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'उत्तर भारत में कांग्रेस साफ' और इसके विरोध में वोट प्रतिशत वाला तर्क कितना दमदार है?

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजे हमने 3 दिसंबर को देखे ही. थोड़ा सा और पीछे चलते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वाकई में उत्तर भारत से कांग्रेस साफ हो गई है या उसके वोटिंग पर्सेंटेज वाले तर्क में कोई उम्मीद छिपी है.

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2019 लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर भारत में कांग्रेस की 4 राज्यों में सरकार थी, अब सिर्फ एक में है. (फाइल फोटो- PTI)

कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी जयराम रमेश ने 4 दिसंबर की सुबह एक ट्वीट किया. इसका मजमून कुछ ऐसे समझिए कि तीन राज्यों की हार से दुखी तो हैं, लेकिन नाउम्मीद नहीं हुए हैं. ट्वीट में उन्होंने विस्तार से चुनाव का गणित समझाने की कोशिश की. कांग्रेस और बीजेपी का वोट प्रतिशत दिखाया और कहा कि उनकी पार्टी, बीजेपी से बहुत पीछे नहीं है. इसे खुद को सांत्वना पुरस्कार देना भी कह सकते हैं. क्योंकि तीनों राज्यों के कांग्रेस को बीजेपी से आधी सीटें ही नसीब हुईं.

कहा जा रहा है कि ट्वीट के ज़रिए जयराम शायद उन लोगों को जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने चुनाव नतीजों के बाद ये घोषित कर दिया था कि कांग्रेस अब उत्तर भारत से साफ हो गई है. टीवी चैनल्स की डिबेट से लेकर सोशल मीडिया तक ये मुनादी कर दी गई कि उत्तर भारत में कांग्रेस अब साफ हो चुकी है. आम आदमी पार्टी ने तो खुद को उत्तर भारत में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का दर्जा तक दे दिया.

लेकिन इन दोनों ही दावों में दम कितना है?

उत्तर भारत से साफ हुई कांग्रेस?

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजे हमने 3 दिसंबर को देखे ही. थोड़ा सा और पीछे चलते हैं. 2022 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और पंजाब में चुनाव हुए. तीनों राज्यों में से पंजाब एक मात्र कांग्रेस शासित प्रदेश था. यूपी में कांग्रेस का वजूद बहुत पहले से लगभग खत्म था. चुनाव में उसे 2 सीटें मिलीं. और 403 सीटों वाले राज्य में देश की सबसे पुरानी पार्टी को वोट भी केवल 2.3 प्रतिशत मिले. इससे पहले 2017 के चुनाव में 6.25 प्रतिशत वोट मिले थे. 

उत्तराखंड में द्विपक्षीय मुकाबला था. लेकिन कांग्रेस को 19 सीटोंं से ही संतोष करना पड़ा. बीजेपी ने सरकार रिपीट की. हालांकि, कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा. 2017 में उसे 33.5 पर्सेंट वोट मिले थे जो 2022 में 37.91 प्रतिशत हो गए. बीजेपी को उससे 6 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले.

लेकिन कांग्रेस की सबसे ज्यादा भद्द पिटी पंजाब में, जहां उसकी सरकार थी. 117 विधानसभाओं वाले इस राज्य में कांग्रेस को मिलीं सिर्फ 18 सीटें और यहां पहली बार आम आदमी पार्टी ने अपनी सरकार बनाई. यहां कांग्रेस का वोट शेयर 38.64 पर्सेंट से गिरकर 23 प्रतिशत रह गया.

2022 के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव हुए. गुजरात में दो दशक से ज्यादा से बीजेपी की सरकार है. इस बार भी रिपीट हुई. लेकिन हिमाचल में कांग्रेस बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में कामयाब हो गई. यहां कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिले. जबकि बीजेपी को 43 प्रतिशत. कांग्रेस ने 40 सीटें जीत कर सरकार बनाई और बीजेपी 25 पर ही लटक गई.

अब लौटते हैं, अभी हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों पर. तीनों राज्यों में इस बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. और एमपी में तो 'भगवा दल' को प्रचंड बहुमत मिला है. 2018 में इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. हालांकि, 2020 में सिंधिया गुट के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद एमपी में कांग्रेस की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.

इस बार कांग्रेस को राजस्थान में 39.5 फीसदी वोट मिला है. 2018 में 39.3 फीसदी वोट मिले थे. एमपी में इस बार 40.4 फीसदी वोट मिले, पिछली बार 41 फीसदी मिले थे. छत्तीसगढ़ की बात करें तो इस बार कांग्रेस को 42.23 प्रतिशत वोट मिले. 2018 में 43.1 प्रतिशत वोट मिले थे. तीनों ही राज्यों में कांग्रेस को या तो पिछली बार से ज्यादा वोट मिले या फिर लगभग बराबर.

वोट प्रतिशत को देखते हुए ही जयराम रमेश और अन्य कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि ये कहना गलत होगा कांग्रेस को सीधे तौर पर जनता ने खारिज कर दिया. जाहिर तौर पर विरोधियों के लिए जयराम रमेश की बात चुनावी हार की शर्मिंदगी से बचने का तर्क है. अगर बीजेपी या दूसरे विरोधी दल चुनाव हारते तो वे भी इसी तरह की बातें करते.

लेकिन क्या कांग्रेस को इतने से संतोष कर लेना चाहिए कि सरकार भले न बनी हो, वोट प्रतिशत बरकरार है. इस पर हमने बात की CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार से. दशकों से चुनावों का आंकलन कर रहे संजय कुमार कहते हैं,

"जिन राज्यों में कांग्रेस हारी वहां द्विपक्षीय मुकाबला था. कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से थी. कोई क्षेत्रीय दल नहीं था. लेकिन कांग्रेस को हार मिली. क्योंकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत उतना ही रहा, लेकिन बीजेपी का वोट शेयर बढ़ गया. यही वजह थी कि बीजेपी को सीटें ज्यादा मिलीं. ऐसे में वोट प्रतिशत से संतोष करने से बात नहीं बनेगी. चुनावी राजनीति में सीटें मायने रखती हैं, वोट प्रतिशत नहीं."

संजय आगे कहते हैं,

“अगर इसी आधार पर देखेंगे तो बीजेपी को कर्नाटक में उतने ही वोट मिले जितने 2018 में मिले थे. लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए. इसलिए वोट प्रतिशत से कांग्रेस खुद को सांत्वना जरूर दे सकती है. लेकिन इसमें खुश होने जैसा कुछ नहीं है.”

कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 36 फीसदी वोट मिले थे. जितने पिछले चुनाव में मिले थे. लेकिन बीजेपी की 38 सीटें कम हो गईं. और कांग्रेस ने 55 सीटें खींचकर 135 सीटों के साथ सरकार बना दी. इस बार भगवा पार्टी को 66 सीटें ही मिलीं. जबकि उतने ही वोटों में पिछले चुनाव में 104 सीटें मिलीं थी. 

दूसरा उदाहरण के रूप में पिछले साल हुआ हिमाचल प्रदेश का चुनाव भी देखा जा सकता है. वहां कांग्रेस और बीजेपी के वोट शेयर में सिर्फ 0.9 फीसदी का अंतर था. लेकिन कांग्रेस को बीजेपी से 15 सीटें ज्यादा मिली थीं. पार्टी ने 40 सीटें जीतकर सरकार बनाई और बीजेपी 25 पर जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी.

हालांकि, उत्तर भारत में कांग्रेस के साफ होने के दावों को संजय कुमार खारिज करते हैं. उनके मुताबिक ऐसा कहना गलत होगा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है, लेकिन उन्हें वोट मिले हैं. इसलिए इस तरह के घोषणा करना जल्दबाजी होगी.

पिछले 5 साल के चुनावों पर नज़र डालें तो 2019 के चुनाव से पहले उत्तर भारत के चार राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी. पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में थी. लेकिन एक-एक करके सारे राज्य छिन गए. मध्यप्रदेश में जोड़-तोड़ में सरकार गई. और बाकी राज्यों में चुनाव हार गई. एमपी में इस बार और भी बुरी स्थिति रही. नतीजा ये हुआ कि हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तर भारत के किसी भी राज्य में अब कांग्रेस का शासन नहीं है.

इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई कहते हैं,

"ये नहीं कहा जा सकता कि उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया है. अगर रणनीति बेहतर बनाएंगे तो अभी भी पार्टी के पास मौके हैं. लेकिन कांग्रेस अगर हर राज्य में नंबर पर आकर ही खुश होना चाहती तो कुछ नहीं हो सकता? दो राज्यों में उनकी सरकार चली गई है. वोट प्रतिशत देखकर सांत्वना देने से चुनावी राजनीति में सफलता नहीं मिलती. सरकार बनाने के लिए आपको बहुमत हासिल करना होगा. वोट प्रतिशत से काम नहीं चलेगा."

उत्तर भारत में अगले साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. तब तक कांग्रेस को हिमाचल से ही संतोष करना पड़ेगा. लेकिन हरियाणा से पहले 2024 लोकसभा की कड़ी परीक्षा भी है. 

जो बात राजदीप और संजय कुमार कह रहे हैं, वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी उससे आगे चेता रही हैं. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद नीरजा ने इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने आर्टिकल में लिखा,

“उत्तर भारत में कांग्रेस का सिमटना उनके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है. दक्षिण के राज्यों में भले ही कांग्रेस अपना दायरा बढ़ा रही हो. लेकिन लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत जीते बिना काम नहीं चलेगा." 

नीरज लिखती हैं कि 2026 में डीलिमिटेशन यानी परिसीमन होना है. यानी राज्यों में सीटें घटेंगी-बढ़ेंगी. और दक्षिण भारत के राज्यों में सीटें कम होंगी. जबकि हिंदी भाषी राज्यों जैसे यूपी, राजस्थान, छ्त्तीसगढ़ में सीटें बढ़ेंगी. यानी वोट प्रतिशत वाला तर्क हमेशा काम नहीं आएगा.