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16वें वित्त आयोग की शर्तें मंज़ूर, ये आयोग काम-धंधा क्या करता है, सब जान लीजिए

कुछ राज्य आमतौर पर केंद्र से मिलने वाले फंड को लेकर नाखुश होते हैं. वहीं, केंद्र पर भी दबाव रहता है कि वो प्रदर्शन के आधार पर राज्यों को मदद सौंपे. आयोग की सिफ़ारिशें अक्सर केंद्र और राज्य के बीच इसी घर्षण को स्मूथ करने के लिए होती हैं.

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नई दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर. (फ़ोटो - ANI)

सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने जानकारी दी है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16वें वित्त आयोग (Finance Comission) की रूपरेखा को मंज़ूरी दे दी है. लेकिन पैनल के सदस्यों पर फ़ैसला करना अभी बचा हुआ है. 

16वां वित्त आयोग अक्टूबर 2025 तक राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और उनकी सिफारिशें अप्रैल 2026 से 31 मार्च 2031 तक पांच साल के लिए वैध होंगी. मंगलवार, 28 नवंबर की रात कैबिनेट की बैठक हुई. 29 की शाम मंत्री अनुराग ठाकुर ने मीडिया को ब्रीफ़ किया. 

वित्त आयोग का काम क्या होता है?

वित्त आयोग, संविधान के अनुच्छेद-280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक बॉडी है. हर पांच साल पर इसका गठन होता है और पांच सालों में केंद्र और राज्यों के बीच पैसा कितना बंटेगा, कैसे बंटेगा, इसकी देख-रेख करता है. इस पर सिफ़ारिशें करता है. अंग्रेज़ी में fiscal fedralism या हिंदी में, राजकोषीय संघवाद को मज़बूत करने की दिशा में काम करता है. पब्लिक फ़ाइनैंस से जुड़ा मसला हो, शासन और विकास से संबंधित मुद्दे हों - जैसे ऋण प्रबंधन, आपदा राहत, स्वास्थ्य, शिक्षा - इस पर सरकार को सलाह देता है.

वित्त आयोग में एक चेयरपर्सन होते हैं और चार मेंबर. चेयरपर्सन को पब्लिक अफ़ेयर्स के मसलों पर भारी-भरकम अनुभव होना चाहिए. 1951 में आयोग के पहले अध्यक्ष बने थे क्षितिश चंद्र नियोगी. बंगाल से आने वाले नेता थे. संविधान सभा के सदस्य थे और आज़ाद भारत के पहले मंत्रिमण्डल में मंत्री भी. 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, अर्थशास्त्री और पूर्व-डिप्लोमैट नंद किशोर सिंह थे. अध्यक्ष के अलावा जो चार मेंबरान हैं, उनमें से एक होते हैं हाईकोर्ट जज. बाक़ी तीन मेंबर्स को फ़ाइनेंस और अर्थशास्त्र की अच्छी जानकारी होनी चाहिए.

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आयोग के दो मुख्य काम होते हैं. पहला कि जो नेट टैक्स जुटाया है, वो केंद्र और राज्यों के बीच कैसे बंटेगा. इसे कहते हैं, वर्टिकल डेवोल्यूशन. दूसरा काम है, राज्यों के बीच टैक्स का आवंटन कैसे हो. इसे कहते हैं, हॉरीज़ॉन्टल डेवोल्यूशन. इसके साथ ही अगर कोई राज्य देश से या ज़िला राज्य से ज़रूरत से ज़्यादा आर्थिक मदद मांगता है, तो इसपर भी वित्त आयोग की सलाह तलब की जाती है.

कुछ राज्य आमतौर पर केंद्र से मिलने वाले फंड को लेकर नाख़ुश होते हैं. वहीं, केंद्र पर भी दबाव रहता है कि वो प्रदर्शन के आधार पर राज्यों को सहयोह करे. आयोग की सिफ़ारिशें अक्सर केंद्र और राज्य के बीच इसी घर्षण को स्मूथ करने के लिए होती हैं.

आयोग के कुछ पुरानी सिफ़ारिशें -

पिछले कुछ बरसों में आयोग ने कई ऐसी सिफ़ारिशें की हैं, जिनका देश में पब्लिक फ़ाइनैंस और प्रशासन के अलग-अलग पहलुओं पर ज़रूरी प्रभाव पड़ा है. मिसाल के लिए,

- राज्यों के प्रदर्शन के आधार पर इंसेंटिव देना. ताकि वित्तीय अनुशासन आए, बिजली क्षेत्र में सुधार आए, जनसंख्या नियंत्रण और वन संरक्षण के लिए काम हो.

- प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयारियों और प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाने के लिए राज्यों और लोकल बॉडीज़ के लिए आपदा राहत कोष की शुरूआत की.

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- स्थानीय निकायों की वित्तीय स्वायत्तता मज़बूत करने के लिए ग्रांट्स की शुरूआत की.

- आयोग की वजह से ही समय के साथ राज्यों की हिस्सेदारी 10% से बढ़कर 42% हो गई है.

- स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय, सांख्यिकीय प्रणाली जैसे अलग-अलग क्षेत्रों के लिए ग्रांट्स की सुविधा.

इस वाले आयोग में क्या-क्या नया है?

अब ये नया आयोग ऐसे समय में आया है, जब केंद्र सरकार ने कुछ राज्यों के वित्तीय प्रबंधन को लेकर चिंता जताई है. कल्याणकारी ख़र्च, मुफ़्त सुविधाएं और राजकोषीय अनुशासन को लेकर चल रही बहस के बीच केंद्र के कई विशेषज्ञों ने राज्य स्तर पर वित्तीय सुधारों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

16वें वित्त आयोग के लिए टर्म्स ऑफ़ रेफ़रेंस (TOR) अभी अधिसूचित की जाएंगी. TOR माने ऐसे दस्तावेज़, जो किसी प्रोजेक्ट, समिति या बैठक के उद्देश्य और संरचना का पूरा ब्योरा देते हों. पूरा ब्योरा अभी आया नहीं है. न ही चेयरपर्सन का नाम तय हुआ है. जो मुख्य बातें आई हैं, वो बता देते हैं -

- 16वां वित्त आयोग महामारी के बाद गठित होने वाला पहला आयोग होगा. इसीलिए उनका काम होगा कि उच्च ब्याज वाली व्यवस्था को बैलेंस करे और वैश्विक मंदी की वजह से जो चुनौतियां आई हैं, उनसे निपटे.

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- प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत, निम्न-आय वाले परिवारों को मुफ्त राशन दिया जाता है. हर महीने परिवार के हर सदस्य को 5 किलोग्राम अनाज दिया जाता है. मौजूदा वक़्त में सरकारी दावे के मुताबिक़, 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी इस स्कीम के लाभार्थी हैं. अब कैबिनेट ने इस योजना के कार्यकाल को 1 जनवरी 2024 से अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया है. अतिरिक्त ₹11.8 लाख करोड़ रुपयों का आवंटन किया जा रहा है.

- कैबिनेट ने 15,000 महिला स्वयं सहायता समूहों को कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन देने की योजना को भी मंज़ूरी दे दी है.

पिछले आयोग में दक्षिणी राज्य का कोई प्रतिनिधि नहीं था. इस बार भी दक्षिण की अनदेखी विवाद का विषय बन सकता है. क्योंकि 'डाउन साउथ' के राज्यों में जनसंख्या कम है और ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडिकेटर्स बेहतर हैं. ऐसे जनसंख्या के भार के आधार पर वित्तीय पुनर्वितरण प्रक्रिया में उनके शेयर कम हो जाते हैं.