा तो पैर पटकते हुए अंदर चली गई.लड़की की राय अपने छोटे मामा कुलीबाज सिंह और उसके दोस्तोंं के प्रति बेहद खराब थी.वह कुलीबाज को तो आवारा-नाकारा समझती ही थी उसके दोस्तों से अलग से परेशान थी जो कुलीबाज के बहाने घर आते और उनकी निगाहें लड़की के बदन पर घूमती रहतीं.दूसरे दिन मिलने पर लड़की ने लड़के को जमकर डाँटा और बोली, क्या अंतर बचा है तुममे और मेरे उस गंदे मामा के दोस्तोंड में? लड़का हकलाने लगा.उसने कहने के लिए सोचा कि वह लड़की को चौंकाना चाहता था और खुश देखना चाहता था और कहाँ लड़की उससे नाराज हो गई थी और उससे जवाबतलब कर रही थी.लड़के ने लड़की के सामने यही बातें दोहरा दीं.उसने कहा कि मेरी जानूमानू, मैं तुम्हें चौंकाना चाहता था और खुश देखना चाहता था.लड़की ने कहा कि वह चौंकी जरूर पर खुश जरा भी नहीं हुई और वह नहीं चाहती कि लड़का दोबारा कभी कुलीबाज सिंह के साथ नजर आए.भले ही लड़की, लड़के से कितने दिन भी क्यों न मिल पाए.लड़के का मुँह लटक गया तो लड़की को उस पर प्याकर आने लगा.उसने कहा कि मेरे बैगन, इस तरह मुँह मत लटकाओ.मैं तुमसे प्यार करती हूँ, तुम्हारे लिए तड़पती हूँ, चाहती हूँ कि हर पल मेरे सामने रहो, तब भी नहीं चाहती कि तुम मेरे उस गंदे मामा के साथ कभी दिखो भी.और सुनो, इस सबके बजाय अपनी पढ़ाई-लिखाई में मन लगाओ.एक और बात थी जिस वजह से लड़की नहीं चाहती थी कि लड़का मामा के घर आए.पता नहीं क्योंथ, पर वह अपनी जी जा रही दुनिया के बारे में लड़के को जरा भी भनक नहीं लगने देना चाहती थी. लड़का अपना-सा मुँह ले कर रह गया.जिस कुलीबाज सिंह से दोस्ती करने के लिए उसे इतनी मेहनत करनी पड़ी, उससे अपने आपको काट पाना और भी कठिन रहा.लड़का, लड़की के कहे की प्रति पूरी तरह ईमानदार था इसलिए वह कुलीबाज सिंह की परछाई से भी बचने लगा, जबकि कॉलेज में लड़की की किसी भी तरह की पहुँच नहीं थी.वह नहीं चाहता था कि कुलीबाज से मिलता भी रहे और लड़की से झूठ भी बोलता रहे.कुलीबाज जब भी लड़के से कहीं साथ चलने या बैठने वगरैह के लिए कहना, लड़का कोई न कोई बहाना बना कर परे हट जाता.ऊपर से एक छोटी-सी दुर्घटना और भी घट गई.स्कूल के खेल अध्यापक जो लड़के की दूर की रिश्तेपदारी में आते थे, उन्हों ने एक दिन लड़के को कुलीबाज सिंह के साथ बातें करते हुए देख लिया.तब से वह जब भी लड़के के सामने पड़ते उसे समझाने लगते.लड़के के सामने दोहरी मुश्किल आ पड़ी.जहाँ पर तरफ उसे कुलीबाज सिंह से बचना होता, वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के खेल अध्यापक से भी.लड़का दोनों में से किसी को भी देखता तो इधर-उधर गुम होने का रास्ता तलाशने लगता. पर मुश्किलें थीं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं.एक दिन लड़का जब एक खेत में लड़की के साथ बैठा था और दोनों एक दूसरे के जादू में खोए हुए थे कि दूर से कुछ लड़कों की उत्तेजित आवाजें सुनाई पड़ीं.दोनों चौकन्नें हो गए.आवाजें लगातार पास आ रही थीं.दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और वहाँ से दूर भागने का फैसला किया.दोनों ने आती हुई आवाजों से नब्बे अंश का कोण बनाते हुए धीरे-धीरे खिसकना शुरू कर दिया.तेजी से भागने पर अरहर के पौधे तेजी से हिलते और दोनों तुरंत पकड़े जाते.जहाँ दोनों बैठै थे वहाँ जब तक उत्तेजित लोगों का झुंड पहुँचा, दोनों वहाँ से काफी दूर खिसक गए थे और एक खाई की बगल में छुपते हुए लड़की के घर की तरफ बढ़ रहे थे.घर के पास पहुँच कर लड़की उसी रास्ते पर आ गई जिस रास्ते से थोड़ी देर पहले लड़कों का झुंड निकला था.दरअसल इस तरह से छुप-छुप कर मिलते हुए दोनों होशियार हो चु‍के थे.लड़का अपनी साइकिल कम से कम तीन-चार सौ मीटर दूर छुपा कर खड़ी करता था.आज उसने अपनी साइकिल जहाँ खड़ी की थी, वहाँ एक बोरिंग थी जिसके चारों ओर की कच्ची दीवालों पर एक मड़ही छायी हुई थी.लड़के ने वहाँ से अपनी साइकिल उठाई और घर रवाना हो गया. दूसरे दिन जब लड़का कॉलेज पहुँचा तो एक लड़का उसे अलग से कोने में ले गया.उसने लड़के को बताया कि उसका नाम शैतान पंडित है और वह जानता हे कि कल उसके गाँव की एक लड़की के साथ कौन था.शैतान पंडित ने बताया कि वह लड़की के मामा का पड़ोसी है और उसके परिवारवालों की लड़की के मामा के यहाँ से पुरानी दुश्म़नी है.इसी परिवार के एक बूढ़े ने लड़का-लड़की को खेत में घुसते हुए देख लिया था.बूढ़ा लड़की को तो जनता था पर लड़के को नहीं पहचानता था.घर आते हुए बूढ़े ने सोचा कि वह ठाकुरों की इज्जत मजे से उछाल सकता है.आते हुए उसे लड़कों का एक ताश खेलता हुआ समूह दिखा.बूढे ने लड़कों को ललकारा कि इतने जवान लड़कों के होते हुए गाँव का माल कोई बाहरी लड़का चाभ रहा है और तुम लोग शोहदों की तरह बैठे ताश खेल रहे हो.लड़कों को ये बात ठीक लगी कि उनके रहते गाँव का माल कोई बाहर वाला कैसे चाभ सकता था.लड़के कुत्तों के झुंड की तरह दौड़े.इस झुंड में शैतान पंडित भी था जो सबसे ज्याादा शोर कर रहा था और सबसे तेज आवाज में गालियाँ बक रहा था.पंडित ने लड़के को बताया कि ऐसा वह इसलिए कर रहा था क्योंकि वह चाहता था कि लड़की खबरदार हो जाए और भाग जाए.शैतान ने कहा कि तब वह लड़के को नहीं जानता था.लड़के को तो उसने बाद में भागते हुए देखा था.शैतान ने कहा कि वह बहुत दिनों से लड़की को भोगना चाहता था, इसलिए वह सोच रहा था कि लड़की भाग जाए पर लड़का पकड़ लिया जाए.लड़का पकड़ा तो नहीं गया पर शैतान पंडित की निगाहों में आ गया. शैतान पंडित ने लड़के से कहा उसे इस संबंध के चलते रहने पर कोई दिक्कत नहीं थी.उसकी बस एक छोटी-सी शर्त थी कि उसे भी लड़की का हिस्सेदार बनाया जाए.लड़का गुस्से से काँपने लगा पर किसी तरह से खुद को काबू में करते हुए बोला, तुम होश में तो हो, ऐसा कुछ भी नहीं है और मेरा किसी लड़की के साथ कोई चक्कर नहीं है.और होता भी तो मर जाता पर किसी की ऐसी गंदी बात कभी नहीं मानता.जवाब में शैतान पंडित ने गाली बकी और कहा, देख बे, मुझे सब पता है.तू उसे खा-पी, मुझे कोई एतराज नहीं हैं पर अगर थोड़ा-सा मैं भी खा लूँगा तो उसकी घिस जाएगी क्या?

इस तरह की भाषा में लड़के से अब तक किसी ने बात नहीं की थी.लड़के की आँखों में खून उतर आया.उसने बचपन में सुना एक नुस्खा याद करते हुए शैतान पंडित की नाक पर एक भरपूर मुक्का. मारा.शैतान की नकसीर फूट गई और नाक से भल्ल -भल्लप खून बहने लगा.शैतान पंडित नाक दबा कर गाली बकते हुए भागा.लेकिन लड़का भी डर गया, उसे अपने लिए भी डर लगा और लड़की के लिए भी.उसने अपना बस्ता उठाया और साइकिल ले कर लड़की के स्कूल की तरफ निकल आया.उसने स्कूल से थोड़ा दूर सरकंडों के पीछे अपनी साइकिल छुपाई और आम के एक पेड़ पर चढ़ गया जिसके नीचे से हो कर लड़की के स्कूल का रास्ता जाता था.यहाँ बैठ कर लड़की अपने स्कूल से जब भी निकलती, लड़का उसे आसानी से देख सकता था.लड़का वहीं पेड़ पर बैठे-बैठे लड़की के नाम एक एक खत लिखने लगा, जिसमें दिल का हाल कम और शैतान पंडित की बातों से उपजी चिंताएँ ज्यादा थीं.शैतान पंडित का गंदा प्रस्ताव लड़के से नहीं लिखा गया.उसकी समझ में नहीं आया कि यह बात वह लड़की से कैसे बताए, यह और बात थी कि उसके बारे में बताना जरूरी भी था कि लड़की सावधान हो जाए, नहीं तो वह गंदा पंडित उसे मुश्किल में डाल सकता था.

लड़की जब पेड़ के नीचे पहुँची तो लड़का धीरे से खाँसा और इसी के साथ चिट्ठी नीचे गिरा दी.लड़की ने चौंक कर ऊपर देखा और कुछ बोलने को हुई तो लड़के ने होठों पर उँगली रख कर चुप रहने का इशारा किया.बदले में लड़की अपनी चप्पल में फँसा हुआ कंकड़ निकालने लगी और बोली कि आसपास कोई नहीं है.तब ऊपर से लड़के ने कहा कि शैतान पंडित से बच के रहना.इसके बाद उसने शैतान पंडित से हुई मारपीट के बारे में बताया.लड़की ने कहा कि ठीक है, पर उसे कोई छूने की हिम्मत नहीं करेगा.लड़के को अपना ध्यान रखने की जरूरत ज्यादा है और लड़का रोज रास्ता बदल कर आया-जाया करे.लड़के ने कहा कि वह ऐसा ही करेगा, साथ में उसने लड़की से इसरार किया कि कल वह जवाब जरूर लिख कर ले आए, वह कल फिर इसी पेड़ पर लड़की का इंतजार करेगा.लड़की ने कहा कि ठीक है पर ज्यादा पहले आने की जरूरत नहीं है या आ ही जाओ तो कोई किताब ले कर पेड़ पर चढ़ जाना और पढ़ाई में मन लगाना मेरे बंदर. लड़की के जाने के बाद लड़का पेड़ से उतरा और घर चला गया.उधर स्कू़ल छूटने के बाद शैतान पंडित अपनी टूटी नाक लिए लड़के को खोज रहा था.

लड़की घर पहुँची तो मामी का तना हुआ चेहरा उसका इंतजार कर रहा था.मामी को कल हुई घटना की खबर लग चुकी थी.शैतान पंडित मामी के पास आया था और उसने मामी से कहा कि आपस की दुश्मनी अलग बात है पर गाँव में किसी की भी बहू-बेटी सबकी बहू-बेटी होती है और अगर कोई एक लड़की भी गलत रास्ते पर जाती है तो उससे पूरे गाँव की नाक कटती है और पूरे गाँव की लड़कियाँ संदिग्ध मान ली जाती हैं.और इसके बाद उसने कल की घटना में जमकर नमक-मिर्च लगाते हुए मामी को बता डाली.तब से ही मामी तनी बैठी थी.मामी लड़की की हिम्मत पर तो दंग थी ही पर उन्हें इस बात का गहरा सदमा पहुँचा कि कल का लड़का उन्हें इज्जत-मरजाद सिखा रहा है.मामी उसी समय भड़क गई थीं और उन्होंेने कहा कि उन्हें पता है कि गाँव में कौन कितना इज्जीतदार है और उनका मुँह न खुलवाया जाए तभी अच्छाी, नहीं तो शैतान पंडित की महतारी के किस्से कौन नहीं जानता.बदले में शैतान पंडित ने कहा कि वह तो अपना धर्म निभाने आया था, बाकी अगर लड़की की मामी की रुचि गड़े मुर्दे उखाड़ने में है तो उसे भी ऐसे बहुत से किस्से पता हैं.

लड़की आई तो मामी बाल पकड़ कर खींचते हुए उसे अंदर ले गई और बिना कोई बात पूछे कई थप्पड़ जड़ दिए.बोली, आने दे तेरे मामा को, जो तुझे सर पे चढ़ाए रखते हैं.इसी उमर में जवानी का भूत चूढ़ा है, मैं उतरवाती हूँ तेरा भूत.इसके बाद मामी ने लड़की को लंबा प्रवचन दिया कि वह तो इस उमर में कुछ जानती ही नहीं थी और यह कि लड़की को अपनी इज्जलत किस तरह से बचा करा रखनी चाहिए.मामी ने कहा कि लड़की जब तक तेरे मामा नहीं आ जाते तब तक तेरा स्कूखल जाना बंद.स्कूडल पढ़नेवालों के लिए होता है, नाक कटानेवालों के लिए नहीं.इन बातों पर मुस्कुराने वाली लड़की मुस्कुरा नहीं सकी, रोई भी नहीं, बस चुप रही और चुपचाप ही शाम के कामों में लग गई.

शाम को कुलीबाज सिंह घर लौटा तो उसे घर का माहौल बदला हुआ लगा.मामी का चेहरा तना हुआ था और मुस्करानेवाली लड़की को देख कर कोई कह ही नहीं सकता था कि ये लड़की कभी मुस्कराती भी होगी.कुलीबाज सिंह ने अपनी भाभी से पूछा कि क्या हुआ तो उनकी भाभी यानी लड़की की मामी फट पड़ी कि तुमको क्या, जाओ मजे करो अपने आवारा दोस्तों के साथ, यहाँ कल की छोकरी ठाकुरों की नाक काट रही है. मामी ने न-न करते हुए सारा किस्सा कुलीबाज को बयान कर दिया.कुलीबाज सिंह चुप हो गया.उसे शैतान पंडित की हिम्मत पर आश्चर्य हुआ और उससे ज्यादा आश्चर्य इस बात पर हुआ कि छुट्न्नीे-सी ये लड़की सचमुच ऐसा कुछ कर सकती है.बहरहाल उसने अपनी भाभी को आश्वस्त किया कि ऐसे ही किसी की बात पर कान देना ठीक नहीं है और कल से वह लड़की को स्कूल छोड़ने खुद जाएँगे

अगले दिन सुबह कोचिंग से स्कूल जाते समय लड़के ने लड़की को आते हुए नहीं देखा तो उसे चिंता हुई.थोड़ा और आगे आ कर उसे कुलीबाज सिंह आता दिखाई दिया.कुलीबाज अपनी हीरोपुक पर था जिसके पीछे लड़की के लटकते हुए पैर दिखाई दे रहे थे.कुलीबाज सिंह ने लड़के को देखा तो उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट उभरी और हिरोपुक धीमी करते हुए वह बोला, और श्याम सब ठीक है न.अभी आता हूँ.लड़का जवाब में कुछ नहीं बोला, बस हौले से मुस्कुराया कुलीबाज आगे बढ़ा तो लड़के ने हीरोपुक के पीछे बैठी लड़की को देखा.लड़की ने उसे देख कर हाथ हिलाया और मुस्कुराने की कोशिश की.लड़के को डर लगा, अपने लिए भी और लड़की के लिए भी.उसने जान लिया कि लड़की के घरवालों को सबकुछ पता चल गया है.उसे शैतान पंडित का चेहरा याद आया.लड़के ने उसके नाम की गाली बकी और सोचा कि सब उसी का किया धरा होगा.लेकिन अगर पता चल गया होता तो कुलीबाज सिंह उससे इतने आराम से कैसे बता करता.इस पर लड़के ने सोचा कि हो सकता है कि इसमें कुलीबाज सिंह की कोई चाल हो.जो भी हो पर लड़के ने तय किया कि आज वह कॉलेज में कुलीबाज सिंह के सामने जरूर पड़ेगा और कोई बहाना भी नहीं बनाएगा.

कॉलेज में कुलीबाज सिंह जब मिला तो लड़का रुक गया.कुलीबाज ने लड़के से कहा कि श्याम बाहर चलो, तुमसे कुछ बात करनी है.लड़का इस बात के लिए पहले से ही तैयार था.बाहर आ कर कुलीबाज ने उसे बताया कि उसे पता चला है कि कल शैतान पंडित अपने कुछ दोस्तों के साथ तुम्हें खोज रहा था.तुम्हापरे कोई झगड़ा हुआ था क्या उससे? लड़का भीतर धक-सा हुआ पर वह बोला, हाँ कल मैंने उसकी नाक तोड़ दी थी.क्योंक, कुलीबाज सिंह ने पूछा.लड़का इस सवाल के लिए बखूबी तैयार था.उसने समझ लिया था कि एक-दो दिन में वैसे भी कुलीबाज को सबकुछ पता चल जानेवाला था और क्याझ पता कि अभी भी पता हो पर वह अनजान होने का दिखावा कर रहा हो.ऐसे में वह उस जालिम सवाल से कहाँ तक भाग सकता था.उसे सबसे बेहतर रास्ताु यही नजर आया कि कुलीबाज सिंह को सबकुछ बता दे.बदले में कुलीबाज सिंह ने लड़के को थप्पड़ मारा.लड़का चुप हो गया पर पल भर बाद ही वह कुलीबाज की आँखों में झाँकते हुए उसे बता रहा था कि जब उसने लड़की को प्यार किया तो उसे पता नहीं था कि वह कुलीबाज सिंह की भांजी है.इसका पता उसे तब चला जब वह कुलीबाज के साथ पहली बार उसके घर गया और वहाँ लड़की को देखा.लड़के ने कहा कि तब तक देर हो चुकी थी.वह लड़की से बहुत प्यार करता है और उसके बिना जिंदा नहीं रह सकता.इन बातों के बीच लड़का ये बात छुपा ले गया कि लड़की के घर तक पहुँचने के लिए ही उसने कुलीबाज सिंह के लिए अपनी जान दाँव पर लगाई थी.लड़के ने अपनी कशमकश का जिक्र जरूर किया कि यह पता चलने के बाद कि वह कुलीबाज सिंह को भांजी है, लड़का सोच में पड़ गया.वह लड़की के बिना भी नहीं रह सकता था और कुलीबाज सिंह जैसे दोस्त़ से दगा भी नहीं करना चाहता था.लड़के ने कुलीबाज को बताया कि यही वजह है कि वह उसके साथ दुबारा कभी घर नहीं गया और सामने पड़ने से भी बचता था क्योंकि सामने पड़ने पर उसे बार-बार लगता था कि वह अपने कुलीबाज भाई से दगा कर रहा है.कुलीबाज को लड़के की बातों में सच्चाई नजर आई, उसे याद आया कि कई बार उसके कहने के बावजूद लड़का दुबारा उसके घर नहीं गया.लड़के ने सोचा कि बातें उसके पक्ष में ही गई हैं क्योंकि उसने खुद अपनी तरफ से कुलीबाज सिंह को सारी बातें बताईं.जाहिर है कि ऐसा करते हुए लड़के को ये सहूलियत हासिल थी, बातें जितना हो सके उसके पक्ष में ही जाएँ और ऐसा करते हुए लड़के ने बार-बार यह जोर दे कर कहा कि इसमें लड़की की कोई गलती नहीं है.

कुलीबाज सिंह बोला, इस बात का फैसला अब वह खुद करेगा कि इसमें किसकी गलती है और किसकी गलती नहीं है.फिर अचानक से बोला कि इसमें ख बात तो रह ही गई कि शैतान पंडित तुम्हें क्यों खोज रहा था.लड़के ने अबकी सचमुच कुछ नहीं छुपाया.कुलीबाज सिंह ने लड़के को ध्यान से देखा.लड़के की बहादुरी वह पहले ही देख चुका था और दुबारा फिर उसने बहादुरी दिखाई थी.कुलीबाज ने सोचा कि लड़के में दम हैं, नहीं तो इतनी दूर से साइकिल चला कर आनेवाला लड़का इतनी हिम्मत नहीं दिखा पाएगा.उसे शैतान पंडित पर क्रोध आया.वह दाँत पीसते हुए बोला कि उसे तो वह आराम से देखेगा.ऐसे ही बूढ़े के बारे में सुन कर वह भड़का था कि बुढ़ऊ को उठा कर किसी दिन ताल में फें‍क दूँगा.साला सड़ कर मर जाएगा कहीं कीचड़ में.इसके बाद दोनों बहुत देर तक चुप बैठे रहे, आखिर में कुलीबाज ने उससे कहा कि फिलहाल तो वह लड़की से दूर ही रहे, आइंदा कोई बात हो तो तुरंत बताए और अपना ख्याल रखे.बाकी वह बाद में देखेगा.

शैतान पंडित की नीयत जानने के बाद कुलीबाज गुस्से में उबल रहा था.उसे लड़के पर भी गुस्सा आ रहा था और लड़की पर भी.सब मिल कर उसकी इज्जत का कबाड़ा कर रहे थे.उसे लड़की की चिंता हुई जो रोज अकेले ही स्कूुल आती-जाती थी.फिर से उसका ध्यान शैतान पंडित पर जा कर रुक गया.इस शैतान का तो कुछ करना ही पड़ेगा, उसने सोचा.शाम को जब कुलीबाज सिंह लड़की को लेने स्कूल गया तब तक वह फिर से मुस्करा रही थी.लड़की को याद था कि लड़के ने आज पेड़ पर मिलने के लिए कहा था.उसने स्कूल में लड़के के लिए एक चिट्ठी लिख रखी थी.वह बेचैन थी पर उसकी उम्मीदें कायम थीं.उसे लग रहा था कि कोई-न कोई रास्ताी जरूर निकलेगा.कुलीबाज सिंह की हीरो पुक पर बैठते हुए उसने चिट्ठी निकाल कर हाथ में छुपा ली.उसने सोचा कि लड़का पेड़ पर छुपा हो सकता है या कहीं दूर से उसे देख रहा हो सकता है.लड़का पेड़ पर तो नहीं था पर लड़की का अनुमान सच था.लड़का दूर से छुप कर लड़की को जाते हुए देख रहा था और जब पेड़ पर लड़के के होने पर पूरा यकीन करते हुए लड़की ने चिट्ठी गिराई तो वह लड़के की नजर में आ गई और वह उस चिट्ठी तक पहुँचने के लिए मचल पड़ा.

शाम को कुलीबाज सिंह ने लड़की को अपने कमरे में बुलाया और पूछा कि क्या किस्सा है? लड़की सिर झुकाए खड़ी रही.कई बार पूछने के बाद भी लड़की कुछ नहीं बोली तो कुलीबाज ने सीधे-सीधे पूछा, श्यााम कुमार को जानती हो? तब लड़की ने आँख उठा कर ऊपर देखा.लड़की ने कहा, 'हाँ, पर इसमें श्यााम की कोई गलती नहीं है.इस पर कुलीबाज सिंह ने कहा कि जितना पूछा जा रहा है उतने का ही जवाब दिया जाए तो बेहतर.कुलीबाज पूछता रहा, लड़की बताती रही.सब कुछ सुनने के बाद कुलीबाज ने लड़की से कहा कि वह पढ़ाई पर ध्याीन दे.बोर्ड की परीक्षाएँ नजदीक आ रही हैं और हाँ, कल तेरे बड़े मामा आ रहे हैं.उनसे भूल कर भी इस बारे में कुछ मत कहना.वह कुछ भी पूछें, एक ही जवाब देना, ऐसा कुछ भी नहीं है.सब झूठ है.लड़की के कुछ समझ में नहीं आया.वह जाते-जाते रुक गई और उसकी आँखों में एक सवाल उभर आया.जवाब में कुलीबाज सिंह उसके पास आए, उसके कंधों पर हाथ रखा, फिर बोले, भइया को मैं अच्छे से जानता हूँ.तुमसे जो कहा है वही करना है भूल कर भी न मानता कि ऐसा कुछ है.

दूसरे दिन बड़े मामा आए तो लड़की को मामी से मिली मार और गालियाँ याद आईं.वह सुबह से ही रोने-रोने को हो रही थी पर मामी ने ऐसा कोई मौका उसे नहीं दिया कि वह मामा से दो बात भी कर सके.यह तय बात थी कि वह मामा से अकेले मिलती तो थोड़ा-सा लाड़ भी उसे रुलाने के लिए काफी होता.दोपहर बाद मामा ने उसे अपने पास बुलाया.मामी तब भी मामा के ही पास में बैठी थी.लड़की आ कर खड़ी हो गई.कमरे का सन्नांटा देख कर ही लड़की को अंदाजा हो गया कि उसकी पेशी होने जा रही है.लड़की भी चुप रही.बड़े मामा ने पूछा, बता लड़का कौन है? लड़की ने अपने आपको जब्त करते हुए कहा कि ऐसा कोई लड़का नहीं है और सब झूठ है.मामा ने कहा झूठ-सच हम अच्छेक से समझते हैं लड़की.हम लोग ठाकुर हैं.तेरी जगह मेरी खुद की लड़की होती तो उसे मार कर गाड़ देता, पर तू मेरी भांजी  है.प्यार और दुलार अपनी जगह है.पर तूने जो किया है वह बर्दाश्त के काबिल नहीं है.आगे से तू स्कूल नहीं जाएगी और घर में रहेगी.अगले संडे को मैं तेरी माँ को लेता आऊँगा.तूने मेरा भरोसा तोड़ा है.अब तू यहाँ नहीं रह सकती.अपने घर जा.

तभी कमरे में कुलीबाज सिंह आ गया.उसने कहा भइया आप जो भी कह रहे हैं वो ऐसे ही उड़ाई गई अफवाह है.अपनी बब्बू ऐसी कतई नहीं है.तब भी जब से ऐसी चीजें सामने आई हैं, मैंने खुद उसे स्कूल छोड़ना और ले आना शुरू किया है.महीने भर बाद ही बोर्ड की परीक्षाएँ हैं.मुझे नहीं लगता कि उसका स्कूल बंद कराना ठीक होगा.बब्बूो की दो साल की मेहनत बरबाद जाएगी.जवाब में बडे़ मामा ने कहा कि मेहनत इज्ज त से बड़ी नहीं होती.मेहनत दुबारा की जा सकती है पर खोई हुई इज्जत दुबारा नहीं पाई जा सकती.और तुम तो चुप ही रहो.हमें पता है तुम कितने लायक हो.कुलीबाज सिंह ने कहा कि भइया मेरी नालायकी का अलग मामला है पर आप ठाकुर हैं तो मैं भी ठाकुर हूँ और मैं बब्बू को स्कूगल नहीं छोड़ने दूँगा.वो मेरी भी भांजी है और जब ऐसी-वैसी कोई बात ही नहीं है तो वह बिना वजह सजा क्यों पाए.आपकी एक बात जरूर मानूँगा कि अकेली नहीं छोडूँगा उसे.कुलीबाज अपने भाई को जानता था सो भाई के जवाब का इंतजार किए बिना बाहर निकल आया.लड़की चुपचाप खड़ी थी.वह एक साथ ही दुखी और चकित थी.वह बड़े मामा से स्नेह और दुलार की उम्मीद कर रही थी, जिन्होंने उससे बात तक नहीं की और मामी की बताई सारी बातें सच मान लीं.

लड़की के भीतर लगातार कुछ टूट-दरक रहा था और कुलीबाज सिंह जिसे वह हमेशा बुरा समझती आई थी, उसके लिए खड़े हो गए थे.सुबह से रोने के लिए मचल रही लड़की रोने लगी और रोते-रोते कमरे से बाहर चली आई.

बहरहाल जो भी हुआ पर लड़की स्कूल जाती रही.कुलीबाज सिंह उसे ले आता, ले जाता रहा.लड़की की माँ को नहीं बुलाया गया.घर में मामी का अनुशासन और कड़ा हो गया पर दूसरी तरफ जानवरों को बाहर निकालने या सानी-पानी देने जैसे काम कुलीबाज सिंह ने अपने हाथों में ले लिया.लड़की कुलीबाज सिंह के इस संकटमोचक व्यवहार से चकित-चमत्कृमत थी और उन स्थितियों में जितनी खुश रह सकती थी, उतनी खुश रहने की कोशिश करती थी.दुखी होते ही लड़की गलत करार दे दी जाती.उसे लड़के की बहुत याद आती थी.लड़के के लाए बेर-अमरूद जैसी चीजों के बिना उसका पेट नहीं भरता था.लड़का उसे आते-जाते दिखाई भर पड़ता था.वह हीरोपुक पर बैठी होती थी और लड़का साइकिल पर, सो दोनों एक दूसरे को इतनी जल्दीए पार कर जाते थे कि आँखों-आँखों में भी कोई बात नहीं हो पाती थी. लड़के को शैतान पंडित ने कई बार घेरने की कोशिश की.लड़के के संयोग ठीक रहे, उसे किसी न किसी तरह से पहले से पता चल जाता रहा और वह बच निकलता रहा.उसकी भी बोर्ड की परीक्षाएँ निकल थीं.लड़की का परीक्षा केंद्र जहाँ उसी के स्कूल में पढ़ा था, वहीं लड़कों का दूर एक दूसरे कॉलेज में.लड़का, लड़की से मिलने के लिए मर रहा था पर उसे ऐसा कोई रास्ता, नहीं दिखाई दे रहा था.वह रोज रास्ते में लड़की को देखता और लड़की को तड़पानेवाली मुस्कराहट से संतोष कर लेता.कुलीबाज सिंह कॉलेज में अक्सर मिलते रहते पर उनसे भी औपचारिक किस्म‍ की ही बातें हो पातीं.ऐसी ही एक दिन कुलीबाज सिंह उसे मिला तो नाराज दिखा.कुलीबाज सिंह ने लड़के से पूछा कि शैतान पंडित उसे बार-बार घेर रहा है, ये बात उसने कुलीबाज सिंह को क्यों नहीं बताई.लड़का जब तक कुछ कहता, उसने कहा कि आगे से तुम निश्चिंत हो जाओ, शैतान पंडित की परछाई भी अब तुम्हातरे रास्ते में कभी नही आएगी.लड़का खुश हो गया कि अभी भी कुली‍बाज को उसकी इतनी चिंता है.उसने हिचकिचाते हुए लड़की के बारे में पूछा.कुलीबाज ने उसे घूरा तो वह हकलाने लगा.बोला, मेरा मतलब कि उसकी पढ़ाई ठीक चल रही है न और... और कैसी है बब्बू.कुलीबाज सिंह कुछ नहीं बोला, बस लड़के को देखता रहा.थोड़ी देर बाद बोला, बब्बूू ठीक है.उसकी पढ़ाई ठीक चल रही है.तुम भी अपनी पढ़ाई में मन लगाओ.इसी में उसकी और तुम्हारी दोनों की भलाई है.ये कहने के बाद कुलीबाज सिंह उठ कर चला गया.

लेकिन लड़के की उम्मीद बनी रही.उसे पता था कि इम्तहान बाद लड़की अपनी माँ के घर जाएगी जो शहर से जुटे हुए एक कस्बे में था जहाँ लड़के को भी आगे की पढ़ाई के लिए जाना था.उसे भरोसा था कि वह लड़की का घर खोज निकालेगा पर परेशान और सशंकित वह इसीलिए हो रहा था कि उसे पता नहीं था कि इन दिनों लड़की के मन में क्यात चल रहा है.उसकी जानूमानू अब भी उसे वैसे ही प्यार करती है या डर और दबाव में उसका प्रेम कम हो गया था.लड़का बहुत सोचता है पर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाता. जिस दिन वह अपना प्रवेश पत्र लेने कॉलेज गया, लौटते समय वह पूरे रास्ते रोता रहा.उसने अपने कॉलेज से लड़की के स्कूल के रास्ते पर कई चक्कर लगाए पर लड़की क्या, लड़की की परछाई तक नहीं दिखी.आखिरी चक्कर में वह लड़की के स्कूल के गेट तक हो आया.उसे वहाँ भी कोई चहल-पहल नहीं दिखी.स्कूल बंद था.लौटते हुए वह वहीं आम के पेड़ की जड़ों पर बैठ गया और रोने लगा.लड़का देर तक रोता रहा, फिर साइकिल उठा कर घर चला आया.वह नहीं जानता था कि वह लड़की को दुबारा कब देखेगा और यह तो और नहीं जानता था कि उसके संग बैठ कर उससे दो बातें कब कर पाएगा.

लड़का पूरी मेहनत से परीक्षा दे रहा था.उसे याद था कि लड़की उससे खूब पढ़ने को कहती थी और आखिरी मुलाकात में भी पढ़ाई के लिए कहा था.लेकिन उसका मन बार-बार लड़की की तरफ खिंचा चला जाता था.जिस दिन उसका आखिरी पर्चा था, पर्चा देकर निकलने के बाद उसने कुलीबाज सिंह को अपनी तरफ आते हुए देखा.लड़का जहाँ का तहाँ खड़ा हो गया.कुलीबाज ने उससे उसके पर्चे के बारे में पूछा.लड़के ने कहा कि उसके पर्चे अच्छेा हुए हैं.जवाब में उसने कुलीबाज के पर्चों के बारे में पूछा.कुलीबाज सिंह ने हँसते हुए बताया कि वह इस बार फिर से फेल होंगे, पर कोई चिंता की बात नहीं है.इन दिनों वह राजा राजकरन सिंह के साथ रहने लगे हैं और अब वह राजनीति करेंगे.लड़के ने कुलीबाज सिंह को ध्याान से देखा.उसकी समझ में नहीं आया कि वह कुलीबाज सिंह से क्याे कहे.राजकरन सिंह को वह जानता था.राजकरन सिंह उसके क्षेत्र के विधायक थे और प्रदेश सरकार में मंत्री थे.लड़का कुछ नहीं बोला तो कुलीबाज सिंह ने उससे कहा कि जब पर्चे अच्छे हो रहे हैं तो थोबड़ा क्यों लटका रहा है.लड़का फिर कुछ नहीं बोला तो कुलीबाज सिंह ने कहा कि कल सुबह साढ़े नौ बजे तक कॉलेज आ जाना, तुमसे कुछ काम है.आओगे? लड़के ने कहा, हाँ जरूर आऊँगा.

अगले दिन सुबह नौ बजे ही लड़का कॉलेज पहुँच गया.वहज थोड़ा सशंकित था पर उसे लगा कि न जा कर वह अपना डर दिखाएगा और अपना ही नुकसान करेगा.कुलीबाज सिंह ने आते ही कहा कि चलो घर चलते हैं, वहीं चल कर बात करेंगे.तुम अपनी साइकिल यहीं दुकान पर रख दो.मैं लौटते हुए तुमको यहीं छोड़ दूँगा.लड़के को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ.वह कुलीबाज सिंह का मुँह ताकता रह गया.कुलीबाज ने कहा, बहरे हो क्या? मैं तुमसे कुछ कह रहा हूँ.लड़के ने सिर हिलाया और दुकान पर साइकिल रखने चला गया.

घर में कोई नहीं था.मामी के मायके में शादी पड़नेवाली थी सो मामी मायके में थी.थोड़ी देर कुलीबाज सिंह लड़के से इधर-उधर की बात करता रहा, फिर बोला, तुम घर में रहना, मैं बाहर से ताला लगा कर जा रहा हूँ.मुझे बब्बू को लेने जाना है.उसका पेपर छूटने का समय हो रहा है.लड़का जब तक कुछ कहता, कुलीबाज सिंह बाहर का दरवाजा बंद कर रहा था.लड़के की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.उसे लगा कि उसके साथ या तो बहुत ही अच्छा होनेवाला है या बहुत ही बुरा.वह देर तक जहाँ का तहाँ बैठा रहा, फिर वह कुलीबाज सिंह का घर देखने लगा.वह एक-एक कर सारे कमरों में गया, और एक कमरे में जा कर रुक गया.इस कमरे में उसे लड़की की महक आ रही थी.उसने चारों ओर नजरें दौड़ाई. खूँटी पर लड़की के कपड़े टँगे हुए थे.उसने लड़की के कपड़े खूँटी पर से उतारे और उन्हें देखने लगा, अपने चेहरे पर फिराया.ऐसे ही वह लड़की की कॉपियाँ और किताबें पलटने लगा.कई कॉपियों में बहुत कुछ ऐसा था जो लिख कर इस तरह से काट दिया गया था कि दुबारा किसी भी तरह से न पढ़ा जा सके.लड़के ने जान लिया कि यह सब उसी के लिए लिखा गया होगा.उसने सोचा कि अभी लड़की आएगी तो वह किस तरह से उसके सामने जाएगा और क्याा लड़की को इस बात का पता होगा कि लड़का यहाँ उसके घर में है.क्या् लड़की भी उससे मिलने के लिए उसी की तरह तड़प रही होगी.और अगर उसे लड़के के घर में होने का पता नहीं है तो वह उसे अचानक से अपने सामने पा कर क्या करेगी.और क्या कुलीबाज सिंह के साथ आने के लिए वह अभी भी नाराज होगी.

तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई.लड़का जहाँ का तहाँ खड़ा रहा.उसे कुलीबाज सिंह की आवाज सुनाई दी.दरवाजा अंदर से बंद कर लो और खाना जल्दी बना के रखना.मैं अभी घंटे भर में आता हूँ.लड़की ने दरवाजा बंद किया और अपने कमरे की तरफ बढ़ी.कोने में एक चारपाई खड़ी रखी थी.लड़का चारपाई के पीछे जा कर छुप गया.लड़की कमरे में आ कर कपड़ों सहित बिस्तर पर पड़ गई.मुस्कुरानेवाली रो रही थी.आज उसका आखिरी पर्चा था.वह लड़के से मिलने के लिए परेशान थी.एक दिन जब कुलीबाज सिंह ने उसे सुनाते हुए कहा था कि कोई एक लड़का पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था तो वह जान गई थी कि वह उसका पगलू ही होगा और कौन हो सकता है.उस दिन से तो वह पल-पल लड़के से मिलने के लिए मर रही थी.उसे लगा कि अब वह लड़के से कभी मिल भी पाएगी या नहीं और वह रोने लगी.घर में कोई नहीं था.उसे अपने आंसू या रोने की आवाज किसी से छुपाने की जरूरत नहीं थी.

लड़का बाहर निकल आया और लड़की की बगल में जा कर बैठ गया.वह अपने को कोसने लगा.उसे लगा कि अगर वह छुपा हुआ नहीं होता तो लड़की को रोना नहीं पड़ता.उसने रोती हुई लड़की की हिलती हुई पीठ पर हाथ रखा.लड़की तेजी से पलटी.लड़की ने रोने के बीच उसको देखा तो उसका रोना जहां का तहां थम गया और आंखें अचरज से फैल गईं.तू यहां कैसे, दरवाजा तो बंद है, लड़की ने पूछा.लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया और उसके अपनी तरफ खींच लिया.अब लड़की चुप हो गई और लड़का रोने लगा.उसने हिचकियाँ लेते हुए अपने वहां की कहानी सुनाई.लड़की खुश हो गई.बोली, अभी मैं तुमको शीशा दिखाती हूं कि रोते हुए तुम कितने लल्लू लग रहे हो.अब क्यों रोता है मेरे अमरूद और लड़की उससे लिपट गई.लड़की ने लड़के का हाथ अपने हाथों में कस लिया और बोली, कुलीबाज मामा ने इम्तिहान के बाद उसे एक शानदार सरप्राइज देने के लिए कहा था.उसे नहीं पता था कि मामा का सरप्राइज इतना रोता-रोता-सा होगा.

लड़का भीगी आंखों से हंसने लगा.उसने पूछा मेरी जानूमानू तेरे पर्चे कैसे हुए.अच्छे हुए, लड़की ने जवाब दिया और तेरे? लड़के ने कहा, मेरे भी अच्छेे हुए, तू कैसी है? लड़की ने जवाब दिया अभी तो अच्छी हूं मेरे खजूर.फिर वह लड़के को तकिया बना कर लेट गई और बोली, मेरे बंदर कभी सोचा है आगे क्या होगा.लड़के ने कहा हम शादी कर लेंगे.लड़की बोली चुप बुद्धू, पहले शादी लायक तो बन.तेरा मतलब, लड़के ने पूछा.लड़की बोली, सरकारी कानून है मेरे चिकने, शादी के लिए लड़के का दाढ़ी-मूंछ आना जरूरी है.लड़का हंसने लगा.लड़की भी हंसने लगी.लड़की की इस हंसी में वही खनक थी जो लड़के ने तब सुनी थी जब उसने लड़की को पहली बार हंसते हुए देखा था.लड़की चुप हुई तो उसने कहा कि बड़े मामा ने मम्मी पापा को सारी बातें बता दी हैं और अब वह वहीं जा कर रहेगी.लड़के ने कहा कि ये तो खुशी की बात है.मैं भी तो अब शहर चलूंगा.मैं तुम्हारे ही मोहल्ले में कमरा किराए पर ले लूंगा.तुम्हारे यहां कमरा मिलेगा क्या? चुप पगलू, लड़की ने कहा कमरा दूर के मोहल्ले में लेना और वहां से रोज मुझसे मिलने आना.ऐसे ज्यादा मजा आएगा.मुझसे मिलने आओगे न मेरे बंदर.लड़का खुश हुआ.उसने कहा बंदर ही क्यो चूहे, बकरे, कुत्ते, शेर सब तुमसे मिलने आएंगे.तुम अपने घर में एक चिड़ियाघर खोल लेना.

कुलीबाज सिंह घर आया तो लड़की शरमाई-सी दिख रही थी.लड़का उससे भी ज्यारदा शरमाया था.कुलीबाज सिंह ने लड़की से पूछा कि कुछ खाना-वाना बना या नहीं.लड़की ने कहा, अभी बनाती हूं और रसोई में घुस गई.लड़का सिर झुकाए हुए कुलीबाज सिंह के पास पहुंचा और उससे लिपट गया.कुलीबाज सिंह ने कहा, छोड़...अरे छोड़ न हरामी.लड़के ने जैसे कुछ सुना ही नहीं, उसने कुलीबाज सिंह को छोड़ दिया और बोला कि मैं खाना बनाने में लड़की की मदद कर दूं तो जल्दी हो जाएगी, यह कहते हुए लड़का रसोई की तरफ बढ़ा.लड़का अभी दो कदम भी न चला होगा कि उसने कुलीबाज सिंह की गाली सुनी और पलट ही रहा था कि उसके सिर पर बिजली गिरी और सिर के दो फाड़ करते हुए जमीन में समा गई.लड़के ने गिरते-गिरते पीछे देखा.पीछे कुलीबाज सिंह हाथ में फरसा लिए खड़ा था.उसके बगल में शैतान पंडित भी था.कुलीबाज सिंह ने शैतान पंडित से कहा कि तुम जा कर लड़की को सम्भालो.शैतान जैसे ही आगे बढ़ा कुलीबाज सिंह, ने फरसे का भरपूर वार उसकी गर्दन पर किया.गर्दन लुढ़कती हुई दूर जा गिरी.लड़के की आंखें एक-दूसरे से बित्ता भर दूर हो गई थीं.लड़के ने चिल्लाना चाहा.वह पूरा दम लगा कर चिल्लाया, 'बब्बू' पर गले से आवाज नहीं निकली, बल्कि तेज धार के साथ खून के छींटे निकले जो सामने से आ रही लड़की पर पड़े.फरसे का एक वार लड़की के लिए भी काफी था जो न भी किया जाता तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता.लड़की पहले ही मर चुकी थी.

तीन दिन बाद कुलीबाज सिंह पकड़ा गया और सारे अखबारों में फोटो के साथ उसका बयान प्रमुखता से छपा.कुलीबाज सिंह ने अपने बयान में कहा कि कोई ठाकुर यह बात कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी बेटी या भांजी को किसी नीच जाति का लड़का खराब करे और उसने वही किया जो ऐसे में कोई भी ठाकुर करता जो अपने बाप की असली औलाद होता.शैतान पंडित को उसने इसलिए मारा क्योंकि वह उसकी भांजी को बिगाड़ने में लड़के की मदद कर रहा था.रही लड़की की बात तो ऐसी कलंकवाली लड़की जिंदा रह कर भला क्या करती.कुलीबाज सिंह ने कहा कि उसे अपने किए पर कोई अफसोस नहीं है और लड़की की जगह उसकी खुद की बेटी या बेटा होता तब भी वह यही करता.

पर अगले ही दिन कुलीबाज सिंह ने अपने बयान का खंडन किया और कहा कि वह बातें पुलिस ने जबरदस्ती उनसे कहलवाई थीं.घटना के समय वह अपने घर पर न हो कर मंत्री राजा राजकरन सिंह के घर पर थे और जिले में पार्टी का विस्तार किस तरह से किया जाए, इस मुद्दे पर चल रही बैठक में हिस्सा ले रहे थे.मंत्री ने इस बात की पुष्टि की थी और कहा कि इसी बैठक में कुलीबाज सिंह को पार्टी की युवा शाखा का जिला सचिव मनोनीत किया गया था.मंत्री ने पत्रकारों को उस बैठक की तस्वीरें भी दिखाई थीं जिसमें कुलीबाज सिंह बैठे दिखाई दे रहे थे.मंत्री ने अपने बयान में कहा कि पार्टी के एक युवा नेता के साथ पुलिस की गुंडई बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जिम्मेदार पुलिसवालों को इसकी कीमत चुकानी होगी.

हफ्ते भर के भीतर ही घटना के संबंध में पुलिस ने अपना आखिरी वर्जन लगा कर केस बंद कर दिया.इसके अनुसार लड़की के संबंध दोनों लड़कों से थे.घटना के दिन लड़के ने शैतान पंडित के साथ लड़की को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया और उस पर खून सवार हो गया.उसने वहीं पड़ा फरसा उठाया और शैतान पंडित तथा लड़की की हत्या करने के बाद खुद भी उसी फरसे से आत्मसहत्या कर ली.फरसे के हत्थे पर लड़के की उंगलियों के निशान मिल गए थे.इस तरह केस बंद कर दिया गया और लड़का-लड़की लोगों की स्मृति से तेजी से गायब हो रहे हैं.पर जरा रुकिए.क्या सचमुच ऐसा हो जाएगा? क्या संसार के सारे लड़के-लड़कियां मर गए हैं? या उनके भीतर कोई ऐसा वायरस डाल दिया गया कि अब कभी वे प्रेम ही नहीं कर पाएंगे? बहरहाल कुलीबाज सिंह बाइज्जत छूट गए हैं और ठाकुरों के युवा नेता के रूप में तेजी से उभर रहे हैं.


ये कहानियां भी पढ़ें- 

'जानकी बाबू को लोग सुभाष चंद्र बोस का रूप समझ लेते थे'

'फिर एक दिन उस औरत ने बौने को धक्का दे दिया'

'केवल डरावनी आंखों वाले सैनिक मशीनगन संभाले और हैलमेट पहने तैयार खड़े हैं'

'उसने चांदी की नथ उतारकर मुझे दे दी और बांहों से आंखें बंद किए कूद पड़ी'


वीडियो देखें-