साल 1937. जगह थी ताक्तसेर. तिब्बत के सुदूर पूर्वोत्तर में बसा एक छोटा-सा गांव. खेती-किसानी वाला एक घर. आंगन में एक बच्चा ल्हामो धोन्डुप एक थैले में अपना ज़रूरी सामान भर रहा था. मानो किसी बड़े सफ़र पर निकलने की तैयारी हो रही हो. मां ने देखा, तो प्यार से पूछ लिया - बेटा, कहां जा रहे हो? बच्चे ने अपनी तोतली ज़ुबान में उत्तर दिया - मां! मैं ल्हासा जाऊंगा. इतना बोलकर दो साल का वो बच्चा अपने काम में जुट गया. मां ने बच्चे की बात को हंसी में टाल दिया. लेकिन ये बात हंसी की थी नहीं.
ल्हासा तिब्बत की राजधानी है. कुछ दिनों के बाद उस गांव में ल्हासा से कुछ लोग आए. बौद्ध संतों की वेशभूषा से लैस. वे समूचे तिब्बत में घूम रहे थे. उन्हें किसी की तलाश थी. एक सपने में दिखे कुछ संकेतों को साधने की तलाश. सपना किसने देखा था? तिब्बत के 9वें पंचेन लामा ने.गांव में पहुंचे बौद्ध साधुओं ने ताक्तसेर में भी तलाश की. वो काफ़ी थक चुके थे. उन्हें लगा, उनका मिशन अभी और लंबा खिंचेगा. जब वो ल्हामो धोन्डुप के घर तक पहुंचे, उनके अंदर एक घंटी-सी बजी. उन्हें अहसास हुआ, वो मंज़िल के पास पहुंच गए हैं. लेकिन अभी परीक्षा बाकी थी. सदियों पुरानी तिब्बती परंपरा, जिसका इस्तेमाल पुनर्वतार को पहचानने में किया जाता रहा है.
दलाई लामा जब बच्चे थे. (साभार: Tibet Museum)बच्चे को एक आसन पर बिठाया गया. उसके सामने कुछ पुरानी चीज़ें रखी गईं. मसलन, एक पुराना चश्मा, डमरू और घंटी. बच्चे ने उन चीज़ों को एक-एक कर देखा और कहा- ये मेरा है. उसने किसी साधक की तरह उनका इस्तेमाल करके भी दिखाया. इसके बाद बच्चे को कई छड़ियां दी गईं. उसने अपनी पसंद की एक छड़ी चुनी और तुरंत दूर फेंक दी. दूसरी बार में उसने 13वें दलाई लामा की छड़ी उठाई और उसको अपने शरीर से चिपका लिया. बौद्ध साधुओं ने अपना सिर झुका दिया और घुटने मोड़कर ज़मीन पर बैठ गए. उनका मिशन पूरा हो चुका था.
लेकिन कहानी यहीं पर ख़त्म नहीं हुई थी. बच्चा जब बड़ा हुआ, वो चीन का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया. जिसे मारने के लिए चीन ने अपनी सेना तिब्बत में उतार दी. भारत और चीन के बीच हुई 1962 की लड़ाई का एक कारण वो बच्चा भी था, जिसकी तस्वीर को चीन ने हमेशा के लिए बैन कर दिया गया. जिसे चीन ‘साधु के भेष में छिपा भेड़िया’ कहकर संबोधित करता है.
14वें दलाई लामा, तेन्ज़िन ग्यात्सो.
ये चीन के सबसे बड़े दुश्मन और दुनिया के सबसे पसंदीदा और लोकप्रिय तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु 14वें दलाई लामा की कहानी है.
चीन से टैक्स वसूलने वाला देशवो तिब्बत की दलाई लामा परंपरा के 14वें धर्मगुरु हैं. उनसे पहले 13 और दलाई लामा हो चुके हैं. इस कहानी में हम 14वें दलाई लामा को सिर्फ़ दलाई लामा के नाम से बुलाएंगे. इस नाम का मतलब है- ज्ञान का समंदर. तिब्बत में दलाई लामा को ‘कुनडुन’ भी कहते हैं. माने उपस्थिति. सर्वविद्यमान दलाई लामा. उन्हें करुणा का रूप भी माना जाता है. 1959 तक दलाई लामा ‘देश के मुखिया’ और सर्वोच्च धार्मिक अधिकारी थे.तिब्बत का पठार. भारत के उत्तर-पूर्व में बसा है. हिमालय के उस पार. चीन का दक्षिणी बॉर्डर तिब्बत ही है. एक समय में तिब्बत संप्रभु देश हुआ करता था. उसके पास अपनी सेना थी. और वो पड़ोसी देशों से समझौते भी करते थे. तिब्बत की सेना काफ़ी ताकतवर थी और उसने भूटान और नेपाल को भी जीता था. 763 ईसवी में तिब्बत की सेना आधे चीन पर कब्ज़ा कर चुकी थी. तिब्बत की सरकार चीन से टैक्स भी वसूलती थी. फिर सब कुछ बदल गया. युद्धपसंद तिब्बत ने 180 डिग्री टर्न ले लिया.
आज से 2500 साल पहले. लुम्बिनी. शाक्य वंश का राजमहल. एक राजसी कमरे में कीमती लकड़ी के पलंग पर लेटा राजकुमार सिद्धार्थ बेचैन-सा है. आज दिन में उसने 29 साल में पहली बार बाहर की दुनिया देखी थी. और उसे जो दिखा, उससे पैदा हुई बेचैनी ने महल के तमाम ऐशो-आराम को बेमानी साबित कर दिया था. राजकुमार ने सड़क पर एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक बीमार और एक शव को देखा था. उसे संसार से वैराग्य हो गया. आगे चलकर राजकुमार ने महल छोड़ दिया.
दर-दर भटकने के बाद उसे बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई. सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को ज्ञान दिया. राजकुमार सिद्धार्थ को बाद में गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की.
चौथी शताब्दी में बौद्ध धर्म तिब्बत पहुंचा. इसे लोगों के बीच पैठ बनाने में लंबा संघर्ष करना पड़ा. लेकिन जब लोगों ने बौद्ध धर्म का मर्म समझा, तो पूरा तिब्बत बदल गया. दलाई लामा अपनी आत्मकथा ‘Freedom in Exile’ में लिखते हैं,
तिब्बत के लोग स्वभाव से आक्रामक और युद्धप्रिय हैं, लेकिन बौद्ध धर्म ने उन्हें सबसे अलहदा बना दिया. जैसे-जैसे उनकी रुचि बौद्ध धर्म में बढ़ी, बाकी देशों से उनके संबंध राजनीतिक की बजाय आध्यात्मिक होते चले गए.
दलाई लामा की आत्मकथा.822 ईसवी में चीन और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण हो गया. अगले 400 साल तक सब ठीक-ठाक चला. लेकिन 1244 में मंगोलों ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया. मंगोलों के ही समय सन् 1391 में पहले दलाई लामा का जन्म हुआ. उनका नाम पेमा दोरजी था. दीक्षित होने के बाद उनको गेदुन द्रुपा के नाम से जाना गया.
बौद्ध धर्म की गेलुग शाखा के संस्थापक जे शोंग्खाप ने गेदुन द्रुपा को अपना शिष्य बना लिया. अपनी मौत से ठीक पहले शोंग्खाप ने गेदुन द्रुपा को कहा- मैं यहीं तक तुम्हें राह दिखा पाया. अब तिब्बत को आगे की राह तुम दिखाओगे.
गेलुग शाखा के बौद्ध भिक्षु पीले रंग की कलगीदार टोपी पहनते हैं. इसलिए उन्हें ‘येलो हैट’ शाखा के नाम से भी जाना जाता है.
मंगोल कनेक्शनदलाई लामा की पदवी मंगोल शासक अल्तान ख़ान ने 1557 ईसवी में शुरू की. मंगोलिया के एक प्रतापी राजा दलाई ख़ान के नाम पर. दलाई का अर्थ होता है, 'समंदर'. लामा का मतलब, 'गुरु'. जब दलाई लामा की उपाधि अस्तित्व में आई, उस समय सोनम ग्यात्सो तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु थे. वो तीसरे दलाई लामा घोषित हुए. गेदुन द्रुपा को मरणोपरांत ‘पहला दलाई लामा’ घोषित किया गया.1933 में 13वें दलाई लामा की मौत हो गई. नए दलाई लामा पिछले दलाई लामा के अवतार माने जाते हैं. मान्यता है कि मरने के बाद दलाई लामा, दूसरे शरीर में प्रवेश कर पुनर्जन्म लेते हैं. पता कैसे चलता है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म कहां हुआ है, ये बताने के लिए पंचेन लामा होते हैं. उन्हें ज्ञान का अवतार माना जाता है. तिब्बत में दलाई लामा के बाद दूसरे सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति.
13वें दलाई लामा थुब्तेन ग्यात्सो. 1933 में उनकी मौत हो गई. (साभार: Tibet Museum)13वें दलाई लामा की मौत के बाद, 9वें पंचेन लामा ने एक सपना देखा. उन्होंने उन संकेतों का अर्थ निकाला. एक सर्च कमेटी बनाई. सर्च कमेटी ने पूरे तिब्बत में तलाश की. आखिर में ताक्तसेर गांव में ल्हामो धोन्डुप नामक बच्चे में 14वां दलाई लामा मिल गया.दलाई लामा घोषित होने के बाद बच्चे को नया नाम मिला, तेन्ज़िन ग्यात्सो. उम्र के छठे साल में तेन्ज़िन की शिक्षा-दीक्षा ल्हासा के मठ में शुरू हुई. उनकी पढ़ाई का सिलेबस नालंदा परंपरा का था, जिसमें कुल 10 विषय होते थे. जिसमें जीवन के सारे तत्व शामिल होते थे. पढ़ाई पूरी होने के बाद दलाई लामा की परीक्षा ली जाती है.दलाई लामा को मशीनों से खेलने का बड़ा शौक था. उन्हें जो भी नई चीज़ दिखती, उसे खोलकर ठीक करने की कोशिश करने लगते. इस खेल में घड़ी उनका सबसे पसंदीदा खिलौना बन गया. ल्हासा के लोग चुपके से अपनी घड़ियां ठीक करने के लिए मठ में छोड़ जाते. दलाई लामा घड़ीसाज हो गए थे. इसी पसंद को देखते हुए, 1943 में अमेरिका के राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन डी. रुज़वेल्ट ने एक महंगी पटेक फ़िलिप घड़ी दलाई लामा के लिए भिजवाई थी. वो घड़ी आज भी उनके पास रखी हुई है. माओ की क्रांतिइधर ल्हासा के मठ में दलाई लामा की पढ़ाई चल रही थी, उधर चीन में माओ ज़ेदोंग की कम्युनिस्ट पार्टी और च्यांग काई-शेक की कुओमितांग पार्टी के बीच चीन पर कब्ज़े को लेकर गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. 1949 में माओ सफ़ल हो गए. उन्होंने कुओमितांग पार्टी को फ़ारमोसा द्वीप (अब ताइवान) में समेट कर रख दिया. 1 अक्टूबर, 1949 को कम्युनिस्ट पार्टी ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना की. माओ इसके चेयरमैन बने.चेयरमैन बनते ही माओ का ध्यान सीमाओं की तरफ़ गया. दक्षिण में तिब्बत उनके गले की हड्डी बना था. 1913 में 13वें दलाई लामा ने चीनी सेना को तिब्बत से खदेड़ दिया था और तिब्बत को स्वतंत्र मुल्क़ घोषित कर दिया. माओ ने तिब्बत को चीन में मिलाने की धमकी दी. अक्टूबर, 1950 में चीन ने अपनी सेना तिब्बत में उतार दी. अक्टूबर के तीसरे हफ़्ते तक तिब्बत की सेना ने सरेंडर कर दिया. चीन ने तिब्बत को अपना हिस्सा घोषित कर दिया. नवंबर के महीने में तिब्बत की सरकार ने दलाई लामा को ‘हेड ऑफ़ द स्टेट’ का पद ग्रहण करने के लिए बुलाया. तब दलाई लामा सिर्फ़ 15 वर्ष के थे. उस वक़्त तक उनकी अंतिम परीक्षा पूरी नहीं हुई थी.पीपल्स लिबरेशन आर्मी या PLA. ये चीन की सेना का आधिकारिक नाम है. PLA ने तिब्बत में जमकर तबाही मचाई. जहां-जहां उन्हें विरोध की चिनगारी दिखी, उसे उन्होंने कुचल दिया. मई, 1951 में बीजिंग में तिब्बती नेताओं और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच ‘17 सूत्रीय समझौते’ पर दस्तख़त किए गए. दलाई लामा ने बाद में कहा कि समझौते की सभी शर्तें चीन ने पहले ही तैयार करके रखी थीं और तिब्बत के प्रतिनिधियों को बोलने का मौका ही नहीं दिया गया.
1951 में चीन और तिब्बत के बीच 17 सूत्रीय समझौते पर दस्तख़त हुए.समझौते में चीन ने तिब्बत की स्वायत्तता बरकरार रखने की बात कही. वादा ये भी किया गया कि पुराने पदों को खाली नहीं कराया जाएगा. दलाई लामा की शक्तियों पर आंच नहीं आएगी. मठों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. कुल मिलाकर, जैसा चला आ रहा है, चलने दिया जाएगा. बदले में तिब्बत, चीन की सरकार के अंदर काम करेगा. राजधानी ल्हासा में एक प्रशासनिक और मिलिट्री यूनिट बनाई जाएगी. जो तिब्बत और चीन की सरकार के बीच पुल का काम करेगी. ये यूटोपिया की टोपी थी.वो चीन ही क्या, जो धोखेबाजी न करे! उसने वही किया, जो समझौते से इतर था. स्थानीय लोगों की आज़ादी पर पहरा लगा दिया गया. विरोधियों को टॉर्चर किया जाने लगा. जब चीनी जनरल गांवों में जाते, लोगों को जबरदस्ती तालियां बजाने का हुक्म दिया जाता. उनका स्वागत करने के लिए कहा जाता. तिब्बत की संस्कृति पर भी हमला करने की कोशिश की गई. इससे लोगों में गुस्सा पनपा. उन्होंने खुलकर विरोध किया. बदले में, चीनी सरकार ने दमन तेज कर दिया.दलाई लामा इस छल से बहुत आहत थे. उन्होंने बीजिंग संदेश भिजवाया. चेयरमैन माओ से मिलने का. जुलाई, 1954 में दलाई लामा अपने साथियों के साथ बीजिंग की यात्रा पर निकले. सड़क के रास्ते. बीजिंग में उनकी मुलाक़ात चेयरमैन माओ, प्रीमियर झाऊ एन लाई और 1989 में तियानमेन स्क्वायर में प्रदर्शनकारियों पर टैंक चलवाने वाले सुप्रीम लीडर डेंग जियाओ पिंग से भी हुई.
बीजिंग में माओ के साथ दलाई लामा, 1954-55. (साभार: Tibet Museum)दलाई लामा ने माओ से एक अपील की. क्या? तिब्बत चीन के अंदर रहने को तैयार है, बशर्ते चीन 17 सूत्रीय समझौते का पालन करे और तिब्बत की संस्कृति को नुकसान न पहुंचाए. माओ ने सिगरेट का धुआं उड़ाते हुआ कहा,
दलाई लामा! धर्म एक अफ़ीम है. ये लोगों में ज़हर भर देता है. तिब्बत और मंगोलिया में इस ज़हर को मैं साफ़ करूंगा.
दलाई लामा की बीजिंग यात्रा का कोई नतीजा नहीं निकला.दलाई लामा को भारत में किडनैप किसने किया?नवंबर, 1956. बुद्ध के जन्म की 2500वीं सालगिरह. दलाई लामा पहली बार भारत के दौरे पर आए. यहां उन्हें अपार समर्थन मिला. वो जहां भी गए, हज़ारों चाहने वालों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. कई बार तो ऐसा लगता कि भीड़ एक झलक पाने के लिए उनकी जीप तक पलट देगी. इसी समारोह में हिस्सा लेने चीनी प्रीमियर चाऊ एन लाई भी भारत आए.ब्रिटिश लेखक अलेक्ज़ेंडर नॉर्मन तिब्बत के इतिहास के जानकार हैं. उन्होंने 2019 में दलाई लामा की जीवनी लिखी. दलाई लामा: एन एक्सट्रा-ऑर्डिनरी लाइफ़. इसमें 1956 के पहले भारत दौरे पर हुई एक रोचक घटना का ज़िक्र है.
दलाई लामा ट्रेन से नई दिल्ली पहुंचे. उन्हें अपने साथियों के साथ हैदराबाद हाउस में ठहरना था. जब वो ट्रेन से उतरे, भारत में चीन का राजदूत उनसे मिला. चीनी राजदूत बात करते-करते उनको अपनी कार तक ले गया. दलाई लामा को कार में बिठाया गया और उसके बाद कार का इंजन सीधा चीन के दूतावास में बंद हुआ.
भारत सरकार ने दलाई लामा और उनके साथियों को लाने के लिए सरकारी गाड़ियां भेजी थीं. जब सारी कारें हैदराबाद हाउस में इकट्ठी हुईं और वहां दलाई लामा नहीं दिखे, तब हंगामा मच गया. फिर देश-विदेश के कई ख़ास दफ़्तरों के फ़ोन बजे. तब जाकर पता चला कि दलाई लामा को चीन के दूतावास में रखा गया है. वहां चीनी प्रीमियर चाऊ एन लाई ने धमकी तक दे दी थी कि भारत से संबंध रखोगे, तो कुछ भी हासिल नहीं होगा. भारत सरकार के दबाव के बाद दलाई लामा को दूतावास से छोड़ा गया.
अलेक्ज़ेंडर नॉर्मन लंबे समय तक दलाई लामा के साथ रहे हैं.इस दौरे पर दलाई लामा प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से भी मिले. चर्चा हुई. तिब्बत के मसले पर नेहरू ने कोई वादा करने से इनकार कर दिया. 1954 में भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौता किया था. इसमें एक शर्त ये भी थी कि भारत और चीन एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दख़ल नहीं देंगे.11 हफ़्ते तक भारत में रहने के बाद दलाई लामा वापस गए. तब तिब्बत की स्थिति और भी खराब हो चुकी थी. चीनी सेना की ओर से दमन बढ़ गया था. उनकी प्रशासनिक और सैन्य इकाई, राजधानी के दायरे से बाहर जा चुकी थी. मई, 1958 से फ़रवरी, 1959. दलाई लामा की परीक्षा हुई. 45 विद्वानों की टीम से उनका शास्त्रार्थ हुआ. दलाई लामा ने सबसे अच्छे ग्रेड से ये परीक्षाएं पास कीं. उन्हें ‘गेशे ल्हारम्पा’ की डिग्री मिली. इसी दिन उनकी औपचारिक शिक्षा पूरी हो गई.भारत में निर्वासन10 मार्च, 1959. ल्हासा का नोर्बुलिंग्का पैलेस. महल के बाहर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. धीरे-धीरे ये संख्या हज़ारों में पहुंच गई. स्थानीय लोग दलाई लामा से एक आश्वासन मांग रहे थे. वो दलाई लामा से एक वाक्य सुनना चाहते थे. क्या? वो चाइनीज़ आर्मी के कैंप में नहीं जाएंगे. दरअसल, ल्हासा में चीनी आर्मी के कैंप में एक रंगारंग कार्यक्रम रखा गया था. इसमें दलाई लामा को अकेले आने के लिए कहा गया. चाइनीज़ आर्मी दलाई लामा की हत्या का प्लान बना रही थी. दलाई लामा के न रहने का मतलब होता, नेतृत्व-विहीन तिब्बत.दलाई लामा ने लोगों की बात मान ली. वो नहीं गए. अगले दिन से हिंसक विद्रोह शुरू हो गया. 15 मार्च को चीनी सेना उनके महल तक पहुंच गई. दलाई लामा के सलाहकारों ने उन्हें तिब्बत छोड़ने की सलाह दी. 17 मार्च, 1959 की रात को चीनी सैनिक के भेष में दलाई लामा ने महल छोड़ दिया और दक्षिण की तरफ़ निकल आए.
दलाई लामा के पैलेस के बाहर खड़ी भीड़. 10 मार्च, 1959. (साभार: Tibet Museum)अब उन्हें हिमालय के अज्ञात दर्रों और ब्रह्मपुत्र की लहराती नदियों को पार करना था. लेकिन उससे भी बड़ी बाधा थी, रेड आर्मी के सिपाहियों की बंदूकों को मात देना. उनका दल रात में सफ़र करता. अंधेरे में भी वो टॉर्च नहीं जलाते थे. दिन में किसी पहाड़ की खोह में छिपे रहते. या किसी मठ में शरण ले लेते.जब तक दलाई लामा और उनका दल भारत नहीं पहुंचा, दुनिया सांस थामे इंतज़ार कर रही थी. उन्हें लगता, किसी भी वक़्त दलाई लामा और उनके साथियों की हत्या की ख़बर आती ही होगी. 31 मार्च को ख़बर आई कि दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ में पहुंच गए हैं. पूरी दुनिया ने चैन की सांस ली. चीन ने कहा, दलाई लामा ने धोखा दिया है.
टाइम मैगज़ीन ने 20 अप्रैल, 1959 के अंक के कवर पर दलाई लामा की तस्वीर छापी और लिखा,
THE ESCAPE THAT ROCKED THE REDS
एक पलायन जिसने चीन को भौंचक्का कर दिया
टाइम मैगज़ीन का कवर.उधर चीन में ख़बर फैली, तो कोहराम मच गया. चीनी सेना ने तिब्बत में तहलका मचाना जारी रखा. दलाई लामा के महल पर गोले दागे गए. वहां माओ की आदमकद तस्वीर टांग दी गई. दलाई लामा का नाम लेने पर पाबंदी लगा दी गई. 15 साल से अधिक उम्र के लोगों को चीन की जेलों में ले जाया गया. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, जब विद्रोह शांत हुआ, तब ल्हासा की सड़कों पर लाशें पटी पड़ी थीं. उन लाशों को बाद में जला दिया गया. 12 घंटे तक आग की लपटें आसमान को छूती रहीं.नेहरू ने तब तक दलाई लामा को भारत में शरण देने की घोषणा कर दी थी. भारत सरकार के अधिकारियों ने उनका स्वागत किया. अप्रैल में वो मसूरी के बिड़ला हाउस पहुंचे. वहां एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई गई. उसमें उन्होंने 17 सूत्रीय समझौते को ख़ारिज़ कर दिया. बिड़ला हाउस में उनकी मुलाक़ात प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से भी हुई. नेहरू ने धर्मशाला में तिब्बती लोगों के रहने के लिए ज़मीन दी. तिब्बतियों को ‘रिफ़्यूज़ी’ का स्टेटस दिया गया.
निर्वासन में दलाई लामा.दलाई लामा ने अपने एक अधिकारी को बुलाया. बोले, धर्मशाला जाओ और पता करो वहां की ज़मीन कैसी है. कुछ हफ़्ते धर्मशाला में रहने के बाद, अधिकारी वापस आया. उसने कहा, धर्मशाला का पानी यहां के दूध से भी मीठा है. दलाई लामा मुस्कुराने लगे. उन्होंने कहा, फिर देर किस बात की, धर्मशाला चलते हैं. अप्रैल, 1960 में दलाई लामा लगभग 80,000 तिब्बतियों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला पहुंचे. वहीं से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है. तिब्बत के लोग, भारत के रस में घुल गए. उन्होंने अपना स्वाद बरकरार रखा है और भारत की गरिमा भी.1966 में चीन में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत हुई. मकसद था, पुरानी परंपराओं और वर्गों को जड़ से मिटा देना. ये आग तिब्बत में भी पहुंची. सैकड़ों की संख्या में बौद्ध मठ तोड़ दिए गए. बौद्ध परंपरा की अमूल्य कृतियों को जला दिया गया. मठों में घुसकर भिक्षुओं को टॉर्चर किया गया. बड़ी संख्या में चीन के मूल ‘हान’ लोगों को तिब्बत में बसाया गया. इरादा था, स्थानीय संस्कृति पर हावी होना. तिब्बत में दलाई लामा की तस्वीर को बैन कर दिया गया. जिस किसी के घर में फ़ोटो दिखती, उन्हें बिना सुनवाई के जेल में डाल दिया जाता. जेल में यातनाओं की लंबी और ख़ौफ़नाक दास्तान हैं. चीनी आर्मी ने क्रूरता की सारी सीमाओं को पार कर दिया.
तिब्बत में सांस्कृतिक क्रांति का असर. (साभार: Tibet Museum)सितंबर, 1979. निर्वासन में रहते हुए दलाई लामा ने पांच सूत्रीय योजना पेश की. उन्होंने मांग रखी कि चीन बाहरी लोगों को बसाकर तिब्बत के मूल को न बिगाड़े. न्यूक्लियर कचरे को तिब्बत में न डंप करे. मानवाधिकारों की रक्षा. और आगे के संबंधों के लिए बातचीत शुरू करे. चीन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
तिब्बत की आज़ादी के लिए अहिंसक संघर्ष को दुनिया सलाम करती है. 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल प्राइज़ मिला. उन्हें ‘विश्व शांति का सबसे ख़ास प्रवक्ता’ कहा गया. 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें ‘गांधी का बेटा’ कहकर संबोधित किया. नोबेल प्राइज़ मिलने के बाद उनके प्रयासों को बुलंदी मिली.
दलाई लामा को 1989 में शांति के नोबेल प्राइज़ से नवाजा गया.14 मई, 1995 को दलाई लामा ने 11वां पंचेन लामा चुना. छह साल का गेझुन ल्योकी न्यीमा. तीन दिनों के बाद ही वो बच्चा परिवार समेत गायब हो गया. उसके बाद उसे किसी ने कभी नहीं देखा. उसके बाद चीन ने अपना पंचेन लामा बिठाया. तिब्बत के लोगों ने चीनी कठपुतली को मानने से इनकार कर दिया. मई, 2011 में दलाई लामा केंद्रीय तिब्बत प्रशासन से रिटायर हो गए. अब उनकी भूमिका अभिभावक की है. उन्होंने कहा है कि अगला दलाई लामा लोगों के मत से चुना जाएगा.
चीन की ज़्यादतियों पर दलाई लामा कहते हैं,
‘मैं उनसे नाराज़ नहीं हूं. वो अपने कर्मों का फल भोगेंगे. मुझे उनसे सहानुभूति है.’
दलाई लामा भारत से दुनिया तक पहुंचे. उनके विचार, उनका दर्शन, उनका ज्ञान दुनिया को अभिभूत करता है. वे पूरी दुनिया को एक सूत्र में बांधने का इरादा रखते हैं. उस धागे का नाम मानवता है. उनके पास संसार की हर एक समस्या का इलाज़ है. दया, अहिंसा और शांति. उनकी हंसी बहुत ही खूबसूरत है. 6 जुलाई, 2021 को दलाई लामा 86 बरस के हो गए. इस उम्र में भी उनकी निश्छल हंसी आप में प्राण फूंक देगी.
एक मुस्कान जो प्राण फूंकने के लिए काफ़ी है.‘दलाई लामा’ को ‘हर इच्छा को पूरा करने वाला रत्न’ भी माना जाता है. लेकिन ‘तिब्बत की आज़ादी’ का सपना अभी कोसों दूर है. आज भी चीन का दमन जारी है. तिब्बत में खुले पंखों की उड़ान बाकी है. तमाम नाउम्मीदियों के बीच उनकी कही एक बात याद आती है,
Change is eternal. (परिवर्तन अविनाशी है)
तब दलाई लामा का एक मतलब और दिमाग में आता है. दलाई लामा, माने युद्ध पर बुद्ध की विजय की अमिट लक़ीर.
वीडियो देखें : तिब्बत पर चीन के कब्जे और पंचेन लामा के किडनैपिंग की कहानी