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क्या रूस यूक्रेन पर हमला करने वाला है?

रूस कहता है कि उसका ऐसा इरादा नहीं, लेकिन इस पर यकीन करने की वजह भी नहीं.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन. (फाइल फोटो AP)
कहते हैं कि तूफ़ान से पहले भयावह शांति आती है. ऐसा पुराने दौर की लड़ाइयों के संबंध में भी कहा जाता था. हालांकि, आधुनिक दौर में में ऐसा नहीं होता. अब युद्ध से पहले भगदड़ मचती है. शांति की कोशिशें होती हैं. मोर्चे संभाले जाते हैं. हथियार दुरुस्त किए जाते हैं. दोस्त और दुश्मन की पहचान की जाती है. तब जाकर युद्ध का ऐलान होता है. आज जानेंगे, रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की आशंका से पहले क्या हो रहा है? अमेरिका, यूक्रेन से अपने लोगों को क्यों निकाल रहा है? रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर दिए बयान के बाद जर्मनी के नेवी चीफ़ की नौकरी क्यों चली गई? और, यूक्रेन में किसने सरकार पलटने की साज़िश रची? पुतिन ने यूक्रेन मसले को क्यों छेड़ा? यूक्रेन लंबे समय तक रूसी साम्राज्य और फिर सोवियत संघ का हिस्सा रहा. सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन आज़ाद हो गया. एक अलग मुल्क़ के तौर पर उसने अपनी पहचान बनाई. 1999 में व्लादिमीर पुतिन रूस की सत्ता में आए. शुरुआती सालों में पुतिन ने विरोधियों को निपटाया. सत्ता पर पकड़ मज़बूत की. उन्होंने रूस के अंदर अपना गेम सेट कर लिया. 2012 में पुतिन दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए. इसके बाद उनका ध्यान रूस की सीमा से बाहर गया. इसके पीछे दो वजहें गिनाई जाती हैं. पहली, 2012 के आस-पास रूस के भीतर पुतिन का विरोध हो रहा था. उनके ख़िलाफ़ रैलियां आयोजित हो रही थीं. पहला तर्क ये है कि पुतिन ने विरोधियों का ध्यान भटकाने के लिए यूक्रेन मसले को छेड़ा. दूसरा तर्क ये दिया जाता है कि पुतिन रूस का गौरवशाली इतिहास लौटाना चाहते थे. इसके तहत, वो उन सभी इलाकों को फिर से अपने छत्रछाया में रखना चाहते हैं, जिन पर कभी रूसी साम्राज्य का नियंत्रण रहा. पुतिन के मन में क्या था, ये तो नहीं पता. लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि 2014 में रूस ने सेना भेजकर क्रीमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया. फिर उसे अपना प्रांत घोषित कर दिया. सोवियत संघ ने 1954 में क्रीमिया को यूक्रेन को उपहार में दिया था. रूस क्रीमिया तक ही नहीं रुका. वो यूक्रेन के पूर्वी बॉर्डर पर अलगाववादियों को पैसे और हथियार देने लगा. रूस इससे इनकार करता है. इस झगड़े में अब तक 14 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. मई 2019 में यूक्रेन में सरकार बदल गई. नई सरकार रूस के प्रति उतनी उदार नहीं थी. उसने पश्चिम की तरफ़ सहयोगी तलाशे. यूक्रेन यूरोपियन यूनियन और नाटो की तरफ़ गया. यूक्रेन दोनों पक्षों के एकदम बीच में है. रूस को डर हुआ कि अगर यूक्रेन वेस्टर्न ब्लॉक में शामिल हुआ तो उसकी सीमा पर ख़तरा बढ़ जाएगा. इससे बचने के लिए रूस यूक्रेन पर लगातार दबाव बना रहा है. 2021 में उसने दो बार लाखों सैनिकों को यूक्रेन बॉर्डर पर भेजा. पहली बार मार्च में. तब उसने जल्दी ही सैनिकों को वापस बुला लिया था. दूसरी बार नवंबर के महीने में जमावड़ा शुरू हुआ. यूक्रेन बॉर्डर पर रूस के लगभग पौने दो लाख सैनिक तैनात हैं. रूस अपने सैनिकों को बेलारूस में अभ्यास के लिए भेज रहा है. उसने हेवी वेपन्स भी बॉर्डर पर पहुंचाने शुरू कर दिए हैं. यूक्रेन की तरफ़ से यूरोप के ताक़तवर देश सामने आए हैं. ब्रिटेन और कनाडा ने अपनी स्पेशल फ़ोर्स भेजी है. अमेरिका भी कई बार रूस को धमका चुका है. मगर रूस इन सबसे बेखबर अपनी मांग पर कायम है. उसने अपनी शर्तें साफ़ कर दी हैं. यूक्रेन को नाटो में शामिल ना किया जाए. और, नाटो 1997 से पहले वाली स्थिति में लौट जाए. इन्हीं मुद्दों पर सहमति बनाने को लेकर बैठकों के दौर चल रहे हैं. हालांकि, बात वही ढाक के पात वाली है. कुछ भी नया निकलकर नहीं आ रहा है. गाड़ी एक ही जगह पर अटकी हुई है. कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है. इसके चलते युद्ध की आशंका का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है. रूस कहता रहा है कि उसका यूक्रेन पर हमला करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन उसके वादे पर ऐतबार करने की कोई वजह नज़र नहीं आती. क्या नई अपडेट्स हैं? अमेरिका ने यूक्रेन में अपने दूतावास से लोगों को निकालना शुरू कर दिया है. डिप्लोमैट्स के घरवालों को यूक्रेन छोड़ने के लिए कहा गया है. इसके अलावा, कम-ज़रूरी स्टाफ़्स को भी बाहर निकलने का विकल्प दिया गया है. दूतावास से जुड़े लोगों की घर-वापसी का खर्च सरकार उठाएगी. यूक्रेन में रह रहे बाकी अमेरिकी नागरिकों के लिए भी चेतावनी जारी की गई है. कहा गया है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है. ऐसी स्थिति में सरकार उनकी मदद कर पाने की स्थिति में नहीं होगी. इसलिए, वे उसी हिसाब से प्लान बनाएं. अमेरिका ने अपने नागरिकों को रूस नहीं जाने की सलाह दी है. इस फ़ैसले पर रूस का भी बयान आया है. उसने कहा है कि अमेरिका बिना बात का बतंगड़ बना रहा है. दूतावास खाली कराने में अमेरिका अकेला नहीं है. ब्रिटेन ने भी किएव स्थित दूतावास से कुछ स्टाफ़्स को वापस बुलाने का फ़ैसला किया है. जानकारों की मानें तो आने वाले दिनों में कई और भी देश ऐसा फ़ैसला ले सकते हैं. जहां तक ब्रिटेन की बात है, उसने एक चौंकाने वाला खुलासा भी किया है. ब्रिटेन ने आरोप लगाया है कि रूस यूक्रेन में तख़्तापलट की साज़िश रच रहा है. वो किएव में कठपुतली सरकार बिठाना चाहता है. ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, रूस की खुफिया एजेंसी यूक्रेन के कई विपक्षी नेताओं के संपर्क में है. रूस पूर्व सांसद येवगेन मुरायेव को यूक्रेन का नया राष्ट्रपति बनाना चाहता है. मुरायेव की पार्टी पिछले चुनाव में पांच प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर पाई थी. इस वजह से उनकी पार्टी को संसद में एंट्री नहीं मिली. मुरायेव नैश चैनल के फ़ाउंडर भी हैं. उनका चैनल प्रो-रशियन एजेंडा चलाने के लिए कुख़्यात है. यूक्रेन की सरकारी एजेंसियां लंबे समय से इस चैनल पर बैन लगाने का प्रयास कर रही है. 23 जनवरी को मुरायेव ने बयान दिया था कि यूक्रेन को नए लीडर की ज़रूरत है. ब्रिटेन ने अपनी प्रेस रिलीज़ में चार और नेताओं का नाम लिया. हालांकि, उसने अपने आरोपों के संदर्भ में कोई सबूत नहीं दिया. रूस ने इस आरोप को झूठा और बेबुनियाद बताया है. उधर, 22 जनवरी को अमेरिका ने लगभग 15 अरब रुपये की कीमत का सिक्योरिटी पैकेज की पहली खेप भेज दी है. अमेरिका ने आगे भी यूक्रेन की मदद का वादा किया है. इसके अलावा, लातविया, एस्टोनिया और लिथुआनिया यूक्रेन को अमेरिका में बनी एंटी-टैंक और एंटी-एयरक्राफ़्ट मिसाइल भेज रहे हैं. ये तीनों देश नाटो के सदस्य हैं. नाटो की स्थापना 1949 में हुई थी. कोल्ड वॉर के दौर में कम्युनिस्ट धड़े को चुनौती देने के लिए. फिलहाल, नाटो में 30 देश हैं. उन्होंने अपने-अपने ढंग से तैयारी शुरू कर दी है. मसलन, डेनमार्क बाल्टिक सागर में एक नौसैनिक बेड़ा भेज रहा है. वो लिथुआनिया में F-16 फ़ाइटर जेट्स भी तैनात कर रहा है. स्पेन, बुल्गारिया में फ़ाइटर जेट्स भेजने पर विचार कर रहा है. फ़्रांस अपने सैनिकों को रोमानिया भेज सकता है. ये तो हुई युद्ध की तैयारी की बात. इसी मसले पर एक हलचल जर्मनी में भी मची. जर्मनी की नौसेना के मुखिया के-शिम शोबाख़ को एक वीडियो रिलीज़ होने के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा. शोबाख़ मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि रूस को यूक्रेन में कोई दिलचस्पी नहीं है. पुतिन को सिर्फ़ थोड़ी इज्जत चाहिए. इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं. उन्होंने आगे कहा कि अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं ये कहूंगा कि पुतिन उस सम्मान के हक़दार हैं. ये वीडियो बाहर आया तो बवाल कट गया. जर्मनी पिछले कुछ समय से यूक्रेन के पक्ष में बोल रहा है. उसने रूस को तनाव करने के लिए भी कहा. वीडियो आने के बाद यूक्रेन ने जर्मन राजदूत को मिलने के लिए बुलाया. यूक्रेन ने शोबाख़ के बयान पर आपत्ति दर्ज कराई. इसके कुछ देर बाद ही शोबाख़ ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया. जानकारों का कहना है कि भले ही इस्तीफ़े से मामला शांत कराने की कोशिश की जा रही हो, इस प्रकरण ने यूरोपियन यूनियन के देशों में फैली दरार को उजागर कर दिया है. यूरोप के कई देश गैस के लिए रूस पर निर्भर हैं. जर्मनी भी उनमें से एक है. पिछले कुछ महीनों से यूरोप में गैस के दाम काफ़ी बढ़ गए हैं. रूस को चुनौती देने का मतलब है, गैस की सप्लाई बंद. इससे हाहाकार मचने की आशंका जताई जा रही है. इसी वजह से कई देश रूस के ख़िलाफ़ कठोर बयानबाजी से बच रहे हैं.

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