'प्रिय प्रधानमंत्री जी, स्वतंत्रता दिवस पर आपकी स्पीच सुनी थी. मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने मुसलमान औरतों की बेहतरी के बारे में बात की.'ये मासूमा रानाल्वी के शब्द हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपे पीएम मोदी के नाम लिखे एक ख़त में वो मुसलमान औरतों के हक़ में एक सवाल उठाना चाह रही हैं.
'एकतरफा ट्रिपल तलाक बुरी चीज है. लेकिन इकलौती चीज नहीं जिससे औरतें पीड़ित हैं. मैं आपको औरतों के खतने के बारे में बता रही हूं. जिन औरतों का शरीर इस तरह ख़राब का दिया जाता है कि पूरे जीवन सही नहीं हो पाता'हम पुरुषों के खतने के बारे में बहुत कुछ जानते हैं. मगर औरतों के खतने की कोई बात नहीं करता. जबकि पुरुषों और औरतों के खतने एन एक बड़ा फर्क है. फर्क ये है कि खतने में औरतों की क्लिटरिस काट दी जाती है, यानी वो अंग जिसको छुए जाने पर औरतों को सबसे अधिक उत्तेजना महसूस होती है.
बीते साल मेल टुडे से बातचीत करते हुए रानाल्वी ने कहा था:
'मैं 7 साल की थी. मेरी दादी ने मुझसे वादा किया कि मुझे टॉफ़ी और आइसक्रीम खिलाएंगी. लेकिन मुझे एक अंधेरे, सुनसान कमरे में ले जाया गया. मेरे कपड़े ऊपर उठाए गए, हाथ-पांव पकड़ लिए गए. उसके बाद तेज दर्द हुआ. मैं रोते हुए घर वापस आई. 30 साल की उम्र तक मुझे पता नहीं था कि उस दिन मेरे साथ क्या हुआ था. फिर मैंने लड़कियों के खतने के बारे में पढ़ा. इंडिया में लड़कियों का खतना रोकने के लिए कोई कानून नहीं है. मैंने दाऊदी बोहरा समुदाय के कई लीडरों को चिट्ठियां लिखीं. लेकिन कुछ नहीं हुआ.'

दाऊदी बोहरा शिया मुसलमानों के अंदर एक छोटा सा समुदाय है. ये एक कारोबारी समुदाय है. और आमतौर पर दाऊदी बोहरा लोग अमीर होते हैं. इंडिया में ये ज्यादातर मुंबई में बसे हुए हैं. लेकिन कई लोग अमेरिका और यूरोप में भी कारोबार के सिलसिले में बसे हुए हैं. ये लोग अलग ही दिखते हैं. क्योंकि मर्दों की टोपियों में सुनहरा काम होता है. और औरतें रंगीन बुर्क़े पहनती हैं.
दाऊदी बोहरा लिबरल माने जाते हैं. क्योंकि ये एक पढ़ा-लिखा समुदाय है. यहां औरतों को पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. लेकिन समुदाय को कंट्रोल करने वाले पुरुष हैं. साउथ मुंबई में है सैफई महल. जहां इनके धार्मिक गुरु 'सैयदना' रहते हैं, शादी से लेकर मरने तक, मुंबई से न्यू यॉर्क तक, सैयदना डॉक्टरों को आशीर्वाद देते हैं, बच्चों का खतना करने के लिए.
खतना, जिसे अंग्रेजी में सर्कमसिजन कहते हैं, एक पुरानी प्रथा है. जिसमें मर्दों के लिंग या औरतों की वेजाइना को हल्का सा काट दिया जाता है. लड़कियों के खतने की प्रथा यमन से आती है. जहां से दाऊदी बोहरा समुदाय आता है.कई लड़कियां खतने के खिलाफ लड़ रही हैं. क्योंकि हल्का सा 'कट' के नाम पर की गई ये चीज असल में औरतों के सेक्स जीवन पर लंबा असर डालती है. ये खतना उनके लिए सेक्शुअल म्यूटिलेशन बन जाती है. क्योंकि इसमें औरतों की क्लिटरिस काट दी जाती है.
50 साल की डॉक्टर बिल्किस कहती हैं:
'खतने से कोई नुकसान नहीं होता. बस एक छोटा सा कट लगाते हैं. लेकिन ये भी सच है कि उससे कोई फायदा नहीं होता. अगर आज के दिन मेरी कोई नन्ही बच्ची होती, मैं कभी उसका खतना नहीं करवाती.'

यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 20 करोड़ ऐसी औरतें जी रही हैं, जिनका खतना हुआ है. रिपोर्ट में ये भी है कि ये संख्या आने वाले 15 सालों में बढ़ने वाली है. मेडिकल एथिक्स के इंटरनेशनल जर्नल ने बीते फरवरी में ये कहा कि परंपरा के नाम पर हल्का कट लगा देना ठीक है. पर दिक्कत ये है कि हलके कट के नाम पर औरतें पूरी जिंदगी सेक्शुअल दिक्कतों से जूझती रहती हैं.
सैयदना का कहना है कि हम मर्दों और औरतों, दोनों का खतना करते हैं. यही परंपरा है. लेकिन साइंटिफिक जांच ये बताती है कि औरतों और मर्दों के लिए खतने के मायने अलग-अलग होते हैं. मर्दों के केस में ये फायदेमंद साबित होता है. बल्कि औरतों के केस में ये उनकी सेक्स लाइफ ख़त्म कर सकता है.

34 साल की अलेफिया याद करती हैं कि उनकी दादी की बहन ने किस तरह न्यू यॉर्क के एक बेसमेंट में उनका खतना किया था. 'जगह ठंडी थी. और दर्द बर्दाश्त के बाहर था... ये भद्दा है, घिनौना है. हमें अपने नेचुरल रूप को लेकर शर्मिंदा महसूस करवाया जाता है. हमें इस बात के अपराधबोध से भर दिया जाता है कि हम सेक्स कर सकते हैं. मैं अपनी मां से नाराज नहीं हूं. उन मर्दों से नाराज हूं, जिन्होंने ये नियम बनाए हैं.'बूढ़ी दाऊदी औरतें क्लिटरिस को 'हराम की बोटी' कहती हैं. यानी गोश्त का वो टुकड़ा, जो औरतों को भटका देता है.
बिल्किस पढ़ी-लिखी औरत हैं. पेशे से डॉक्टर हैं. कभी घर के काम करने का बोझ नहीं रहा उन पर. लोग उनके पास बेटियों का खतना कराने आते हैं, तो वो मना कर देती हैं. वो याद करती हैं कि एक बार एक बच्ची को उनके पास इलाज के लिए लाया गया था. क्योंकि इतना ज्यादा काट दिया गया था कि बच्ची का खून नहीं रुक रहा था.

लेकिन आज से 15 साल पहले बिल्किस ने एक नर्स से खुद अपनी बेटी का खतना करवाया था. परंपरा और धार्मिक दबाव के चलते. हालांकि उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि उनकी बेटी को कोई नुकसान न हो. लेकिन हजारों लड़कियों के खतने दाइयां कर देती हैं. बिना किसी डॉक्टर या नर्स की निगरानी के.
बिल्किस की बेटी समीरा आज 22 साल की है. जब उसे अपने खतने के बारे में पता चला, उसने मां को 'हिपोक्रिट' कहा. लेकिन धीरे-धीरे उसे मालूम पड़ा कि उसका गुस्सा पूरे समुदाय की तरफ है. समीरा जैसी हजारों लड़कियां आज चाहती हैं कि इस प्रथा को ख़त्म कर दिया जाए. लेकिन सैयदना की राय इसमें बंटी हुई है. सैयदना के भाई का मानना है कि इस प्रथा को ख़त्म कर देना चाहिए. लेकिन उनके बेटे और होने वाले सैयदना का मानना है कि परंपरा को ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए.

परंपराओं को मानना अच्छी बात है. ये हमें जोड़ती हैं, जिंदा रखती हैं. हमारे पूर्वजों को जिंदा रखती हैं. हमारी पहचान होती हैं. लेकिन जो परंपराएं हमें खोखला करती हैं, हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए. हमारा ये जानना जरूरी है कि हर प्रथा अच्छी नहीं होती है. कुछ ऐसी भी होती हैं, जो जोंक की तरह हमारा खून चूस रही हैं. मानवाधिकारों के मामलों में हमें अपंग बना रही हैं. लड़कियों की क्लिटरिस काट उनका सेक्शुअल जीवन खत्म कर देना भी एक ऐसी ही प्रथा है.
सोर्स: AP
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