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बोर्ड की कॉपियां चेक करने वाले टीचरों ने बताया, कैसे आ जाते हैं दउरा भर-भर के नंबर

ये भी बताया कि इसके नुकसान क्या-क्या हैं.

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इस साल CBSE के बारहवीं के रिजल्ट निकलने पर पता चला कि टॉप करने वाली स्टूडेंट का एक भी नंबर नहीं कटा. (सांकेतिक तस्वीर: Pexels)
CBSE का 12वीं का रिज़ल्ट 13 जुलाई को आ गया. टॉप किया लखनऊ की दिव्यांशी जैन ने. 600 में से 600 नंबर हासिल किए. यानी 100 परसेंट. दिव्यांशी के सब्जेक्ट में दो लैंग्वेज थीं- हिंदी, इंग्लिश. ह्यूमैनटीज़ लिया था, इसलिए इतिहास, भूगोल और इकॉनमिक्स था. साथ ही एक एडिशनल सब्जेक्ट में इंश्योरेंस. इन छह सब्जेक्ट में उनका एक भी नंबर नहीं कटा.
इस तरह पूरे-पूरे नंबर आने को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. कि क्या किसी को एग्जाम में पूरे नंबर मिलने चाहिए? किसी की सभी आंसरशीट्स क्या इतनी परफेक्ट हो सकती हैं कि उसका एक भी नंबर न कटे? ख़ास तौर पर ये बात ह्यूमैनिटीज के विषयों में लागू होती है, जहां जवाब विवरणात्मक होते हैं. कई में क्रिटिकल एनालिसिस वाले. ऐसे में स्टूडेंट्स के सौ में से सौ नंबर कैसे आ सकते हैं?
ये समझने के लिए ‘दी लल्लनटॉप’ ने बात की कुछ ऐसे टीचर्स से, जो CBSE की बारहवीं की कॉपियां चेक करते हैं. अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर उन्होंने कई बातें हमें बताईं, जो हम आप तक पहुंचा रहे हैं.
Divyanshi Rajesh इस साल की टॉपर दिव्यांशी और उनके पिता राजेश. (तस्वीर: The Lallantop)

सबसे पहले तो ये समझ लीजिए कि कॉपियां चेक कैसे होती हैं.
देविका (बदला हुआ नाम) राजस्थान के एक स्कूल में पढ़ाती हैं. पिछले 28 साल से ये बोर्ड की कॉपियां चेक करती आई हैं. अब इनकी क्लास में इनके पढ़ाये हुए बच्चों के भी बच्चे एडमिशन लेकर पढ़ रहे हैं. उन्होंने हमें बताया,
"सबसे पहले तो जब हम कॉपियां चेक करने सेंटर जाते हैं, तो हमें एक स्पेसिमेन कॉपी दी जाती है. उसको अलग-अलग टीचर चेक करते हैं. नंबर देते हैं अपने हिसाब से. फिर हेड एग्जामिनर उसे चेक करता है. देखता है कि किसने कितने नंबर दिए हैं एक ही कॉपी को. फिर उन्हें बताता है कि कहां, क्या ठीक करना है. इसके बाद सेट हो जाता है कि कॉपी इस तरह चेक होनी है."
नंबर कैसे दिए जाते हैं?
देविका ने बताया कि अब तो 20 क्वेश्चन एक नंबर वैल्यू वाले हो गए हैं. उनमें फटाफट बस आंसर देकर काम चल जाता है. पहले ये पैटर्न नहीं था. पहले सब्जेक्टिव (विवरणात्मक) जवाब लिखने होते थे. अब ऐसा है कि टीचर्स की सिम्पथी भी स्टूडेंट्स के साथ होती है. एकाध नंबर हम बढ़ाकर ही दे देते हैं. देविका ने बताया कि उनसे कहा जाता है कि अगर स्टूडेंट ने कॉन्सेप्ट थोड़ा-बहुत भी समझकर लिख दिया है, तो उसे नंबर दे दिए जाएं.
उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया. एक बार वो एक कॉपी चेक कर रही थीं, जो इंग्लिश मीडियम के किसी बच्चे की थी. उसमें एक सवाल का जवाब उसने हिंदी में लिखा था. जैसे हम SMS भेजते समय हिंदी भी रोमन में टाइप करते हैं, वैसे. Jaise aap is waqt ye line padh rahe hain, theek usi tarah. तो उन्होंने अपने सेंटर पर पूछा कि इसका क्या करना है. तो उन्हें बताया गया कि अगर बच्चे ने जवाब सही लिखा है, तो उसे पूरे नंबर दीजिए. आप लैंग्वेज मत देखिए.
Untitled Design 2020 07 14t210922.314 पिछले कुछ साल में पूरे-पूरे नंबर मिलने बढ़े हैं. इसे 'लीनियेंट' मार्किंग भी कहा जाता है . (सांकेतिक तस्वीर: Pexels)

देविका ने आगे बताया,
"रिजल्ट भी अपग्रेड किए जाते हैं. एक स्टूडेंट तो ऐसी थी, जिसके एग्जाम में टोटल 84 नंबर हो रहे थे और 16 नंबर की गलती थी, मैंने चेक किया तो. लेकिन जब रिजल्ट आया, तो उसके उस सब्जेक्ट में टोटल नंबर 94 आए थे." 
रुम्पा (बदला हुआ नाम) हिस्ट्री और जियोग्राफी पढ़ाती हैं 11वीं-12वीं के बच्चों को. वो पिछले 20 साल से बोर्ड की कॉपियां चेक कर रही हैं. उन्होंने बताया,
“आम तौर पर ऐसा होता है कि हम सेंटर पर जाते हैं कॉपियां चेक करने. वहां एग्जामिनर होता है, फिर एडिशनल एग्जामिनर, और उसके ऊपर हेड एग्जामिनर. इस बार ऐसा कुछ नहीं था. इस बार कॉपियां घर भेजी गई थीं चेक करने के लिए. सब कुछ जल्दबाजी में हुआ. टेंथ का सोशल साइंस मैंने चेक किया.”
ये 100 में से 100 का क्या खेल है?
रुम्पा ने बताया,
“मैंने तो आज तक किसी को पूरे नंबर नहीं दिए. एक-दो बार मैंने फुल मार्क्स दिए भी बच्चों को. लेकिन दोबारा कॉपी देखने के बाद मैंने पाया कि उसमें से नंबर कम किए जा सकते हैं. इस बार कहीं न कहीं लूपहोल रहा शायद. क्योंकि हर बार की तरह व्यवस्था नहीं थी इस टाइम. तो एग्जामिनर खुद ही अपने स्कोर देने के लिए ज़िम्मेदार था.”
आखिर टॉपर के पूरे नंबर कैसे आए. ये पूछने पर रुम्पा ने बताया कि कुछ चीज़ें हैं, जो शायद टॉपर ने फॉलो की होंगी. उसने

# कीवर्ड्स फॉलो किए होंगे और अंडर लाइन किया होगा उनको

# पॉइंट्स में आंसर दिया होगा

# काफी साफ़-सुथरी और अच्छी हैंडराइटिंग में पूरा पेपर लिखा होगा.

एक दिन में 25 कॉपियां चेक करने वाले एग्जामिनर ने ये देखा होगा कि सब कुछ मैच हो रहा है, तो उसने नंबर दे दिए होंगे. लेकिन ये बहुत सरप्राइजिंग है कि 600 में से 600 नंबर आ जाएं किसी के.
Untitled Design 2020 07 14t210844.556 हर साल टॉप करने वालों के इंटरव्यू आते हैं. इस बार तो टॉप करने वाले का एक नंबर भी नहीं काटा गया. इसकी बाबत सोशल मीडिया पर जोक्स भी चल रहे हैं. लेकिन इसमें एक बड़ी दिक्कत है. (सांकेतिक तस्वीर: Pexels)

देविका बताती हैं कि जब कॉपी चेक होती है, तो लोग 100 नंबर देने से कतराते हैं, क्योंकि वो दोबारा चेक होती है. उसे खोलकर देखा जाता है कि इसमें ऐसा क्या है कि इसे 100 नंबर दिए गए. फिर एग्जामिनर को वो वापस बढ़ा दी जाती है कि इसे दोबारा देखकर नंबर काटे जाएं. वहीं अगर कोई फेल हो रहा होता है, तो उसके नंबर बढ़ा देने को कह दिया जाता है. अगर कम नंबर आते हैं लगातार, तो पूछा जाता है कि आपके सेंटर से इतने कम नंबर क्यों आ रहे हैं. पहले के मुकाबले टीचर्स को एनकरेज किया जाता है कि हाथ ढीला रखो. लेकिन हर सब्जेक्ट में पूरे मार्क्स कैसे आ सकते हैं, ये समझना मुश्किल है.
क्या पूरे नंबर देना सही है?
इस मामले में 'दी लल्लनटॉप' ने जितने भी टीचर्स से बात की, सभी का ये मानना था कि ये बेहद गलत है. न सिर्फ कम्पटीशन के लिहाज से, बल्कि बच्चे की ओवरऑल ग्रोथ के लिहाज से भी. कमोबेश सभी टीचर्स का यही कहना था कि इस तरह बच्चों को पूरे नंबर देने से उन्हें ये लगेगा कि वो परफेक्ट हैं. उन्हें कुछ और सीखने की ज़रूरत नहीं.
आगे चलकर ये बच्चे कॉलेज जाएंगे, तो उन्हें ये रियलाइज होगा कि रट्टा मारकर अब तक तो पढ़ लिया. नंबर भी ले आए. लेकिन अब इससे काम नहीं चलने वाला. कई ऐसे स्टूडेंट भी होते हैं, जो वैसे बहुत इंटेलिजेंट होते हैं, लेकिन रट्टा नहीं मार पाते. इस वजह से उनके नंबर कम हो जाते हैं. पूरे नंबर देने का ये भी मतलब है कि आंसरशीट में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, जो कि सच नहीं होता.
Untitled Design 2020 07 14t210821.679 मैथ्स, साइंस या स्टैटिस्टिक्स जैसे विषयों में नंबर नहीं कटते, अगर पूरे स्टेप्स फॉलो किए जाएं और जवाब सही हो तो. लेकिन सब्जेक्टिव विषय जैसे अंग्रेजी, पॉलिटिकल साइंस, हिस्ट्री इत्यादि में पूरे नंबर मिलना टीचर्स के हिसाब से भी ठीक नहीं. (सांकेतिक तस्वीर: Pexels)

टीचर्स के लिए क्या मुश्किल है?
देविका और रुम्पा ने बताया कि टीचर्स पर बहुत प्रेशर होता है. स्टूडेंट्स के सौ में से सौ नंबर लाने का. अगर किसी साल उनके सब्जेक्ट में किसी बच्चे के पूरे नंबर नहीं आते, तो स्कूल मैनेजमेंट इस तरह से देखता है टीचर्स को, जैसे उन्होंने पूरे साल ढंग से पढ़ाया ही नहीं. या उन्होंने कॉपी ढंग से चेक नहीं की. देविका ने बताया कि उनके कई स्टूडेंट्स के 99 नंबर आए हैं. लेकिन चूंकि किसी के 100 नहीं आए, तो इस बात को लेकर सवाल उठेंगे. इसलिए कई बार टीचर्स भी सोचते हैं कि नंबर दे दिए जाने चाहिए.
क्या हो सकता है गड़बड़झाला?
CBSE की मार्किंग स्कीम को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैं. 600 में से 600 तो एक स्टूडेंट के आ गए. लेकिन कई ऐसे स्टूडेंट्स भी हैं, जिनको उनकी उम्मीद से ज्यादा नंबर मिलते हैं. हमारे एक सूत्र ने हमें एक मैसेज भेजा. जो एक टीचर्स के ग्रुप से ही लिया गया था. वहां पर एक टीचर साफ़-साफ़ कहते नज़र आ रहे थे कि मुश्किल से पास हो सकने वाले बच्चों के भी 90-90 फीसद मार्क्स आए हैं. उन्होंने लिखा कि ये तो मज़ाक है. बच्चे इतनी एक्स्पेक्टेशन के साथ पास हो रहे हैं, आगे चलकर इन्हें जॉब नहीं मिलेगी, तो ये डिप्रेशन में आ जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि बधाइयां तो ऐसे दी जा रही हैं, जैसे मार्क्स बड़ा सच ही दिखा रहे हैं.
Untitled Design 2020 07 14t210947.935 यही बच्चे 12वीं के बाद कॉलेज जॉइन करेंगे, जहां पर क्रिटिकल एनेलिसिस पर फोकस किया जाता है. ऐसे में पूरे नंबर पाने वाले छात्रों को ये एक्सेप्ट करने में मुश्किल आ सकती है, कि उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है. ऐसा टीचर्स का मानना है.(सांकेतिक तस्वीर: Pexels)

जब से रिजल्ट आए हैं, एक तरफ लोग टॉप करने वालों की तारीफ करने में लगे हैं. दूसरी तरफ लोग ये कह रहे हैं कि जिनके नंबर कम आए, उन बच्चों को भी पूरा सपोर्ट मिलना चाहिए, जो कि जायज़ पॉइंट है. लेकिन इसके बीच महत्वपूर्ण मांग ये भी है कि CBSE को अपने मार्किंग के तरीके में सुधार करने की ज़रूरत है. और ये बात खुद उनकी कॉपियां चेक करने वाले टीचर्स कह रहे हैं.


वीडियो:CBSE के 12 वीं में 100% लाने वाली दिव्यांशी आगे क्या पढ़ने वाली हैं?