'पियवा से पहिले हमार रहलू.'

इसी गाने की वजह से चर्चा में आए थे रितेश पांडे.
जो लोग रितेश को नहीं भी जानते थे, वो उन्हें इस गाने से जान गए. इस गाने के बाद उन्होंने एक और गाना गाया. इस बार गाना और भी अश्लील था. गाने के बोल थे-
'पांडे जी का बेटा हूं, चुम्मा चिपक के लेता हूं.'

इस गाने के बाद भी किसी पांडेजी को कोई दिक्कत नहीं हुई.
'दूबे जी का बेटा हूं.'

दूबेजी को भी बेटे पर कोई आपत्ति नहीं हुई.
इन दोनों गानों की 'अपार सफलता' के बाद बाजार में बेटों की बाढ़ सी आ गई. तिवारी जी के बेटे, कुशवाहा जी के बेटे, वर्मा जी के बेटे, कुशवाहा जी के बेटे और मिश्रा जी के बेटे भी मैदान में आ गए. सबके बेटे चिपक के चुम्मा लेने लगे. किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. लेकिन इसके बाद एक और गाना आ गया. इस बार गाने के बोल थोड़े अलग थे. इस गाने में 'बेटे' की जगह पर पांडे जी की 'बेटी' आ गई. और इस गाने को गाया अजय लाल यादव सागर ने. इस गाने के बोल थे-
'पांडे जी की बेटी है, चुम्मा चिपक के देती है.'


अजय लाल यादव ने सीजेएम कोर्ट में सरेंडर किया था, जहां से जमानत मिल गई थी.
लेकिन ये कौन सा प्रबुद्ध समाज है, जो बेटे के चिपक के चुम्मा देने पर खुश हो जाता है और बेटी के चिपक के चुम्मा देने पर नाराज़. ये कौन सा प्रबुद्ध समाज है, जिसे पियवा से पहिले हमार रहलू गाना सुनने में अश्लील नहीं लगता है, क्योंकि उसे अजय लाल यादव सागर ने नहीं, रितेश पांडे ने गाया है. भोजपुरी में उसे अश्लीलता तभी दिखाई देती है, जब चिपक के चुम्मा देने के लिए बेटी को गाने में लाया जाता है. क्या अगर पांडे जी की बेटी वाला गाना नहीं आया होता, तो भोजपुरी में अश्लीलता नहीं होती. अगर भोजपुरी में प्रबुद्ध समाज वाकई है, तो उसे हर उस गाने का विरोध करना चाहिए, जो अश्लीलता फैलाता है. उसे पांडे जी का बेटा का भी विरोध करना चाहिए और पांडे जी की बेटी का भी. उसे पियवा से पहिले हमार रहलू का भी विरोध करना चाहिए और छलकता हमरो जवनिया का भी. सिर्फ सेलेक्टिव विरोध करने से न तो भोजपुरी बचेगी और न ही उसमें से अश्लीलता खत्म होगी. होगा सिर्फ इतना कि जिसे लोग नहीं भी जानते हैं, उसे बैठे-बिठाए पब्लिसिटी मिल जाएगी.
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