यूपी के दो बाहुबली, जिनके समर्थक पहले एक दूसरे के सामने आते थे, ये तय था कि गोलियां चलेंगी, लाशें गिरेंगी. लेकिन अब समय शायद वैसा नहीं है. अब ये दोनों बाहुबली एक दूसरे के सामने आने वाले हैं. एक ही कमरे में. एक ही कोर्टरूम में. सशरीर. न कोई वीडियो कॉन्फ़्रेन्सिंग, न ही कोई बहाना. क्यों? क्योंकि कोर्ट ने तलब किया है. ग़ाज़ीपुर की MP-MLA कोर्ट ने . उसरी चट्टी कांड में.
एक दूसरे के सामने आए बृजेश सिंह और मुख़्तार अंसारी, आख़िरी मुलाक़ात में चली थी कई राउंड गोली!
जानिए उसरी चट्टी कांड के बारे में भी.
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ये दो बाहुबली हैं मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह. और उनकी अदावत की कहानी प्रसिद्ध है पूरे देश में. तो क्या है उसरी चट्टी कांड? क्या हुआ था साल 2001 के उस दिन, जब भयानक उमस भरी दुपहरी में मुख़्तार अंसारी पर हमला हो गया. गोलियां चली और लाशें भी गिरी.
उसरी चट्टी कांडकैलेंडर में तारीख़ लगी 15 जुलाई 2001 की. दोपहर करीब साढ़े 12 बज रहे थे. ग़ाज़ीपुर में मौजूद मुहम्मदाबाद में मुख़्तार अंसारी का घर है. यहां उनके भाई-पटिदार सब आसपास ही रहते हैं. इस घर को कहा जाता है - फाटक. मुख़्तार अंसारी का इस दिन का प्लान था बग़ल के ज़िले मऊ जाने का. ग़ाज़ीपुर और मऊ ये दोनों ज़िले अंसारी परिवार का गढ़ रहे हैं. इस ‘गढ़’ का मतलब राजनीतिक भी हो सकता है, सामाजिक भी हो सकता है और इसे दबंगई के अनुवाद में भी देखा जा सकता है.
बहरहाल, इस 15 जुलाई के दिन मुख़्तार अंसारी का क़ाफ़िला रेडी हुआ. साथ में बंदूक़धारी अंगरक्षक भी थे. फाटक से गाड़ियां बाहर निकलीं. लेकिन इस दिन कुछ अलग होना था. तो गाड़ियां जब फाटक से क़रीब 5 किलोमीटर दूर पहुंचीं तो सामने एक ट्रक खड़ा हुआ था. ट्रक के अंदर से कुछ हथियारबंद हमलावर निकले. उनके पास अत्याधुनिक बंदूक़ें थीं. मुख़्तार के क़ाफ़िले पर हमला होने वाला था. बंदूकों से बेमुरव्वत फ़ायर झोंक दिया गया. क़ाफ़िले की हरेक गाड़ी को निशाना बनाया गया. उस गाड़ी को भी, जिसमें मुख़्तार अंसारी ख़ुद मौजूद थे. मुख़्तार के साथ मौजूद लोगों ने भी जवाब देना शुरू किया. जवाबी फ़ायरिंग शुरू हुई. जब फ़ायरिंग रुकी तो चारों तरफ़ कारतूस के खोखे पड़े हुए थे. और तीन लाशें भी गिरी हुई थीं. एक हमलावर. एक मुख़्तार का गनर और एक मुख़्तार का सहयोगी. बस ये तीन. मुख़्तार को इस हमले में फिर से एक जीवनदान मिला था.
लेकिन मुख़्तार को एक कन्फ़्यूज़न भी था. वो ये कि शायद इस हमले में हुई जवाबी गोलीबारी में बृजेश सिंह भी मारा गया था. वही बृजेश सिंह, जिस पर ये हमला करवाने का मुक़दमा लिखा जाने वाला था. पूर्वांचल का ही एक और बाहुबली. कभी नाम के आगे माफिया डॉन भी लिखा जाता है, तो कभी पूर्व MLC भी लिखा जाता है. फ़िलहाल जेल से बाहर.
इस गोलीबारी की घटना को ही कहा गया उसरी चट्टी कांड.
बहरहाल, मुख़्तार ख़ेमे को एक लम्बे समय तक भरोसा था कि इस हमले में बृजेश सिंह की मौत हो चुकी है. इस घटना को कवर करने वाले बनारस के पत्रकार पवन सिंह बताते हैं,
“शोर हुआ कि बृजेश सिंह मारा गया. कहा ये भी जाता है कि खुद मुख़्तार चीख-चीखकर कहता रहा कि बृजेश को मार दिया. घटना के कई दिनों तक लोगों को यही लगा कि बृजेश सिंह मर चुका है.”
टीवी पर और अख़बारों में मारे जाने की अफ़वाह फैल भी गई. अफ़वाह ये तक फैली की ‘पत्नी ने सिंदूर लगाना बंद किया’ और ‘मां का रोकर बुरा हाल’ सरीखे हेडर अख़बारों के छापेखाने में चलने लगे. लेकिन पुलिस को पता था कि बृजेश ज़िंदा है. इधर मुख़्तार ने अपने ऊपर हुए हमले के मामले में FIR दर्ज कराई. बृजेश सिंह और उसके सहयोगी त्रिभुवन सिंह समेत 15 अज्ञात हमलावरों के खिलाफ. इस समय मुख़्तार के रसूख़ का अलग लेवल था. कुछ ही दिनों में बृजेश की मौत की ख़बर अफ़वाह निकली. पता चला कि बृजेश सिंह घटना के बाद फ़रार है.
पुलिस ने बृजेश सिंह को ढूंढना शुरू किया. कहीं नहीं मिला. बस ख़बरें मिलीं. ख़बरें ये कि बृजेश सिंह यूपी से बाहर रहकर अपना काम कर रहा था. अपना काम चला रहा था. कथित तौर पर अपने गैंग को ऑपरेट कर रहा था.
बृजेश सिंह की गिरफ्तारीबृजेश सिंह की गिरफ़्तारी के बाद मुख्तार अंसारी से बात करने वाले पत्रकारों में पवन सिंह भी थे. उन्होंने बताया कि मुख्तार को पूरी तरह यकीन नहीं था कि बृजेश सिंह ज़िंदा है. मुख्तार ने बातचीत में कहा कि बृजेश की काली कमाई को ज़ब्त कराने के लिए काम करने की ज़रूरत है. पवन सिंह बताते हैं कि बृजेश सिंह कोयला और शराब का काम था, वहीं मुख्तार रियल एस्टेट से लेकर ठेकेदारी, शराब, स्क्रैप और कोयले के धंधे में पैठ बना चुका था.
लेकिन इस घटना के 2 साल बाद एक बार फिर से बृजेश सिंह और मुख़्तार अंसारी का आमना सामना हुआ. पवन सिंह बताते हैं कि लखनऊ के कैंटोन्मेंट इलाके में साल 2003 में गोलीबारी हुई थी जिसमें कृष्णानंद राय, बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी का आमना सामना हुआ था. और संभवत: यही वो आख़िरी घटना थी, जिस समय इन दोनों माफियाओं का आमना सामना हुआ था. उन्होंने बताया कि इस मामले में दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर जमकर फायरिंग की थी. जिसके बाद दोनों पक्षों को थाने में बिठाया गया था. हालांकि रसूख़ की वजह से दोनों ही पक्ष जेल से बाहर आ गए.
साल 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या हो गई. नाम आया मुख़्तार अंसारी का. गुर्गे के तौर पर नाम चला मुन्ना बजरंगी का. इस समय बृजेश सिंह ने यूपी का हिसाब फिर से छोड़ दिया. ओडिशा चला गया. इधर फिर से बृजेश सिंह के मौत की ख़बरें चलने लगीं. बाद में 2008 में स्पेशल सेल ने ओडिशा से अरेस्ट किया, जहां वो उस वक़्त भेष बदल कर रह रहा था.
बृजेश सिंह जेल गया, कुछ दिनों बाद मुख़्तार अंसारी को भी जेल जाना पड़ा. अभी बृजेश ज़मानत पर बाहर है, और मुख़्तार गैंगस्टर के एक मामले में सज़ायाफ़्ता. व्यक्तिगत तौर पर दोनों ही राजनीतिक रूप से अपनी ज़मीन खो चुके हैं, लेकिन परिवार में ये स्थिति नहीं है. बृजेश सिंह ख़ुद भले ही किसी पद पर न हो लेकिन पत्नी अन्नपूर्णा सिंह एमएलसी हैं. और भतीजे सुशील सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से विधायक हैं. भाजपा के टिकट पर.
इधर मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी ख़ुद ग़ाज़ीपुर से सांसद हैं. बसपा के टिकट पर. मुख़्तार के बड़े बेटे अब्बास अंसारी विधायक हैं, मऊ सदर की सीट से, सुभासपा के टिकट पर. और मुख़्तार के बड़े भाई सिबगतुल्ला अंसारी के बेटे सुहैब अंसारी उर्फ़ मन्नू अंसारी सपा के टिकट पर विधायक हैं ग़ाज़ीपुर सदर की सीट से.
20 दिसंबर 2022 को होने वाली सुनवाई के पहले जज ने कहा था - कोई बदलाव नहीं होगा, कोई बहाना नहीं चलेगा. ख़बर लिखे जाने तक कोर्टरूम से कोई अप्डेट नहीं. दिन बढ़ने का बयान, फिर कभी.
(ये स्टोरी हमारे साथी रणवीर ने लिखी है)
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