
जब बंसीलाल 1968 में मुख्यमंत्री बने, तो एसके मिश्रा उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी बने.
बहरहाल. बंसीलाल ने पहली दो मर्तबा मुख्यमंत्री रहते हुए हरियाणा में तेजी से काम करवाए. इसमें साउथ हरियाणा में सिंचाई का काम, सड़कों का काम और बिजली अहम हैं. तब उनके मुख्य विरोधी थे चौधरी देवीलाल. जिनका ये दावा था कि मैंने ही बंसीलाल को सीएम बनवाया. हालांकि बंसीलाल सीएम बने थे बतौर राज्यसभा सांसद दिल्ली में की गई फील्डिंग के चलते. तब वह गुलजारी लाल नंदा के खासे करीबी हो गए थे. नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे (नेहरू और शास्त्री की मौत के बाद) और फिर इंदिरा सरकार में गृह मंत्री भी. 1968 में हरियाणा के दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सबको लग रहा था कि भगवत दयाल शर्मा एक बार फिर सीएम बनेंगे. मगर जाट ब्लॉक ने उनके नाम पर वीटो कर दिया. फिर नाम आया चौधरी रणबीर सिंह का. (भूपिंदर हुड्डा के पिता). उन्हें भगवत दयाल पसंद नहीं करते थे. ऐसे में कंप्रोमाइज कैंडिडेट के तौर पर बंसीलाल पेश किए गए. बंसीलाल भगवत दयाल को अपना गुरु कहते थे. शर्मा को लगा कि छोरा उनके काबू में रहेगा. मगर कुछ ही महीनों में भगवत दयाल की आंख खुल गई. चेला तो अपनी रफ्तार से काम कर रहा था. उन्होंने खूब विरोध किया, पार्टी भी छोड़ी, पर बंसीलाल की सेहत और सरकार पर असर नहीं पड़ा. उन्हें इंदिरा सरकार का लगातार समर्थन हासिल था.

देवीलाल का दावा था कि उन्होंने ही बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनवाया था.
अब लौटते हैं एसके मिश्रा पर. जो बतौर सेक्रेट्री पीएमओ रिटायर हुए. वह बताते हैं कि बंसीलाल के दौर में किए गए कामों से देवीलाल नाराज थे. मगर ये ताऊ की नाराजगी थी. कुछ सात्विक किस्म की. वो अकसर कहते, काम तो मिश्रा करता है, नाम बंसीलाल का होता है.

एसके मिश्रा (बीच में) तीन मुख्यमंत्रियों बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रह चुके हैं.
देवीलाल कभी कभी बहुत पारदर्शी हो जाते थे. अपनी दुश्मनी में भी. इसका एक उदाहरण मिश्रा ने दिया. देवीलाल उन दिनों सांसद भी नहीं थे. बात 1991 के दौर की है. केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी. प्रस्ताव हुआ कि एसके मिश्रा को यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन का मेंबर बनाया जाए. जब देवीलाल को ये पता चला तो उन्होंने विरोध में राव को पत्र लिखा. देवीलाल का तर्क था कि कमीशन में उन्हीं लोगों को भेजना चाहिए जो रूरल बैकग्राउंड के हों. साथ में उन्होंने यह भी लिखा कि बिलाशक एसके मिश्रा की प्रशासनिक क्षमताएं काबिल तारीफ हैं, मगर उन्हें ये नियुक्ति नहीं मिलनी चाहिए.

देवी लाल ने एसके मिश्रा को केंद्र में कृषि मंत्री रहते हुए कृषि सचिव भी बनाया था.
देवीलाल मिश्रा को अच्छा एडमिनिस्ट्रेटर मानते थे. इसका एक प्रमाण ये भी है कि उन्होंने जिस मिश्रा को अपनी बतौर मुख्यमंत्री पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ठीक कर देने की बात कही थी, बाद में उसे ही अपना प्रिंसिपल सेक्रेट्री बनाया. इतना ही नहीं, जब चौधरी देवीलाल देश के कृषि मंत्री थे, तब उन्हें एग्रीकल्चर सेक्रेट्री भी बनाया.
अब आखिरी बात इस प्रसंग की. एसके मिश्रा को यूपीएससी के खत के बारे में किसने बताया. जवाब है, खुद देवीलाल ने.
(ये प्रसंग राम वर्मा की किताब लाइफ इन द आइएएस- माई एनकाउंटर्स विद द थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा से. इसे पब्लिश किया है रूपा पब्लिकेशंस ने. )
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