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कोरोना काल में बायोमेडिकल वेस्ट कितना बढ़ गया, इन्हें डंप कैसे किया जाना चाहिए

जब मुन्ना ने मकसूद भाई से कहा, 'तुम मस्त काम करता है', तो इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी.

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अगर मकसूद भाई बायोमेडिकल वेस्ट का सही मैनेजमेंट न करते तो यही हाल होगा, जो पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (NMCH) के कैंपस (दाएं) का हुआ है. (NMCH की फोटो- PTI से)
मकसूद भाई अस्पताल में सारे पेशेंट लोगों की कचरा पट्टी उठाते हैं.
मकसूद भाई बायोमेडिकल वेस्ट को तय गाइडलाइंस के अनुसार डिस्पोज़ करते हैं.
और जब तक नगर निगम की गाड़ी आकर ये कचरा उठा न ले जाए, तब तक इंश्योर करते हैं कि ये इधर-उधर न हो जाए.
“तुम क्या मस्त काम करता है मकसूद भाई!” बी लाइक मकसूद भाई. 
अब आप समझ रहे होंगे कि मुन्ना ने मकसूद भाई की तारीफ क्यों की थी, गले क्यों लगा लिया था. मकसूद भाई का एक्स फैक्टर था बायोमेडिकल वेस्ट का मैनेजमेंट. और आज उनका यही गुण हमने समझ लिया, तो कोरोना वायरस के बाद दुनिया की ओर आने वाले एक बड़े ख़तरे से बच जाएंगे.

क्या होता है बायोमेडिकल वेस्ट?

जब ‘गाड़ी वाला’ आता है और आपसे ‘कचरा निकाल’ बोलता है, तो क्या कहता है? “गीला कचरा अलग, सूखा कचरा अलग”. ये तो सिर्फ दो हैं. असल में कचरा कई तरह का होता है. जैसे- सॉलिड वेस्ट, प्लास्टिक वेस्ट, ई-वेस्ट (ख़राब गैजेट्स वगैरह) आदि-आदि.
ऐसा ही एक कचरा होता है- बायोमेडिकल वेस्ट. बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 कहता है-
“हर वो वेस्ट, जो इंसानों या जानवरों के डायग्नोसिस, ट्रीटमेंट, इम्युनाइज़ेशन में इस्तेमाल होता है. या लैब में इस्तेमाल होता है. या टेस्टिंग में इस्तेमाल होता है”
इसे और थोड़ा फैलाएं, तो अस्पताल, लैब, ब्लड बैंक और तमाम मेडिकल इंस्टीट्यूशंस से निकलने वाला सारा वेस्ट. जैसे- पट्टियां, सिरिंज, इलाज में इस्तेमाल होने वाले छोटे-मोटे उपकरण, मास्क, फेस शील्ड, पीपीई किट्स आदि. ये सब बायोमेडिकल वेस्ट हैं.
चूंकि ये सब किसी के इलाज में इस्तेमाल हुए होते हैं, तो इनसे इंफेक्शन फैलने का ख़तरा काफी ज़्यादा होता है. लिहाजा बायोमेडिकल वेस्ट का तरीके से डिस्पोज़ल काफी अहम होता है.

क्यों और कितना बढ़ रहा है मेडिकल वेस्ट?

जब से दुनिया में कोरोना वायरस का इंफेक्शन फैला है, तब से मास्क, फेस शील्ड, पीपीई किट्स जैसे इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है. पीपीई किट्स तो 'यूज़ एंड थ्रो' किस्म की होती हैं. नतीजा- अब दुनियाभर में इन बायोमेडिकल वेस्ट का एक बड़ा भंडार तैयार हो रहा है.
पर्यावरण एवं प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी है. रिपोर्ट कहती है-
“दिल्ली में कोविड-19 बायोमेडिकल वेस्ट की मात्रा काफी बढ़ गई है. मई में हर रोज़ औसतन 25 टन वेस्ट निकल रहा था, जो कि जुलाई में बढ़कर 349 टन प्रतिदिन तक हो गया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में जून में प्रतिदिन औसतन 372 टन कोविड-19 बायोमेडिकल वेस्ट निकला.”
वहीं पीटीआई की एक ख़बर के मुताबिक, दिल्ली में दो कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटीज हैं- एसएमएस वॉटर ग्रेस प्राइवेट लिमिटेड और बायोटिक वेस्ट सॉल्यूशन लिमिटेड हैं, जो प्रतिदिन क्रमशः 24 टन और 50 टन कचरा डिस्पोज़ल कर सकते हैं.
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, कोविड के पहले तक देश में औसतन हर रोज़ 690 टन मेडिकल वेस्ट निकल रहा था. कोविड के आने के बाद रोज़ का करीब 100 टन मेडिकल वेस्ट और बढ़ गया.

इसे डंप करने का सही तरीका क्या है?

अब सवाल कि इसका निपटारा कैसे किया जाए? तो एच-1एन-1 के केसे में निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के निपटारे के तरीके को आदर्श माना गया. और उसी के बेस पर कोविड केस में निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को भी निपटाने की गाइडलाइंस तैयार की गईं. ये तस्वीर देखिए.
Biomedical Waste अलग-अलग तरह के कूड़े को मिक्स करना सबसे बड़ी ग़लती होती है.

हर तरह के मेडिकल वेस्ट के लिए तय रंग के कूड़ेदान का इस्तेमाल करना पहला और सबसे बेसिक प्रॉसेस है.
पीला कूड़ादान – बॉडी वेस्ट, केमिकल वेस्ट, गंदे/इंफेक्टेड कपड़े, दवाइयों या लैब्स से निकला कचरा इसमें डालें.
लाल कूड़ादान – इंफेक्टेड प्लास्टिक कचरा. जैसे- ट्यूबिंग, प्लास्टिक की बोतलें, सिरिंज (सुई के बिना) वगैरह.
नीला कूड़ादान - कांच की वस्तुएं. जैसे- टूटी-फूटी या खाली शीशियां/बोतलें वगैरह.
ग्रे कूड़ादान - धारदार मेटल वाला कचरा. जैसे- सुई, ब्लेड.
काला कूड़ादान - खाली और एक्सपायर्ड कीटनाशक/सैनेटाइज़र वगैरह की बोतलें, बल्ब, बैट्री.
आसमानी कूड़ादान – ऐसा कचरा, जो ख़ुद डिस्पोज़ हो जाएगा या जिसे रीसायकल किया जा सकता है.
हर तरह के कचरे को अलग-अलग रखने के बाद थैले का मुंह कसकर बंद करें. कोई भी कचरा फैलने न पाए. इसके बाद इसे कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी  में भेजें, जहां ये डिस्पोज़ किया जा सकता है.
ये बहुत सीधा-सिंपल सा प्रॉसेस है. लेकिन दिक्कत ये है कि यही फॉलो नहीं किया जाता है.

कोविड वेस्ट अलग है या इसी में?

कोविड वेस्ट (पीपीई किट्स, इंफेक्टेड मास्क/शील्ड वगैरह) भी मेडिकल वेस्ट का ही हिस्सा हैं. इसी साल बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 में कोविड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स को भी जोड़ा गया. ये रूल्स समझाते हुए सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में डेप्युटी प्रोग्राम मैनेजर दिनेश बंडेला बताते हैं-
“कोविड वेस्ट को पीले बैग में डालकर अलग रखें. जो लोग होम आइसोलेशन में हैं, उन्हें भी कोविड वेस्ट को अलग स्टोर करना है. फिर इन बैग्स को कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी में भेजें. ये ज़िम्मेदारी है लोकल बॉडीज़ जैसे कि म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की.”
लेकिन इसमें कुछ बातें ख़ास ध्यान देने वाली हैं–
# भले ही आज कोविड की वजह से घरों से भी काफी मात्रा में मास्क, ग्लव्स वगैरह निकल रहे हैं. लेकिन ये बायोमेडिकल वेस्ट नहीं हैं. उदाहरण के लिए- गाइडलाइंस कहती है कि अगर यूज़्ड सैनिटरी पैड्स घरों से निकल रहे हैं, तो ये मेडिकल वेस्ट नहीं हैं, ये जनरल वेस्ट हैं. जिसे हम उसी तरह से डिस्पोज़ कर सकते हैं, जिस तरह से बाकी कचरा.
# लेकिन यही यूज़्ड सैनिटरी पैड्स अगर हॉस्पिटल से निकल रहे हैं, तो वो बायोमेडिकल वेस्ट की कैटेगरी में आएंगे. फिर इसका निस्तारण उस तरीके से होगा.
# यानी हमारे घरों से जो मास्क वगैरह निकल रहे हैं, वो जनरल वेस्ट ही है. लेकिन यहां ध्यान ये देना है कि इस तरह के कोविड वेस्ट को भी जनरल वेस्ट में मिलाने से पहले 72 घंटे तक अलग रखना है. उसके बाद ही इसे जनरल वेस्ट के साथ डिस्पोज़ करें.
Delhi Biomedical Waste दिल्ली के गाज़ीपुर में बाकी कूड़े का साथ खुले में पड़े पीपीई किट्स और मेडिकल वेस्ट. (फोटो- PTI)

वेस्ट ट्रीटमेंट पर लोड बढ़ने का ज़िम्मेदार कौन?

चलिए ये बात तो तय मानी कि देश में मेडिकल वेस्ट का लोड बढ़ गया है. तो क्या देश के सारे वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता इतनी नहीं है कि वे सारे मेडिकल वेस्ट का निपटान कर सकें?
क्षमता है. लेकिन दिक्कत ये है कि मेडिकल वेस्ट के साथ-साथ जनरल वेस्ट भी प्लांट पहुंच रहा है. इसकी वजह से उन पर लोड बढ़ रहा है. अगर सिर्फ प्रॉपर मेडिकल वेस्ट ही प्लांट पहुंचे और जनरल वेस्ट उससे पहले ही अलग कर दिया जाए, तो लोड कम होगा.
दिनेश बंडेला बताते हैं-
“ये दिक्कत हो रही है घरों से. लोग जनरल वेस्ट और मेडिकल वेस्ट को अलग नहीं कर रहे हैं. एक ही पन्नी में डाल रहे हैं. अब होता क्या है कि अगर इस पूरे कूड़े को जनरल वेस्ट की तरह ट्रीट कर दिया जाए, तो इंफेक्शन का ख़तरा बढ़ता है. और अगर पूरे वेस्ट को मेडिकल वेस्ट की तरह ट्रीट कर दिया जाए, तो प्लांट्स पर लोड बढ़ता है.”
यही वजह है कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तमाम बड़े शहरों के नगर निगम को ये निर्देश देने पर भी विचार कर रहा है कि वे सबसे पहले तो लोगों को ये बताएं कि घर से निकल रहे कचरे को कैसे अलग-अलग रखना है. जनरल वेस्ट अलग और मेडिकल वेस्ट अलग (पीली पन्नी में). फिर कचरा कलेक्शन करने वालों को पीली पन्नी वाले कचरे को लेकर ठीक-ठीक दिशा-निर्देश बताएं. इससे एक तो इंफेक्शन का ख़तरा कम होगा, साथ ही प्लांट पर लोड नहीं बढ़ेगा, तो बायोमेडिकल वेस्ट का सही निपटान हो सकेगा.
और ऐसा नहीं हुआ, तो यकीन मानिए कि कोरोना की वैक्सीन आज नहीं तो कल आ जाएगी. लेकिन तब तक हम अपने इर्द-गिर्द मेडिकल वेस्ट का अंबार लगा चुके होंगे. इसलिए अभी समय है. हमको-आपको सबको ‘मकसूद भाई’ बन जाना चाहिए.


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