शुरुआत 1969 से.
20 जुलाई 1969 को अमेरिका का अपोलो 11 स्पेसक्राफ्ट चांद पर उतरा. और इसके चंद घंटे बाद ही नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ‘बज़’ एल्ड्रिन ने चांद पर पहला कदम रखा. चांद पर कुछ कदम चलने के बाद आर्मस्ट्रांग ने ह्यूस्टन को एक संदेश भेजा,
"One small step for man, One giant leap for mankind.”यानी
‘आदमी के लिए एक छोटा सा कदम, मानवता के लिए एक बड़ी छलांग’

बज़ ऑल्ड्रिन (दाएं), नील आर्मस्ट्रांग (बाएं) माइकल कॉलिन्स (बीच में). माइकल कमांड मॉड्यूल पायलट थे और उन्होंने चांद पर कदम नहीं रखा. (तस्वीर: AP)
लेकिन ये पहचान सिर्फ़ तब तक रही, जब तक वो चांद पर थे. चांद से लौटते हुए अपोलो 11 ने जैसे ही धरती के वातावरण में प्रवेश किया, मानवता की पहचान नेपथ्य में चली गई. अब वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अमेरिकी थे. दुनिया का और कोई देश उन्हें अपना नहीं कह सकता था. ड्रीम ऑफ़ मून उस समय दुनिया के दूसरे छोर पर स्थित नया-नया आज़ाद हुआ एक देश अपनी ज़मीन टटोल रहा था. इस देश को हम अपनी मां कहते हैं, पर अगर इस मां की अपनी कोई मां होती, तो कहती, दुनिया चांद पर पहुंच गई है और तुम क्या कर रहे हो?
भारत क्या कर रहा था? भारत तैयारी कर रहा था. तैयारी जिसके फलस्वरूप सिर्फ़ 40 सालों में वो चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया. हम चंद्रयान की बात कर रहें हैं. 2019 में लांच हुए दूसरे चंद्रयान मिशन के बाद इसे चंद्रयान-1 के नाम से जाना जाता है.
इस मिशन की शुरुआत हुई 1999 में. उस साल इंडियन अकादमी ऑफ साइंस की बैठक में पहली बार इस पर बात हुई. इसी के बाद इसरो ने मून मिशन को लेकर परीक्षण आदि शुरू कर दिए. मिशन का आधिकारिक ऐलान हुआ 4 साल बाद 15 अगस्त, 2003 को. प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी लालक़िले की प्राचीर से ऐलान किया कि भारत चांद पर एक मिशन भेजेगा. मिशन को नाम दिया गया चंद्रयान.
ऐलान हो चुका था. लेकिन ये काम आसान नहीं था. दुनिया भर में इस तरह के मिशन का सक्सेस रेट बहुत कम हुआ करता था. मिशन बहुत मुश्किल था और धरती से चांद की दूरी 3.8 लाख किलोमीटर. इसके अलावा ये ISRO का पहला इंटर-प्लेनेटेरी मिशन था. लांच टू द मून 4 साल, 386 करोड़ रुपये की लागत और वैज्ञानिकों की जी तोड़ मेहनत के बाद वो दिन आख़िर आ ही गया. तारीख़ - 22 अक्टूबर, 2008. जगह- सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र, श्री हरिकोटा. उस दिन का हाल देखिए-
सुबह के पांच बज़ रहे हैं. 200 वैज्ञानिकों की टीम रात भर जगी हुई है. पिछले 3 दिनों की भारी बारिश के बाद आज मौसम साफ़ रहने के आसार हैं. चंद्रयान को PSLV-C II के द्वारा लांच किया जाना है. जिसे इसरो का ‘वर्कहॉर्स’ कहा जाता है. इसे ये नाम मिला है अपनी कंसिसटेंसी के कारण. लांच का समय नज़दीक है और तभी वैज्ञानिकों को पता चलता है कि लांच Vehicle से फ़्यूल लीक हो रहा है. 200 लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें कुछ और गहरी हो गई हैं. लांच विंडो के लिए सिर्फ़ आधे घंट का समय नियत है. फटाफट एक टीम असेंबल कर फ़्यूल लीक की जांच करने भेजी जाती है. क़िस्मत कहिए या भगवान का आशीर्वाद, कुछ ही देर में सब ठीक हो जाता है. और 6 बजकर 22 मिनट पर PSLV-C II चंद्रयान को लेकर उड़ान भारत है.
नोट: 1994 से लेकर 2017 तक PSLV, 49 भारतीय और 209 विदेशी उपग्रहों को लांच कर चुका है.

चंद्रयान 1 के मिशन डायरेक्टर, एम अन्नादुरई (फ़ाइल फोटो)
चंद्रयान मिशन के डायरेक्टर थे एम अन्नादुरई. वो बताते हैं,
‘उस दिन वहां शायद ही कोई कम्प्यूटर मॉनिटर था, जिस पर किसी देवी-देवता की तस्वीर ना हो. सब लोग हाथ जोड़कर अपने-अपने इष्ट से प्रार्थना कर रहे थे. तिरूपति के वेंकटाचालापथी मंदिर से प्रसाद के लड्डू मंगाए गए थे.’चंद्रयान का लांच सिर्फ़ शुरुआत थी. अगले कुछ दिनों तक वैज्ञानिकों ने चन्द्रयान की ट्रेजेक्टरी पर नज़र बनाए रखी. यान को चंद्रमा तक पहुंचने में पूरे 17 दिनों को वक्त लगा. नवम्बर 8, 2008 को चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया. रीचिंग द मून चंद्रयान के दो हिस्से थे. ऑर्बिटर और मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP). ऑर्बिटर को चांद की कक्षा पर रहना था और MIP को चांद की सतह से टकराना था. ऑर्बिटर जब चांद की कक्षा में स्थापित हो गया तो मिशन का दूसरा हिस्सा शुरू किया गया. इसके तहत MIP को ऑर्बिटर से अलग होकर चांद से टकराना था. ये काम किया जाना था चांद के दक्षिणी ध्रुव पर. क्यों?
दरअसल चांद के पोलर रीज़न में कई सारे क्रेटर मौजूद हैं. करोड़ों सालों से सूरज की रोशनी इन क्रेटर तक नहीं पहुंच पाई है. वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि चंद्रमा के बनने के दौरान इस हिस्से पर जमी बर्फ़ अभी तक मौजूद हो सकती है. 18 नवंबर, 2008 को MIP ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह से टकराया. इस दौरान वो क्रेटर की सतह के काफ़ी अंदर तक पहुंचा. जहां से उसने ऑर्बिटर को ज़रूरी डेटा भेजना शुरू कर दिया.

बंगलुरु के ISRO रिसर्च सेंटर में तैयारी की लास्ट स्टेज में चंद्रयान. इसके बाद यान को श्री हरिकोटा ले ज़ाया गया (तस्वीर: AFP)
अगले 312 दिनों तक यान ने चंद्रमा की 3400 से ज्यादा परिक्रमाएं की. इस दौरान वैज्ञानिकों को बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियां हाथ लगीं. मसलन, चांद की सतह पर मैग्निशियम, एल्युमिनियम और सिलिकॉन की मौजूदगी. मैपिंग और टोपोग्राफी की मदद से चंद्रमा का वैश्विक मानचित्र तैयार किया गया. जो इस मिशन की एक और बड़ी उपलब्धि थी.
लेकिन इसकी मिशन की सबसे बड़ी सफलता का ऐलान बाक़ी था. हालांकि ऐलान से पहले ही चंद्रयान में कुछ तकनीकी ख़राबी आ गई और उसने डेटा भेजना बंद कर दिया. आज ही के दिन यानी 30 अगस्त 2009 को इसरो ने चंद्रयान मिशन बंद करने की घोषणा की. बैक टू अर्थ मिशन दो साल की अवधि तक चलना था, जिसे चंद्रयान पूरा नहीं कर पाया. इसके बावजूद इसने मिशन के 95% प्लान के 'प्लांड ऑब्जेक्टिव' को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. अब बारी थी डेटा प्रोसेसिंग की. हाई रेजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग उपकरणों की मदद से MIP ने जो डेटा भेजा था. उससे वैज्ञानिकों का अंदेशा सही साबित हुआ. 25 सितंबर 2009 को इसरो ने एक घोषणा की. भारत न केवल पहली ही बार में चंद्रमा तक पहुंचने में सफल हुआ था, बल्कि उसके चांद पर पानी की खोज कर डाली थी.
बैलगाड़ी में लांच एक्सप्लोरेशन के हिस्से ले जाने को लेकर दुनिया जिसका मज़ाक़ उड़ाती थी. उसी इसरो ने स्पेस एक्सप्लोरेशन के क्षेत्र में एक नया फ़्रंटियर खोल दिया था. इस मिशन की सफलता ने इसरो के हौसलों को बुलंद किया. चन्द्रयान-1 की सफलता ने ही मंगलयान और चंद्रयान 2 मिशन की नींव रखी.
2017 में चंद्रयान दुबारा पिक्चर में आया. उन दिनों नासा एक इंटरप्लेनेटरी रडार टेक्नॉलजी का परीक्षण कर रहा था. जो लाखों मील दूर एस्टेरॉइड्स को खोजने के काम में इस्तेमाल की जानी थी. इस दौरान वैज्ञानिकों को चांद के ऑर्बिट में घूमती एक चीज़ के सिग्नल मिले. पता चला कि ये चंद्रयान था जो अभी भी वहीं मौजूद था. बियॉन्ड द मून इसरो के स्पेस प्रोग्राम आज पूरी दुनिया में एक अलग स्थान बनाए हुए हैं. फिर चाहे वो सबसे कम लागत पर चांद पर पहुंचना हो या मंगल पर. 2022 में चन्द्रयान-3 लांच किया जाना है. और 2024 में मंगलयान का फ़ेज़ 2 शुरू होगा. भारत में बड़े-बड़े संस्थान है जिन्होंने भारत की तरक़्क़ी में अग्रणी भूमिका निभाई है. लेकिन इसरो इनमें अनूठा है. क्योंकि ये सब उपलब्धियां केवल भारत की नहीं बल्कि समूची दुनिया की हैं.

MIP से मिले डेटा से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि हो गई. (तस्वीर: ISRO)
इसी तरह बाक़ी दुनिया में जितने भी स्पेस exploration प्रोग्राम चल रहे हैं. उन सभी की सफलता में भारत भी भागीदार होगा. आज से 10 साल पहले जब पहली बार एलन मस्क ने मार्स की बात की थी तो लोगों ने उन्हें सनकी कहा था. सन 2000 में गुलज़ार से इस बारे में पूछा जाता तो वो कहते,
‘चांद पे रुकना, आगे खला है. मार्स से पहले ठंडी फ़िज़ा है’.लेकिन आज लगभग सभी लोगों को लगता है कि चाहे यह भविष्य में 50 साल आगे की बात हो. पर इंसान ज़रूर एक दिन मार्स पर कॉलोनी बना लेगा. मान लीजिए किसी दिन एलन मस्क मार्स पर पहुंच गए. मान लीजिए किसी दिन धरती का कांटैक्ट किसी एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रीयल एंटिटी से हो गया.
तो क्या हम अपना इंट्रोडक्शन देते हुए खुद को अमेरिकी, भारतीय, चीनी या रशियन बताएंगे? नहीं. उस दिन बात हम सिर्फ़ धरतीवासी होंगे और हमारा इंट्रोडक्शन होगा सिर्फ़ एक ‘मानव’.
हाल के दिनों में आपने सुना होगा, अमेज़न के मालिक जेफ़ बेजोस और वर्जिन ग्रुप के मालिक रिचर्ड ब्रैनसन अंतरिक्ष की सैर करके आए हैं. हो सकता है किसी दिन हम भी मार्स की यात्रा पर निकलें और चंद्रमा पर फ़्यूल भरने के लिए रुकें.