ये 1999 के आस-पास की बात है. झारखंड के साउथ छोटा नागपुर सबडिविजन का जिला खूंटी. यहां के एक गांव में नक्सली नेताओं की मीटिंग चल रही थी. इस समय तक सीपीआई माओवादी बनी नहीं थी. उस समय नक्सलियों के एक ग्रुप माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ़ इंडिया (एमसीसी) का प्रभाव हुआ करता था. मीटिंग खत्म होने के बाद वहां पर 16 साल का एक लड़का आया. लड़के की जमीन पर रिश्तेदारों ने कब्जा कर लिया था. वो मारपीट और झगड़े से परेशान होकर जंगल की तरफ भाग निकला था. नक्सली नेताओं ने उसे जमीन वापस दिलाने का वायदा किया. इस तरह वो नक्सली आंदोलन में शामिल हो गया. लड़के का नाम था कुंदन पाहन.
जिस खूंखार नक्सली कमांडर की कोई तस्वीर तक नहीं थी, उसने सरेंडर क्यों किया?
"मेरी कोई भी तस्वीर पुलिस के पास नहीं है. मैं हर जगह घूमा. किसी ने पकड़ा नहीं."


2005 के बाद कुंदन झारखंड पुलिस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बनके सामने आया. उस पर खूंटी में 50, रांची में 42, चाईबासा में 27, सरायकेला में 7 और गुमला में एक केस मिलाकर कुल 128 मामले दर्ज हैं. रविवार को कुंदन ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. पुलिस इसे बड़ी कामयाबी बता रही है. आखिर 1999 से 2017 के दरम्यान ऐसा क्या हुआ कि एक सामान्य आदिवासी लड़का पुलिस के लिए सबसे वांछित अपराधी बन गया?
पहली बड़ी वारदात2007 की बात है. सुनील महतो उस वक़्त जमशेदपुर से झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद हुआ करते थे. उन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ अभियान चला कर कई गांवों में नागरिक सुरक्षा समिति नाम का संगठन खड़ा किया. इस संगठन के जरिए उन्होंने नक्सलियों के हिंसक रास्ते के खिलाफ प्रचार किया. इससे नक्सलियों के जनसमर्थन में तेजी से गिरावट देखी जाने लगी. झारखंड और बंगाल की सीमा पर नक्सलियों ने कई मीटिंग की. अंत में सेंट्रल कमिटी की तरफ से फरमान जारी किया गया कि सुनील महतो की हत्या कर दी जाए. तय हुआ कि यह हत्या किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में अंजाम दी जाए ताकि विरोधियों को कड़ा संदेश दिया जा सके.

सुनील महतो
मार्च की चौथी तारीख थी. सुनील जमशेदपुर से 40 किलोमीटर पूर्वी सिंहभूम जिले के बाकुरिया गए हुए थे. होली के मौके पर एक फुटबॉल मैच रखा गया था. सैकड़ों ग्रामीण इस मैच में बतौर दर्शक मौजूद थे. सुनील इस मैच के मुख्य अतिथि थे. 90 मिनट का यह मैच 80 मिनट तक ठीक चला. इस बीच चार ग्रामीण माला लेकर सुनील की तरफ बढ़े. इससे पहले वो कुछ समझ पाते, उनके दोनों बॉडीगार्ड नक्सलियों की गोली का शिकार हो चुके थे. उन्हें पॉइंट ब्लैंक रेंज से सात गोली मारी गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्थानीय नेता प्रभाकर महतो भी इस हमले में मारे गए. मौके पर भगदड़ का फायदा उठाते हुए हमला करने आए 15 नक्सली बिना किसी परेशानी के फरार हो गए. नक्सलियों के इस जत्थे का नेता था कुंदन पाहन. यह पहली घटना थी जब कुंदन पाहन का नाम पुलिस के लिए एक गुत्थी की तरह सामने आया.
पुलिस वाले खौफ खाते थे
जून 2008 को सीआरपीएफ और राज्य पुलिस की संयुक्त टीम लुंगटू पहाड़ियों में संयुक्त पेट्रोलिंग अभियान पर थे. इस अभियान का नेतृत्व कर रहे थे डीएसपी प्रमोद कुमार. प्रमोद कुमार एक वैन में सवार थे. वो अभियान खत्म करने के बाद तमाड़ पुलिस स्टेशन की ओर लौट रहे थे. पुलिस स्टेशन से चार किलोमीटर दूर एक पुल के पास उनकी गाड़ी लैंडमाइन की चपेट में आ गई. प्रमोद कुमार के अलावा चार और पुलिस वाले इस हमले में मारे गए. इस ऑपरेशन को अंजाम देने में भी कुंदन पाहन का हाथ था.
मरने से पहले उन्होंने कहा, "खूब पढ़ना"
इस घटना के ठीक दस दिन बाद तमाड़ से ही जनता दल (यू) के विधायक और अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री रहे रमेश सिंह मुंडा बुंडू में एसएस हाईस्कूल में प्रतिभा सम्मान समारोह में शरीक होने गए थे. स्टूडेंट्स को इनाम देने के बाद उन्होंने भाषण देने के लिए मंच से उनका नाम पुकारा गया. प्रधानाचार्य ने उनकी सहूलियत के लिए माइक उनकी जगह पर मंगवाने को कहा. इस पर उनका जवाब था, "कितना माइक इधर-उधर कीजिएगा. बड़ा आवाज करता है." इस तरह उनके भाषण की शुरुआत हुई. उन्हें लगभग 25 मिनट बोलना था. वो पूरी रवानी से भाषण दे रहे थे-
"खूब पढ़ना, बड़ा आदमी बनना... हम जैसे पढ़े-लिखे, वैसे ही तुम लोग भी पढ़ना-लिखना. खूब मन लगा कर पढ़ना, तभी बड़ा आदमी बनोगे. मैं भी गरीब परिवार और पिछड़े क्षेत्र से आता हूं. पढ़ा-लिखा, तो इतना ऊपर तक पहुंच सका. पढ़ने-लिखने से ही समाज में सम्मान मिलता है. इतने सालों से मैं राजनीति कर रहा हूं. शुरू में असफलता मिली, एक नहीं, दो नहीं, तीन दफा चुनाव हार गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारा. असफलता से मैं तनिक भी विचलित नहीं हुआ. हारा, फिर हारा, लेकिन लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटा और अंतत: जीत गया, दो-दो बार जीता. बाद में विधायक और मंत्री भी बना. असफल होने पर मंथन करना चाहिए, आखिर क्यों सफलता हाथ न लगी. फिर कमियों को दूर कर आगे बढ़ना चाहिए, सफलता तो मिलेगी ही."

रमेश मुंडा
इस दौरान उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि जिस सफल जीवन की कहानी वो बच्चों को सुना रहे हैं, उसका दर्दनाक अंत होने जा रहा है. वो मंच पर भाषण दे ही रहे थे कि सादे कपड़ों में आए 15 नक्सलियों ने उनके दो बॉडीगार्ड को मार गिराया. इसके बाद उन्होंने विधायक पर गोली दागी. ये गोली सीधे उनके माथे में लगी. वो अपनी जगह पर गिरकर छटपटाने लगे. इसके बाद नक्सलियों ने उनके पास जा कर सीने में दो गोलियां और दाग दीं, ताकि बचने की कोई गुंजाइश ना रहे. कहते हैं कि इस घटना को कुंदन पाहन ने ही अंजाम दिया था.
कुंदन के आत्मसमर्पण के बाद से रमेश मुंडा के बेटे और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के विधायक विकास मुंडा मोहराबाड़ी मैदान में धरने पर बैठे हैं. उनका कहना है कि जब उनके पिता की हत्या हुई थी, तब सरकार ने उनके परिवार को 1 लाख रुपए का मुआवजा दिया था. लेकिन कुंदन को सरेंडर करने पर 15 लाख रुपए दिए जा रहे हैं. वो कहते हैं कि ऐसे लोगों को मेडल देने की बजाए सीधा एनकाउंटर कर दिया जाना चाहिए.
कुंदन को नृशंस तरीके से ऑपरेशन अंजाम देने के लिए जाना जाता है. उसे यह पहचान मिली इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या की बदौलत. फ्रांसिस झारखंड पुलिस की स्पेशल सेल में काम किया करते थे. 30 सितंबर, 2009 को फ्रांसिस हेम्बोम बाजार में सादी वर्दी में सूचना जुटाने का काम कर रहे थे. कुंदन के दस्ते के लोगों ने उन्हें वहां से अगवा कर लिया. फ्रांसिस की रिहाई के बदले में उन्होंने कोबाड़ गांधी और छत्रधर महतो की रिहाई की मांग की. सरकार ने इस संबंध में माओवादियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया.

अंत में फ्रांसिस इंदवार की बॉडी 6 अक्टूबर को अड़की थाना क्षेत्र स्थित राईसा घाटी के पास से मिली थी. उनका सिर उनके शरीर से 10 फीट दूर रखा हुआ था. शरीर के कई अंग भंग कर दिए गए थे. बीबीसी से बात करते हुए माओवादी प्रवक्ता समरजी ने कहा, "हमारे लोगों को पुलिस जिस तरह से गिरफ़्तार कर रही है, उसी तरह से हमने इंस्पेक्टर इंदवार को गिरफ़्तार किया था.'' समरजी ने चेतावनी दी कि पुलिस ने झारखंड के सचिव कुंदन पाहन के रिश्तेदारों को गिरफ़्तार किया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए, वरना वो भी अधिकारियों के रिश्तेदारों को गिरफ़्तार करना शुरू कर देंगे.''
पांच करोड़ की डकैती
5 मई 2008 की बात है. ICICI बैंक की कैश वैन जमशेदपुर से रांची की तरफ बढ़ रही थी. इस वैन में पांच करोड़ रुपए और एक किलो सोना था. तमाड़ के पास ही वैन को घेर लिया गया. कुंदन और उसके साथियों ने वैन के ड्राइवर को अगवा कर लिया. गाड़ी में जीपीएस लगा हुआ था. वारदात की सूचना तुरंत पुलिस को मिल गई. जब तक पुलिस मौके पर पहुंचती, कुंदन फरार हो चुका था.
बेशुमार पैसा कुंदन के लिए मुसीबत बन कर आया. इतनी बड़ी रकम की वजह से वो लालच का शिकार हो गया. उसने मौके का फायदा उठा कर डबल क्रॉस करने की योजना बनाई. उसने सेंट्रल कमिटी को कहा कि लूट की रकम स्थानीय गुरिल्लाओं में बांट दी गई और अपने साथियों से कहा कि वो रकम पार्टी फंड में दे दी गई है. धीरे-धीरे बात खुली और कुंदन को पार्टी में साइडलाइन करना शुरू कर दिया गया.
कुंदन का ही एक साथी राजेश पैसे के बंटवारे को लेकर कुंदन से उलझ गया. अंत में उसने अपना अलग दस्ता बना लिया. राजेश ने राहे में पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर हथियार लूटने के ऑपरेशन को सफलता से अंजाम दिया. इसके बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कुंदन की बजाए राजेश को ज्यादा तरजीह देनी शुरू कर दी. इससे कुंदन तिलमिला गया. उसने राजेश को धोखे से अड़की के जंगलों में बुला कर उसकी हत्या कर दी. उसकी लाश रांची-टाटा हाइवे पर फेंक दी गई. कुंदन ने इस हत्या को पुलिस मुठभेड़ का जामा पहनाना चाहा था. इस हत्या का राज पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने खुल गया. कुंदन को पार्टी से निकाल दिया गया. वो पिछले तीन साल से जान बचाने के चक्कर में इधर-उधर भटक रहा था.
कोई तस्वीर नहींआत्मसमर्पण से पहले पुलिस के पास कुंदन की एक मात्र तस्वीर उपलब्ध थी. यह तस्वीर उसके असल हुलिए से काफी अलग थी. एक अफवाह यह भी थी कि पुलिस ने उसे 2009 में धर लिया था लेकिन किसी रसूखदार नेता के फोन के बाद उसे छोड़ दिया गया. हालांकि ये आम धारणा है कि कुंदन के कई नेताओं और पुलिस अधिकारियों से करीबी संबंध रहे हैं. कहा तो ये भी जाता है कि सुनील महतो ने चुनाव जीतने के लिए 2005 में कुंदन की मदद ली थी. अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन पर भी कुंदन से संबंध रखने के आरोप लगते रहे हैं. अब भी उसके राजनीति में आने के कयास लगाए जा रहे हैं. पुलिस कुंदन के मामले में किस तरह से नाकाम रही है, उसका खुलासा कुंदन खुद करता है,
"मेरी कोई भी तस्वीर पुलिस के पास नहीं है. सरेंडर करने से पहले मैं रांची आया था. यहां मैं हर जगह घूमा. पुलिसवालों के सामने से गुजरा लेकिन किसी ने पकड़ा नहीं."

कुंदन पाहन: नई और पुरानी तस्वीर
कुंदन के भाई श्याम पाहन को इसी साल 28 फरवरी को हरियाणा के यमुना नगर से गिरफ्तार कर लिया गया. इससे पहले उसका एक और भाई 9 जनवरी को पुलिस के सामने सरेंडर कर चुका है. कुंदन पर परिवार की तरफ से लगातार दबाव बनाया जा रहा था. इसमें कोई शक नहीं है कि टॉप माओवादी कमांडर पुलिस के लिए खुफिया सूचनाओं का जखीरा लेकर आया है. लेकिन इससे माओवादियों की सेहत पर कोई ख़ास प्रभाव पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है. वो पहले ही पार्टी से बाहर किया जा चुका है.
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